वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस 2024 को समर्पित छठा अनुभूति लेख-प्रस्तुतकर्ता निशा भारद्वाज और सुजाता उपाध्याय   

5 March, 2024

परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों द्वारा लिए संकल्प  का दूसरा  पार्ट “अनुभूति विशेषांक” है जिसके अंतर्गत इस  परिवार के समर्पित साथिओं द्वारा एक एक पुष्प चुन कर एक ऐसी माला अर्पण की जा रही है जिसकी सुगंध हम सबके अंतःकरण को ऊर्जावान किये जा रही है।  

आज इसी शृंखला का  छठा अंक प्रस्तुत किया गया है जिसमें हमारी दो समर्पित बहिनें आदरणीय निशा भारद्वाज और सुजाता उपाध्याय अपने दिव्य विचारों से हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं, दोनों बहिनों का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। 

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निशा भारद्वाज  बहिन जी की अनुभूति:

मैं 2019 के उस दिन को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूँ  जिस दिन  मैंने  पहली बार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार पर प्रकाशित  लेख पढ़ा था । उस समय न तो मुझे गायत्री परिवार के बारे में और न ही परम पूज्य गुरुदेव के बारे में कुछ भी जानकारी थी।  जो लेख  मैंने पहली बार पढ़ा था उसमें  परम पूज्य गुरुदेव से मिलने के चार  स्थानों  का वर्णन किया गया था । उस समय तपोभूमि मथुरा,आंवलखेड़ा,  शांतिकुंज,नाम तो  मैंने पहली बार पढ़े थे  लेकिन उगते हुए सूर्य वाले शब्द से मैं बहुत प्रभाभित  हुई । उस समय प्रोफाईल पिक्चर अरुण भैया  जी की ही थी, मैंने बिना कुछ सोचे समझे चैनल को सब्सक्राइब कर दिया और सोचा कि कभी फ्री टाइम में पढ़ लुंगी क्योंकि उस समय मैं  ऑटो में थी।  

शायद अरुण भैया के चैनल को स्वयं परम पूज्य गुरुदेव ने ही ऊंगली पकड़ कर सब्सक्राइब करवाया था । कुछ दिन बाद गुरुदेव और गायत्री परिवार के बारे में सर्च करते-करते फिर से  यूट्यूब पर लेख सामने आए और अरुण भैया की  प्रोफ़ाइल पिक्चर देखकर झट से  पढ़ना शुरू कर दिया। यह वोह समय था जब  “हमारी वसीयत और विरासत ” पर लेख श्रृंखला चल रही थी और  मैने  awgp.literature भी उन्हीं दिनों डाउनलोड किया और लेख के साथ साथ फ़ोन में ही इस दिव्य पुस्तक को पढ़ना शुरू कर दिया ।

आज चिंतन मनन करती हूँ  तो समझती हूँ  कि इन  सब घटनाओं के  पीछे परम पूज्य गुरुदेव का सूक्ष्म सरंक्षण ही काम कर रहा था । यह वोह समय था जब  मैं रात को करीब दो बजे तक रोजाना  परम पूज्य गुरुदेव के बारे में ही सोचती रहती, कभी गायत्री मंत्र का मानसिक जाप करती  तो कभी  तड़पते मन से गुरुदेव को पुकारती रहती। नियमित स्वाध्याय करना मेरे बस की बात नहीं थी। पता नही कैसे गुरुदेव ने  मुझे OGGP  में नियमित कर दिया।  शुरू शुरू में मैं कॉमेंट करने से घबराती थी और आजकल  स्थिति ऐसी है कि चाहकर भी विस्तृत कॉमेंट नहीं कर पाती। लोग सत्संग सुनने रविवार को  घर से बाहर गुरुघर जाते हैं लेकिन हमारे गुरुदेव इतने दयालु हैं कि पूरा सप्ताह ऑनलाइन सत्संग करवा रहे हैं।

परम पूज्य गुरुदेव की यह बात  कि ,” बेटा  यदि लोग  कहें कि तुम्हारे गुरु से बड़ा कोई ज्ञानी है तो मान लेना, यदि कोई कहे तुम्हारे गुरु से बड़ा कोई दूसरा तपस्वी और सिद्ध समर्थ है तो भी मान लेना लेकिन यदि कोई कहे कि तुम्हारे गुरु से ज्यादा प्यार करने वाला है तो कभी मत मानना। मेरा ये प्यार तुम लोगों के साथ हमेशा रहेगा, मेरे शरीर के रहने पर और शरीर के न रहने पर भी “

सचमुच ही अपने अंतर्यामी गुरुदेव के प्रेम का सजल स्पर्श आज भी है। सभी के दिल की गहराइयों में उनके शब्दों 

“चिंता क्यों करते हो, में हूं न” 

की गूंज आज भी OGGP के मंच पर साफ सुनाई देती है। परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म सरंक्षण में मंगलवेला में दैनिक ज्ञानप्रसाद  से लेकर शुभरात्रि संदेश तक यह सिलसिला चलता रहता है। OGGP  के सभी आत्मीय परिजन लेख का स्वाध्याय करने के पश्चात  कॉमेंट-काउंटर कॉमेंट प्रक्रिया में  अपना योगदान देते रहते हैं। सभी एक दूसरे से प्यार के बंधन में जुड़े हुए हैं, भले ही कभी किसी ने एक दूसरे का चेहरा तक  नहीं देखा है।

OGGP के संचालक, हम सभी  के प्रिय आदरणीय अरुण भैया जी  आपकी मेहनत और लगन  के परिणामस्वरूप ही हम  सभी बिना मेहनत किए गुरुदेव के साहित्य का अमृतपान कर रहे हैं, ज्ञान की  गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवनकाल में लगभग 3200 पुस्तकें लिखी है  आदरणीय अरुण भैया  जी इस विशाल साहित्य में से  चुन चुन कर हमारे लिए प्रतिदिन ज्ञानप्रसाद लाते हैं। 

आदरणीय अरुण भैया, मैं  परम पूज्य गुरुदेव से आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती रहती हूँ  ताकि इस अथाह ज्ञानसागर में प्रतिदिन  स्नान कर हृदय की मैल को साफ कर सकूँ।

परम पूज्य गुरुदेव, परम वंदनीय माताजी और आदि शक्ति वेदमाता गायत्री से मेरी यही प्रार्थना है कि मुझे अपने चरणों में थोड़ी सी जगह दे देना । 

मैं अपने  दिल के सारे भाव नीचे  लिखी पंक्तियों में  व्यक्त कर रही हूँ।  आशा करती हूँ  कि OGGP के माध्यम  से परम पूज्य गुरुदेव तक मेरी बात  पहुंच जाएगी। जब मैंने पहली बार यह कृष्ण भजन सुना तो मेरे मन में वृंदावन की जगह  शांतिकुंज ही गूंज रहा था।

आशा करती हूँ  कि शब्दों की तरफ ध्यान न देकर, सभी साथी अपने अपने  मन के भाव ही  समझेंगे जो मेरी तरह शांतिकुंज  कम जा पाते हैं:

कोई जाए जो शांतिकुंज मेरा प्रणाम ले जाना

मैं खुद तो आ नहीं सकती मेरा  पैगाम ले जाना

यह कहना मेरे गुरुवर से कि मुझे तुम कब बुलाओगे

पड़े जो जाल माया के उन्हें तुम कब  हटाओगे

मेरा  जो  हाल पूछे तो  मेरे आसूं बता देना

जब उनके सामने जाओ तो उन्हें   देखते ही रहना 

मेरा  जो  हाल पूछें  तो जुबां से कुछ नहीं कहना

बहा देना कुछ एक आसूं, मेरी  पहचान ले जाना

जो रातें जाग कर देखे, मेरे  सब ख्वाब ले जाना 

मेरे आसूं,मेरी तड़प,मेरे सब भाव ले जाना 

न ले जाओ अगर मुझको, मेरा सामान ले जाना

मैं भटकू दर ब दर, गुरुवर मेरे मन की भी सुन लेना 

लूँ अंतिम सांस, शांतिकुंज मेरी अर्जी लगा लेना

खता अगर हो गई मुझसे, समझ चाकर भुला देना

कोई जाए जो शांतिकुंज मेरा प्रणाम ले जाना। 

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सुजाता उपाध्याय बहिन जी की अनुभूति :  

जब हमारे शक्तिपीठ वालों ने हमें शांतिकुंज से शक्ति कलश लाने के लिए जाने के लिए पूछा तो हमें अत्यधिक प्रसन्नता हुई l जब मैने आकर पतिदेव से पूछा तो उन्होंने मना कर दिया, बोले सर्दी का मौसम है तबीयत बिगड़ जायेगी, मत जाओ लेकिन हमने तो मन ही मन जाने का निश्चय कर लिया था। परम पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना करने लगी कि जितनी भी ठंड हो वहां  पर भी तो लोग रहते है न,जैसे वोह रहते हैं, वैसे ही हम भी रहे लेंगे l फिर जब दो दिन के बाद टिकट बुक करने का समय आया तो मैंने फिर से पूछा,  इस बार उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया l मेरी बेटी के  समझाने से मान गए l मुझे ऐसा लगा कि  जैसे परमपूज्य गुरुदेव ने मेरी बेटी के माध्यम से मेरे पतिदेव को राज़ी करवा लिया l 

सच में परमपूज्य गुरुदेव की कृपा का हमेशा ही अनुभव होता है l 11 जनवरी को 12 बजे  हम सब लोग दिल्ली पहंचे l वहां पर  एस्केलेटर से एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म जाना था। सभी लोग चले गए लेकिन मैं अकेली रह गयी क्योंकि मुझे डर लगता था l आसपास कोई सीढियां भी नहीं थीं l सोच रही थी कि सभी लोग तो चले गए हैं, मैं कैसे जाऊं। उसी समय एक आदमी ने आकर कहा कि डरो मत, कुछ नहीं होगा और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और  एस्केलेटर से ऊपर ले गये l जब में ऊपर गई तो सभी लोग मेरा इंतजार कर रहे थे l मैने उस आदमी को सभी से  मिलाने के लिए जब पीछे देखा तो वोह वहां नही थे l सभी ने कहा कि तुम्हें डर लग रहा था इसलिए गुरुदेव तेरा हाथ पकड़ कर ऊपर ले आए, यहां छोड़कर चले गए l आंखों से आसू बहने लगे l

रात 10 बजे  हरिद्वार रेलवे स्टेशन पहुंचे, हम लोग सोच ही रहे थे कि शांतिकुंज कैसे जाया जाए तो उसी समय शांतिकुंज से फोन आया कि आप सभी लोग प्लेटफार्म पर ही रहो, हम गाड़ी भेज रहें हैं।15 मिनट बाद गाड़ी आ गई और  10:30 बजे हम शांतिकुंज पहुंच गए । माता भगवती भोजनालय में हम सभी लोगों के लिए खाने का प्रबंध भी हो गया l खाना खाकर हम सभी कमरे में चले गए l फिर सुबह 4:00 बजे गायत्री माता मंदिर में आरती में शामिल हुए, मेडिटेशन किए और यज्ञ में आहुति दिए और बाद में  श्राद्ध तर्पण भी किए। उसके बाद हम शक्ति कलश खरीदने गए l अगले दिन सुबह सारे काम समाप्त कर  श्रद्धेय शैल जीजी से आशीर्वाद लेने  के लिए गए l जीजी से मिल कर इतना अच्छा लगा कि जब उन्होंने पूछा कि सब कुशल मंगल है  न, आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, ऐसा लग रहा था जैसे हम मायके में ही हैं l 

आदरणीय सुमन दीदी  कहते हैं न कि शांतिकुंज ही हमारा दूसरा मायका है l सच में उसी वक्त मुझे दीदी जी की बात याद आ गई l बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी l

एक घटना से प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिल गया l 

13 जनवरी को शाम 6:00 बजे हरिद्वार से  दिल्ली के लिए हमारी ट्रेन थी l उसी दिन कलश पूजन भी था l 4:00 बजे कलश  पूजन संपन्न हो गया, परिक्रमा भी करना था तो किसी कारणवश 5.30 का समय हो गया l हम सामान लेने रूम को आए और सोच ही रहे थे कि आज तो पक्का ट्रेन छूट जायेगी क्योंकि रूम से समान लेने में और  गेट तक आने में ही बहुत समय लग जाता है लेकिन परमपूज्य गुरुदेव की महिमा अपरम्पार है l शांतिकुंज के एक भैया कमरे के पास ही गाड़ी लेकर खड़े थे l अगर ठीक समय पर भैया जी ने गाड़ी नहीं लाई होती तो हमारी ट्रेन छूट जाती। 

अगले दिन हमारी दिल्ली से भूवनेश्वर तक फ्लाइट थी। धुंध के कारण बहुत delay हुई और बहुत सारी फ्लाइट्स कैंसल भी हो गईं। Display board में गलत सूचना के कारण बहुत सारे लोगों की flight मिस भी हो गईं। हमें  डर लग रहा था कि हमारी फ्लाइट कैंसल न हो जाए लेकिन परमपूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से हम घर पहुंच गए l 

हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि ऐसे गुरू रूप में पिता मिले l गुरू चरणों में कोटि कोटि नमन वंदन।  परमपूज्य गुरुदेव के बारे में क्या लिखूं, जितना भी लिखा जाए कम ही है l अगर लिखने में कोई गलती हुई तो क्षमा चाहती हूं ।

जय गुरुदेव

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आज 11    युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। संध्या जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।      

(1)अनुराधा पाल-30,(2)संध्या कुमार-45 ,(3) रेणु श्रीवास्तव-28 ,(4  )सुमनलता-30 ,(5 ) नीरा त्रिखा-26  ,(6  )सुजाता उपाध्याय-32 ,(7 )अरुण वर्मा-28 ,(8 )निशा भारद्वाज-28,(9 )सरविन्द पाल-32,(10)चंद्रेश बहादुर-27,(11)राधा त्रिखा-24               

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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