1 फरवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद
सर्जरी के बाद ऑनलाइन ज्ञानरथ का प्रथम ज्ञानप्रसाद
अपनी knee सर्जरी पर जाने से पूर्व 5 जनवरी 2021 को ” गायत्री मंत्र की शक्ति पर लेखों की श्रृंखला ” पर तीसरा लेख लिखा था। उसी श्रृंखला की कड़ी में प्रस्तुत है चौथा लेख। यह लेख देखने में बहुत ही छोटा लगेगा परन्तु इसको भलीभांति समझने के लिए आपको गूगल में से cross references की भी आवश्यकता पढ़ सकती है। जहाँ तक संभव हो सका हमने इस लेख में ठेठ हिंदी के शब्दों को इंग्लिश में परिवर्तित करके अर्थ निकालने का प्रयास किया है।
अक्सर हमें गायत्री महामंत्र के बारे में कितने ही प्रश्न पूछे जाते हैं ,अपने अल्प ज्ञान और रिसर्च के द्वारा हम उन प्रश्नों का निवारण करने का भी प्रयास करते हैं। युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित साहित्य बहुत ही सरल और लाभदायक है। आचार्यश्री ने बार- बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि इस महामंत्र को समझ कर अपने अंतःकरण में उतारने के उपरांत ही इसके परिणाम प्रतक्ष्य देखे जा सकते हैं न कि केवल माला के मोती फेरने से। इसका कोई अर्थ नहीं कि हम कितनी माला ,कितना जाप ,और कितने यज्ञ ,हवन इत्यादि करते हैं। यह भावना का खेल है उस शक्ति से मिलन का एक अद्भुत स्रोत
तो प्रस्तुत है आज का लेख :
गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों के साथ अनेक कारण और महत्व जुड़े हए हैं । इसके साथ कई चौबीस रहस्यों का सम्मिलन है। चौबीस अक्षरों के कुछ ऐसे ही महत्व इस छोटे से लेख में बताने का प्रयास किया गया है। अपने पाठकों से आग्रह है कि इस लेख से पहले हमारी इस वीडियो को भी देख लें तो लेख समझने में सहायता हो सकती है। https://youtu.be/sIwnpAjE5U8
.
(1) संसार की समस्त विद्याओं के भण्डार 24 महाग्रन्थ है। ” 4 वेद, 4 उपवेद 4 ब्राह्मण 6 दर्शन
और 6 वेदांग” इस प्रकार कुल महाग्रंथ ( 4+4+4+6+6 =24) चौबीस हुए। तत्वज्ञों का ऐसा भी मत है कि गायत्री मंत्र के एक-एक अक्षर से यह एक-एक ग्रन्थ बना है। गायत्री मंत्र के गर्भ में इन 24 ग्रंथों का मर्म छिपा हुआ है। गायत्री मंत्र का मर्म इन 24 ग्रंथों में वर्णित है। जो गायत्री मंत्र का विस्तृत रहस्य जानना चाहे वे इन 24 महाग्रन्थों को पढ़कर उसका मर्म समझ सकते हैं।
(2) हमारा हृदय जीवन का और ब्रह्मरंध्र ईश्वर का स्थान है। ब्रह्मरंध्र (सहस्रार) हमारे मस्तक के मध्य में स्थित पावर सेंटर का नाम है। मस्तक के अंदर का वह गुप्त छिद्र जिसमें से होकर प्राण निकलने से ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है उसे कहते हैं ब्रह्मरंध्र । ऐसा कहा जाता है कि ऋषि-मुनियों के प्राण ब्रह्मरंध से निकलते हैं। अगर हम अपने शरीर को ब्रह्माण्ड कहें तो ब्रह्मरंध्र नार्थ पोल है और मूलाधार चक्र साउथ पोल है।
हृदय से ब्रह्मरंध्र 24 ऊँगली दूर है। एक-एक अक्षर से एक-एक ऊँगली की दूरी को तय करके जीव गायत्री मंत्र द्वारा ब्रह्म में लीन हो सकता है ऐसा योगी लोग कहते है। गायत्री मंत्र के 24 अक्षर यह संकेत करते हैं कि ईश्वर जीव से, हृदय मस्तिष्क से 24 ऊँगली दूर है।
” हृदय में ईश्वर रहता है और मस्तिष्क में मन। अपने मन को ईश्वर के अर्पण कर दो तो कल्याण की प्राप्ति हो जाएगी।”
(3) गायत्री मंत्र के तीन विराम होते है, शरीर के भी तीन भाग हैं प्रत्येक भाग के अंतर्गत आठ अंग होते है इस प्रकार शरीर रूपी गायत्री के भी 24 अक्षर हो जाते है।
(i) शिर(2), नेत्र(2), कर्ण(2), प्राण(2) – कुल 8 अक्षर
(ii) मुख(2), हाथ(2), पैर(2), नाक(2) -कुल 8 अक्षर
(iii) कण्ठ(2), त्वचा(2), गुदा(2), शिश्न -penis (2)- कुल 8 अक्षर

यह सब अक्षर मिल कर 24 हुए। गायत्री मंत्र के दो-दो अक्षरों से इन बारह प्रमुख अंगों की रचना हुई है। यह स्वभावतः पवित्र है इन्हें सदा पवित्र ही रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
(4) शरीर की सुषुम्ना नाड़ी में 24 कशेरुकाएं (vertebrae ) हैं। (ग्रीवा में 7, पीठ में 12, कमर में 5, इन सबका योग भी 24 ही बनता है ) ये कशेरुकाएं प्राणों का, ग्रन्थियों का और चक्रों का पोषण करने वाली है। यह पोषण गायत्री कहा जाता है और इन 24 कशेरुकाओं को 24 अक्षर कहते है। बायोलॉजी के विद्यार्थी जानते हैं कि हमारे शरीर में कुल 33 vertebrae होती हैं। यह vertebrae हमारी रीढ़ की हड्डी में एक दूसरे के साथ इंटरलॉक हुई पड़ी हैं।
(5) शरीर में प्राण सूत्र 24 हैं। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं । गायत्री मंत्र का एक-एक अक्षर सूक्ष्म शरीर के लिए उतना ही महत्व पूर्ण है जितना कि स्थूल शरीर के लिए। ये 24 प्राण सूत्र हैं।
(6) शरीर में 5 ज्ञानेन्द्रियाँ 5 कर्मेंद्रियां, 5 प्राण, 5 तत्व और 4 अन्तःकरण है। इन 24 तत्वों के द्वारा ही शरीर जीवित रहता है। हमारे आध्यात्मिक शरीर में गायत्री मंत्र की 24 शक्तियाँ इसी प्रकार ओतप्रोत है।
(7) गायत्री साधना से अष्ट (8 ) सिद्धि, नव(9 ) निद्धि और सात(7 ) शुभ गतियों की प्राप्ति होती है। यह 24 महीन लाभ गायत्री मंत्र के अंतर्गत ही हैं ।
(8) इस मंत्र में 24 ऋषियों और 24 देवताओं की शक्तियों की शक्तियाँ सन्निहित है।
(9) साँख्य दर्शन में वर्णित 24 तत्वों से सृष्टि का क्रम चलता है। उन 24 तत्वों का प्रतिनिधित्व गायत्री मंत्र के 24 अक्षर करते है।
(10) शरीर में प्रधानतः 24 अंग है। उसके प्रत्येक तृतीयाँश में भी 24-24 टुकड़े है। शरीर के तीन भाग है। शिर, धड़ और पैर। इन तीनों भागों में से प्रत्येक में 24-24 अवयव है। इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर में 24 तत्व है। इन दोनों शरीर के अवयवों की सृष्टि 24 अक्षर वाले गायत्री मंत्र से होती है। ब्रह्म पुरुष के शरीर के 24 भाग गायत्री मंत्र के 24 अक्षर हैं ।
इस प्रकार के और भी अनेकों कारण है जो गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों की महिमा वर्णित करते हैं । प्रत्येक अक्षर के पीछे बड़े-बड़े महान् तत्व हैं। परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित गायत्री महाविज्ञान बहुत ही सरल संग्रह है। गायत्री मंत्र की शक्ति और ऊर्जा का वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने के लिए गायत्री महाविज्ञान के इलावा और भी कई पुस्तकें और लेख इस वेबसाइट पर उपलब्ध है I http://literature.awgp.org/
युगऋषि पंडित श्री राम शर्मा आचार्य