30 जून 2022 का ज्ञानप्रसाद- क्या हम ईश्वर से वार्तालाप कर सकते हैं ?
आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करने से पहले हम अपने समर्पित सहकर्मियों से कुछ विचार शेयर कर लें तो बेहतर होगा।
1. सबसे पहले तो बहुत ही दुःखद समाचार शेयर कर रहे हैं कि आदरणीय ईश्वर शरण पाण्डेय जी की धर्मपत्नी आदरणीय इंदुरानी जी के देहांत की सूचना कल रात को हमारे पास पहुंची। भारतीय समयानुसार रात बहुत हो चुकी थी इसलिए उस समय सूचना शेयर नहीं की लेकिन विश्व के अन्य हिस्सों में उसी समय बता दिया था।ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का प्रत्येक परिजन शोक संतप्त परिवार के साथ अपनी संवेदना व्यक्त करता है और परमपूज्य गुरुदेव से करबद्ध प्रार्थना करता है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें।
2. 2022 की गुरुपूर्णिमा 13 जुलाई बुधवार को है और सभी परिजनों को आमंत्रण है कि अधिक से अधिक भागीदारी का प्रमाण देकर गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें। जो कोई अपनी contributions भेजने का मन बनाये हुए है, उसे सार्थक रूप देने का प्रयास करें। हमने तो परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी की एक वीडियो का चयन किया है। यह वीडियो गुरुदेव एवं माताजी का गुरुपूर्णिमा का ही सन्देश है। पुरानी होने के कारण वीडियो क्वालिटी में समस्या तो है लेकिन सन्देश और कंटेंट बहुत ही महत्वपूर्ण है।
3. कल सुबह का ज्ञानप्रसाद एक साढ़े पांच मिंट की वीडियो है। हमारी प्रेरणा बिटिया की तरह किसी और प्रेरणा ने इस वीडियो को अपनी दिव्य वाणी देकर सुशोभित किया है। सभी से अनुरोध करते हैं कि Description box की इनफार्मेशन को अवश्य देखें, हम विस्तार में कुछ और भी शामिल करेंगें।
4. हमारे सहकर्मी प्रदीप शर्मा जी आदरणीय लीलापत शर्मा जी पर आधारित लेखों में रूचि व्यक्त कर रहे हैं। यूट्यूब पर दो बार कमेंट करके कह चुके हैं तो वर्तमान श्रृंखला के समापन पर पंडित जी के बारे में लिखने की योजना बना रहे हैं।
तो आरम्भ करते हैं आज का ज्ञानप्रसाद जिसके शीर्षक से ही हमारे सहकर्मी आकर्षित हो रहे होंगें “क्या हम ईश्वर से वार्तालाप कर सकते हैं ?”
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क्या हम ईश्वर को देख सकते हैं ? क्या हम ईश्वर से वार्तालाप कर सकते हैं ? दोनों ही प्रश्न बहुत ही जिज्ञासा भरे हैं। हम में से एक भी ऐसा मनुष्य नहीं होगा जो ईश्वर को देखना न चाहता होगा। हर किसी के पास अपनी-अपनी कभी भी न समाप्त होने वाली समस्याओं का पुलंदा है, समस्याओं का अम्भार लगा हुआ है। ईश्वर तो सबकी समस्याओं को सुनते भी हैं, उनका निवारण भी करते हैं लेकिन क्या हमने कभी ईश्वर को भी पूछा है कि उन्हें भी कोई समस्या हो सकती, विश्व के 7-8 बिलियन मानवों की एक- एक समस्या का लेखा जोखा रखने वाले ईश्वर कभी थक नहीं सकते क्या ? यह तो केवल मानवों की संख्या है, पशु- पक्षी,पेड़ पौधे और न जाने और कौन सी प्रजातियां हैं जिन्हें आदिकाल से ईश्वर संरक्षण प्रदान कर रहे हैं और अनंतकाल तक करते ही रहेंगें। जब तक यह सृष्टि रहेगी ईश्वर संरक्षण प्रदान करते ही रहेंगें ठीक उसी प्रकार जैसे एक पिता अपने बच्चों का लालन पालन अपना दाइत्व समझ कर करता है। माता पिता को बताने की आवश्यकता थोड़े ही होती है कि किस को क्या चाहिए। लेकिन माता पिता के दाइत्व निभाने की बात तभी सत्य होती है जब बच्चे बिना कुछ कहे निष्ठापूर्ण अपना फ़र्ज़ पूरा करते जाते हैं। ठीक इसी भावना में गुरुदेव भी साफ़ और कोरे शब्दों में बार-बार कहते आये हैं “ तू मेरा कार्य कर, में तेरा कार्य करूँगा” Its a 2-way give and take traffic . ईश्वर भी हमसे यही आशा रखते हैं। अगर हम मंदिर में सच्ची श्रद्धा के स्थान पर दिखावे के लिए, ईश्वर को भी gifts से रिझाने का प्रयास करते हैं और भिखारी की भांति भीख मांगने ही जाते हैं तो कभी किसी अनुदान की आशा करना सबसे बड़ी मूर्खता है ।प्रकृति का यह बहुत ही अटल सत्य है,” पहले समर्पण फिर संरक्षण” हमने कई बार शुभरात्रि सन्देश में उस नन्हे बच्चे की कहानी शेयर की है जो ईश्वर से पूछता है “ ईश्वर, सभी अपनी व्यथा का रोना रोते हैं, क्या कभी किसी ने आपकी चिंता का पूछा है।” पिछले दो लेखों में हमने मन मंदिर, दिल एक मंदिर, हमारा शरीर एक देवालय, अंतःकरण,अंतरात्मा जैसे शब्दों की चर्चा की। उद्देश्य केवल यही था कि जब तक इन बेसिक terminology को समझ नहीं पायेंगें, तब तक हम हर बात का दोष ईश्वर पर ही डालते रहेंगें। मंदिर में जाने की ज़रूरत ही क्यों पड़े जब इतने सारे देवता हमारे शरीर में विराजमान हैं, ईश्वर हमारे अंदर वास करते हैं। स्वामी विवेकानंद ने जब अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से पूछा- क्या आपने भगवान को देखा है, तो रामकृष्ण देव ने कहा,हाँ देखा है, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मैं तुम्हे देख रहा हूँ। ईश्वर के दर्शन करने के लिए और उससे वार्तालाप करने के लिए इस स्तर की भक्ति और पात्रता चाहिए। रामकृष्ण देव माँ काली से सीधी बात करते थे, उनके साथ हँसते थे,गाते थे, झूमते थे, पूरी तरह रमे हुए थे।
आजकल हमें बहुत से लोग मिलेंगें जो कहेंगें मैंने ईश्वर को देखा है लेकिन सही मानों में देखा जाए तो ऐसा कहना गलत है -यह केवल आस्था है, विश्वास है और उसी विश्वास में उन्होंने ईश्वर का प्रतिबिम्ब देखा हो सकता है । हम गलत इसलिए कह सकते हैं कि ईश्वर कोई आसमान में ठहरा हुआ और मनुष्यों जैसी आकृति-प्रकृति का structure नहीं है। यह विशुद्ध भावनात्मक कल्पना है, जो सम्भवतः ध्यान की एकाग्रता अथवा उत्कृष्टतम मानव का स्वरूप निर्धारण करते हुए उसके सदृश बनने की लक्ष्य स्थापना के लिए की गई प्रतीत होती है। इस चर्चा से एक बात और निकल कर आती है कि अगर ईश्वर हमारे अंदर विराजमान है, सृष्टि के कण-कण में है तो हम आकाश की तरफ हाथ उठाकर क्या मांगते हैं। ईश्वर के तो अनेकों नाम और रूप ही नहीं, गुण-स्वभाव की भारी भिन्नता वाले अनगणित स्वरूप भी यहीं बताते कि “यह यथार्थता नहीं काल्पनिक स्थापना है।” यदि ईश्वर की कोई यथार्थ ( real ) आकृति होती, तो वह सूर्य, चन्द्र आदि की तरह समस्त विश्व में एक ही प्रकार की दृष्टिगोचर होती। तब देश, जाति एवं सम्प्रदायों द्वारा प्रस्तुत अनेकानेक ईश्वरीय आकृतियाँ क्यों दिखाई पड़ती। तब इन ईश्वरों के बीच मान्यताओं और क्रिया-कलापों का ज़मीन आसमान जितना अन्तर क्यों रहता। कितना भटका हुआ है आज का मानव ! एक तरफ तो यथार्थवाद (realism) और प्रतक्ष्यवाद (objectivism), प्रतक्ष्य प्रमाण के बिना कुछ भी मानने को तैयार नहीं है और दूसरी तरफ मंदिर में पत्थर की मूर्ति के आगे नाक रगड़ते नहीं थकता। ऐसा double standard आज के समाज में हर जगह व्याप्त है। आइये हम अपने दिल से पूछें कि अगर हमारा गुरु आकर हमें कहता है कि 24 वर्ष तक जौ की रोटी, छाछ और 24-24 लाख के महापुरश्चरण करने हैं तो हम क्या कहेंगें। क्या हम गुरु में आस्था रखकर ईश्वर देखते हैं ? जो लोग अपनी भावना में काल्पनिक ईश्वर को देखते हैं और उससे वार्तालाप करते हैं तो उसे उनका उत्साह,भावातिरेकता ही कहा जाएगा। इस स्थिति को “कल्पना और आस्था का विचित्र समन्वय” भी कहा जा सकता है। हमने यहाँ “विचित्र” शब्द इसलिए प्रयोग किया कि इसी समन्वय के कारण अँधेरे में खड़ी झाड़ी भूत बनकर हमें इतना डरा देती है कि प्राणघातक स्थिति उपस्थित हो जाती है। अगर देखा जाये तो भूतों के विविध क्रिया-कौतुक मनुष्य की सघन कल्पनाओं के अतिरिक्त और क्या हैं ? ठीक इसी प्रकार ईश्वर भी “संकल्पशक्ति एवं आस्थाओं से मिश्रित भावुकता” के आधार पर गढ़ा जा सकता है। उसके दर्शन भी हो सकते है और वार्तालाप भी हो सकता है, पर इसका परिणाम कुछ नहीं।
कल्पना की परिपुष्टि कल्पना के आधार पर कर लेने का रात्रि स्वप्न अथवा दिवास्वप्न किसी का कुछ प्रयोजन पूरा नहीं कर सकता। ऐसे भावुक लोगों की कमी नहीं, जो अपने कल्पित देवी-देवताओं के अक्सर दर्शन करते रहते है। वे कभी स्वप्न में दिखाई पड़ते है, कभी अर्द्धजागृत अवस्था में। यदि वह दर्शन वास्तविक रहे होते तो इतना बड़ा देव-अनुग्रह प्राप्त करने वाले के व्यवहारिक जीवन में स्तर में तथा परिस्थितियों में अन्तर अवश्य पड़ा होता। देवता जिस पर इतने प्रसन्न हों कि दर्शन देने दौड़े आये, उस पर वे अन्य कृपाएँ भी अवश्य करेंगे और उसका स्तर देवोपम बना देंगे। पर यदि वैसा कुछ नहीं होता और दर्शनों का सिलसिला चलता रहता है, तो यथार्थवादी इतना ही कह सकता है कि विनोद की, हंसी मज़ाक की एक अच्छी मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि हाथ लग गई।
आज के ज्ञानप्रसाद को यहीं पर अल्पविराम देते हुए आपसे निवेदन करते हैं कि हर किसी की अपनी-अपनी भावना है, विश्वास है, आस्था है, कल्पना है, हम किसी भी पाठक के विश्वास और आस्था को ठेस नहीं पहुंचा सकते। लेकिन परमपूज्य गुरुदेव साधक के साथ -साथ एक कुशल वैज्ञानिक भी हैं, उनकी शिक्षा हमें कल्पनाओं और अंधविश्वास से निकाल कर चेतना के उच्चत्तम स्तर पर लेकर जाने को सक्षम है। कल्पनाओं का क्या है, उन्हें कहाँ कोई लगाम रोक सकती है, मानव तो कल्पनाओं के बहाव में एक दम उड़ना आरम्भ कर देता है।
इस चर्चा के दूसरे भाग के लिए सोमवार तक के लिए प्रतीक्षा कीजिये।
धन्यवाद्, जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
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29 जून 2022 की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )अरुण वर्मा-26, (3 ) रेणु श्रीवास्तव -25, (4) प्रेरणा कुमारी-24
इस सूची के अनुसार सभी ही गोल्ड मैडल विजेता हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद