वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

वंदनीय माता जी की 1993 की विदेश यात्रा 

महाशक्ति की लोकयात्रा

विश्वमाता विश्वभर में फैले अपने बच्चों को प्यार-दुलार देने की तैयारियां करने लगीं। वैसे तो अकेला विश्व क्या अनंत-अनंत ब्रह्मांड उनके जाने-पहचाने थे। सूक्ष्मशरीर से उन्होंने अनेकों रहस्यमय यात्राएं की थीं। बच्चों की प्रेम भरी पुकार पर दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचना उनका स्वभाव था। कभी स्वप्नों के माध्यम से तो कभी ध्यान की भावदशा में वह अपनी संतानों के हृदय को अनोखी तृप्ति दिया करती थीं। वंदनीय माताजी  यह सब  सूक्ष्मशरीर से करती थीं, स्थूल देह से तो  उन्होंने कभी कोई विदेश यात्रा की ही नहीं  थी और  ऐसा करने की उनकी अपनी कोई चाहत भी न थी । प्रवासी परिजनों की बहुतेरी ज़िद  के बाद उन्होंने पहली बार  विश्वयात्रा का मन बनाया । इस यात्रा के बारे में उन्होंने हामी भरते हुए कहा,

“मेरा मन तो नहीं है लेकिन  बच्चे परेशान हैं इसलिए सोचती हूं एक बार जाकर उनसे मिल ही लूं, उनका भी  मन रह जाएगा।”

1. विदेश में पहला अश्वमेध महायज्ञ 8-13 जुलाई 1993 

वंदनीय माता जी के  हां करने के बाद पासपोर्ट-वीज़ा आदि की विभिन्न सरकारी औपचारिकताएं पूरी हुईं। विदेशों में कार्यक्रम की तिथियां निश्चित हुईं। इस क्रम में पहला अश्वमेध महायज्ञ इंग्लैंड के लेस्टर (Leicester, England)  नामक स्थान में 8 से 11 जुलाई 1993 में आयोजित किया गया। 3 से 6 मई  1993 को भुवनेश्वर अश्वमेध का कार्यक्रम था। उसके बाद एक-डेढ़ महीना  माताजी शांतिकुंज में रहीं। बाद में निर्धारित तिथि पर उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया । इंग्लैंड के परिजनों के लिए उनका पहुंचना स्वप्नों के सच होने जैसा था। उनकी उपासना की अनुभूति प्रत्यक्ष हो रही थी। बड़ी संख्या में वे सब उन्हें लेने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे। वंदनीया माताजी के जयघोष और परिजनों की श्रद्धा से भीगे नेत्रों ने हवाई अड्डे के कर्मचारियों को भी श्रद्धा से भिगो दिया। इतिहास साक्षी है कि इससे पहले भी अनेकों साधु-संत भारत से इंग्लैंड गए थे, उनका भी  भरपूर सम्मान  हुआ था, उन पर भी फूल-मालाओं की बौछार और जय-जयकार की गुंजार  देखी गई थी लेकिन परिजन  किसी के लिए इतने तीव्र प्यार  से नहीं उमड़े थे जितने वंदनीय माताजी के लिए उमड़े थे, किसी के लिए इतनी आंखों नहीं भीगी थीं। एयरपोर्ट के कर्मचारियों ने इस अंतर्  को बहुत ही  साफ-साफ अनुभव किया। उन्होंने परिजनों से जिज्ञासा की कि  ये कौन हैं? उन्हें उत्तर मिला, हम सबकी मां आई हैं। पता नहीं इस उत्तर से उनमें से किसको क्या समझ आया लेकिन उनमें से अनेकों ने “शी इज डिवाइन मदर ( She is Divine Mother) ”  कहते हुए माताजी के चरण स्पर्श किए। माताजी ने भी उन्हें जी भरकर आशीष दिए। उनके लिए तो सभी उनके बच्चे थे। जो भी मां! मां!! कहते हुए उनके पास दौड़ा चला आए, वही उनका सबसे ज्यादा लाड़ला था। लेस्टर का कार्यक्रम निर्धारित समय पर विशिष्ट विधि-विधान से शुरू हुआ। श्री कीथवाज, लार्ड मेयर एवं श्री जान मूडी आदि इस कार्यक्रम के विशिष्ट अभ्यागत बने। वहां की सरकार व समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त ये विशिष्ट जन माताजी की ममता का स्पर्श पाकर अनुग्रहीत हुए। इंग्लैंड में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त श्री लक्ष्मीमल सिंघवी भी सपत्नीक इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। अश्वमेध महायज्ञ के लिए निश्चित किए गए विधि-विधान के साथ ही माताजी ने वहां के लोगों को दीक्षा दी। यह दीक्षा कार्यक्रम कई अर्थों में अनूठा था। इसमें भागीदार होने वालों के मन-प्राण अनेकों विलक्षण अनुभूतियों से भर गए। इसमें से अनेकों ने मंत्राक्षरों को सुनहरे अक्षरों में अपने भीतर अवतरित होते हुए देखा। कुछ ने गायत्री माता की एक झलक पाई। कइयों के सालों पुराने असाध्य रोग दीक्षा लेते ही जड़ से चले गए। उन्होंने इस सत्य को अनुभव किया कि विश्वमाता ने उनके समस्त पापों-तापों को हर लिया है। 

शैल दीदी एवं डॉ. प्रणव पंड्या इस कार्यक्रम में माताजी के साथ ही थे। उन्होंने जब माताजी से दीक्षा लेने वाले परिजनों की इन विलक्षण अनुभूतियों की चर्चा की तो पहले वे कुछ देर मौन रहीं फिर कहने लगीं, 

“ये बच्चे हमसे दूर रहते हैं, जल्दी-जल्दी भागकर ये शांतिकुंज भी नहीं पहुंच सकते, इसलिए इनका विशेष ध्यान तो रखना ही पड़ेगा। अब जब मैं खुद चलकर इनके पास आई हूं, तो इन्हें खाली हाथ थोड़े ही रहने दूंगी। इन सबको कष्ट-कठिनाइयों से छुटकारा पाते, हंसते-खिलखिलाते देखकर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि मेरी यात्रा सफल हो गई।”

इंग्लैंड की इन अनोखी अनुभूतियों को सुनकर टोरंटो (कनाडा) के परिजन भी उत्साहित हो उठे। इस समारोह की एक वीडियो हमने  यूट्यूब से सर्च की है जिसका  लिंक  हम यहाँ दे रहे हैं। 30 वर्ष पूर्व हम/आप  तो इंग्लैंड नहीं जा पाए थे लेकिन यह वीडियो आपको अवश्य ले जाएगी। 

2.  विदेश में दूसरा  अश्वमेध महायज्ञ 23-25 जुलाई 1993 

टोरंटो में बसे प्रवासी भारतियों ने  23 से 25 जुलाई 1993 की तिथियां अपने यहां के लिए निश्चित कर रखी थीं। वंदनीया माताजी शैल दीदी एवं डॉ. साहब के साथ ठीक समय पर पहुंच गईं। इन सबके पहुंचने के कुछ दिनों पहले से यहां भारी वर्षा हो रही थी। आयोजनों के साथ सभी कार्यकर्त्ता घबराए हुए थे कि सब कुछ कैसे और किस तरह से संपन्न और सफल होगा। अपनी घबराहट में उन्होंने शांतिकुंज कई फोन भी किए थे। फोन पर हुई बातचीत में माताजी ने उन्हें आश्वस्त किया कि  तुम लोग परेशान न हो, मैं आ रही हूं, मेरे वहां आते ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। सचमुच ऐसा ही हुआ। लगातार कई दिनों से हो रही भारी वर्षा थम गई। इस कार्यक्रम में कनाडा की तत्कालीन प्रधानमंत्री कैम्पबेल और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने भारी सहयोग दिया। आयोजन में सक्रिय गायत्री परिजनों के साथ अन्य संगठनों के लोगों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया। इन सभी भागीदारों ने माताजी की तपशक्ति के अनेकों चमत्कारों की अपने जीवन में प्रत्यक्ष अनुभूति पाई। इस समरोह की कोई भी वीडियो हमें उपलब्ध न हो पायी। यहाँ हम  अपनी  ही एक वीडियो का लिंक  दे रहे हैं जो 2019 में माताजी के आने के 25 वर्ष ( रजत जयंती) बाद के समरोह की है।  चिन्मय पंड्या जी इस अश्वमेध यज्ञ में  उपस्थित हुए थे।    

3.विदेश में तीसरा अश्वमेध यज्ञ  19- 22, अगस्त 1993 

कनाडा के बाद वंदनीया माताजी ने 19 से 22 अगस्त 1993 को अमेरिका के लॉस एंजेल्स शहर में होने वाले अश्वमेध महायज्ञ के लिए प्रस्थान किया। डॉ. प्रणव पंड्या एवं शैल दीदी के साथ हुई उनकी यह यात्रा पिछली विदेश यात्राओं की तुलना में और भी  अधिक उत्साहवर्द्धक रही। पश्चिमी तटीय अमेरिका के परिजन माताजी को अपने बीच में देखने के लिए अति उत्साहित थे। उन्होंने जी-जान से जुटकर 1008 कुंडीय  महायज्ञ का आयोजन किया था। अमेरिका के किसी शहर में उन दिनों इतना बड़ा  यज्ञायोजन करना सरल नहीं था। श्री कालीचरण शर्मा के नेतृत्व में गए दल ने यों तो सारा पुरुषार्थ किया लेकिन  सभी के हृदय अपनी मां के प्रति इतनी गहन श्रद्धा से भरे थे कि इस आयोजन के कठिन काम सभी के लिए सरल होते चले गए। माताजी के पहुंचते ही वहां के संपूर्ण वातावरण में दिव्यता छा गई। सभी कार्यक्रम उनके दैवी संरक्षण में भलीप्रकार संपन्न होते गए। यज्ञस्थल में दीक्षा के लिए लगभग, 30,000 लोग उपस्थित हुए। सभी ने सुन रखा था कि दीक्षा देते समय माताजी अपनी संतानों की अनेकों कष्ट-कठिनाइयां हर लेती हैं। साथ ही उन्हें अनेकों तरह की आध्यात्मिक अनुभूतियां प्रदान करती हैं। उस दिन यह सब सुनी हुई बातें प्रत्यक्ष हुईं। अनेकों लोगों ने अनेकों तरह से माताजी के अनुदान-वरदान पाए। माताजी के मुख से उच्चरित गायत्री मंत्र ने सचमुच ही उनके प्राणों को त्राण देने का कार्य किया। अमेरिका के अनेकों मूल निवासी भी इस कार्यक्रम में भागीदार हुए। हिंदी भाषा से अनजान होते हुए भी उन्होंने अपने हृदय में माताजी के भाव भरे उद्बोधन को आत्मसात् किया। इन सभी कार्यक्रमों में अनेकों अनुदान बरसाने वाली मां सतत अपनी संतानों की पीड़ा का विषपान करती जा रही थीं। अमेरिका के इस  यज्ञ के बारे में भी  यूट्यूब से हमें कोई वीडियो उपलब्ध न हो पायी। 

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s



%d bloggers like this: