वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

22 अप्रैल 2023 का “अपने सहकर्मियों की कलम से” सेगमेंट। योगेश जी और युवा सैनिकों का स्वागत 

सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट, जिसे आप सबका अनवरत सहयोग लोकप्रिय बना रहा है, आपके समक्ष प्रस्तुत है। हर सप्ताह इतना कुछ योगदान होता है कि हमारे लिए चयन करना एक चुनौती होती है, हम तो “जय गुरुदेव” कह कर लग जाते हैं और वीणा वादिनी माँ सरस्वती स्वयं ही कलम चलाती जाती है। 

आज इस सेगमेंट में योगेश कुमार जी के  मोबाइल ज्ञानरथ की जानकरी प्राप्त होगी, बेटी अनुराधा पाल का परिवार में  स्वागत होगा और अंशु-जीतेश जोड़ी की प्रथम  मैरिज एनिवर्सरी पर  शुभकामना होगी । 

बहिन रेणु जी का कमेंट शुभरात्रि सन्देश में शामिल करके हम गुरुदेव को सहकर्मियों के ह्रदय में उतारने  का एक और विकल्प बता रहे हैं। बहिन जी एवं हमारे कुछ अन्य  सहकर्मी अत्यंत श्रद्धा से कमेंट लिखते हैं, अगर किसी कारणवश आप पूरे ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने में असमर्थ हों  तो ऐसे कमेंट देख लिया करें। 

सरविन्द पाल जी से क्षमा प्रार्थी हैं कि जो विवरण आपने लिख कर भेजा था उसका मेजर भाग अलग से पोस्ट करेंगें, एक पूरे लेख जितना है। योगेश जी से निवेदन है की अगर कोई करेक्शन करनी है तो हमें बता दें। 

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1. योगेश कुमार जी के  मोबाइल  ज्ञानरथ का विवरण उन्ही के शब्दों में :  

मैं  गुरूदेव से जुडने से पहले नास्तिक था।  1992 में  किसी काम से तपोभूमि मथुरा के सामने अपने दोस्त से मिलने गया था। वह घर नही था, मैं  घर में  क्या बैठता, समय काटने के लिए तपोभूमि चला गया और वहां  साहित्य स्टाल पर देखने लगा।  काउन्टर पर रखी गायत्री महाविज्ञान की पुस्तक  देखी, उठाकर खड़े-खड़े ही  पढने लगा। पुस्तक अच्छी लगी, पढने का शोक था, मात्र 15  रूपये मे खरीद ली।  पुस्तक इतनी  अच्छी  लगी  कि हर हफ्ते तपोभूमि जाने लगा और हर महीना 500  रूपये की पुस्तकें  खरीद कर पढ़ने  लगा।  करीब 4  साल गुरूदेव का साहित्य पढ़ता  रहा। 

1996 में  26 जनवरी की  बसंत पंचमी को दीक्षा लेकर परिवार से जुड़  गया।  साहित्य पढ़ना  और पढ़ाना  शौक  बन  गया।  फिर अखंड ज्योति  संस्थान मथुरा मे आदरणीय श्री गोपाल कृष्ण चतुर्वेदी के सानिध्य में जुड़  गया और समयदान करने लगा। आंवलखेड़ा  की तरफ से साईकिल यात्रा की, फिर वांग्मय  की टोली में चला।  इसी बीच पंडित लीलापति शर्मा जी  का प्रवचन सुना। उन्होनें  बताया  कि गुरूदेव कहते हैं :  2  आने की मेहनत मेरी, 2  आने की तेरी;  मैंने  लिखा और तूने छापा, शेष 12  आने की उसकी जो इस साहित्य को घर-घर पहुंचायेगा।  उसी समय संकल्प ले  लिया कि 12  आने का काम करना है। तभी से  साहित्य के लिए काम कर रहा हूँ। 

2010 में  ज्ञानरथ बनाने और चलाने का विचार आया , सहयोगियों के समक्ष  प्रस्ताव रखा।  डेनमार्क निवासी  बहन सरस्वती राम जी  के आगे प्रस्ताव रखा। उन्होनें  सहर्ष स्वीकार कर लिया।  एक लाख रुपए दिल्ली में  दिये और अपनी साथी बहनजी से 50000  रुपए दिलवाये। 3.5 लाख रूपए  मैनै स्वंय लगाकर निर्माण किया और ज्ञानरथ चला दिया। 

इस ज्ञानरथ को चलाने में  हर साल जेब से करीब 50000 रुपए लगाता हूँ। 3.5 लाख  पहले साल लगाये, इसके अलावा स्वाति मिल्क,आगरा ने 11000 रूपए  का सहयोग, रुक्मणी सेंगर ने 10000, औसलो नॉर्वे निवासी विनोद बाला थापर  ने टी वी के लिए 21000 रुपए  दिए।  और भी  सहयोगी रहे जिनके  नाम में  भूल  रहा हूँ। 

गुरूदेव से मैं  1996 में  जुड़ा लेकिन  यह ज्ञानरथ गुरूदेव का ही  स्वरूप है।  करोना होने पर गुरूदेव ने जीवनदान दिया।  इसे चलाने में प्रतिदिन चार घन्टा समय दे रहा हूँ।  यह गाडी टाटा एस, छोटा हाथी है।मैं  तो समझता हूँ कि  गुरूदेव ने हाथी पर बैठा दिया है गुरूदेव ने एक दिन इस ज्ञानरथ पर आकर मेरा डिप्रेशन में  उत्साहवर्धन किया है।  उस घटना को  फिर कभी  लिखूंगा। 

कुछ लोगों ने  मिशन में मेरी  शिकायत की कि मैंने  विदेश से पैसा लिया है। मैंने  अपने लिये तो लिया नहीं है, ज्ञानरथ के नाम से लिया है जिसे बारह साल से आज भी  चला रहा हूँ।  जीविकोपार्जन के लिए  प्रतापपुर आगरा में  स्टैम्प विक्रेता हूँ, अविवाहित हूँ। आज तक पुस्तक मेला या गुरुदेव के किसी भी कार्य  से गया तो कोई TA/DA नही लिया गुरूदेव की कृपया से सब ठीक चल रहा है। ज्ञानरथ से खरीदी कोई भी  पुस्तक पसन्द न आने पर 100% वापिस की गारन्टी देता हूँ। 

बीच-बीच मे कालनेमियों  ने हिसाब किताब गड़बड़  कर लाखों  रूपये का नुकसान किया। वोह कालनेमि आज गुरूदेव की कृपा से संसार में नही हैं।  गुरूदेव तो कालनेमियो के काल बन गये इसलिए उनका  नाम लिखना उचित नही है। 

शांतिकुंज में शैलदीदी को  ज्ञानरथ बन्द करने के लिए लिखा, उन्होंने कहा कैसे  भी चलाओ, बंद नहीं करना है। किसी  प्रकार से चला ही  रहा हूँ।  इस साल भी मरम्मत मे 50000  रुपए लगे हैं। मुझे विश्वास है कि  बिना गुरूदेव की कृपया के ज्ञानरथ  चल ही नहीं  सकता। कालनेमियों  ने खूब व्यवधान किया, खूब आरोप लगाए लेकिन “हाथी को देखकर कुत्ता भोंकता  है” वाली बात याद आती है। आज भी यह सब ज्ञानरथ पर लिखा है

एक बार यह ज्ञानरथ मथुरा  के गायत्री परिवार को दिया, वह भी चला नहीं  पाये।  एक बार 6  महीने के लिए अयोध्या के  श्री अरविंद जी ने चलाया, फिर वापस कर दिया।  इसे चलाने मे बहुत शक्ति लगती है।

आइए हाथी कुत्तों वाली कहानी का भी आनंद उठा लें।  

हम में से लगभग सभी ने देखा होगा कि हाथी जब चलता है तो हमेशा  झूमते हुए चलता है। यह भी देखा होगा कि अगर किसी गाँव में हाथी आ जाए, तो  गाँव के वयोवृद्ध श्रद्धालु हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं और  बच्चों से कहते हैं- हाथ जोड़ो गणेश जी आये हैं। सभी लोग हाथी के आगे हाथ जोड़े खड़े हो जाते हैं। लेकिन एक विडंबना है कि गाँव के सभी कुत्ते जितना हाथी के पीछे पड़ते हैं उतने शायद ही किसी और के पीछे पड़ते हों। 

यह एक प्रचलित नियम है कि जिसकी स्तुति होगी उसी की निंदा भी होगी। लोग जिसके सामने हाथ जोड़े खड़े होंगे, चुगली-निंदा  वाले उसी के पीछे पड़े  होंगे। हमारे मन में हमेशा यह प्रश्न उठता रहा  कि आखिर कुत्तों को हाथी से क्या वैर है। गणेश भगवान् पर  कुत्ते क्यों भौंकते हैं ? आखिर कुत्तों से ही पूछ लिया कि आपको गणेश जी से क्या प्रॉब्लम है ? कुत्तों से बस एक ही उत्तर मिला, 

“हमें हाथी से कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ तो हमें उनसे है जो हाथी के  आगे हाथ जोड़े खड़े हैं, हमें  वो सहन नहीं होता, बस! और कोई कारण नहीं है ।”

हमारा  विवेक यही कहता है कि  कुत्तों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो आगे आकर भौंकें । कुत्ते कभी आगे आकर भौंकते नहीं और पीछे भौंकना बंद करते नहीं। हाथी को इस बात का ज्ञान होता है लेकिन इसीलिए उसकी  चाल में मस्ती लगातार बनी रहती है क्योंकि हाथी की एक विशेषता होती है , “वह हाथ जोड़ने वालों के पास ठहरता नहीं और कुत्तों को मुड़कर देखता नहीं।”

यह उदाहरण हर काल में प्रासंगिक है: “हाथ जोड़ने वाले आगे खड़े हैं और भौंकने वाले पीछे पड़े हैं लेकिन भगवान का भक्त गजराज भगवान के भरोसे झूमता हुआ  चल रहा है।

2.ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के नए युवासैनिक

हमारे सहकर्मी देख रहे होंगें कि कुछ दिनों से हमारे साथ कई नए साथी जुड़ रहे हैं हैं।   कुछ नए साथियों से तो कमैंट्स द्वारा आपका संपर्क हो चुका  है, केवल एक ही सहकर्मी है जिसका परिचय हम अब देने का प्रयास कर रहे हैं , वोह है हमारे समर्पित सहकर्मी आदरणीय सरविन्द पाल जी की छोटी बेटी अनुराधा पाल। बेटी के बारे में विस्तृत जानकारी देने से पहले बता दें कि बबली बिशाखा बेटी से आप परिचित हो चुके हैं ,साधना सिंह बहिन से स्कूल में ही कार्यरत हैं। बेटी बबली 24 आहुति संकल्प सूची में नाम आने से इतनी प्रसन्न हुई कि शब्द वर्णन नहीं कर सकते।  “कमेंट- काउंटर कमेंट” प्रक्रिया का यह एक और लाभ सामने आया “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार” किसी को प्रसन्नता प्रदान भी कर सकता है। साधना जी की बेटी उपासना भारद्वाज DPS Ranchi में शिक्षक है। उसे भी आप सब भलीभांति जानते हैं। पिंकी पाल, सरविन्द भाई साहिब की बड़ी बेटी है,जो कुछ समय के hiatus (छुट्टी ) के बाद वापिस आयी है और नियमितता से अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रही है। सरविन्द पाल जे के बेटे आयुष से भी आप भली भांति परिचित हैं। 

सरविन्द जी लिखते हैं :  पिंकी पाल, अनुराधा पाल व आयुष कुमार पाल नाम के हमारे तीन बच्चे हैं और तीनों बच्चे इस समय कानपुर सिटी में किराए के मकान में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं,  बड़ी बेटी पिंकी पाल का इस वर्ष BSc बायो से फाइनल हो गया है, दूसरी बेटी अनुराधा पाल BSc बायो से प्रथम वर्ष में पढ़ रही है और बेटे  आयुष कुमार पाल ने पिछले वर्ष High school पास किया है। आयुष  प्राथमिकता के रूप में Cricket coach KDMA के सानिध्य में Cricket match की तैयारी कर रहा है l परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि से तीनों बच्चे बहुत ही संस्कारित हैं और जो भी काम करते हैं या फिर कहीं भी जाते हैं तो सर्वप्रथम परम पूज्य गुरुदेव को प्रणाम करते हैं और जो भी जितना हो सकता है गायत्री महामंत्र का जाप करते हैं।  धीरे-धीरे इन सभी में  परम पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धा व विश्वास बढ़ रहा है और सभी बच्चों को परम पूज्य गुरुदेव का सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य मिल भी  रहा है। ऐसा कहने में  तनिक भी संदेह व संशय नहीं है क्योंकि मिशन में आने से पहले बच्चों ने बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना किया लेकिन गुरुदेव की कृपा दृष्टि से आज सब कुछ ठीक हो गया है।  

बेटी अनुराधा ने कुछ दिनों से व्हाट्सप्प पर प्रत्येक ज्ञानप्रसाद  लेख पर कमेंट करना आरम्भ  भी कर दिया है। हमने उसे यूट्यूब पर कमेंट करने के लिए भी आग्रह किया है, आशा है  शीघ्र ही हमारे आग्रह का सम्मान होगा। 

सभी सहकर्मियों से हमारा एक ही आग्रह रहता है : नियमितता का संकल्प और अनुपस्थिति का सूचित करना। आखिर  परिवार जो ठहरा -वैसे तो इस संकल्पित परिवार के  मानवीय मूल्यों का बार-बार स्मरण कराना हम सबका कर्तव्य है लेकिन सबसे बड़ा उत्तरदाईत्व हम कन्धों पर लिए बैठे हैं।  हमें यह भी नहीं  भूलना चाहिए “ बच्चे आखिर बच्चे ही तो हैं”

3. बेटी अंशु और चिरंजीव  जीतेश  की प्रथम मैरिज एनिवर्सरी 

हमारी समर्पित  सहकर्मी सुधा शर्मा से  तो आप सब यूट्यूब पर कमैंट्स के माध्यम से परिचित हैं। सुधा बहिन जी कुसुम त्रिपाठी जी की सहकर्मी हैं, नियमित ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कर रही हैं, यह भी भोजपुर आरा से ही हैं। बहिन सुधा जी का  हमारे साथ व्हाट्सप्प पर कनेक्शन न  होने के कारण उन्होंने कुसुम जी के माध्यम से बताया  कि आज उनकी  इकलौती बेटी अंशु की प्रथम मैरिज एनिवर्सरी है।  हम सब बेटी अंशु और चिरंजीव जीतेश के मंगलमय जीवन की कामना करते हैं।

आज  की  24 आहुति संकल्प सूची  में परिश्रम के बावजूद केवल  5  युगसैनिक ही पूर्णाहुति प्रदान कर सके। यूट्यूब की समस्या के आगे किसी का कोई बस नहीं चलता। सुजाता  बहिन  जी को छोड़कर सभी के अंक भी लगभग एक जैसे ही हैं, सभी को गोल्ड मैडल से सम्मानित करना उचित रहेगा।  (1) चंद्रेश बहादुर-35 ,(2) सुजाता उपाध्याय-26 ,(3)रेणु श्रीवास्तव-33  ,(4)संध्या कुमार-36   ,(5) सरविन्द पाल-33  

सभी विजेताओं को हमारी  व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।

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