27 अक्टूबर 2021का ज्ञानप्रसाद : 3.असंख्य समस्याओं का समाधान -सरविन्द कुमार पाल
परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक लघु पुस्तक का स्वाध्याय करने उपरांत तृतीय लेख।
आज के ज्ञानप्रसाद में आदरणीय सविंदर भाई साहिब ने परिवारों में उठ रही समस्याओं के समाधान का विवरण दिया है। आज के लेख एक वाक्य बहुत ही चिंतन मनन वाला है -“परिवार में समस्याओं का अम्बार होता है और परिवार नाम ही समस्या का है” लेख छोटा अवश्य है लेकिन बहुत ही अर्थ पूर्ण है। लेख आरम्भ करने से पूर्व अपने सहकर्मियों को धन्यवाद् करते हुए निवेदन करते हैं कि निम्लिखित पंक्तियाँ अवश्य पढ़ें :
परमपूज्य गुरुदेव का संरक्षण और मार्गदर्शन हो तो कुछ भी असम्भव नहीं है।अभी कुछ दिन पूर्व ही हमने परमपूज्य गुरुदेव के निर्देश अनुसार अपने सहकर्मियों के समक्ष कमेंट और काउंटर कमेंट का बीजारोपण किया था, आज उस बीज से उत्पन पौध ने जो रूप लिया है आप सबके समक्ष है , यह सारे का सारा श्रेय आपको ही जाता है । कल वाले लेख पर सविंदर भाई साहिब ने कमेंट किया कि था भावरूपी महायज्ञ में विचाररूपी हवन सामग्री के साथ कमैंट्स रुपी कम से कम 24 आहुतियां अवश्य डालें ,अधिक हो तो और भी अच्छा। इस लेख को लिखने समय तक रेनू श्रीवास्तव बहिन जी के कमेंट पर 24 आहुतियां डल चुकी थीं और सरविन्द भाई साहिब के कमेंट पर 22 आहुतियां देखने को मिलीं। यही है सहकारिता और अपनत्व का परिणाम जिसके लिए आप सबका बहुत ही धन्यवाद् है। 725 शब्दों के विस्तृत कमेंट में से उस भाग को जहाँ सरविन्द भाई साहिब ने 24 आहुतियों का सुझाव दिया था हमने बहुतों के साथ शेयर भी किया था लेकिन सारा कमेंट पढ़ने के लिए फिर से निवेदन करते हैं क्योंकि उन्होंने अपने बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण घटनाएं लिखी हैं जिनसे बहुतों को गुरुदेव की शक्ति को जानने में सहायता होगी। जब हम कमेंटस के परिपेक्ष्य में बात करते हैं तो हमारे पाठक यह मत समझें कि हमें कमैंट्स की कोई भूख है। हमारा केवल एक ही उदेश्य है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों में ,परिवारों में ,घरों में गुरुदेव के इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान हो ताकि इस भटकन भरी दुनिया में ,मारीमारी ,आपाधापी भरी दुनिया में हम सबको कोई प्रकाश की किरण मिल सके।
तो आरम्भ करते हैं आज का ज्ञानप्रसाद
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आदर्श परिवार लेखों की श्रृंखला में प्रस्तुत है तृतीय लेख जिसमें परम पूज्य गुरुदेव ने परिवार निर्माण के मार्ग में आने वाली “असंख्य समस्याओं के समाधान” को लेकर बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा है।
गुरुदेव लिखते हैं :
परिवार का अर्थ एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठ आत्मीयता :
परिवार में सुसंस्कारिता का माहौल बनाना प्रत्येक विचारशील, जागरूक और विवेकवान सदस्य का परम कर्त्तव्य है। यदि परिवार का हर कोई सदस्य इस परिवार रूपी संगठन में रहने तथा उसका लाभ उठाने का ही दृष्टिकोण अपने जीवन में उतार ले तो परिवार संस्था का कोई महत्व ही नहीं रह जाता। यदि एक साथ रहने का नाम ही परिवार है तो लोग धर्मशालाओं में, होटलों में, स्कूलों में, आश्रमों में, पिक्चर हालों में भी तो एक साथ रहते हैं तो इन लोगों को परिवार के सदस्य तो नहीं कहा जा सकता।
परिवार एक साथ रहने वाले व्यक्तियों का नाम नहीं है बल्कि उसमें रहने वाले सदस्यों का एक समूह है। इस समूह में सदस्य एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठ आत्मीयता के सूत्र में बँधे रहते हैं। सभी सदस्य एक साथ रहते हैं , एक चौके में खाना खाते हैं , एक-दूसरे से बातचीत करते हैं, प्रेम-व्यवहार से जुड़े रहते हैं और इसके अलावा परिवारजन आपस में मिलजुल कर एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्यों में बँधे रहते हैं।
परिवारजनों की परिभाषा :
पारिवारजन कहलाने के उचित अधिकारी वह होते हैं जो कर्त्तव्यों का पूर्ण रूप से पालन करते हैं क्योंकि नाबूझ, अबोध और छोटे बच्चों की अपेक्षा कर्त्तव्य पालन की आवश्यकता परिवार के बड़े सदस्यों के लिए अधिक होती है। छोटे बच्चों को तो अपने कर्त्तव्य और उत्तरदायित्वों का ज्ञान ही नहीं होता, वह इन सब बातों से अनभिज्ञ होते है क्योंकि उन्हें वह भाषा ही समझ नहीं आती। बच्चों को अपने कर्त्तव्यों व उत्तरदायित्वों को समझाना तो बहुत आगे की बात है। पहले परिवार के सभी बड़े-बुजुर्ग तो अपनेआप में कर्त्तव्यपरायणता, श्रद्धा और निष्ठां को सुनिश्चित बनायें। ऐसे अनुशासनीय वातावरण में पल रहे बच्चों में परिवार के प्रति दृष्टिकोण व दिशा अवश्य बदलेगी। बच्चों में कुशल नेतृत्व की भावना जागृत होगी क्योंकि आज का बच्चा ही कल का भविष्य होता है। थोड़ी सी ही लापरवाही नरक का द्वार खोल सकती है। परमपूज्य गुरुदेव का स्वर्णिम उद्घोष
“हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा”
कोई ऐसा वैसा उद्घोष नहीं है। इसका एक-एक शब्द philosophical है। तो आइये हम सब परिवार के बड़े सदस्य यह संकल्प लें कि किसी को सुधारने य बदलने से पहले स्वयं सही मार्ग पर चलें। तत्पश्चात बच्चे स्वयं ही अनुसरण करते चले जाएंगे।
“परिवार में समस्याओं का अम्बार होता है और परिवार नाम ही समस्या का है”
परिवार की सभी समस्याओं का समाधान इसके सदस्यों के कुशल नेतृत्व से ही किया जा सकता है क्योंकि समस्याओं का स्थायित्व नहीं होता है , वह अस्थाई होती हैं। परिवार को ठीक से सँभाल कर रखना सभी वरिष्ठ सदस्यों का परम कर्त्तव्य व उत्तरदायित्व होता है।उत्तरदायित्व ही परिवार के लोगों को संस्कारवान बनाता है तथा आदर्श व उत्कृष्ट व्यक्तित्व सम्पन्न समाज बनाने के लिए प्रयासों को किया जाता है। यदि इन प्रयासों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया जाए तो न केवल परिवार उत्कृष्ट व्यक्तित्वों को उत्पन्न करने में समर्थ हो सकेगा बल्कि उन प्रयासों के माध्यम से असंख्य मानवीय समस्याओं का समाधान भी परिवार की परिधि में रहकर संभव हो पायेगा। सामाजिक कुरीतियाँ और समस्याएं कोई आसमान से नहीं टपकती हैं, यह सब हमारी ही creation हैं, हम ही इन सबके रचयिता हैं। हमारी गतिविधियां और क्रियाकलाप ही समस्याएं खड़ी करते हैं। यदि अपने दृष्टिकोण में थोड़ा सा भी परिवर्तन किया जाए तो समस्याओं का जड़-मूल से समाधान किया जा सकता है क्योंकि गुरुदेव ने बार-बार कहा है –
“नज़रें बदलते ही नज़ारा बदल जाता है”
परमपूज्य गुरुदेव ने कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं का उल्लेख कर हम सब में गुणवत्ता लाने की बात लिखी है। अशिक्षा की समस्या,गरीबी की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या, जनसंख्या वृद्धि की समस्या, चरित्र-निर्माण की समस्या, नागरिकता की समस्या , कुरीति उन्मूलन की समस्या, नारी-जागरण की समस्या, गोरक्षा की समस्या, लोकसेवियों की पूर्ति, दुर्व्यसन-दुष्प्रवृत्ति निवारण व सहकारिता की समस्या आदि कुछ एक समस्याएं हैं जिंनके बारे में जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है। इस तरह की असंख्य समस्याओं का अम्बार लगा है जिसका निपटारा करना किसी सामान्य प्राणी के बस की बात नहीं है। इसके लिए हम सबको कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है। अगर हम परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों को आत्मसात् कर अपने जीवन में उतारें और अंतरात्मा की गहराई में पहुँच कर अनुभव करें तो एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
कैसे होगा समस्याओं का समाधान ?
परम पूज्य गुरुदेव परिवार निर्माण की असंख्य समस्याओं के समाधान का विस्तृत विवरण बहुत ही सरल-स्वभाव में लिखते हैं कि मानवी प्रगति में बुद्धि को प्रधान कारण समझा जाता है परंतु इससे भी अधिक महिमा सहकारिता की है। भौतिक य आध्यात्मिक प्रगति का सारा खेल तो आपस में मिलजुल कर रहने की आदत में ही सन्निहित है। इसी सत्प्रवृत्ति को जीवनयापन के हर क्षेत्र में विकसित करना पारिवारिकता है, इसी का विकसित रूप समाजवाद व साम्यवाद है। अध्यात्म दर्शन भी इसी आस्था पर आधारित है। “वसुधैव कुटुम्बकम” का सिद्धांत सम्पूर्ण मानव समाज को आत्मीयता के सूत्र में बाँधता है और संयुक्त रूप से प्रगति करने तथा आपस में मिल-बाँटकर खाने की प्रेरणा देता है।
निर्जीव ( lifeless ) निर्माण जैसे कि कुर्सी ,मेज़ ,इमारतें इत्यादि सरल है, लेकिन सजीवों ( मनुष्यों ) का निर्माण बहुत ही जटिल है। यह इसलिए है कि निर्जीव वस्तुयें जहाँ की तहाँ रखी रहती हैं और अपने मन से वह उलट-पुलट नहीं कर पाती हैं परंतु सजीव प्राणी तो हर-पल, हर-घड़ी व हर-क्षण कुसंस्कारिता का परिचय देने और नई-नई समस्याओं को उत्पन्न करने से नहीं चूकते हैं। ऐसी स्थितियों में प्राणियों का, विशेषकर मनुष्यों का भावनात्मक निर्माण कितना कठिन हो सकता है, इसे कल्पना से नहीं, अनुभव से ही जाना जा सकता है। शरीर का पालन-पोषण करना तो सहज है, परंतु बौद्धिक व भावनात्मक निर्माण करने के लिए असाधारण दूरदर्शिता और तत्परता अपनानी पड़ती है तब कहीं जाकर परिवार निर्माण अपना साकार रूप ले पाता है। परिवार निर्माण का प्रत्यक्ष पक्ष इतना ही है कि जिस परिवार में रहने वाले हर किसी सदस्य का वर्तमान जीवन और भविष्य सुखद बनता है तो परिवार का वही सदस्य परिवार निर्माण का कुशल निर्माता बनकर परिवार का कुशल नेतृत्व कर सकता है। परिवार निर्माताओं को इसके बदले में बढ़ा हुआ आत्मविश्वास और आत्मसंतुष्टि मिलती है। आत्मसंतोष, आत्मगौरव, श्रद्धा-सम्मान एवं यश-श्रेय प्राप्त कर निर्माता को गर्व का आभास होता है। हरे-भरे उपवन लगाने-सजाने वाला माली, सामान्य श्रमिकों की तुलना में कुछ अधिक ही श्रेय और लाभ कमाता है। इसलिए परिवार निर्माण में तत्पर मनुष्यों की उपलब्धियाँ किसी भी कुशल माली, भवन निर्माता, सफल उद्योगपति से कम नहीं होती हैं और यह सब उपलब्धियाँ धीरे-धीरे हर किसी मनुष्य को प्राप्त हो सकती हैं। इन उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए सरल, सुन्दर व बहुत ही छोटा मंत्र है – गायत्री महामंत्र। इस मंत्र की प्रतिदिन स्वच्छ व निर्मल मन से ,उपासना,साधना व आराधना करने से आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ गायत्री की असीम अनुकम्पा बरसती है और अपार शक्ति प्राप्त होती है। इस मंत्र के नियमित जाप से मनुष्य का अंतःकरण प्रफुल्लित हो जाता है और असीम आनंद की अनुभूति होती है।
जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।