13 अप्रैल 2023 का ज्ञानप्रसाद
वैशाखी के पावन पर्व की सभी सहपाठियों को हार्दिक शुभकामना
मई 1972 की अखंड ज्योति के एक लेख के शीर्षक ने हमें इतना आकर्षित किया कि हम आपके समक्ष प्रस्तुत किये बिना न रह पाए। आज उस शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत है पार्ट 2. वंदनीय माता जी ने नारी जागरण के लिए कैसे-कैसे परिश्रम किया, कैसे सारी planning की उन सबसे बहुत से परिजन परिचित हैं। नारी शिक्षा के लिए आंवलखेड़ा, आगरा स्थित माता भगवती देवी इंटर कॉलेज से हम सब परिचित हैं।
तो आइए सब सामूहिक तौर से गुरु श्री चरणों का ध्यान करें, नमन करें और विश्वशांति की कामना के साथ आज की गुरुकुल पाठशाला का शुभारम्भ करते हुए इस विषय पर और जानकारी प्राप्त करें।
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”
हम सब जानते हैं कि वंदनीय माता जी को हार्ट अटैक हुए और इस अनिष्ट को सँभालने के लिये स्वयं गुरुदेव को कुछ समय के लिये हिमालय साधना छोड़ कर आना पड़ा। माता जी बता रही हैं कि स्वास्थ्य पहले जैसा अभी भी नहीं हो पाया है। लड़कियों की शिक्षा का क्रम इन दिनों छूटा ही रहा है; यों दिव्य संस्कार उनमें अभी भी निरन्तर आरोपित किये जा रहे हैं। यह पूँजी मस्तिष्कीय शिक्षा से कुछ कम नहीं, अधिक ही बैठेगी।
गुरुदेव यहाँ आये तो शान्तिकुंज की भावी व्यवस्था के सम्बन्ध में भी विचार करते रहे। गुरुदेव माता जी को कह रहे थे कि हम लोग स्थूल शरीर में इस आश्रम में हमेशा तो रहेंगे नहीं, हमारे बाद यहाँ क्या प्रवृत्तियाँ चलें, इस पर विचार करने की आवश्यकता है ।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के पाठकों को हम पहले बता चुके हैं कि शांतिकुंज गुरुदेव का डाक बँगला है । गुरुदेव जब कभी जन संपर्क की आवश्यकता समझेंगे,इधर आयेंगें, उतने समय के लिए ही रुकेंगे और फिर आगे अपने प्रोग्राम सम्पन्न करेंगें । गुरुदेव सुनिश्चित करते थे कि उनका संपर्क क्रम अधिक लम्बा न चले। उनकी बातों से ऐसा लगा कि जब तक आगामी पाँच-छः वर्ष में अखण्ड जप की पुरश्चरण श्रृंखला पूरी होगी तभी तक वे अपना संपर्क क्रम जारी रखेंगे। इसी अवधि में जिन्हें शक्ति का प्रत्यावर्तन, मार्गदर्शन, अनुदान देना होगा उसे देकर उससे भी निवृत्त हो लेंगे और बाद में और भी ऊँचे कदम बढ़ायेंगें।
शांतिकुंज की इमारत को छोटा ही बनाने का विचार था लेकिन न जाने ईश्वर की क्या इच्छा हुई कि उसका स्वरूप बहुत बड़ा बन गया और बनता ही जा रहा है । कन्याओं का निवास आवास, भोजन व्यवस्था, उनका शिक्षण, खेलना, पढ़ना काफी स्थान माँगता है । सम्पादन और पत्र व्यवहार का दफ्तर भी चाहिए ही । गायों की सेवा और बगीचे को सँभालने के लिए भी कार्यकर्त्ता चाहिए। उनके निवास के लिए भी स्थान चाहिए ही। इतने विशाल परिवार में से हर दिन दस पाँच आदमी यहाँ भावनावश या किसी प्रयोजन के लिए आते रहें तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं। उनके विश्राम एवं आवास के लिये भी स्थान तो चाहिए ही । जब कभी गुरुदेव यहाँ रहेंगे तब तो प्रशिक्षण न सही, प्रत्यावर्तन और परामर्श तो होगा ही। उनके लिए भी लोग यहाँ आवेंगे ही। उनके लिये भी जगह चाहिए। वस्तुतः गुरुदेव का व्यक्तित्व इतना विशाल है कि उसके लिये कलेवर की सहज ही आवश्यकता पड़ती और बढ़ती है। गायत्री तपोभूमि मथुरा भी आरम्भ में छोटी सी बननी थी लेकिन आवश्यकतानुसार उसकी भी विशालता बढ़ती ही गई। आजकल (2023) भी तपोभूमि का विस्तार हो रहा है, बहुत ही सुंदर रूप निखर कर उभर रहा है।
शांतिकुंज छोटा जरूर सोचा गया था लेकिन आवश्यकताओं ने उसे भी बड़ा बना दिया और वह आगे ही आगे बढ़ता जा रहा है।
हम लोग यह सोचते रहे कि छह वर्ष के शांतिकुंज वाले कार्यक्रम के उपरान्त इस आश्रम का क्या होगा? यहाँ सब कुछ सूना पड़ा रहे यह भी उचित न होगा। चिंतन इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कन्याओं की जो शिक्षा इन दिनों छोटे रूप में आरम्भ की गई थी उसी को बड़ा बना दिया जाय और इससे एक बड़े अभाव की पूर्ति हो सकेगी।
गायत्री तपोभूमि में यों पुरुषों के साथ महिलाएं भी आती थीं लेकिन उनके प्रशिक्षण एवं स्थायी निवास के लिए प्रबन्ध नहीं था। इससे महिला जागृति में भारी अड़चन आ रही थी। इस कमी को गुरुदेव अनुभव तो करते थे लेकिन वे कभी नहीं चाहते थे कि नर और नारी में अधिक संपर्क हो। उनके विचार में इस संपर्क से अनेकों बुराइयाँ उठ खड़ी होने की आशंका थी और कहते थे कि गलत सेवा करने से बेहतर है कि उसे किया ही न जाए। गुरुदेव सोचते थे कि नारी को भी प्रशिक्षित तो किया जाना चाहिए, उसे परिवार और समाज में देवत्व उत्पन्न करने का ज्ञान तो कराया जाना चाहिए लेकिन वह प्रशिक्षण अलग से होना चाहिए। सहशिक्षा( co education) ही नहीं, निवास की समीपता भी हो तो गड़बड़ ही पैदा करेगी अस्तु यदि उसका प्रबन्ध किया जाना हो तो उसमें इस प्रकार का नर-नारी सम्मिश्रण नहीं होना चाहिये। नारी-शिक्षा नारियों के द्वारा और उन्हीं की सीमा में होनी चाहिये। नारी-संपर्क के संदर्भ में गुरुदेव वन्दनीय माता जी को ही आगे करते थे। गुरुदेव की इस मनोवृत्ति के कारण ही अब तक अति महत्वपूर्ण एवं नितान्त आवश्यक होते हुए भी नारी प्रशिक्षण का कुछ काम न हो सका। इस बार सोचा गया कि शान्तिकुँज भविष्य में उस आवश्यकता की पूर्ति करने का माध्यम बने।
वर्तमान कन्याओं द्वारा अखण्ड जप वाले क्रम में नारी प्रशिक्षण का समावेश किया जाय और उसे धीरे-धीरे विकसित करते हुए इस स्तर तक पहुँचा दिया जाय कि उसके द्वारा नारी को समुन्नत बनाने की दिशा में विश्वव्यापी मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण सम्पन्न किया जा सके, इसलिए माता जी ने इन्हीं दिनों यह निश्चय किया गया कि वर्तमान दस कन्याओं की ट्रेनिंग के लिये सुनिश्चित व्यवस्था की जाय और इसके लिये एक अध्यापिका की नियुक्ति कर दी जाय। पिछले दिनों लड़कियाँ अपनी रुचि का भोजन मिलजुल कर बना लेती थीं। इसमें उन्हें पाक विद्या का व्यावहारिक ज्ञान देना भी उद्देश्य था। फिर बच्चों का नई चीजें खाने को अधिक मन रहता है। उनकी इच्छानुसार बदलती हुई चीजें बनती रहें तथा बनाने में वे कुशल होती रहें लेकिन इस मिलजुल कर बनाने में उनका कई घण्टे का समय खराब हो जाता था। अगर यह सोचा हुआ है कि उन्हें विशेष शिक्षण देना है तो समय की बचत करना आवश्यक है, इसलिए भोजन बनाने वाली एक महिला की स्थायी नियुक्ति कर दी गई । ट्रेनिंग के लिये अध्यापिका की आवश्यकता भी सम्भवतः इसी महीने में पूरी हो लेगी। इस संदर्भ में पिछली अखण्ड ज्योति में विज्ञापन भी छप चुका है।
नारी के व्यक्तित्व का समग्र विकास अपनेआप में एक अति महत्वपूर्ण विषय है। स्कूली शिक्षा से उसका उद्देश्य तनिक भी सिद्ध नहीं होता। उसमें नारी जीवन में कभी काम न आने वाले निरर्थक विषयों की ही भरमार है। पढ़ते-पढ़ते छात्रों का सिर खाली हो जाता है लेकिन व्यावहारिक जीवन में काम आने वाला तथ्य उसमें नगण्य ही निकलता है। नौकरी पाने के अतिरिक्त यह शिक्षा और किसी काम की नहीं, यदि यह कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं माननी चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य ‘मुक्ति’ है। ‘सा विद्या या विमुक्तये” जो शिक्षा नौकरी के लिये गुलामी और बन्धन के लिए प्रोत्साहित करे वस्तुतः सच्चे अर्थ में विद्या कही ही नहीं जा सकती शिक्षा का उद्देश्य तो स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विकास एवं स्वावलम्बन ही होना चाहिए।
गायत्री तपोभूमि में “युग-निर्माण विद्यालय” का स्वतन्त्र पाठ्यक्रम इसीलिए रखा गया था । उसमें सरकारी शिक्षा पद्धति का कोई समावेश नहीं है। जब दृष्टिकोण ही दूसरा हो तो पाठ्यक्रम भी दूसरा ही रहना चाहिए। नौकरी के लिये पढ़ाई जिनका उद्देश्य हो वे न उस पढ़ाई में आते हैं और न उन्हें बुलाया जाता है।
माता जी बताती हैं कि शान्तिकुंज में जिस “नारी प्रशिक्षण” का विकास किया जाना है उसका लक्ष्य होगा “नारी जीवन की प्रतिभा का विकास एवं समस्याओं का समाधान।” इस दृष्टिकोण से एक समान पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है। उसका कोर्स एक वर्ष का रहेगा। यह पाठ्यक्रम गुरुदेव स्वयं ही निर्धारित करने का वचन दे गये हैं। उसके साथ-साथ ऐसे गृह उद्योगों का समावेश अवश्य रहेगा जिससे हर नारी अपने बचे हुए समय में कुछ अतिरिक्त कमाई कर सके। कभी विपत्ति की घड़ी आ खड़ी होने पर सारे परिवार के निर्वाह में समर्थ हो सकने योग्य कमाई की, आर्थिक स्वावलम्बन की क्षमता उसमें होनी ही चाहिए। गायत्री तपोभूमि के युग-निर्माण विद्यालय में भी ऐसी ही शिल्प शिक्षा का समावेश है; फिर नारी के लिये निर्धारित बौद्धिक पाठ्यक्रम की तरह यह शिल्प शिक्षा भी भिन्न होगी। उसमें यह ध्यान रखना होगा कि वे उद्योग घर रहकर ही चलाये जा सकें उनके लिये बाजार में दुकान खोलने की आवश्यकता न हो। ऐसे शिल्पों का जो घर पर चल सकें,अधिक कमाई करा सकें । क्या-क्या उद्योग हो सकते हैं इस सम्बन्ध में विशेषज्ञों से परामर्श किया जा रहा है। उनमें से कुछ तो अवश्य ही ऐसे होंगे जो बिजली की शक्ति से चलें, जिनमें शारीरिक श्रम अधिक न करना पड़े और कमाई भी एक परिवार के निर्वाह जितनी हो सके। इस प्रकार के बौद्धिक एवं शिल्प सम्बंधी पाठ्यक्रम की रूप रेखा सम्भवतः आगामी दो तीन महीने में ही बन जायगी। उसके लिये विशेषज्ञों से परामर्श आरम्भ कर दिये गये हैं। साथ में संगीत शिक्षा का समावेश रहना आवश्यक है। इस प्रशिक्षण के लिए स्वभावतः अधिक कन्याएं आना चाहेंगी लेकिन हमारे पास तो जप करने वाली कन्याओं के लिये ही भोजन आदि की सीमित व्यवस्था है। अगर इस इस संख्या से आगे बढ़ा दिया जाए तो उसकी अर्थ व्यवस्था उनके अभिभावकों को ही करनी पड़ेगी। खाते-पीते मध्यम श्रेणी के परिवारों जैसे अच्छे भोजन में 50 रुपये मासिक से कम खर्च इस घोर महँगाई के जमाने में नहीं आ सकता। साल भर के लिये वस्त्र और उतने दिन के लिये भोजन प्रबन्ध के पैसे जो जुटा सकेंगे उनके लिए ही अतिरिक्त प्रबन्ध हो सकेगा। जप विभाग तो केवल नियत संख्या का ही भार वहन कर सकता है।
To be continued
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आज के 24 आहुति संकल्प में 14 युगसैनिकों की भागीदारी रही है।आज सरविन्द भाई साहिब ने सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मेडलिस्ट प्राप्त किया है।
(1) सरविन्द कुमार-68,(2)चंद्रेश बहादुर-30,(3) सुजाता उपाध्याय-33,(4) अरुण वर्मा-61 ,(5) रेणु श्रीवास्तव-28 ,(6) सुमनलता-36,(7)संध्या कुमार-33,(8) कुमोदनी गौरहा-26 ,(9)वंदना कुमार-25,(10) निशा भारद्वाज-25,(11 )स्नेहा गुप्ता-25,(12) विदुषी बंता-30, (13) बबली विशाखा-27,(14)मंजू मिश्रा-27
सभी विजेताओं को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।