वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का नौंवा लेख  

9 जुलाई  2024 का ज्ञानप्रसाद

कैसा संयोग है कि कल 8 जुलाई को आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला के आठवें अमृतपुष्प की दिव्य वर्षा हो रही थी और आज 9 जुलाई को नौंवां लेख प्रस्तुत है । हम बार-बार कहते आ रहे हैं कि डॉ साहिब द्वारा रचित इस ज्ञान के अथाह सागर में से अमूल्य रत्न ढूंढ कर लाना किसी अमृत-मंथन से कम नही है। हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द ऐसा कुछ संजोए  हुए है कि हमारे लिए उसे मिस करना संभव नहीं है। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के लिए इससे बड़ा सौभाग्य कोई हो ही नहीं सकता कि डॉ साहिब की इस रचना से हम (विशेषकर वोह परिजन जिन्हें गुरुदेव के साक्षात् दर्शन न हो पाए ) स्वयं गुरुदेव का सानिध्य अनुभव कर रहे हैं। 

आज के लेख में दो विशेष सन्देश प्रतक्ष्य  दिख रहे हैं। 

पहला सन्देश तो आदरणीय अरुण जी की दुविधा का समाधान कर सकता है जो उन्हें हर समय सताए रहती है कि कोई हमारी बात सुनता तक नहीं है। इस दुविधा का समाधान गुरुदेव का वाक्य “ मेरी चेतना आपके आगे-आगे चलती है, आप एक कदम तो उठाएं बाकी मैं स्वयं ही  संभाल लूँगा” इस स्टेटमेंट को प्रमाणित करने के लिए ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दो तथ्य ही बहुत हैं। पहले तथ्य  में वर्षों पहले आदरणीय सरविन्द जी द्वारा करवाया गया यज्ञ है और दूसरे में अभी शनिवार को ही हमारे/आपके यूट्यूब चैनल के व्यूज हैं। मात्र 16  वर्ष की आयु में आदरणीय सरविन्द जी ने जो कार्य कर दिया उसके पीछे गुरुदेव न होते तो क्या वोह संभव हो सकता था। आपके यूट्यूब चैनल को पिछले शनिवार को 2 लाख लोग देख रहे थे,आज के analytics के अनुसार 15000 लोग और ( यानि 215000) देख रहे हैं। 

क्या गुरुदेव के बिना यह संभव हो सकता है ? कदापि नहीं। 

दूसरा सन्देश न केवल सद्विचारों की शक्ति से सम्बंधित है बल्कि यह भी बताया गया है कि सत्साहित्य अनेकों प्रकार की बीमारीओं से लड़ने की भी क्षमता से परिपूर्ण है। आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी ने तो इतना भी कह दिया कि  एक तपस्वी के सद्विचार और उनके  द्वारा दी गयी शिक्षा ही सबसे बड़ी “दवा” है। आज के लेख का समापन इसी दवा की जानकारी के साथ हो रहा है जिसे एक चिकित्सक ने वैज्ञानिक विश्लेषण देकर किया है, आग्रह है कि आज के लेख का अंतिम पैराग्राफ अवश्य ध्यानपूर्वक ग्रहण करने का प्रयास करें,कोई  पता नहीं कब यह साहित्य आपके स्वास्थ्य में चमत्कार कर दे। हमारे लिए तो यह तथ्य अनेकों बार Tried and tested हो चुका है। 

तो साथिओ,आइए चलें आज की गुरुकक्षा की ओर, उस अमृत का पयपान करें जिसे कठिन अमृतमंथन के बाद,हम सभी को  ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त  हो रहा है। 

*****************     

जुलाई 1984  के प्रथम सप्ताह में यज्ञ के समय परम पूज्य गुरुजी के शब्द याद आये । अन्दर से आवाज आने लगी, गुरुजी ने कहा था, “जन्मदिन के पण्डित बन जाओ।” दोपहर 3:00  बजे चिकित्सालय से आने के बाद, हमने लगभग 4 घण्टे जनसम्पर्क के लिए जाने का निश्चय किया। प्रथम जन्मदिन श्री भालचन्द्र शुक्ला विधान सभा के सेक्रेटरी के निवास ए-1बी, बटलर पैलेस, लखनऊ में  सम्पन्न किया ।

जून 1984 अखण्ड ज्योति में गुरुदेव लिखते हैं:

हम सब इस सहायता का  अनुभव एवं  प्रेरणा/प्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त करते रहते हैं, जन्मदिन मनाने का कार्य होम वर्क के रूप में दिया गया है। पिता अपने बच्चे को वह अनुदान देते हैं जिसकी उसे आवश्यकता होती  है। परम पूज्य गुरुदेव जी कठिन साधना से अर्जित अपना  तप, त्याग, सच्ची सेवा एवं सहायता के मार्ग पर चलने का आन्तरिक साहस एवं मार्गदर्शन “आत्मबल” के रूप में प्रदान करते हैं। यह उन दिनों की बातें  हैं जब न तो  हम किसी को जानते थे और न ही दूसरे लोग हमें  कार्यकर्त्ता के रूप में जानते थे। मन में यही शंका रहती थी कि जाएँ तो  कहाँ जाएँ ? मिलें भी तो  किससे मिलें? 

उपासना एवं यज्ञ के बाद अंतरात्मा की प्रेरणा से पूज्य गुरुदेव जी एवं माताजी का प्रत्यक्ष ध्यान करते हुए एक दिन रविवार को प्रातः 8:00  बजे कार लेकर बटलर पैलेस कॉलोनी – लखनऊ, का चक्र लगाया जहाँ सभी शासन के उच्च पदाधिकारी रहते थे। मकान नम्बर ए-1,के समक्ष अन्दर से आवाज आयी, “रुक जाओ”,  गेट पर नेम प्लेट लगी थी जिस पर नाम था-श्री भालचंद्र  शुक्ला, सेक्रेटरी,विधान सभा। हम रुक गये, न कोई जान,न पहचान। गेट खोल कर अन्दर गये। घण्टी बजाई, चपरासी आया, मौखिक सूचना दी। उत्तर आया:  “कह दो विधान-सभा में मिल लें।” फिर हमने अपना विजिटिंग कार्ड जिसमें लिखा था-लखनऊ ठाकुरगंज, टीवी चेस्ट डिजीजेम हॉस्पिटल में वरिष्ठ चिकित्सक एवं लालबाग ऑफिसर्स कालोनी में  निवास- अंदर भेजा तो उत्तरआया:  “बिठा दो।” हमें  छोटे वाले प्रतीक्षालय में बिठाया गया। शुक्ला जी के आने पर हमने औपचारिकता के बाद, विनम्र भाव से कहा, हम आपके पास किसी व्यक्तिगत कार्य से नहीं आए  हैं । शुक्ला जी ने कहा, “नहीं नहीं, बताइए।” हमने कहा, “महान् तपस्वी परम पूज्य आचार्य जी, गायत्री महामन्त्र के सिद्ध पुरुष, जिन्होंने चारों वेदों सहित सारे आर्ष ग्रन्थों का भाष्य किया है, गायत्री तीर्थ एवं युग निर्माण योजना के सञ्चालक के रूप में हम लोगों के गुरु हैं। जन्मदिवस, विवाह दिवस या अन्य किसी कार्यक्रम के माध्यम से गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। शुक्ला  जी बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा,“दो दिन बाद हमारे बेटे का जन्मदिन  है,आप बताएँ, हमें क्या करना पड़ेगा ?”  हमने कहा कि  यह तो बड़े सौभाग्य की बात है और निवेदन किया कि आप केवल आम की समिधा मँगा लीजिएगा, यज्ञ कुण्ड, घी, हवन सामग्री, हम लाएँगे। दो दिन के बाद हम, डॉ. श्रीमती गायत्री शर्मा जी एवं  दो अन्य कार्यकर्त्ताओं के साथ सेक्रेटरी साहिब के  घर पहुँच गये। पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म संरक्षण में प्रातः 10:00  से 11.30 बजे तक यज्ञ के माध्यम से, पञ्चतत्त्वों के पूजन के साथ यज्ञ सम्पन्न किया एवं उसका वैज्ञानिक प्रतिपादन प्रस्तुत किया। सेक्रेटरी साहिब के  लान में लगभग 100 लोग, गृहसचिव,जज, पुलिस महानिरीक्षक एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे। एक साथ इतने प्रभावशाली प्रतिभाशाली लोगों को हमने अपने जीवन में पहली बार देखा । उपस्थित लोगों ने मिशन के बारे में जाना। उसी समय 10 लोग अखण्ड ज्योति पत्रिका के सदस्य बने एवं कई लोगों ने कहा, “क्या हम लोगों का जन्मदिन भी ऐसे मनाया जा सकेगा ?” हम लोगों ने कहा, “आप सूचित कर दें,हम अवश्य आयेंगे।”

हमारे समेत  साथी कार्यकर्त्ताओं को बहुत ही आश्चर्य लगा कि पूज्य गुरुदेव जी ने परा- पश्यन्ती वाणी से कैसे सन्देश दे दिया, उनको तैयार कर लिया,आत्मबल (Self confidence) प्रदान किया। हमें  शान्ति का अनुभव हुआ एवं अनेकों प्रभावशाली व्यक्तियों से सम्पर्क बढ़ा। वहां आए सभी लोगों का परम पूज्य गुरुजी, परम वन्दनीया माताजी एवं मिशन के प्रति श्रद्धा व निष्ठा का भाव बढ़ा। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके द्वारा पूज्य गुरुदेव और माताजी का दर्शन एवं आशीर्वाद लेने के लिए बार-बार शान्तिकुञ्ज आना तथा कार्यक्रमों में सहयोग करना था ।

पूज्यवर आदेशानुसार जुलाई 1984 में एक दिन चिकित्सालय से वापस आने के बाद लगभग 4:00  बजे एनेक्सी सचिवालय, लखनऊ में जनसम्पर्क एवं संस्कार मनाने के उद्देश्य से पहुँचे । सचिवों के कमरे के आगे अपना ब्रीफ्क्रेस, जिसमें साहित्य रहता था, चिकित्सक की वेशभूषा, सफेद शर्ट, सफेद पैण्ट और जूता पहने टहल रहे थे। मुख्यमन्त्री के अलावा, किसी भी मन्त्री  से हमारी कोई पहचान नहीं थी, अंतर्मन में आवाज उठी कि कृषिमन्त्री चौधरी नरेन्द्र सिंह से सम्पर्क किया जाय। अन्दर जाकर जब हमने परिचय देने के के बाद मिशन एवं संस्कारों की चर्चा की तो मन्त्री जी ने  कहा, “डॉ. साहब, मैं अखण्ड ज्योति पढ़ता हूँ। यह सुनकर तो हमें आश्चर्य तो हुआ ही लेकिन इससे भी बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने रविवार को अपने बड़े पुत्र के जन्मदिन-संस्कार की बात की। न कोई जान, न कोई पहचान। 

हम अपनी कार से धर्मपत्नी गायत्री शर्मा, जो उस समय हजरतगंज में सुपरिंटेंडेंट  थीं एवं दो अन्य कार्यकर्त्ताओं के साथ मन्त्री जी के निवास पहुँचे और जन्मदिन संस्कार सम्पन्न कराया। वहां पर तो पचासों अधिकारी और कई मन्त्री उपस्थित थे। लोगों ने मिशन को समझा और अनेकों अखंड ज्योति पत्रिका के सदस्य भी  बने। हम सभी को अपार सन्तोष, शान्ति एवं प्रसन्नता की अनुभूति हुई। 

कार्यक्रमों में और ध्यान में ऐसा लगता था कि परम पूज्य गुरुजी व माताजी साथ-साथ चल रहे हैं। कभी-कभी कमरे में उनकी उपस्थिति का आभास होता था।

पूज्य गुरुदेव जी के विचारों को जन-कल्याण के लिए फैलाने की टीस, संस्कार,साहित्य, सद्वाक्य, उपासना, यज्ञ आदि के माध्यम से दिनोंदिन  बढ़ती ही  चली जा रही थी। परम पूज्य गुरुजी तो सूक्ष्मीकरण में थे, हम उनकी शक्ति के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ थे। हमें स्वयं को भी पता नहीं था कि अनजाने में “एक अटूट हार्दिक लगाव” क्यों है ? 

केवल चिकित्सक की बाल-बुद्धि इस बात में विश्वास कर रही थी कि एक तपस्वी के सद्विचार और उनके  द्वारा दी गयी शिक्षा ही सबसे बड़ी “दवा” है।  यही वोह दवा है जो मनुष्य में विश्वास,आत्मबल,जीवन प्रबंधन,जीने की आशा, सोचने का सही तरीका प्रदान करते हुए साहस  पैदा कर देती है। ऐसा सब कुछ प्राप्त होते ही मनुष्य में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Resistance/ Immunity ) बढ़ जाती है और वोह जल्दी ही बीमारियों से निजात पा जाता है।

परम पूज्य गुरुदेव द्वारा दिया जाने वाला प्रत्येक विचार एक महान् तपस्वी, गायत्री मन्त्र के सिद्ध पुरुष की अनुभूति है, अतः यह मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों के निवारण की अचूक दवा है। यह जन-जन तक पहुँचना चाहिए। हमारा मन बार-बार इसी मूल मन्त्र को दोहराता  रहता था।

****************

581 कमैंट्स और 11 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय सुजाता   जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। 

(1)रेणु श्रीवास्तव-33,(2)नीरा त्रिखा-41,(3)सुमनलता-36,(4)अरुण वर्मा-35,(5)चंद्रेश बहादुर-32,(6)संध्या कुमार-27,(7)सुजाता उपाध्याय-45 ,(8)राधा त्रिखा-30,(9) मंजू मिश्रा-25,(10) सरविन्द पाल-33,(11)पुष्पा सिंह-35   


Leave a comment