अखंड ज्योति पत्रिका में आया संकट:
बात उन दिनों की है जब विश्वयुद्ध और भारत के स्वाधीनता संग्राम के कारण जीवन अस्त -व्यस्त हो गया था। वृन्दावन रोड पर स्थित जिस प्रेस में अखंड ज्योति पत्रिका छपती थी बंद हो गयी। उस क्षेत्र के 22 प्रिंटिंग प्रेस में से 18 बंद हो गए थे। पहले कागज़ का संकट आया था वह तो किसी तरह से निपटा लिया था पर प्रिंटिंग का संकट काफी गंभीर था। जो चार प्रेस बचे थे गुरुदेव ने उनके साथ बात की तो उन्होंने ने नया काम लेने से इंकार कर दिया। एक तो उनके पास पहले ही नियमित ग्राहकों का काम बहुत ज़्यादा था दूसरे इस स्थिति में क्या गारंटी थी कि काम करने के बाद पैसा मिलेगा कि नहीं। हम रोज़ मंदी की बातें तो करते रहते हैं पर इसका फील कोई अच्छा नहीं होता। सो अखंड ज्योति की छपाई में आया गतिरोध एक समस्या का कारण बन रहा था।
अखंड दीप और अखंड ज्योति पत्रिका पूज्य गुरुदेव के प्राण हैं। जिस प्रकार अखंड दीप अनवरत गत कई वर्षों से प्रज्वलित है अखंड ज्योति पत्रिका भी समय पर निकलनीचाहिए -गुरुदेव ने ऐसा संकल्प लिया था
हमने एक बार अपने लेखों में रिफरेन्स दिया था जो एक बार फिर बता रहे हैं। शांतिकुंज में अपने प्रवास के दौरान हम गेट नंबर 3 से ब्रेड ,फल वगैरह लेने जाते थे। एक बार हमने नोटिस किया कि रेहड़ी वाला जो लिफाफे इस्तेमाल कर रहा था वोह अखंड ज्योति पत्रिका
के पन्नो से बने थे। हमारी दृष्टि जब इन लिफाफों पर पड़ी तो हमने जिज्ञासावश रेहड़ीवाले से पूछा कि आपने यह लिफाफे कहां से लिए हैं तो हमें बताया गया यह सब रद्दी में आए हैं । सुन कर बहुत ही कष्ट हुआ कि जिस पत्रिका को हम गुरुदेव के प्राण मानते हैं उसका इस प्रकार से अनादर हो रहा है। हमने सारी की सारी रद्दी में बेचीं हुई अखंड ज्योति पत्रिका ले लीं और आवास में आकर अपने विवेक के अनुसार प्रयोग किया। हम अपने सहकर्मियों से भी यही अपेक्षा करते हैं।
वंदनीय माता जी से बात की तो उन्होंने कहा -हम वात्स्लय और पोषण का धर्म निभा रहे हैं। आपने मुझे अखंड दीप की देखभाल करने का कार्य सौंपा है तो पत्रिका की चिंता भी मुझे ही करने दीजिये। इतना कह कर माता जी उठ के अंदर गयीं और अलमारी में से गहनों की पेटिका उठा कर ले आईं। सामने रख कर गुरुदेव से कहा -छोटा मोटा प्रेस शुरू करने में शायद यह आभूषण काफी हों। आप इन्हे किसी साहूकार के पास रख दें और कुछ पैसे ले लें , उन पैसों का प्रयोग कर लेंगें और फिर जब पैसा आ जायेगा तो आभूषण वापिस ले लेंगें। माता जी की यह पहल देख कर गुरुदेव बहुत ही प्रसन्न हुए और न करने का तो कोई कारण ही न था। वहीँ बैठ कर योजना बनाई कि हाथ से चलने वाली मशीन खरीदी जाए। तयशुदा बजट में छोटी ट्रेडिल मशीन मिल जाए तो खरीदी जा सकती है । गुरुदेव ने माता जी को कहा –
“तूने तो अपना पद चरितार्थ कर दिया ,स्नेह और वात्सल्य बाँटने का का दायित्व पूजा कक्ष में और अब ज्ञानयज्ञ में भी ”
खोजबीन के बाद 90 रुपए में मशीन मिल गयी। सामान्य समय में इस मशीन का मूल्य 400 रुपए होगा। अखंड ज्योति संस्थान वाली बिल्डिंग के प्रथम तल पर इस मशीन को रखा गया।
यह वही बिल्डिंग है जहाँ गुरुदेव शांतिकुंज आने से पहले तक 30 वर्ष रहे। इस बिल्डिंग के बारे में एक बात जो बहुत प्रचलित हुई थी वह यह है कि इस बिल्डिंग में भूतों का निवास है।
मशीन मैन के तौर पर अब्दुल नाम का कर्मचारी रखा गया। नारियाल तोड़ा गया , अब्दुल के माथे पर तिलक लगाया गया और हाथ में कलावा बांधा गया। शगुन के तौर पर ताम्बे का सिक्का देकर अब्दुल ने ही पहला पन्ना निकाला। उस वक्त गिनती के केवल 12 लोग मौजूद थे। उनमें से किसी ने कहा –
बहुत बड़ा साहस है ,जहाँ सभी लोग मंदी के कारण बिज़नेस बंद कर रहे हैं ,गुरुदेव ने नया काम आरम्भ किया है। कोई प्रतिक्रिया आने से पहले ही गुरुदेव ने कहा -यह तो माता जी का ही काम है। कैसी भी मंदी हो अपने परिवार को स्नेह और दुलार माता जी सदैव बनती रहती हैं।
अखंड ज्योति पत्रिका माता जी का स्नेह दुलार है।
इस दिन के बाद से अखंड ज्योति पत्रिका का अंक नियमित समय पर प्रकाशित होने लगा। गुरुदेव ने यह बात अलग अलग अवसरों पर बताई और ” अपनों से अपनी बात ” रूपी सम्पादकीय में भी लिखी। अब पत्रिका का प्रकाशन गति पकड़ गया था ,ग्राहक भी बन रहे थे ,लगभग 1000 के करीब संख्या हो गयी थी। इसके लिए भूदेव शर्मा गुरुदेव कि सहायता करते। रेजिट्रेशन वगैरह काम वही देखते। गुरुदेव संपर्क का काम करते। अधिकतर समय गुरुदेव अपने पूजा कक्ष के बाहर वाले कमरे में बैठते और परिजनों को परामर्श देते और जब कोई नहीं होता तो स्वाध्याय और लेखन कार्य करते। बाद में इस कमरे का नाम परामर्श कक्ष ही प्रचलित हो गया।
आश्रम बनाओ ,आश्रम बनाओ
अखंड ज्योति कार्यालय में आयी सारी डाक गुरुदेव खुद ही खोलते और उन सभी पत्रों के विषय पर भी उनकी दृष्टि भी रहती। गुरुदेव के सहकर्मी भूदेव शर्मा से उन्होंने एक दिन पूछा -पंडित जी, पाठक हमसे क्या चाहते हैं ? पत्रों से कोई अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है पर पाठकों की संख्या पिछले 2 वर्षों में पांच गुना बढ़ गयी है और उनमें से कई पाठक पुराने अंक चाहते हैं। गुरुदेव कहने लगे -पुरानेअंक तो हमारे पास नहीं हैं। कुछ देर बाद सोच कर बोले – अपने पाठकों की आवश्यकता का ख्याल तो रखना ही चाहिए। उसका एक ही उपाय है कि अखंड ज्योति पत्रिका के पुराने अंकों में से उपयोगी लेख निकाल कर एक पुस्तक छाप दी जाये। पुस्तकें छप कर आ गयी और खर्चा 6 आना आया था। पुस्तकों का मूल्य तय करने की बात आयी तो माता जी ने कहा – कई ऐसे लोग भी होंगें जिनके लिए 6 आना खर्चना कठिन हो। गुरुदेव ने कहा -हमारे पास इतने साधन तो है नहीं कि हम मुफ्त में पुस्तकें बाँट सकें। पुराने सहकर्मियों को रूपए ,आना ,पैसा तो स्मरण होंगे ही।
हम गुरुदेव की धारणा की बात कर रहे हैं कि कैसे उनके ह्रदय में अपने पाठकों के प्रति स्नेह और अपने बच्चों की कठिनाइयों का ख्याल रहता था। कौन इस प्रकार अपने आप को तंगी में डाल कर किसी दूसरे का लाभ देखता है। परन्तु हमारे गुरुदेव और वंदनीय माता जी ऐसे ही हैं ,सदैव हम सब का ख्याल रखते हैं। भूदेव जी ने कहा -जिनके पास पैसा नहीं है उन्हें पुस्तक पढ़ना ही नहीं चाहिए। उन्हें पहले अपने वस्त्र ,भोजन का ख्याल करना चाहिए। माता जी ने कहा – जिन्हे भोजन नहीं मिलता उनके लिए समाज को चिंता करना चाहिए। लंगर ,अन्न क्षेत्र अदि यहाँ काम करते है। भूदेव जी ने पुस्तकालय और वाचनालय का भी सुझाव दिया और कहा जो नहीं खरीद सकते वोह वहां से ले लें । गुरुदेव इस वार्ता को सुन रहे थे कि कोई विकल्प नहीं निकल रहा ,तो कुछ सोच विचार कर बोले :
अखंड ज्योति पत्रिका केवल एक कागज़ों का पुलंदा ही नहीं है ,यह बिल्कुल अखंड दीप की तरह है। जैसे अखंड दीप हमें प्रकाश प्रदान करता है,मार्ग दर्शाता है ठीक उसी तरह यह पत्रिका हमारे बच्चों के जीवन में प्रकाश लाएगी।
उन्होंने सुझाव दिया – कुछ स्वाध्याय कर रहे लोगों को कम कीमत पर पुस्तकें दी जाएँ। यदि कोई पुस्तक मंगवाना चाहे तो उसे 6 आना वाली पुस्तक सवा आना यानि 8 पैसे में दे दी जाये। विद्यार्थी हों तो उन्हें प्रिंसिपल की परमिशन ज़रूरी हो ताकि लोग अनुचित लाभ न उठा सकें। जब यह सूचना अखंड ज्योति के मुख्य पृष्ठ पर छपी तो सैंकड़ों पाठकों ने गुरुदेव को पत्र लिखे और उनकी अपेक्षा पूरी करते हुए खुद गुरुदेव ने उनके निजी उत्तर दिए। इन पत्रों में गुरुदेव ने दूसरे विद्यार्थियों को भी अखंड ज्योति पढ़ने का परामर्श दिया। गुरुदेव के परामर्श का इतना असर हुआ कि 1949 तक 500 से अधिक पाठकों ने स्वाध्याय सीरीज पढ़ लीं।
यह क्रिया तो बिल्कुल हमारे ज्ञानरथ जैसी है। जबसे हमने यह ज्ञानरथ शुरू किया है ,पाठकों और प्रशंसकों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है और sharing भी हो रही है। सहकर्मियों के कमैंट्स से पता चलता है कि नए पाठक शेयर के बाद ही आए हैं। इसके लिए हम हमेशा ही आभारी रहेंगें।
गुरुदेव का सारा साहित्य आज भी इतने कम मूल्य पर उपलब्ध है कि विश्वास ही नहीं होता कि कैसे यह खर्चा चल रहा है। अवश्य ही यह महाकाल की योजना है वही चला रहे हैं। जिन्होंने मथुरा युग निर्माण की विशाल और अति आधुनिक प्रेस देखी है जानते होंगें कैसे करोड़ों की मशीनें और विशाल तंत्र इतनी निशुल्क जैसी कीमत पर पुस्तकें उपलब्ध करवा रही हैं। निशुल्क हम इस लिए कह रहे हैं अखंड ज्योति पत्रिका का आज (2020 ) में भी मूल्य केवल 220 रुपए /वार्षिक है जो प्रतिदिन एक चाय के कप के मूल्य से भी कम है। ऑनलाइन तो बिल्कुल ही निशुक्ल है। अनिल पाठक भाई साहिब जिन्होंने हमें युग निर्माण प्रेस की वीडियो रिकॉर्ड करने में सहयोग दिया था बता रहे थे कि गुरुदेव के साहित्य का ज़्यादातर भाग हम ऑनलाइन अपलोड कर चुके हैं। अब तो गुरुदेव के साथ सम्बंधित कोई भी सहित्य शेयर करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। हमारा , आप सबका , ज्ञानरथ जिसके अंतर्गत आप यह लेख पढ़ रहे हैं यां हमारी videos देखते हैं इसी दिशा में एक प्रयास है। गुरुदेव ने 3200 से ऊपर पुस्तकें लिखी हैं और जीवन के हर क्षेत्र पर इन पुस्तकों ने प्रकाश डाला है। पूरा जीवन भी लग जाये तो इस विशाल साहित्य को पढ़ना असम्भव सा ही प्रतीत होता है। यही उदेश्य लेकर हम गुरुदेव की पुस्तकों में से छोटे छोटे लेख आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।
पत्राचार में कइयों ने मथुरा आकर गुरुदेव के दर्शन एवं उनके सानिध्य में समय बिताने का अनुरोध किया। मथुरा आने के इच्छुक छात्रों को “हाँ ” करने का मन तो कर रहा था परन्तु आवास का अभाव होने के कारण भावनाएं शिथिल होती लगने लगीं।
“लेकिन माता जी आखिर माता जी हैं उनके ह्रदय से एकदम विकल्प का निवारण हो गया ”
वंदनीय माता जी ने कहा -10 -12 साधकों को तो घर पर ही रखा जा सकता है। लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं था। साधकों की संख्या तो बढ़नी ही थी उनके लिए निशुल्क आवास और भोजन का इंतेज़ाम अति आवश्यक है। भूदेव जी को साधकों को रज़ामंदी पत्र लिखने को कह दिया लेकिन स्थाई समाधान फिर भी आवश्यक था। जब कहीं से कोई विकल्प न दिखाई दिया तो गुरुदेव सामने जल रहे अखंड दीप की ओर देखने लगे। एकदम उन्हें ऐसे लगा हिमालय जैसा वातावरण बन गया है ,ठंडी हवा चलने लगी और पिछली यात्रा की स्मृतियाँ उभर कर सामने आने लगीं। उस नीरव वातावरण में दादागुरु ,हमारे गुरुदेव के मार्गदर्शक की आवाज़ गूज गयी जो कह रही थी :
” आश्रम बनाओ ,आश्रम बनाओ “
हमारे परिजन ,सहकर्मी जानते हैं कि गुरुदेव के मार्गदर्शक ने कैसे – कैसे अनहोने कार्यों में सहयोग दिया है। आज के मार्गदर्शन ने विश्व भर के सभी गायत्री शक्तिपीठों में निशुल्क आवास और भोजन का प्रबंध करवा दिया। जो भी परिजन शांतिकुंज , मथुरा,आंवलखेड़ा एवं विश्व में कहीं भी सत्र करने आते हैं यां केवल देखने आते हैं उन्हें एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। माता जी की रसोई और हर प्रकार के आवास हर जगह उपलब्ध हैं। हर प्रकार का कहने का अर्थ है कि विदेशी साधकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शांतिकुंज में दो अलग ब्लॉक बनाये गए हैं। इनके बारे में विस्तार से जानने के लिए आप हमारी videos देख सकते हैं।
गुरुदेव अपने मार्गदर्शक से आजीवन सहायता लेते रहे और अपना समर्पण देते रहे। खुश्वाहा जी बता रहे थे कि गुरुदेव हमें हर समय इसी प्रकार मार्गदर्शन देते हैं। जब भी हम किसी दुविधा में होते हैं ,कोई विकल्प सामने नहीं आता तो हम गुरुदेव के पास बैठ कर कहते हैं आप ही इस समस्या का निवारण कर सकते हैं तो दूसरे ही दिन वह समस्या खुद ब खुद हल हो जाती। यह बात खुश्वाहा जी ने नवंबर 2019 में आंवलखेड़ा में सूर्य मंदिर के अंदर कही थी। यह सूर्य मंदिर गुरुदेव की जन्मस्थली वाली हवेली में स्थित है। आप इस सूर्य मंदिर के दर्शन भी हमारी videos में कर सकते हैं।