वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ध्यान क्यों करें, कैसे करें ? पार्ट 1 

“ध्यान क्यों करें, कैसे करें” विषय पर जून,1977 में गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज में परम पूज्य गुरुदेव ने अपने बच्चों की सुविधा एवं ट्रेनिंग के लिए एक विस्तृत उद्बोधन दिया। यह उद्बोधन इतना प्रैक्टिकल, ज्ञानवर्धक और विस्तृत था कि अखंड ज्योति नवंबर, दिसंबर 2002 के दो अंक और जनवरी, फरवरी 2003 के दो अंकों में भी समा न सका। अखंड ज्योति के सभी अंक दिव्य हैं लेकिन जब इन चार अंकों में प्रकाशित  कंटेंट को ध्यान से देखा, तो पहले तो लेखक के होश ही उड़ गए कि इतने विशाल (लगभग 45 पन्ने,17000 शब्द) ज्ञान को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की  दैनिक गुरुकक्षा में कैसे स्टडी किया जाएगा। हमारे सभी सहपाठी तो इस विषय पर पहले  ही महारत हासिल कर चुके हैं, हम कौन से तीस मार खान हैं  जो इस ज्ञानकोष  की विशाल ओखली में सिर डालें। लेकिन हमें पूरा विश्वास था कि हमारा गुरु हमसे जो कुछ भी करवाना चाहेगा, करवा ही लेगा। बस फिर क्या था, विज्ञान के विद्यार्थी की Try and test  की प्रवृति और सहपाठिओं के ज्ञान और सहयोग ने ऐसी ऊर्जा प्रदान की कि क्या कहा जाए। Introductory पहले लेख में साथिओं ने ऐसे कमेंट पोस्ट किए  जिन्हें पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ कि यह सब बातें  तो वही हैं जो हम आज लिखना चाह रहे थे, शायद ऐसी ही स्थिति  के लिए “अंतर्मन के मिलन” की परिभाषा का आविष्कार हुआ हो। 

सभी साथी/सहपाठी इन लेखों से प्राप्त ज्ञान  को थ्योरी कक्षा के साथ-साथ प्रैक्टिकल कक्षा में स्वयं प्रैक्टिकल करके देखने को उत्सुक हैं, प्रैक्टिकल की रूपरेखा और उससे मिलने वाले निष्कर्षों को स्वयं परखने को उत्सुक हैं तो इसे संक्षेप में इतना ही कहना उचित होगा कि अगर हम ध्यान साधना में बैठते हैं, पूजास्थली में पूजा करते हैं तो अंत में पूजास्थली से बाहिर आते समय दैनिक जीवनचर्या की समस्याओं का निवारण होता है ? क्या  मन की भटकन (चंचलता) कम  होती है? क्या ईश्वर के पास बैठकर (उपासना-पास बैठना) स्वयं को भूल पाना  संभव हो पाता है? क्या आँखें बंद करने पर समस्याओं का पुलिंदा हमें घेर तो नहीं रहा? पूजा स्थली में हम मात्र 15 मिंट बैठे हैं, इन 15 मिंटों में हम पूरी तरह ईश्वर को समर्पित हुए क्योंकि बाकि के 23 घंटे 45 मिंट तो हम ईश्वर को भूले  ही रहेंगें ?

आने वाले लेखों की प्रैक्टिकल कक्षाओं  में इन सभी प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना है, लेकिन यह संभव तभी हो पाएगा जब हम अपने मन और शरीर को इन नियमों के पालन करने के लिए Train करेंगें। 

आइए विषय को एक बार फिर से स्मरण कर लें। ध्यान क्यों करें, कैसे करें ?उद्देश्य  है ध्यान करने का, और तरीका (कैसे?)  हमें खोजना है। 

तो सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न तो यही हुआ न  कि “ध्यान” किस चिड़िया का नाम है?

जिस शब्द को मातृभाषा हिंदी में “ध्यान” कहा जाता है, उसका विदेशी भाषा इंग्लिश में अनुवाद “Concentration” है। अक्सर माता पिता बच्चों को कहते सुने जाते हैं, “बेटा, Math के sum ध्यान से किया करो, जो भी विषय कठिन है,उसमें ध्यान लगाया करो, गाड़ी ध्यान से चलाया करो आदि आदि।” लगभग प्रत्येक व्यक्ति “ध्यान” के महत्व के बारे में बड़े बड़े Sermon देता हुआ मिल जाएगा लेकिन जब बात अपने पर आती है,स्वयं पर आती है तो एक ही  कॉमन सी प्रतिक्रिया सामने आ खड़ी  होती है, “ क्या करें, मन ही नहीं लगता, मन की भटकन कम ही नहीं होती, रात को चैन की नींद तक नहीं आती, Sleeping pills लेकर ही कुछ घंटे सो पाते हैं, न जाने कौन कौन सी बहानेबाज़ी।

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की इस नवीन,विलक्षण,अनूठी एवं यूनिक कक्षा में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना है। Experiment,Observation और Inference के तीनों स्टैप्स  के अंतर्गत  मन को कण्ट्रोल करने का प्रैक्टिकल  किया जायेगा, हर दिन मन को  Observe  किया जायेगा और जो निष्कर्ष निकलेगा उसका चिंतन किया जाएगा ताकि इन कक्षाओं के बाद, विद्यार्थी किसी से भी प्रश्न करने में सक्ष्म  हो “अगर हम मन को काबू कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं ?”

गुरुदेव इस स्थिति के सम्बन्ध में बया और कबूतर का उदाहरण देते हैं। बया पक्षी को इंग्लिश में Baya Weaver यानि पक्षियों का बुनकर इंजीनियर कहा जाता है।  https://youtu.be/yoLVLT_r6Zk?si=PkWeUY1bZIgrt2ya

जब बया  अपना घोंसला बनाता है, तो कैसी तबियत से बनाता है, कैसे मन से बनाता है,माँ एक- एक करके  छोटे-छोटे तिनकों को चुनकर के लाती है। उन्हें गूँथकर ऐसा बढ़िया घोंसला बना देती  है कि क्या मजाल है कि अंडा हवा के झोंके से तबाह हो जाए।  क्या मजाल है कि कौआ उसमें झपट्टा मार दे।  उसमें उसके बच्चे मौज के साथ बैठे देखते रहते है। कोई आदमी सड़क पर से जब निकलता है, तो उस घोंसले को देखता रह जाता है कि यह बया का घोंसला है। कितना शानदार घोंसला है। हर जगह उसकी प्रशंसा होती है। बया स्वयं प्रसन्न रहती है और देखने वालों की तो तबियत बाग-बाग हो जाती है। बया की तुलना में कबूतर चार-पाँच गुना बड़ा होता है लेकिन  घोंसला कैसा बनाता है? बया का घोंसला  देखो  और कबूतर के घोंसले को भी ध्यान से देखो। कबूतर  बड़ी-बड़ी लकड़ी बीनकर ले आता है और एक इधर रख देता है, एक उधर रख देता है और उसमें ही मादा कबूतर अंडे देने लगती है। इसी खुले घोंसले पर कबूतर बैठा रहता है। हवा का झोंका आता है, घोंसला नीचे गिरता है, कबूतर गिरता है ऊपर। अंडे फूटकर अलग हो जाते है, बच्चे मरकर जहन्नुम चले जाते है। उसकी सारी-की-सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है और देखने वाले कहते है कि यह कबूतर बेअकल है, कैसा बेवकूफ है।

गुरुदेव बताते हैं कि अगर “क्रिया और विचार” दोनों का समन्वय हो गया तो समझो चमत्कार हो गया। गुरुदेव पूछते हैं बेटे बया पक्षी में  क्या विशेषता है? कोई विशेषता नहीं है,बेटे। बया मन लगाकर काम करता है। मन लगाकर कोई भी काम करो, तो शानदार होता है। मन लगाकर काम नहीं किया जाए, तो उसका  सत्यानाश हो जाता है। 

मन लगाना ही ध्यान की एकमात्र एवं प्रथम सीढ़ी है। हाथ में ली हुई है माला,उँगलियाँ अपनी क्रिया कर रही हैं, जीभ अपनी क्रिया कर रही है, सामने रखी टिक-टिक करती क्लॉक समय दिखाने  की अपनी क्रिया कर रही है ,यह सब सामने प्रतक्ष्य दिख रहा है लेकिन मन में क्या चल रहा है, कौन- कौन से विचार झकझोड़ रहे हैं, मन न जाने कौन से लोकों की सैर कर रहा है। ऐसी स्थिति में कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है, मात्र दिखावा है, पब्लिसिटी है, विज्ञापनबाजी है, आखिर किसके लिए ? अरे मुर्ख कब तक स्वयं को मुर्ख बनाता रहेगा। 

अपनी प्रैक्टिकल कक्षा में हमने यही प्रैक्टिकल करना है। 

आइए “ध्यान” को ज़रा दूसरे  angle से भी देख लें। 

मातृभाषा हिंदी  में कहे जाने वाले “ध्यान” शब्द को इंग्लिश में Meditation भी कहते हैं। निम्नलिखित इंग्लिश और हिंदी अनुवाद से देखा जा सकता है कि मैडिटेशन में भी मन की, अटेंशन की ही बात हो रही है :  

Meditation is a practice in which an individual uses a technique to “train attention” and awareness and detach from reflexive, “discursive thinking”, achieving a mentally clear and emotionally calm and stable state,while not judging the meditation process itself. Techniques are broadly classified into focused (or concentrative) and open monitoring methods. Focused methods involve attention to specific objects like breath or mantras, while open monitoring includes mindfulness and awareness of mental events.

ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक “विशेष अवस्था” में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है। ‘ध्यान’ से अनेकों प्रकार की क्रियाओं का बोध होता है। इसमें मन को शान्ति देने की सरल तकनीक से लेकर आन्तरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति ( प्राण आदि) का निर्माण तथा करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता, क्षमा आदि गुणों का विकास आदि सब समाहित हैं। अलग-अलग सन्दर्भों में ‘ध्यान’ के अलग-अलग अर्थ हैं। ध्यान का प्रयोग विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के रूप में अनादि काल से किया जाता रहा है।

मैडिटेशन के गर्म बाजार और उससे होने वाले राजस्व (Revenue)  के बारे में तो कुछ भी कहना उचित नहीं होगा लेकिन जब basics पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो प्राचीन महाऋषिओं की ही प्रणाली है। 

अभी के लिए हम अपना शिक्षण केंद्र केवल Concentration वाले “ध्यान”  पर ही सीमित रखेंगें क्योंकि पहले सरल बातें तो समझ लें। मन पर काबू पा  लिया, मन अपना दास बना लिया, तो न तो sleeping pills की ज़रुरत पड़ेगी और न ही Stress pills की ज़रुरत होगा,न ही अशांति होगी,आँखें बंद करेंगें तो बैठे-बैठे ही  कुछ सेकंड्स की Power nap रिफ्रेश कर देगी, खुद ब खुद भोजन भी पच जाएगा  और दिन-रात ऊर्जा का प्रवाह भी होता रहेगा। 

यही है साक्षात् प्रैक्टिकल कक्षा के परिणाम। 

हमारे साथिओं ने इस विषय पर सहायता करके हमारा  कार्य सरल कर दिया। बहिन सुमनलता जी ने हूबहू वही लिख दिया जो हम लिखना चाहते थे, न केवल इतना ही बल्कि गुरुदेव की “क्रिया और विचार” वाली बात ( जो आज लिखी है) भी एक दिन पहले लिख दी। निंम्नलिखित विचारों के लिए बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं: 

यह शत प्रतिशत सत्य है कि ध्यान अत्यंत आवश्यक है। बिना ध्यान के किए गए कोई भी कार्य पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकते। हमारे विचार में में मात्र आध्यात्म में ही नहीं, ध्यान सभी कार्यों के लिए आवश्यक है। 

अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं, हम ज्ञानप्रसाद के लेख से ही बताते हैं।

आदरणीय भाई साहब जब इन  लेखों को तैयार करते हैं,तब उनका  मन और बुद्धि सब उसी में एकाग्र होती है।उसी प्रकार हमारे माननीय सहपाठी जानते हैं कि जब हम उन लेखों को “ध्यान” पूर्वक पढ़ते हैं तभी उनका मर्म समझ पाते हैं। जो  “ध्यान” पूर्वक नहीं पढ़ते  उनको लेखों का सार समझ में नहीं आ पाता। गुरुदेव के साहित्य को जो भी “ध्यान” पूर्वक, मनोयोग से पढ़ते हैं, उनके लिए लाभकारी होते हैं। इसी प्रकार पूजा स्थल में किया गया कृत्य भी मनोयोग से नहीं किया जाएगा तो उसका लाभ भी प्राप्त नहीं होगा। एक गृहिणी भी जब भोजन मनोयोग से बनाती है तो वो सब को पसंद आता है। यदि उसका “ध्यान” इधर उधर हो जाए ,”मन” कहीं और चला जाए तब क्या होगा? कहने की आवश्यकता नहीं।  

आज ही हम अखबार में एक लेख पढ़ा रहे थे। कहते हैं प्रेम  एक “भाव” है , जो यदि किया जाए तो मात्र एक विचार होता है , लेकिन यदि हो जाए तो वह भाव हो जाता है, तन मन में समा जाता है। ईश्वर का प्रेम , गुरु का प्रेम मन में समा गया फिर वो बंध जाता है,  कहीं भाग नहीं पाता है। मनोयोग भी तो ध्यान का दूसरा नाम है, दो शब्द है मन +योग अर्थात मन को जोड़ना अर्थात ध्यान लगाना । 

शब्द सीमा केवल एक ही कमेंट लिखने की अनुमति दे रही है। चंद्रेश जी, रेणु जी। संध्या जी जैसे अनेकों साथिओं ने आज की प्रैक्टिकल कक्षा को सार्थक बनाया है ,बहुत बहुत धन्यवाद्। 

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13  साधकों ने  533 आहुतियां प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है जिसके लिए सभी को बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग  के लिए धन्यवाद्     

जय गुरुदेव


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