18 सितम्बर 2021 – गुरुदेव के साहित्य के प्रचार -प्रसार में आ रही रुकावटों पर चर्चा https://youtu.be/yDzizXMkJAY
आज का ज्ञानप्रसाद “अपनों से अपनी बात” तो नहीं है लेकिन कल वाले लेख पर दिए गए दो कमैंट्स पर चर्चा है। इस ज्ञानप्रसाद के साथ ही शांतिकुंज से कुछ समय प्रीमियर हुई लगभग 22 मिंट की वीडियो है जिसे ध्यान से देखना, चिंतन-मनन करना उतना ही आवश्यक है जितना हमारे लेखों को पढ़ना। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि इस वीडियो को देखने -सुनने और चिंतन -मनन करने से आज के ज्ञानप्रसाद का सबसे बड़ा प्रश्न ” लोग सुनते ही नहीं हैं, हम क्या करें ? ” का उत्तर मिलने की सम्भावना है। युगतीर्थ शांतिकुंज की महिमा ,परमपूज्य गुरुदेव का साहित्य , उनका व्यक्तित्व इत्यादि इत्यादि इतना सरल नहीं है कि इसको चलते -चलाते, कभी -कभार पढ़ लिया तो हम परिजनों को convince करने में दक्ष हो गए। यह बहुत ही विशाल ,गूढ़, रहस्मय, चिंतन -योग्य साहित्य है जिसका बार -बार उसी प्रकार अध्यन करना आवश्यक है जिस प्रकार एक समर्पित विद्यार्थी अपनी परीक्षा में न केवल उत्तीर्ण होने के लिए बल्कि टॉप करने के लिए दिन-रात कड़ा प्रयास करता है।
धीरप बेटे ने कल वाले लेख पर कमेंट करते हुए लिखा कि बाकि लोगों की तो बात बाद में , हम गायत्री परिवार के लोग भी गुरुदेव का साहित्य पढ़ने में रूचि नहीं दिखा रहे। हम कहते हैं समय नहीं है ,बाद में पढेंगें। ऐसी धारणा तो केवल वही रख सकते हैं जिन्हे यह proverb याद नहीं है -TIME IS MONEY – य फिर “गया हुआ समय लौट कर वापस नहीं आता”। जिन्हे समय का मूल्यांकन करना नहीं आता य Time Management नहीं आता वही ऐसी बातें कर सकते हैं। गुरुदेव ने तो स्वयं ऐसी स्थिति में कहा है – यह कोरी बहानेबाज़ी है ,मेरे पास यह बात बिलकुल नहीं चलेगी – तू मेरा काम करने आया है ,समय तो निकालना ही पड़ेगा । क्या हम इस तरह सोच सकते हैं कि हमारे गुरुदेव की अदृश्य सत्ता ,अदृशय उपस्थिति हमें ऐसा कह रही है। और उन्होंने तो हमें टाइम-टेबल बना कर दिया हुआ है , एक घंटा ,केवल एक घंटा प्रतिदिन – 24 घंटों में से केवल एक घंटा गुरुकार्य के लिए निकालना कोई कठिन नहीं है। इतिहास साक्षी है ,जितने भी महान पुरुष हुए हैं, जिनको भी हम हम आज याद करते हैं ,जिनसे हम प्रेरणा लेते हैं ,जो हमारे मार्गदर्शक हैं उन्होंने समय के महत्त्व को पहचाना , priorities को पहचाना और ऊपर से ऊपर चलते हुए शिखर तक पहुँच गए।
लोग हमारी बात क्यों नहीं सुनते ? यह इसलिए है कि उन्हें परमपूज्य गुरुदेव का साहित्य समझ ही नहीं आता। यह एक तथ्य है जो हम सबके साथ स्कूल टाइम से चलता आ रहा है। जो subject हमें अच्छा नहीं लगता ,उसे हम य तो छोड़ देते हैं य पूरे जी-जान से परिश्रम करते हैं ,ट्यूशन रखते हैं आदि और फिर हम इसमें सफल हो कर ही रहते हैं क्योंकि हम प्रण ले लेते हैं। हम सबको भी प्रण लेना है – यह प्रण कि जब तक हम सफल नहीं हो जाते तब तक सांस नहीं लेंगें – आखिर अपने गुरु को जवाब जो देना है ,बताना जो है कि हमने उनके लिए क्या किया। यही कारण है कि हम गुरुदेव का साहित्य ,इतना विशाल साहित्य बार -बार पढ़कर समझने का प्रयास करते हैं और जब समझ आ जाता है तो ही आपके समक्ष लेकर आते हैं।
धीरप बेटे ने एक और सुझाव दिया है कि घर के बड़े बुज़ुर्गों की सहायता ली जाये। अगर युवा नहीं सुनते तो वरिष्ठों को, बुज़ुर्गों को सुनाया जाये ,वह अधिक रूचि दिखा सकते हैं। बिलकुल ठीक कहा है – बुज़ुर्ग तो इतना ही देख कर प्रसन्न हो जायेंगें कि आज का युवा , आज की युवा शक्ति कितनी सामर्थ्यवान , बुद्धिमान और दूरदर्शी है। इसका सीधा उदाहरण तो हम सब प्रतिदिन ज्ञानरथ में देख ही रहे हैं। प्रेरणा बिटिया ,पिंकी बेटी ,धीरप बेटा का कार्य कितना सराहा जा रहा है , संजना बेटी की कविता को कितना सराहा गया है , अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल की बच्चियों की श्रद्धा को कितना पसंद किया जाता है ,बाल संस्कार शाला के नन्हे -नन्हे बच्चों की कार्यशैली को उनके माता -पिता लोगों को बता कर कितना गौरव महसूस करते हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ के सभी बच्चे अपना -अपना कार्य करते हुए योगदान दे रहे हैं , यह कोई छोटी बात नहीं है। अभी भी जब हम इस ज्ञानप्रसाद पर कार्य कर रहे हैं तो धीरप बेटा रिप्लाई कर रहे हैं। हम जानते हैं कि भारत में इस समय रात के 11 -1130 का समय होगा।
ऑनलाइन ज्ञानरथ की समर्पित सहकर्मी आदरणीय रेनू श्रीवास्तव बहिन जी अपने कमेंट में लिखा है कि so called high society के लोगों के पास अय्याशी के लिए पैसे हैं लेकिन नेक कार्य के लिए समय नहीं है। वह लिखती है कि मुफ्त में गुरुदेव का साहित्य बांटती रही हूँ लेकिन जब देखा कि उनके पास समय नहीं है तो बंद कर दिया। बहिन जी की मनःस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है, जब अपने गुरु के साहित्य का (जिसे उन्होंने अपने अंग अवयव कहा है ) अपमान होता है ,अनादर होता है तो ह्रदय में जो व्यथा की टीस उठती है उसे केवल फील ही क्या जा सकता है ,बयान नहीं। बहिन रेनू लिखती हैं कि दुर्भाग्यवश वे लोग गुरुजी के साहित्य का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
मैं तो गुरुजी से यही प्रार्थना करूंगी कि लोगों को सदग्यान दें ताकि अधिक से अधिक लोग लाभ ले सके । हाँ बहिन यह उनका दुर्भाग्य ही है जो अपना मूल्यवान समय व्यर्थ में खर्च कर रहे हैं – अगर किसी और अच्छे कार्य के लिए ,परमार्थ में लगा रहे हैं तो दूसरी बात है। गुरुदेव का सद्ज्ञान अवश्य ही कार्य करेगा क्योंकि गुरु का कार्य करने का सौभाग्य भी तो हर किसी को नसीब नहीं होता। हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं जिन्हे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है – हमारा चयन हमारे किसी पूर्वजन्म के संस्कारों के आधार पर गुरुदेव ने लाखों करोड़ों लोगों में से स्वयं किया है। हर किसी को गुरुअनुग्रह प्राप्त भी तो नहीं होता। हमारे ,आप सबके ,ऑनलाइन ज्ञानरथ में कितने ही लोग आये ,एक दो दिन ,महीना दो महीने देखे , शायद कुछ चमत्कार हो जाये, शायद उनके जीवन का कायाकल्प हो जाये – लेकिन तब एकदम ऐसे गायब हो गए जैसे कभी जानते तक नहीं। हम तो सभी के साथ एक जैसी आत्मीयता ,अपनत्व दिखाते हैं ,उनके लिए परिश्रम करते हैं , अपना समय भी उन पर लगाते हैं, लेकिन ऐसे लोग कुछ लेने के लिए आये थे। उन्हें शायद यह मालूम नहीं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ केवल देने का प्लेटफॉर्म है ,दान का प्लेटफॉर्म है , लेने का नहीं। अगर कोई समयदान कर सकता है ,प्रतिभादान कर सकता है , श्रमदान कर सकता है य कुछ और भी उसके पास है तो उसके लिए यहाँ आनंद ही आनंद है। हम तो कहेंगें कि -आनद की चरमसीमा ( climax ) ultimate bliss है। हमारे साथ जितनी भी पुण्य आत्माएं जुड़ी हुई हैं उन पर अवश्य ही गुरु अनुग्रह हुआ है।
गुरुदेव के अनमोल विचार ,अमूल्य साहित्य के प्रचार -प्रसार में आने वाली रुकावटों में एक और बड़ा हिस्सा अज्ञानता का है , इच्छा शक्ति का है। अगर कोई हमारे गुरु को जानता तक नहीं है , उनके बारे में उसे कुछ पता ही नहीं है तो वह हमसे क्यों बात करेगा ,क्यों अखंड ज्योति पढ़ेगा। उसे अखंड ज्योति देना तो इस अमृत का अनादर ही होगा। युगतीर्थ शांतिकुंज के बारे में हम तो जानते हैं कि यह ऋषियों की तपस्थली है। लेकिन वह जो वहां पहली बार जा रहा है उसके लिए तो यह युगतीर्थ भी हरिद्वार में अनेकों आश्रमों की तरह ही होगा जहाँ पंडों की भरमार है और लूटमार मची हुई है -ऐसा लिखते समय हम क्षमा प्रार्थी हैं क्योंकि हम किसी की श्रद्धा और मान्यता पर ऊँगली नहीं उठा रहे हैं – हमारे लिए हर कोई आदरणीय है। हमारा लिखने का अभिप्राय है कि किसी भी व्यक्तित्व को समझने के लिए , किसी भी विषय को समझने के लिए समय देने की आवश्यकता होती है नर्सरी के बच्चे से अगर आप केमिस्ट्री के भारी भरकम फॉर्मूले पूछेंगें तो वह भागेगा नहीं तो और क्या करेगा। नर्सरी का अर्थ ही नर्स करना है – ठीक उसी तरह जैसे Florence Nightingale नर्स करती रही। तो हमें भी प्रचार -प्रसार में आत्मीयता तो लानी ही है लेकिन परिजनों को समय भी देना है।
तो आज की चर्चा जहाँ से आरम्भ हुई थी , वहीँ पर समाप्त हो रही है – “समय”। महाभारत सीरियल का हरीश भिमानी ” मैं समय हूँ ” सभी को मालूम है। सबसे निर्धन कौन -जिसके पास समय नहीं है। और अधिकतर लोगों के पास समय नहीं है – इसका अर्थ यही निकलता है – अधिकतर लोग निर्धन हैं। निर-धन – ऐसे लोग जो केवल धन कमाने में ही अपना सर्वस्व लगाए हुए हैं , धन का आनंद तो उनका परिवार ले रहा है।
आज भी दोनों बच्चे प्रेरणा और धीरप ,आपसे यथाशक्ति सम्पर्क बनाये रखे हुए थे – हमारा आशीर्वाद। सविंदर भाई साहिब का handwritten कमेंट और किसी और से बैटरी लेकर फ़ोन चार्ज करने का कमेंट भी आया था। गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं कि शीघ्र ही सब ठीक हो।
इन्ही शब्दों के साथ हम आपसे आज का ज्ञानप्रसाद समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं। आप प्रतीक्षा कीजिये सोमवार को आने वाले लेख –
गुरुदेव की कैलाश पर्वत के क्षेत्र में यात्रा – बहुत ही रोचक एवं आँखें खोलने वाला विषय है। हम कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें।
जय गुरुदेव