वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

समयदान महादान

गुरुदेव कहते है – 

आपको अपने समय का एक हिस्सा अवश्य  निकालना चाहिए। यदि आप भगवान को अपने जीवन में हिस्सेदार- साझीदार (If you want to setup partnership with GOD) बनाना चाहते हो  तो भगवान के लिए कुछ समय निकालिए।  भगवान के लिए समय तो लगाएँगे, लेकिन चापलूसी में लगाएँगे। गुरुजी! हम तो आपको हाथ जोड़कर, पैर छूकर प्रणाम करेंगे, आपका नाम जपेंगे और आपकी आरती उतारेंगे। नहीं बेटे, जितनी देर में तू हमारी आरती उतारेगा और पैर छुएगा, पैर दबाएगा, उतनी देर में तू हमारी सड़क को साफ कर दिया कर और देख नालियों में गंदगी हो जाती है, उसको साफ कर दिया कर। नहीं महाराज जी  नाली में तो मैं और कूड़ा डालूँगा, पर आपकी आरती उतारूँगा। बेटे, हमारी आरती मत उतार। हम अपनी आरती अपने आप उतार लेंगे, तेरी आरती की हमें कोई जरूरत नहीं है। तू तो नाली साफ कर दिया कर। मित्रो! आज समाज की सबसे बड़ी सेवा, देश की सबसे बड़ी सेवा, धर्म और संस्कृति की सबसे बड़ी सेवा, मानवता और महाकाल की सबसे बड़ी सेवा है  (मानवता में गंदगी ) 

    ” जनमानस में युगचेतना का विस्तार करना  , उस  के दिमाग (गली की नाली )  में से गंदगी निकलना “

प्राचीनकाल में तीर्थयात्रा का यही उद्देश्य था। ऋषि और ब्राह्मण घर- घर जाकर अलख निरंजन की जाग्रति जगाया करते थे। आप लोगों को भी वही करना चाहिए। आपको जन- जन के पास जाना चाहिए। झोला पुस्तकालय के रूप में, ज्ञानरथों के रूप में।  गत वर्ष 2019 में  शांतिकुंज से 4 वीडियो ज्ञानरथ भारत के चारों  कोनो में भेजे गए थे । इनमें से एक रथ हमारी उपस्तिथि में नवंबर में विदा हुआ । हमारा सौभाग्य था कि हम उस विदाई समारोह की वीडियोग्राफी कर सके । यह वीडियो हमारे चैनल पर लगी हुई है ।

गुरुदेव बताते  हैं  : 

हमारे सुल्तानपुर के लखपतराय वकील की बात मैं भूलता नहीं। वे पाँच बजे कचहरी से घर आते और आधा घंटे में फ्रेश हो करके, चाय नाश्ता करके तैयार  हो जाते।  चल – पुस्तकालय (मोबाइल लाइब्रेरी) लेकर सारे बाजार में, अपने मुवक्किलों के पास, सेठों के पास  तीन घंटे तक पुस्तकालय चलाते।  लोग कहते- अरे वकील साहब  यह क्या धंधा खोल लिया है ? अरे यार, यह भगवान का धंधा है तू भी खोल, फिर देख। जरा यह पुस्तक पढ़ तो सही, तब पता चलेगा । उस  जमाने में सारे के सारे सुल्तानपुर को उन्होंने जाग्रत कर दिया। उन्होंने कोई कोना नहीं छोड़ा,कोई स्कूल नहीं छोड़ा, कोई घर नहीं छोड़ा। परिणाम यह हुआ कि जिस सुल्तानपुर में मैं पहले दो बार गया, जब पाँच कुंडीय यज्ञ हुए थे, तब मुश्किल से एक सौ आदमी आते थे। जब बाबू लखपत राय ने सारे के सारे सुल्तानपुर में मिशन की बात फैला दी, तब मुझसे कहा- गुरुजी, आप तो हिमालय जाने वाले हैं  तो एक बार सुल्तानपुर और चलिए। ।  गुरुवर ने  कहा   ” दो बार तो हो आया हूँ , सौ आदमी तो आते नहीं हैं, मैं क्या करूँगा सुल्तानपुर में ”  वकील साहब ने कहा  ” कौन से जमाने की बात कह रहे हैं आप। कुछ वर्ष पहले में और अब में जमीन- आसमान का फर्क पड़ गया है, आप चलिए तो सही” ।  सुल्तानपुर  के गाँव -गाँव, घर- घर में उन्होंने पुस्तकें पढ़ाई और पूछा कि आचार्य जी की किताबें आप पढ़ते हैं, आपको पसंद आती हैं? हाँ साहब, पसंद आती हैं और आँखों में आँसू आ जाते हैं, ऐसा गजब का साहित्य है। यह तो किसी देवता का लिखा हुआ है। लखपत बाबू ने कहा- जिन्होंने ये किताबें लिखी हैं, वे हमारे गुरुजी हैं I उनको बुला दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी । तो आप अपनी दुकानें बंद रखेंगे और आचार्य जी के साथ में रहेंगे? हाँ साहब, रहेंगे। उनके खाने- पीने का, किराये- भाड़े का जो खरचा पड़ेगा, सो आप देंगे? हाँ जिस लायक हमारी हैसियत है, दे देंगे। हर एक से उन्होंने वायदे करा लिए और सौ कुंडीय यज्ञ रखा।  गुरुदेव कहते हैं  ,” मैं गया तो एक लाख जनता थी। उन दिनों एक लाख आबादी  सुल्तानपुर  की नहीं होगी शायद। आस- पास के सारे देहातों के लोग आए। बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियों “। 

गुरुदेव ने कहा ,

” भई, गायत्री तपोभूमि को मैं खाली छोड़कर आ रहा हूँ कुछ पैसे- वैसे का थोड़ा- बहुत इंतजाम हो जाए तो कर देना “। 

यज्ञ समाप्त होने के बाद उनके पास इक्यावन हजार (51000   ) रुपया बचा था, जो उन्होंने गायत्री तपोभूमि में जमा कर दिया। यह किसकी करामात थी ? झोला पुस्तकालय की, चल पुस्तकालय की , ज्ञान रथ की ,समर्पित जनसाधारण की और वकील साहब की।   यह सब उस महाकाल की सच्ची सेवा का ही परिणाम है । श्रद्धा, भक्ति,  समर्पण ,निष्ठां जनशक्ति की नींव हैं । जनशक्ति ऐसी शक्ति है कि बवंडर ( tornado ) ला के खड़ा  कर दे ।  दुर्भागय्वश इस   जनशक्ति के दुष्परिणाम  हमने कुछ दिन  पूर्व (अप्रैल 2020  कोरोना ) दिल्ली और मुंबई में भी देखे । गरीब परिवारों को इस दुविधापूर्ण स्तिथि में देख कर हृदय मैं अति वेदना आई । हम  जनसाधारण की शक्ति  का मूल्यांकन करने का  प्रयास कर रहे हैं । इसीलिए  गुरुदेव ने  विचार क्रांति ( thought revolution ) का शंखनाद दिया था । हमारे सबके  ऑनलाइन ज्ञान रथ का एकमात्र उदेश्य है कि हम जनसाधरण में ,आम लोगों में ,simple  language  में गुरुदेव के विचार का ,साहित्य का प्रचार करें ।इस में हम सभी का सहयोग ऑडिओ,वीडियो एवं posting  के माध्यम से एक क्रांति ला सकता है ।

जय गुरुदेवScreenshot (346)

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