2024 का प्रथम ज्ञानप्रसाद लेख
हमारे समर्पित साथी जिस समय आज का ज्ञानप्रसाद अपने इनबॉक्स में खोलेंगें तो अनगनित लोग विश्वव्यापी प्रथा के अनुसार नव वर्ष का स्वागत कर चुके होंगें, डांस पार्टियां,शोर शराबा आदि से निवृत होकर नींद के आगोश में समा चुके होंगें। ऐसे लोगों के लिए तो आज का दिन, 1 जनवरी का दिन देर तक सोने का दिन है, रात देर से जो सोये हैं।
OGGP का सारे सदस्य तो ब्रह्मवेला में उठकर,अपनी दिनचर्या के अनुसार गुरुकक्षा में उपस्थित होकर गुरुज्ञान प्राप्त करते हैं। आज की गुरुकक्षा में गायत्री तपोभूमि मथुरा के प्रयास से नव वर्ष के बारे में गुरुकक्षा में वोह जानकारी प्रस्तुत की जा रही है जिससे बहुत से विद्यार्थी अनजान हैं।
आदरणीय चंद्रेश बहादुर जी के प्रयास के युगनिर्माण योजना के दिसंबर 2023 में प्रकाशित लेख पर आधारित आज के ज्ञानप्रसाद से अवश्य ही हम सबको मार्गदर्शन मिलेगा। आदरणीय बहिन सुमनलता जी द्वारा शेयर की गयी रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता आज के ज्ञानप्रसाद को चार चाँद लगा रही हैं। दोनों साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं
विश्वभर में नव वर्ष का स्वागत अलग-अलग तरीके से होता है। सभी धर्मों में नव वर्ष एक उत्सव की भांति अलग-अलग अंदाज में, अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। कोई नाच-गाकर तो कोई पूजा-अर्चना के साथ नव वर्ष का स्वागत करता है।
अगर विश्व के देशों की ओर दृष्टि दौड़ाएं तो दुनिया में सबसे अधिक देशों में ईसाई धर्म को मानने वाले लोग ही मिलेंगे अर्थात विश्व की आठ अरब जनसँख्या में से लगभग 2.5 अरब लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। यही कारण है कि सबसे अधिक जनसँख्या होने के कारण 1 जनवरी को नव वर्ष, जिसे “ईसाई नव वर्ष” कहा जाता है, मनाया जाने लगा और आज तक मनाया जा रहा है।
ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात
हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
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ईसाई वर्ष 1 जनवरी से शुरू होकर 31 दिसंबर तक 12 महीनों में बंटा हुआ है लेकिन यह भी सत्य है कि विश्व के अलग-अलग देशों में,अलग अलग धर्मों में नववर्ष की अलग-अलग तिथियां मानी गयी हैं। हर किसी धर्म की, व्यक्ति की अपनी श्रद्धा है, मान्यता है जिसका सम्मान करना ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है, धर्म है, लेकिन जहाँ हम सभी के सम्मान की बात कर रहे हैं कि वहीँ हमें अपने धर्म ( जिसमें हमने जन्म लिया है) के प्रति निष्ठावान और कर्तव्यनिष्ठ होने के लिए भी संकल्पित होना चाहिए। बहिन रेणु जी से हम 100 % सहमत हैं कि आज की पीढ़ी कहाँ मानती है, परिवार में controversy और क्लेश का वातावरण किसे अच्छा लगता है। बदलाव धीरे-धीरे ही सही, हो तो रहा ही है। हमारी प्रेरणा बेटी द्वारा “उदाहरणीय जन्म दिवस” मनाना परिवार के लिए गर्व की बात है। हमारी जान पहचान के ही अनेकों युवा इस राह को ओर अग्रसर हो रहे हैं, बदलाव तो हो ही रहा है।
लेकिन एक बात तो सत्य है, भले ही दुनिया के सभी धर्मों के रीति- रिवाज अलग-अलग हों लेकिन 31 दिसंबर/1 जनवरी की धूमधाम सभी देशों में होती है, शराब, जुआ, व्यसन, फिज़ूल खर्ची ,समय की बर्बादी को एक तरफ रख दिया जाए तो शुभकामना लेना/देना कोई बुरी बात नहीं है। आदरणीय सुमनलता जी ने 1 जनवरी से आरम्भ होकर 31 दिसंबर को समाप्त होने वाले वर्ष को “कैलेंडर वर्ष” की बहुत ही उचित संज्ञा दी है जो प्रैक्टिकल और प्रचलित है।
विश्व भर के सभी धर्मों का व्योरा देना तो शायद कभी भी संभव न हो लेकिन इतना तो हम सभी जानते होंगें कि ईसाई नव वर्ष 1 जनवरी को मनाया जाता है, पारसी नव वर्ष 21 मार्च नवरोज को मनाया जाता है, पंजाबी नव वर्ष बैसाखी पर्व के रूप में 13 अप्रैल/1 बैसाख को मनाया जाता है,सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष का आरम्भ होली के दूसरे दिन से माना जाता है, हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए वर्ष का शुभारम्भ होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है, जैन नव वर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। गुजरात में भी नव वर्ष दीपावली के अगले दिन से आरम्भ होता है।
तो इतना कुछ जानने से पहले क्या यह उचित नहीं है कि पहले हम अपने धर्म को ही जान लें।
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हिन्दू धर्म का सर्वमान्य संवत् विक्रम संवत् है, जो सुप्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य से जुड़ा है। जब विदेशी आक्रमण से इस धरा के लोग दुःखी हो गए थे तो राजा विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता एवं समर्थ लोगों ने कमर कसकर मुकाबला किया और आक्रमणकारियों को देश से बाहर किया। अवंति क्षेत्र की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के गणनायक महेंद्रादित्य और माता मलयवती को अनेक व्रत और तप के पश्चात् पुत्ररत्न की प्राप्ति । वे भगवान शिव के नियमित उपासक थे।
नव वर्ष मंगलमय हो, सुख-समृद्धि का साम्राज्य हो, शक्ति और शांति में वृद्धि हो, इसके लिए नव संवत् (2024) के शुभ अवसर पर हिंदुओं में पूजा का विधान है। इस दिन पंचाग के श्रवण और दान का विशेष महत्त्व है। गत वर्ष की घटनाओं का चिंतन तथा आगामी वर्ष के संकल्प, इस पावन दिवस के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम माने जाते हैं। प्रभु से प्रार्थना की जाती है:
भगवंस्तव प्रसादेन वर्ष क्षेम मिहास्तु मे । संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः ॥ अर्थात
हे प्रभो ! आपकी कृपा से नव वर्ष मेरे लिए कल्याणकारी हो तथा वर्ष के सभी विघ्न पूर्ण रूप से शांत हो जाएँ ।
हमारा “काल” नामक संवत्सर मंगलवार 9 अप्रैल,2024 को प्रारंभ हो रहा है। इसी दिन से चैत्र नवरात्र का भी शुभारंभ हो रहा है। यह हमारी सांस्कृतिक विशेषता है कि हमारा नव वर्ष वसंत ऋतु में चैत्र नवरात्र के प्रथम दिवस को पड़ता है, भुवन भास्कर सूर्य की प्रथम किरण के दर्शन से और नवरात्र अनुष्ठान से शुरू होता है। यह शुभ दिन ज्ञान का,प्रकाश प्रतीक है जिसे मधुरता के प्रतीक मिष्ठान्न के साथ संपन्न किया जाता है ।
भारतवर्ष कई वषों तक अँगरेजों का गुलाम रहा और यही कारण है कि आज तक तथाकथित जेन्टलमेन अँगरेजी प्रथा एवं परंपराओं की नकल करने में शान समझी जाती है। स्वतंत्र होने के 76 वर्ष बाद भी यदि हमें भारतीयता के गौरव का ज्ञान नहीं हुआ तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से इसे “मानसिक पिछड़ापन” न कहा जाए तो और क्या कहें । विचारशीलता और बुद्धिमत्ता अब इसी बात में है कि सड़ी-गली परंपराओं को विवेक की कसौटी पर कसना चाहिए और यथाशीघ्र उनसे छुटकारा पाना ही उचित है ।
आज भी स्वतंत्र भारत के अधिकांश लोग भेड़चाल के वशीभूत 1 जनवरी के आयोजनों के लिए हफ्तों पहले बड़े-बड़े होटलों में कमरे बुक कराकर वहाँ परिवार सहित जाते है; खूब पैसे बरबाद करते हैं और वह सब कुछ करते है,जिनकी भारतीय संस्कृति में निंदा की जाती है । यह अंधी भेड़चाल विवेकशीलता की कसौटी पर बिल्कुल ही खरी नहीं उतरती।
हिन्दू नव वर्ष के आगमन में वसंती विशेषता:
वसंत ऋतु जिसमें हिन्दू नव वर्ष का आगमन होता है, स्त्री-पुरुष तो प्रसन्न होते ही हैं, यह ऋतु पशुओं, वृक्षों, पौधों, लताओं, पुष्पों-पल्लवों को भी मुस्कराने तथा खिलखिलाने को विवश कर देती है। इस ऋतु में ही वसंत पंचमी (पूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस), महाशिवरात्रि, रामकृष्ण परमहंस जयंती, होली, नवरात्र, रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे महत्त्वपूर्ण पर्व त्योहार पड़ते हैं। जहाँ इनमें से कुछ पर्व ईश्वरीय सत्ता का अनुग्रह प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं वहीँ होली जैसा पर्व हँसी-खुशी, मेल-मिलाप, गाना- बजाना, मधुर मिष्ठान्न ग्रहण करने की प्रथा-परंपरा को दर्शाता है । यह वसंत ऋतु समूची धरा को पुष्प-लताओं से अलंकृत करती है और मानव-चित्त की कोमल वृत्तियों को भी गुदगुदाता है। इस सर्वप्रिय, सर्वसुंदर भारतीय नव वर्ष काल नामक संवत्सर का शुभारंभ “सोने में सुहागा” की उक्ति को चरितार्थ करता है, यह नव संवत्सर ( नया संवत- 2024) मन को उल्लास और उमंग से भर देता है।
भारतीय महीनों के 12 नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त से संबंध रखते हैं। उदाहरण के लिए चित्रा नक्षत्र से चैत्र, विशाखा नक्षत्र से वैशाख, ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ आदि। हमारी तिथियाँ भी सूर्य-चंद्र की गति पर आधारित हैं। सप्ताह के सात दिन- रविवार सूर्य से, सोमवार चंद्रमा से, मंगलवार मंगलग्रह से, बुधवार बुधग्रह से , गुरुवार गुरु से, शुक्रवार शुक्र से और शनिवार शनिदेव से अनुप्राणित है। इस प्रकार हम देखते हैं कि विक्रम संवत् (मास, तिथियाँ, दिवस) पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। हमारा विक्रम संवत् सूर्य सिद्धांत पर आश्रित है, जो भ्रमहीन और सर्वश्रेष्ठ है। कहा जाता है कि संवत् के प्रारंभ से आज तक का अध्ययन किया जाए तो सूर्य-सिद्धांत के अनुसार एक दिन का भी अंतर नहीं पड़ता ।
गायत्री तपोभूमि, मथुरा की पहल :
गायत्री तपोभूमि में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की पूर्व संध्या पर सांस्कृतिक कार्यक्रम से नव-संवत्सर आजोजन का शुभारंभ होता है। इस अवसर पर संगीतमय भजन, गायत्री चालीसा, रामायण पाठ, गीतापाठ, हनुमान चालीसा आदि का गायन क्षेत्रीय सुविधा के अनुसार किया जाता है । अगले दिन चौबीस गायत्री साधक शंख ध्वनि से नव- संवत्सर का अभिनंदन करते हैं, प्रभात फेरी निकालते हैं और यज्ञ में आहुतियाँ प्रदान करने के उपरांत गायत्री महामंत्र के 24 हजार मंत्रों का नौ-दिवसीय लघु-अनुष्ठान संपन्न करते हैं। अब समय आ गया है कि हम लोग समझदारी से काम लें। विदेशियों की अवैज्ञानिक परंपराओं को तिलांजलि देकर अपनी पवित्र, शुद्ध रूप से वैज्ञानिक परंपराओं पर चल कर स्वयं को गौरवान्वित होने का अवसर दें। कितना आनंद आएगा, जब हम एक दिन का नव वर्ष न मनाकर, नौ दिवसीय नव वर्ष के आयोजन का समापन भगवान राम के जन्मदिन रामनवमी के पवित्र मुहूर्त पर करेंगे।
गायत्री परिजन अपने-अपने क्षेत्र की सुविधा के अनुसार शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों, चरणपीठों पर यह आयोजन रख सकते हैं। हो सके तो सायंकाल में दीपयज्ञ रख लें। इन कार्यक्रमों को इतना आकर्षक बनाया जाए कि नई पीढ़ी के लोग इसके प्रति आकर्षित हों और पाश्चात्य परंपरा को भूलकर भारतीय परंपरा को हृदय से स्वीकार करें। प्रयास करें कि इस अभियान में उन युवाओं को विशेष रूप से जोड़ें जो अभी तक हमसे नहीं जुड़े हैं । प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया में इसका भरपूर प्रचार किया जाना चाहिए।
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आज 17 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। सरविन्द जी और संध्या बहिन जी गोल्ड मैडल विजेता है । दोनों को हमारी हार्दिक बधाई एवं संकल्प सूची में योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)वंदना कुमार-26,(2) सुमनलता-39,(3)अरुण वर्मा-43,(4)संध्या कुमार-48,(5) सुजाता उपाध्याय-36,(6)चंद्रेश बहादुर-38,(7)रेणु श्रीवास्तव-42,(8) सरविन्द पाल-48,(9)अनुराधा पाल-35,(10) मंजू मिश्रा-28,(11)विदुषी बंता-29,(12) स्नेहा गुप्ता-25,(13)राधा त्रिखा-24, (14)नीरा त्रिखा-26,(15) प्रेरणा कुमारी-26,(16)पिंकी पाल-27,(17) पुष्पा सिंह-25,25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।