वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

हमारे गुरुदेव: स्कूली विद्यार्थिओं के लिए एक निबंध भाग 3  

8 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद

पिछले दो लेखों से हम गुरुदेव जैसे महान व्यक्तित्व को संक्षेप में वर्णन  करने का साहस कर रहे हैं, आज का ज्ञानप्रसाद  उसी साहस का तीसरा और अंतिम प्रयास है। हमारा विश्वास है  कि अगर किसी स्कूली विद्यार्थी को गुरुदेव के ऊपर निबंध लिखने की assignment मिले तो यह तीनों  लेख काफी सहायक हो सकते हैं।  

474 पन्नों के  महान ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा, दर्शन एवं दृष्टि” पर आधारित यह तीनों लेख गुरुदेव के जीवन के कुछ एक पहलुओं को ही छू सके हैं। पाठकों के रुचिकर कमेंट और काउंटर कमेंट हमें सन्देश दे रहे हैं कि इस महान ग्रन्थ की एक-एक बूँद अमृततुल्य होने के कारण उन्हें स्थाई शांति प्रदान कर रही है।

आज के लेख का मूल्यांकन तो हमारे समर्पित साथी ही करेंगें, हम तो केवल प्रयास ही कर सकते हैं लेकिन लेख का आरम्भ गुरुदेव के दिव्य सूत्र “अंशदान” की महत्ता से हो रहा है। आज के  लेख में  “अंशदान” के पीछे गुरुदेव का उद्देश्य, केवल एक ही वाक्य में समझा दिया गया है लेकिन कल शेयर होने वाली आदरणीय  चिन्मय जी की वीडियो बच्चों की रोचक कहानी की भांति बहुत ही सरलता से समझाएगी।  वीडियो छोटी अवश्य है लेकिन सन्देश बहुत बड़ा है।     

वर्तमान निबंध शृंखला से सम्बंधित हम  कितने ही विस्तृत लेख  लिख चुके हैं, जो कोई भी अधिक जानकारी जानने के इच्छुक हों, हमारी वेबसाइट/यूट्यूब चैनल की सहायता ले सकते हैं। 

इन्ही शब्दों के साथ आइए सभी गुरुकुल पाठशाला में आज का lesson आरम्भ करें लेकिन विश्वशांति की कामना के बाद। ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

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एक दिन मालवीय जी ने कहा यदि कांग्रेस को लोकप्रिय बनाना है तो हर घर से एक मुट्ठी अनाज या एक पैसा संग्रह करना चाहिए ताकि जनता यह समझे कि कांग्रेस हमारी है। और किसी  के गले यह परामर्श उतरा कि नहीं लेकिन  बालक श्रीराम मत्त को यह सूत्र समझ में आ गया। उन्होंने युग निर्माण योजना से लेकर गायत्री परिवार खड़ा करने तक इसी सूत्र को अपने  व्यवहार में उतारा। गुरुदेव के इस अभूतपूर्व सूत्र के परिणाम स्वरूप जो अपार जनश्रद्धा व  आत्मीयता की प्राप्ति हुई उससे गायत्री परिवार का बच्चा-बच्चा परिचित है । करोड़ों परिजनों की पूंजी से बने इस संगठन की प्रत्येक गतिविधि के मूल में “अंशदान” की प्रवृति  आज भी जिन्दा है।

इन्हीं दिनों एक क्रांतिकारी काम उन्होंने और किया। गांधी- इर्विन समझौते के अन्तर्गत एक विषय लगानबन्दी (कृषि भूमि पर लगने वाले टैक्स को माफ़ करना) का भी था। कांग्रेस नेता  और भारत के गृहमंत्री रहे गोबिंद वल्लभ पंत जी ने नैनीताल से लगानबन्दी सम्बन्धी आंकड़े मंगवाये । पूज्य गुरुदेव ने अकेले  ही गांव-गांव जाकर  किसानों के नाम, कृषि भूमि का पूरा विवरण और लगान की रकम आदि की पूरी छानबीन करके  सारे आंकड़े तैयार किए। जब इतनी विस्तृत और प्रमाणिक जानकारी पंतजी के पास पहुंची और  मालूम हुआ कि यह काम श्रीराम नामक एक देहाती स्वयंसेवक का है, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । इन्हीं आंकड़ों के आधार पर पूरे प्रान्त के उन सभी देशभक्त किसानों  का लगान माफ कर दिया गया जिन्होंने लगानबन्दी का एलान किया था। स्वयं महात्मा गांधी ने इस कार्य की प्रशंसा करते हुए कार्यकर्त्ताओं से कहा था : “कांग्रेस को कार्यकर्त्ता चाहिए तो इस स्तर का” परम पूज्य गुरुदेव के Life cycle का 1936 तक का समय  बड़े ही  उतार-चढ़ावों व संघर्ष भरे घटनाक्रमों से भरा है। इसका वास्तविक मूल्यांकन तभी हो पाएगा , जब लोग जानेंगे कि एक सर्वोच्च स्तर का मार्गदर्शक,एक  ऐसा क्रांतिकारी जीवन जीता रहा, जिसकी हम में से बहुतों को  कोई जानकारी तक नहीं रही।

गुरुदेव के जीवन में सत्याग्रह  कूट-कूट कर भरा था। घर वाले नहीं चाहते थे कि वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लें। कम उम्र में शादी हो गई थी, ससुराल वाले भी असहयोग करते थे। घर वालों ने तो एक तरह से गुरुदेव  पर पहरा बैठा दिया था, लेकिन  एक दिन पाखाना  जाने के बहाने गुरुदेव  घर से लोटा लेकर निकले और निक्कर-बनियान में ही सीधे “आगरा कांग्रेस स्वयंसेवक भर्ती दफ्तर” में जाकर रुके। उनकी अन्तःप्रेरणा इतनी ज़बरदस्त  थी कि वे किसी भी प्रतिरोध के सामने कभी भी  झुके नहीं।

आगरा जिले का स्वाधीनता संग्राम सन् 1857  के गदर से ही प्रारम्भ हो गया था, जब आगरा के क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के महत्वपूर्ण फौजी ठिकाने पर आक्रमण करने के लिए 30 किलोमीटर  लंबी यात्रा की थी। पांच जुलाई को भयंकर युद्ध हुआ था। सुचेता नाम के  एक  गांव में, जो फतेहपुर सीकरी मार्ग पर पड़ता है, आज भी खुदाई में मिलने वाली हड्डियां इस जिले के गौरवपूर्ण स्वाधीनता संग्राम की याद दिलाती हैं ।

1919 में Sidney Rowlatt द्वारा दिया गया काला  क़ानून, जिसे हम सभी  रौलेट एक्ट के नाम से जानते हैं, के आने के साथ ही यहां स्वाधीनता संग्राम के नये अध्याय  की शुरुआत हुई। 1923-24 में श्रीकृष्णदत्त पालीवाल के आ जाने और “ दैनिक सैनिक” अखबार का प्रकाशन आरम्भ हो जाने के साथ ही यहां कांग्रेस संगठित हुई और इस जिले में व्यापक रूप से स्वाधीनता संग्राम प्रारम्भ हुआ। गुरुदेव  के हृदय में आजादी की आग तभी  भड़क उठी थी, जब महात्मा गांधी ने देशव्यापी दौरा किया था  और विद्यार्थियों से गुलामी की जंजीरें मजबूत करने वाली “अंग्रेजी शिक्षापद्धति” के प्रति विद्रोह की आग भड़काई । उनकी अपील से सारे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई । गुरुदेव  भला इस विद्रोह से अछूते कैसे रह पाते। उस समय तक गुरुदेव प्राइमरी ही उत्तीर्ण कर सके थे और  उन्होंने स्कूली शिक्षा  से मुंह मोड़ लिया। घर पर रहकर ही संस्कृत भाषा, अपने भारतीय आर्षग्रंथ तथा विशेष रूप से महापुरुषों की जीवनियां और राजनेताओं से सम्बंधित साहित्य  पढ़ने में अभिरुचि करने लगे।  

गुरुदेव के  हृदय में स्वाभिमान और स्वाधीनता की आग तीव्र गति से भड़कती चली गई। राजनेताओं के भाषण सुनने के लिए गुरुदेव  दूर-दूर तक जाते। स्वयंसेवक के रूप में भर्ती हो जाने के बाद से तो आगरा ही उनकी गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु हो गया ।

श्री पालीवाल जी ने “दैनिक सैनिक” की स्थापना की। यहीं से पूज्य आचार्य जी के सक्रिय राजनीतिक जीवन का श्रीगणेश हुआ। उन्होंने प्रेस का कार्य, कम्पोजिंग, प्रूफ रीडिंग और लेखन आदि प्रारम्भ किया। अपना काम इतनी  लगन, निष्ठा और कुशलतापूर्वक करते थे कि देखने वालों को भी आश्चर्य होता था । स्वभाव की मृदुलता के कारण गुरुदेव  न केवल “दैनिक सैनिक परिवार” के परम चहेते बने बल्कि  श्री कृष्णदत्त पालीवाल जी के विशेष कृपापात्र भी बने। बाबू गुलाबराय जी  के लेख पढ़-पढ़कर लेखन की प्रतिभा गुरुदेव ने स्वयं विकसित की । गुलाब राय जी ने ही गुरुदेव को श्रीराम शर्मा आचार्य से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का टाइटल दिया । गुरुदेव के  क्रान्तिकारी गीत न केवल “दैनिक सैनिक” में छपे बल्कि  कानपुर से छपने वाले समाचार पत्र “विद्यार्थी” जिसके सम्पादक श्री गणेश शंकर विद्यार्थी थे, में भी नियमित रूप से प्रकाशित होते थे। श्री विद्यार्थी जी उनको निरन्तर प्रोत्साहित करते रहते थे, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने गीत कलकत्ता में छपने वाले दैनिक “विश्वामित्र” में भी भेजना प्रारम्भ कर दिया। इन गीतों ने समूचे बंगाल  में क्रान्ति की आग भड़काने में अपूर्व योगदान दिया। बाद में तो  “किस्मत और मस्ताना” जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं ने भी उनकी रचनाएं प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया। ये गीत अक्सर कांग्रेस के कार्यक्रमों अधिवेशनों में भी गाये जाते रहे ।

आगरा जिले में वहां से प्रायः 40 किलोमीटर दूर कस्बा जरार, कांगेस सत्याग्रह का मुख्य केन्द्र बन गया। जरार कस्बे को  “कांग्रेस की छावनी” कहा जाता था । तब आगरा के कलेक्टर विलियम्सन थे। गांव के जमींदार सूरजपाल सिंह अंग्रेजों के बड़े खैरख्वाह थे। उन्हें बुलाकर विलियम्सन ने डांट लगाई और कहा कि यदि कांग्रेस छावनी जरार से नहीं हटी तो उनकी जमींदारी छीन ली जाएगी और हथियार के लाइसेन्स भी छीन लिए जायेंगे। श्री सूरजपाल सिंह ने अपने गुण्डों को लेकर सत्याग्रहियों को बुरी तरह पीटना, कष्ट देना, महिलाओं को बेइज्जत करना, जेवर लूटना प्रारम्भ कर दिया लेकिन  सत्याग्रही टस से मस नहीं हुए। एक दिन श्रीचंद दोनोरिया को इतना पीटा कि वे बेहोश हो गए। उन्हें मरा समझकर छोड़ दिया,कई माह बाद बेहोशी दूर हुई।

इस बीच पूज्य गुरुदेव  तथा अन्य सत्याग्रहियों सर्व श्री रामबाबू,टीकाराम पालीवाल (पंजाबी शेर), मूलचंद, रामचन्द्र पालीवाल, अली ठाकुर, मेघसिंह उमरेठा, मुरारीलाल तथा गौतम  सिंह आदि ने लगातार संघर्ष जारी रखा। एक दिन तो विलियम्सन अपनी पुलिस लेकर चढ़ बैठा।  एक ओर सूरजपाल सिंह के गुण्डे, दूसरी ओर पुलिस, सत्याग्रहियों की भयंकर पिटाई हुई। गुरुदेव  के हाथ में राष्ट्रिय ध्वज  था। पुलिस अधिकारियों ने गुरुदेव को  इतना पीटा कि वे बेहोश होकर कीचड़ में गिर गये लेकिन राष्ट्रिय ध्वज नहीं छोड़ा, उसे मुंह में दबाए रहे। उनकी छाती पर पैर रखकर ही पुलिस ध्वज  को निकाल तो  पायी लेकिन  फटा हुआ । गुरुदेव  रात भर कीचड़ में पड़े रहे, लोगों ने उन्हें मृत समझा। अगले दिन उन्हें डाक्टर के पास ले जाया गया।  झण्डे का टुकड़ा अभी तक भी उनके दांतों में दबा हुआ था। उपचार के पश्चात् जब वे होश में आये, तभी वह टुकड़ा निकाला जा सका। 

1942 का आन्दोलन चरम सीमा पर था, तभी गुरुदेव ने कई बार साबरमती की यात्रा की और गांधी जी के समीप रहकर प्रत्यक्ष सेवा-धर्म की शिक्षा ली। बापू कहते थे कि  स्वाधीनता तभी परिपुष्ट होगी, जब राजनीति के साथ धर्मतंत्र से लोकशिक्षण का कार्य भी चले। उन्होंने अध्यात्म की शक्ति से ही इतना बड़ा महाभारत लड़ा था, उसी शक्ति को वे सर्वोपरि मानते थे, उसी में सामाजिक हित सन्निहित देखते थे। गाँधी जी ने  इस कार्य के लिये गुरुदेव  को सर्वथा सुयोग्य पात्र के रूप में देखा और गुरुदेव को अध्यात्म के  क्षेत्र में कार्य करने की प्रेरणा दी। गुरुदेव गाँधी जी की  आज्ञा मानकर आगरा से मथुरा चले आये और उन्होंने साबरमती  की तरह का आश्रम “गायत्री तपोभूमि” बनाया और स्वतन्त्र प्रेस लगाकर “अखण्ड ज्योति”  पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। दशकों पूर्व आरम्भ हुई गायत्री परिवार की यह पत्रिका आज भी पाठकों का मार्गदर्शन कर रही है। 

समापन  

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल अरुण जी को  प्रदान किया जाता  हैं। 

(1)सरविन्द कुमार-35 ,(2 ) संध्या कुमार-46,(3) सुजाता उपाध्याय-31,(4) अरुण वर्मा-57, (5 )सुमन लता-26,(6 )रेणु श्रीवास्तव-46 , (7 )चंद्रेश बहादुर-31,(8) मंजू मिश्रा-32,(9) वंदना कुमार-25,(10)प्रेरणा कुमारी-24,(11 ) नीरा त्रिखा-25,(12) स्नेहा गुप्ता-24    

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।


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