11 सितम्बर 2021 का ज्ञानप्रसाद – गायत्री मंत्र के 24 अक्षर और उनसे सम्बंधित शक्तियां
आज के ज्ञानप्रसाद में हम आपके समक्ष गायत्री महामंत्र के 24 अक्षरों की स्टडी करेंगें और उनके साथ सम्बंधित शक्तियों को जानने का प्रयास करेंगें। गायत्रीमंत्र के सम्बन्ध में जब भी गूगल सर्च करते हैं तो सबसे ऊपर परमपूज्य गुरुदेव का ही नाम उभर कर आता है। यह लेख परमपूज्य गुरुदेव द्वारा दिए गए ज्ञान पर ही आधारित है लेकिन हमने अपने अल्प ज्ञान का प्रयोग करके अधिक से अधिक सरल करने का प्रयास किया है। कुछ technical शब्द यथावत हो छोड़ दिए हैं क्योंकि उन्हें समझने ,explain करने में और अधिक ज्ञान और योग्यता की आवश्यकता है। जो ज्ञान इस लेख में दिया गया है इसको ही समझ लिया जाये तो बहुत है ,ऐसा हमारा विश्वास है।
तो चलते हैं लेख की ओर :
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं।हम प्रतिदिन इन्हें मिलाकर पढ़ने से, जपने से गायत्री मंत्र के शब्दार्थ और भावार्थ को समझते हैं। पर शक्ति-साधना के सन्दर्भ में इनमें से प्रत्येक अक्षर का अपना स्वतंत्र अस्तित्व और महत्व है। इन अक्षरों को परस्पर मिला देने से “परम तेजस्वी सविता देवता से सद्बुद्धि को प्रेरित करने के लिए प्रार्थना की गई है” और साधक को प्रेरणा दी गई है कि वह जीवन की सबसे बड़ी सम्पदा सद्बुद्धि का ,ऋतम्भरा प्रज्ञा का, महत्व समझे। यह बात जितनी महत्वपूर्ण है उससे भी अधिक रहस्यमय है कि इस महामन्त्र का प्रत्येक अक्षर शिक्षाओं और सिद्धियों से भरा हुआ है। क्या रहस्य है ? कैसे इस मन्त्र के जपने से ऋद्धि -सिद्धि की प्राप्ति होती है ?
आज इस विषय पर चर्चा करने की आवश्यकता है।
शिक्षा की दृष्टि से गायत्री मन्त्र के प्रत्येक अक्षर में प्रमुख सदगुणों का उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि उनको आत्मसात करने पर मनुष्य देवों जैसी विशेषताओं से भर जाता है। अपना कल्याण तो करता ही है , साथ में अन्य असंख्यों को अपनी नाव में बिठाकर पार लगाता है। कैसे ? हाड़-मांस से बनी और मल-मूत्र से भरी हमारी काया में जो कुछ भी खासियत दिखाई दे रही है वह इस काया में समाहित सत्प्रवृत्तियों, गुणों ( virtues) के कारण ही हैं। यही सत्प्रवृत्तियां मनुष्य को उत्कृष्ट ( excellent ) बनाती हैं। जिस मनुष्य के गुण-कर्म एवं स्वभाव में जितनी उत्कृष्टता है वह उसी अनुपात से महत्वपूर्ण बनता है।
सद्गुणों की उपलब्धि का मार्ग इन सदगुणों की उपलब्धि के लिए लोक शिक्षण, सम्पर्क एवं वातावरण का योगदान तो है ही किन्तु अध्यात्म-विज्ञान ( Spiritual Science ) के अनुसार साधना के द्वारा भी जिस सद्गुण की कमी होती है उसकी पूर्ति के उपचार किये जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हम सब जानते हैं कि अगर हमारे शरीर में किसी रासायनिक पदार्थ (विटामिन B12 ) के कम पड़ जाने से स्वास्थ्य लड़खड़ाने लगता है और डॉक्टर B12 की गोलिआं य इंजेक्शन की सलाह देते हैं, ठीक उसी प्रकार सद्गुणों में से किसी की भी कमी हो जाने पर व्यक्तित्व त्रुटिपूर्ण हो जाता है। उस सद्गुण के अभाव के कारण प्रगतिपथ पर बढ़ने में रुकावट खड़ी हो जाती हैऔर परिणामवश उन उपलब्धियों का लाभ नहीं मिल पाता जिनके लिए यह अनमोल मनुष्य-जीवन हमें मिला था। तो क्या उस सद्गुण की पूर्ति के लिए भी कोई इंजेक्शन है ?,गोली है ?
सदगुणों की पूर्ति करने वाला इंजेक्शन है गायत्री उपासना :
गायत्री उपासना के विशिष्ट उपचारों से सत्प्रवृत्तियों की कमी पूरी की जा सकती है। उस अभाव को पूरा करने पर प्रखरता एवं प्रतिभा बढ़ती है और मनुष्य अधिक पुरुषार्थ करता है। शारीरिक तत्परता और मानसिक तन्मयता बढ़ने से अभीष्ट प्रयोजन पूरा करने में और सफलता मिलने लगती है। सत्प्रवृत्तियों की इसी क्रिया को, process को सिद्धियां कहते हैं। अनेक साधना शास्त्रों में गायत्री मंत्र की शक्तियां और उनकी प्रतिक्रियाओं के नामों का उल्लेख अनेक प्रकार से हुआ है। इन शक्तियों के नामों, रूपों में भिन्नता दिखाई पड़ती है। लेकिन ऐसी भिन्नता के बावजूद कुछ भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि एक ही शक्ति को विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त करने पर उसके विभिन्न परिणाम निकलते हैं। इस point को समझने के लिए नीचे दिया गया उदाहरण बहुत ही सार्थक है।
पहलवान ,विद्यार्थी,योगी और प्रसूता चारों दूध का सेवन करते हैं लेकिन चारों के प्रयोजन और लाभ बिलकुल अलग-अलग हैं। व्यायाम प्रिय व्यक्ति दूध पीने पर पहलवान बनता है, विद्यार्थी की स्मरण शक्ति बढ़ती है, योगी को उस सात्विक आहार से साधना में मन लगता है और प्रसूता के स्तनों में दूध बढ़ता है। यह लाभ एक दूसरे से भिन्न हैं। इससे तो यह प्रतीत होता है कि दूध के गुणों में मतभेद है और हर किसी को अलग -अलग लाभ देता है।
क्यों खा गए न चक्र ?
यह भिन्नता केवल ऊपरी है, superficial है । इस स्थिति को गहराई में समझने पर यों कहा जा सकता है कि हर स्थिति के व्यक्ति को उसकी “आवश्यकता के अनुसार” इससे लाभ पहुंचता है। कई बार शब्दों के अन्तर से भी वस्तु की भिन्नता मालूम पड़ती है। एक ही पदार्थ के विभिन्न भाषाओं में विभिन्न नाम होते हैं। उन्हें सुनने पर सहज बुद्धि को भी भ्रम हो सकता है। पर जब यह समझ आ जाती है कि एक ही वस्तु के अनेक उच्चारण हो रहे हैं तो इस अन्तर को समझने में देर नहीं लगती। एकता को अनेकता में समझने के लिए ऐसे उदाहरण ही सहायक होते हैं।
एक और उदाहरण :
अलग -अलग लोगों के लिए धन की प्राप्ति के प्रतिफल अलग हो सकते हैं। यह प्रतिफल उनकी मनःस्थिति के अनुरूप होते हैं । बिजनेसमैन का धन प्राप्त करना, दानी का धन प्राप्त करना और खर्चीले मनुष्य का धन प्राप्त करना- सभी के प्रतिफल अलग-अलग हैं। बिजनेसमैन की लाटरी निकलती है तो वह पैसा व्यापार में लगाएगा , दानी की लॉटरी निकलती है तो वह मंदिर बनवाएगा ,खर्चीले की लॉटरी निकलती है तो वह शॉपिंग करेगा ,holidaying करेगा। धन के इन गुणों को देखकर उसकी भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं झांकने की बात अवास्तविक (unreal ) है। वास्तविक (real ) बात यह है कि हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार धन का उपयोग करके अभीष्ट प्रयोजन पूरे करता है। यही कारण है कि गायत्री मंत्र (धन ) का लाभ हर किसी को उसके प्रयोजन के अनुसार ही मिलता है।
आन्तरिक उत्कर्ष या देवी अनुग्रह क्या होता है ?
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में सन्निहित चौबीस शक्तियों का भाव यह है कि मनुष्य की मौलिक विशिष्टताओं को उभारने में असाधारण सहायता मिलती है। इसे “आन्तरिक उत्कर्ष या देवी अनुग्रह” दोनों में से किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। आंतरिक उत्कर्ष को internal excellence कहते हैं और दैवी य दिव्य अनुग्रह को भगवान की कृपा कहा जा सकता है कहने-सुनने में इन दोनों शक्तियों में जमीन-आसमान जैसा अन्तर दिखता है और दो भिन्न बातें कही जाती प्रतीत होती हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि व्यक्तित्व में ,personality में बढ़ी हुई विशिष्टताएं सुखद परिणाम उत्पन्न करती हैं और प्रगतिक्रम में सहायक सिद्ध होती हैं। भीतरी उत्कर्ष और बाहरी अनुग्रह वस्तुतः एक ही तथ्य के दो प्रतिपादन भर हैं। उन्हें एक दूसरे पर inter-dependent भी कहा जा सकता है। अंदर से ख़ुशी होती है तो हम कहते हैं भगवान की बड़ी कृपा है ,भगवान की कृपा होती है तो आंतरिक प्रसन्नता अपनेआप मिलती है।
गायत्री मंत्र की 24 शक्तियों का वर्णन :
गायत्री की 24 शक्तियों का वर्णन शास्त्रों ने अनेक नाम और रूपों से किया है। उनके क्रम में भी अन्तर है। इतने पर भी इस मूल तथ्य में रत्ती भर भी अन्तर नहीं आता कि इस महाशक्ति के अपनाने से मनुष्य की उच्चस्तरीय प्रगति का द्वार खुलता है और जिस दिशा में भी उसके कदम बढ़ते हैं उसमें सफलता का सहज दर्शन होता है। गायत्री मंत्र की 24 शक्तियों की उपासना करने के लिए “शारदा तिलक-तंत्र” का मार्गदर्शन इस प्रकार है :
शारदा तिलक-तंत्र के बारे में हम केवल इतना ही कहेंगें कि यह एक बहुत सारे मंत्रों का संग्रह है जिसकी रचना आज से 1200 वर्ष पूर्व नासिक महाराष्ट्र के श्रीलक्ष्मणदेसिकेन्द्र द्वारा की गयी थी।
ॐ भूर्भुवः स्व: ( physical ,mental, celestial )
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री के 24 अक्षर :
1-तत, 2-स, 3-वि, 4-तु, 5-4, 6-रे, 7-णि, 8-1,9-भ, 10-गों, 11-दे, 12-व, 13-स्य, 14-धी, 15-म, 16-हि, 17-धि, 18-यो, 19-यो, 20-न: 21-प्र, 22चो, 23-द, 24-यात
24 अक्षरों से सम्बन्धित 24 कलाएं:
(1) तापिनी (2) सफला (3) विवा(4) तुष्टश (5) वरदा (6) रेवती (1) शूक्ष्मा (8) ज्ञाना (9) भर्गा (10) गोमती(11) दर्विका (12) धरा (13) सिंहिका (14) ध्येया (15) मर्यादा (16) स्फुरा (17) बुद्धि (18) योगमाया (19) योगात्तरा (20) धरित्री (21) प्रभवा (22) कुला (23) दृष्या (24) ब्राह्मी
24 अक्षरों से सम्बन्धित 24 मातृकाएं:
(1) चन्द्रकेशवरी (2) अजतवला (3) दुरितारि (4) कालिका (5) महाकाली (6) श्यामा (1) शान्ता (8) ज्वाला (9) तारिका (10) अशोका (11) श्रीवत्सा (12) चण्डी(13) विजया (14) अंकुशा (15) पन्नगा (16) निक्षिी (17) वेला (18) धारिणी (19) प्रिया (20) नरदता (21) गन्धारी (22) अम्बिका (23) पद्मावती (24)
सिद्धायिका सामान्य दृष्टि से कलाएं और मातृकाएं अलग- अलग प्रतीत होती हैं किन्तु तात्विक दृष्टि से देखने पर उन दोनों का अन्तर समाप्त हो जाता है। उन्हें श्रेष्ठता की सामर्थ्य कह सकते हैं और उनके नामों के अनुरूप उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले सत्परिणामों का अनुमान लगा सकते हैं।
समग्र गायत्री को सर्व विघ्न विनासिनी-सर्व सिद्धि प्रदायनी कहा गया है। संकटों का सम्वरण और सौभाग्य संवर्धन के लिए माँ गायत्री का आश्रय लेना सदा सुखद परिणाम ही उत्पन्न करता है। तो भी विशेष प्रयोजनों के लिए उसके 24 अक्षरों में अलग-अलग प्रकार की विशेषताएं भरी हैं। किसी विशेष प्रयोजन की सामयिक आवश्यकता पूरी करने के लिए उसकी विशेष शक्ति धारा का भी आश्रय लिया जा सकता है। चौबीस अक्षरों की अपनी विशेषताएं और प्रतिक्रियाएं हैं जिन्हें सिद्धियां भी कहा जा सकता है।
यह सिद्धियां इस प्रकार बताई गई हैं:
(1) आरोग्य (2) आयुष्य (3) तुष्टि (4) पुष्टि (5) शान्ति (6) वैभव (7) ऐश्वर्य (8) कीर्ति (9) अनुग्रह (10) श्रेय (11) सौभाग्य (12) ओजस् (13) तेजस् (14) गृहलक्ष्मी (15) सुसंतति। (16) विजय (17) विद्या (18) बुद्धि (19) प्रतिभा (20) ऋद्धि (21) सिद्धि (22) संगति (23) स्वर्ग (24) मुक्ति।
जहां उपलब्धियों की चर्चा होती है वहां शक्तियों का उल्लेख भी होता है। शक्ति की चर्चा सामर्थ्य का स्वरूप निर्धारण करने के सन्दर्भ में होती है। बिजली एक शक्ति है। विज्ञान के विद्यार्थी उसका स्वरूप और प्रभाव अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं। इस जानकारी के बिना उसके प्रयोग करते समय जो अनेकानेक समस्याएं पैदा होती हैं उनका समाधान नहीं हो सकता। विद्यार्थी की जानकारी जितनी अधिक होगी वह उतनी ही सफलता पूर्वक उस शक्ति का सही रीति से प्रयोग करने तथा अभीष्ट लाभ उठाने में सफल हो सकेगा।
“प्रयोग के परिणाम को सिद्धि कहते हैं।” सिद्धि अर्थात् लाभ। शक्ति अर्थात् पूंजी। शक्तियां सिद्धियों की आधार हैं। शक्ति के बिना सिद्धि नहीं मिलती। दोनों को interdependent कहा जा सकता है यानि शक्ति और पूँजी एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अपनी रोज़मर्रा के जीवन में भी हम बड़ी ही आसानी से कह सकते है जिसके पास पूँजी है वही शक्तिशाली है। यह पूँजी एक बिजनेसमैन के लिए धन हो सकता है ,एक शिक्षिक के लिए ज्ञान हो सकता है और एक कृषक के लिए परिश्रम करने का सामर्थ्य हो सकता है।
जय गुरुदेव