7 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – हमारे सहकर्मी आद. अरुण वर्मा जी की अनुभूति
आज के ज्ञानप्रसाद में बिना किसी भूमिका के हम अरुण वर्मा जी की अनुभूति प्रस्तुत कर रहे हैं ,हाँ इतना अवश्य कह सकते हैं कि इस लेख के पढ़ने के बाद और परिजन भी आगे आयेंगें। शब्द सीमा के कारण संकल्प सूची प्रकाशित न कर पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हैं। प्रेरणा बिटिया और संध्या बहिन जी को स्वर्ण पदक प्राप्त करने की हृदय से बधाई। ______________
गायत्री परिवार में जुड़ने का अदभुत कहानी है। 11 फरवरी 2016 को एक छड़ सिमेन्ट का दुकान खोला, पूजा कराने के लिए गायत्री परिवार के पंडित जी को बुलाया, उन्हीं से पूजा कराई और दुकान में देवस्थापना भी की। इस घटना ने हमें गायत्री परिवार में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त कराया, और उसी दिन से दुकान में गायत्री मंत्र के उच्चारण से पूजा करने लगा, गायत्री मंत्र तो आता नहीं था, फोन में इस मंत्र को लोड करवाकर सुनता था लेकिन छ: महीने में ही दुकान को बंद करना पड़ा क्योंकि दुकान का किराया ज्यादा और बिक्री कुछ होती नहीं थी। लगभग 1 लाख रूपए का नुकसान हुआ।
एक महीने के बाद 220000 रूपए में समान ढोने वाला ऑटो खरीदा। 9 हजार सैलरी, 9 हजार के करीब इंसेन्टिव और 8-9 के बीच ऑटो से आमदनी हो जाती थी ,जीवन ठीक से चल रहा था। सितम्बर 2017 में एक कार खरीदा जिसको ओला में चलवाना शुरू कर दिया लेकिन उससे एक रूपया का भी बचत नहीं हुआ, फिर कार को दस हजार रूपए महीने पर दे दिया। इसी बीच बड़ी वाली बेटी का बोर्ड का परीक्षा हुआ, परीक्षा पास करने के बाद इंजिनियरिंग की तैयारी के लिए जयपुर चली गई। जिस आदमी को दस हजार महीने पर कार चलाने को दिया था वह छोड़ दिया, बहुत ज्यादा परेशानी होने लगी। हमेशा तनाव में रहना शुरू हो गया। मैं प्रतिदिन गायत्री मन्त्र जपता था, सप्ताह में एक दिन छुट्टी रहती तो शक्तिपीठ जाकर हवन भी करता था। पंडित जी से बार बार बोलता था कि जब से गायत्री उपासना शुरू किए हैं गलत ही हो रहा है। वह हमेशा यही बोलते- गुरुदेव परीक्षा ले रहे है। दोनों गाड़ीयों के होते परेशानी बढ़ती गयी, उपासना में भी व्यवधान आ रहा था। तब हमने गाड़ियां बेचने का फैसला लिया। दोनों गाड़ियों के बेचने से जो पैसा मिला बेटियों की पढ़ाई चालू रखी। इतने उतार चढ़ाव के बावजूद मुझे कोई अफ़सोस नहीं हुआ, मुझे लगा कि बेटी की पढ़ाई के लिए हुआ है। मेरी आमदनी भी आधी हो गयी, शायद कहीं न कहीं गुरुदेव की ही मर्ज़ी होगी।
ज़मीन बेचकर चाचा जी की आज्ञा से दुकान खोली , छ: महीने में ही दुकान बंद हो गयी,उसी पैसे से बेटी की एडमिशन हुई, आटो आया जिसकी कमाई से बेटी के हॉस्टल और मेस का खर्चा पूरा किया, पढ़ाई पुरा भी नहीं हुआ था कि दोनों गाड़ी बिक गयीं, छोटी बेटी की पढ़ाई रुक गयी। करोना के चलते मेरा इन्सेन्टिव भी बंद हो गया और आमदनी सीधे 10000 रुपये पर आ गयी। इसी बीच फिर बेटी की एडमिशन बी.आई. टी. में हो गयी। पहले दूसरे कालेज में हुई थी जहाँ 180000 रुपये दिया था। अब बेंगलुरु में एडमिशन हुआ तो दो दिन में ही पूरा पैसा जमा करना था, अब कैसे होगा कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन सब खेला गुरुदेव खेल रहे थे। किसी से उधार लेकर पैसे का इंतजाम हो गया, कोई दिक्कत नही आयी। एक महीने के बाद जो पैसा पहले वाले कालेज में दिया था वहाँ से रिटर्न आया तो उधर वापस कर दिया। इतना उतारा चढा़व होने के बाद भी दोनों बच्चियों की पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आयी। बड़ी वाली इंजिनियरिंग कर रही है तो छोटी वाली बी.एस. सी. नर्सिंग कर रही है। गुरुदेव अपने भक्त का परीक्षा लेते हैं। गुरुदेव की परीक्षा से जो घबरा गया उसका कल्याण होना मुश्किल है। अब तो ऐसा हो गया कि सही हो या गलत हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हमें पता है कि जो कुछ भी हो रहा है उन्हीं की मर्ज़ी से हो रहा है।
संक्षिप्त में शांति कुंज की घटना बताना चाहूंगा।
जब शांतिकुंज जा रहे थे तो रास्ते में ही हमारे ससुर जी का दांत टूट गया, पहूंचने पर सासु माँ का चश्मा टूट गया, गंगा स्नान के लिए गया तो मेरा पैर पत्थर से टकराकर जख्मी हो गया, लौटते समय पत्नी के पैर की अंगुठी निकल कर कहीं गिर गयी, घर पहुँच कर ड्यूटी से घर लौट रहा था तो गाड़ी स्किड कर गयी और साइलेंसर से पैर जल गया। इस घटना के दूसरे दिन मम्मी पापा में बहस हुई तो पापा घर छोड़कर चले गये। मेरा जला हुआ पैर अभी ठीक भी नहीं हुआ था कि बाइक स्किड करने से पैर फ्रैक्चर हो गया।
एक के बाद एक की यह सारी घटनाएं क्या संकेत देती हैं ?
हमारी पत्नी बोलती हैं कि यह सब गुरुदेव की कृपा है, घबड़ाना नहीं है। हो सकता है इससे भी ज्यादा कुछ होने वाला हो जो इतने पर ही पर टल गया।
जिस प्रकार शुक्ला बाबा को एक ही दिन में मौत ने तीन बार अटैक किया और तीनों बार गुरुदेव ने बचा लिया, हो सकता है मेरे साथ भी कुछ वैसा ही घटित होने वाला हो।
यह तो जीवन का एक पक्ष है। जीवन में उतार चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। लेकिन गुरुदेव की कृपा से मेरे अंदर जो परिवर्तन आया वह बहुत ही अदभुत है।
2016 में मैंने गायत्री मंत्र का जप शुरू किया था या यूँ कहीए कि गायत्री परिवार में शामिल होने का रास्ता मिला। पंडित जी के कहने पर जनवरी 2017 में पहली बार शांतिकुंज घूमने के विचार से गया था। गुरुदेव के बारे में कुछ भी नहीं मालुम था, केवल घूमकर ही वापिस आ गए। आने के बाद मार्च 2017 में शक्तिपीठ पर तीन दिवसीय यज्ञ हुआ, हम भी पत्नी के साथ हवन करने गए। हवन के अन्त में पंडित जी ने घोषणा की कि हवनकुंड में यज्ञ भगवान को अपनी किसी एक बुराई की आहुति दें। मेरे अंतर्मन से जिज्ञासा उठी कि शराब और मांसाहार छोड़ दूंगा। बिहार में 2016 में ही शराबबंदी हो गई थी इसलिए छोड़ना पड़ा, बंद होने के बाद भी मैं सप्ताह में एक दिन पी ही लेता था जिससे पकड़े जाने का भी डर था। 2018 में एक बार फिर शांतिकुंज गया तो गुरुदीक्षा ली। वहां भी एक बुराई छोड़ने को कहा गया। मैंने बताया कि शराब और मांसाहार तो छोड़ दिया है तो उन्होंने कहा कि जो छोड़ दिए है उसकेइलावा छोड़ना है। हमने तंबाकू खाना छोड़ दिया। 2019 में मथुरा, आंवलखेड़ा गया तो मेरे अंतर्मन ने एक बार फिर झकझोड़ा। मैंने संकल्प लिया कि बाकि का नशा भी यहीं गुरुदेव के चरणों में समर्पित कर देता हूँ। अगस्त 2019 के बाद से मेरे अंदर से सारा नशा समाप्त हो गया और मैं एक नशामुक्त प्राणी बन गया। नशेड़ी का नशा छुड़वाना बहुत ही कठिन काम है, आज जितने भी हमारे साथी हैं वह सब कहते हैं यह सब कैसे हो गया। हम सभी को यही कहते हैं कि यह सब हमारे गुरुदेव की कृपा है, उन्ही का मार्गदर्शन है। हमारे साथी हमें मज़ाक में बाबा कहकर सम्बोधन करते हैं लेकिन हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह सब गुरुदेव की कृपा से ही संभव हुआ। नशे के कारण पत्नी से अक्सर झगड़ा होता रहता था, किसी भी समारोह में जाते तो बिना पीये हुए नहीं जाते, पत्नी बहुत अपमान अनुभव करती और झगड़ा भी हो जाता था। लेकिन अब परम पूज्य गुरुदेव परम वंदनीय माता जी एवं माँ गायत्री की कृपा से सब ठीक हो गया, गुरुदेव और उन पंडित जी को बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ जिनके माध्यम से यह सब कुछ सफल हो पाया।
हमारे जीवन में ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का बहुत बड़ा योगदान।
2019 नवम्बर दिसम्बर का महीना रहा होगा, जब हमें औनलाइन ज्ञानरथ परिवार के साथ जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, कैसे जुड़े यह एक संयोग ही कहा जा सकता है। मैं अक्सर शांतिकुंज से प्रसारित विडियो को देखता था,लाइक और कमेन्ट् भी करता था। लेकिन कमेन्ट् के रिप्लाई में केवल हाइलाइटेड कमेन्ट् ही लिख कर आता था। शुरू शुरू में तो बहुत खुश होता था कि मेरा भेजा हुआ कमेन्ट् हाइलाइटेड है, लेकिन बाद में निराश होने लगा क्योंकि मेरे ह्रदय में गुरुकार्य के लिए बहुत प्रेरणा थी लेकिन कैसे करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इसी बीच ऑनलाइन ज्ञानरथ प्लेटफॉर्म पर आदरणीय अरुण भैया जी की एक कहानी पढ़ने को मिली। कहानी बहुत अच्छी लगी, हमने दस लाइन का कमेंट किया और व्हाट्सप्प नंबर भी भेज दिया। कमेन्ट का विस्तृत रिप्लाई भी मिला और करीब 7 बजे शाम फोन पर बात भी हुई। पता चला कि अरूण भैया कनाडा में रहते हैं और वहाँ से फोन किए हैं, बात करके इतनी खुशी हुई कि शब्दों में ब्यान करना असंभव है। ऐसा लगा गुरुदेव ने मेरी बात सुन ली। फिर क्या था।
अब ऑनलाइन ज्ञानरथ के लेख व्हाट्सप्प पर भी आने शुरू हो गए हैं। व्हाट्सप्प पर गुरुदेव के विचारों को शेयर भी करते हैं, बहुत से लोग पढते हैं , बहुत नहीं भी पढते लेकिन मैं इसकी परवाह नहीं करता था। गुरुदेव कहते थे कि मेरा विचार जन-जन तक पहूँचा दो, कौन अपनाएगा कौन नहीं अपनाएगा यह तय करना तुम्हारा काम नहीं है, लेकिन बाद में अरूण भैया बोले कि अगर कोई गुरुदेव के ज्ञानप्रसाद को नहीं पढ़ता, बिना पढ़े डिलीट कर देता है तो यह गुरुदेव का अपमान है। इसलिए मैं बीच-बीच में सुप्रभात के साथ लिखता हूं कि अगर आपको ज्ञानप्रसाद अच्छा नहीं लगता तो कृप्या हमें बता दें, हम आपसे शेयर नहीं करेंगें।
2019 से आजतक मैं अनवरत ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार में नियमितता पूर्वक उपस्थिति दर्ज करता आ रहा हूँ। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से हमारे अन्दर बहुत बदलाव आया,हमारा परिष्कार करने में आदरणीय अरूण भैया का भरपूर सहयोग मिला, बीच बीच में बात भी होती रहती है, इनके मार्गदर्शन से बहुत कुछ सीखने को मिला। ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार एक ऐसा परिवार है जिसमें सभी भाई, बहनों, माताओं और बच्चों का आदर पूर्वक सम्मान किया जाता है। हर किसी के कमेन्ट का रिप्लाई दिया जाता है। पहले मैं कमेन्ट्स का महत्व ही नहीं समझता था लेकिन धीरे-धीरे इसका महत्व समझ में आने लगा। आज ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के माध्यम से एक बहुत बड़ा परिवार मिला जो सुख-दुःख में हमेशा साथ रहता है और प्रोत्साहित करते रहता है। जितना भरोसा और विश्वास ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार में दिलाया जाता है, इतना तो अपने सगे सम्बन्धी भी नहीं दिखाते। सभी सहकर्मी दुःख की घड़ी में परमपूज्य गुरुदेव से दुआएँ मांगते हैं और कष्टों के निवारण हेतु गायत्री मंत्र का जप भी करते हैं। अभी मेरे साथ जो दुर्घटना हुई इसमें भी सहकर्मियों ने गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जप किया। ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार सभी की प्रतिभा को निखारने और प्रोत्साहित करने का निरंतर प्रयास कर रहा है।सहकर्मियों के सहयोग से नए-नए प्रयास किये जाते है। आजकल चल रहे 24 आहुति संकल्प से सहकर्मियों के ह्रदय में संकल्प भावना उजागर हुई है और स्वर्ण पदक प्रथा से सभी सम्मानित अनुभव करते हैं।
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव