वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

यह एटॉमिक शक्ति नहीं आत्मिक शक्ति है। 

29 मार्च 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज सप्ताह का तीसरा  दिन बुधवार है और समय है ब्रह्मवेला। यह समय है  दिव्य ज्ञानप्रसाद के  वितरण का शुभ समय , ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना के  जागरण का समय।  सभी संयोग एक ही ओर  इशारा कर रहे हैं कि आइए हम सब इक्क्ठे होकर, एक परिवार की भांति परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के श्रीचरणों में बैठ कर आज के  दिव्य ज्ञानामृत  का पयपान करें, सत्संग करें,अपने जीवन को उज्जवल बनाए, दिन का शुभारंभ सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा  से करें। दिव्य  ज्ञानपान से अपनी  एवं  सृष्टि के सभी प्राणियों की मंगल कामना करते हुए विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें। 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

अखंड ज्योति के अगस्त 1996 अंक  पर आधारित लेख शृंखला में ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर का यह तीसरा  लेख है। यह स्पेशल अंक युगतीर्थ शांतिकुंज की रजत जयंती को समर्पित है।  56 पन्नों के इस “रजत जयंती स्पेशल” अंक के एक-एक पन्ने पर, एक-एक लाइन में ऐसे तथ्यों का वर्णन है जिनको जानने के लिए शायद कितनी ही पुस्तकों का अध्ययन करना पड़े। इतने परिश्रम से तैयार किये गए इस दुर्लभ अंक के समक्ष हमारा शीश स्वयं ही झुक जाता है।

आज का लेख बता रहा है कि  यह सेंटर किस प्रकार प्रकृति और परमात्म तत्व से मनुष्य सम्बन्धों( Human relations)  को समझने और  स्वीकार करने की प्रयोगशाला है। कैसे मनुष्य में सन्निहित दिव्य क्षमताओं के जागरण का एक  वैज्ञानिक केन्द्र है। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के विस्तृत विषय का कल अंतिम लेख प्रस्तुत करेंगें लेकिन शुक्रवार को 48 मिंट की एक वीडियो शेयर करने की योजना है। श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या जी इस विषय पर  का उद्बोधन एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। 

तो चलते हैं आज के लेख की ओर : 

1971 की हिमालय यात्रा से लौटने के बाद गुरुदेव ने विदेश यात्रा सम्पन्न की। शाँतिकुँज प्राण प्रत्यावर्तन सत्र, वानप्रस्थ सत्र चले। कन्या प्रशिक्षण का कार्यक्रम संचालित होता रहा। इसके साथ ही ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की रूपरेखा भी बनती रही और एक दिन पूज्यवर ने यह घोषणा कर डाली कि वह ब्रह्मवर्चस का निर्माण करेंगे। करेंगे। अपने प्रारम्भिक दौर में ब्रह्मवर्चस का स्वरूप ब्रह्मवर्चस साधना आरण्यक (वनवास) के रूप में प्रस्तुत हुआ था। योजना यह बनी थी कि  साधकगण ब्रह्मवर्चस परिसर में ही रहेंगे और  गुरुदेव  द्वारा बतायी गई  सुनिश्चित साधना स्कीम  का निष्ठापूर्वक अनुसरण करेंगे। साधना के लिए इन साधकों को नाव से गंगा के पार ले जाकर दिन भर टापुओं में रहने और शाम को पुनः वापस ब्रह्मवर्चस लाने की विधि-व्यवस्था सोची गयी थी लेकिन  बाद में थोड़ा हेर-फेर कर दिया गया। यह हेर-फेर ब्रह्मवर्चस के मूल प्रयोजन में नहीं बल्कि उसके स्वरूप में था। 

परम पूज्य गुरुदेव  साधकों को अपनी ही ऊष्मा में पकाने के पक्ष में थे और यह ऊष्मा की भट्टी उन्हें ब्रह्मवर्चस से अधिक उपयुक्त और कहीं नहीं लगी। शायद इसी कारण गंगा के पार जाने की योजना समाप्त कर दी गई।  

साधना सत्र शाँतिकुँज में संचालित होते रहे और ब्रह्मवर्चस साधना आरण्यक ने प्रयोगशाला का रूप ले लिया। इस प्रयोगशाला में किए जाने वाले प्रयोग अपनी तरह के अनूठे हैं। इस विचित्र प्रयोग  का जिक्र करते हुए पूज्य  गुरुदेव अपने एक प्रवचन में निम्नलिखित शब्दों में  स्पष्ट करते हैं : 

“ब्रह्मवर्चस एक फैक्टरी है, एक कारखाना है, एक भट्टी है। इस भट्टी में गलाई होगी, ढलाई होगी। भट्टियाँ कई तरह की होती हैं, कोई काँच को गलाने की तो कोई लोहे को गलाने की।   हमने जो भट्टी बनाई है उसमें मनुष्यों के व्यक्तित्व  की  गलाई और ढलाई के दोनों  काम हम ही करेंगे। हम इस फैक्टरी में दो चीज़ें  तैयार करेंगे- एक का नाम है पावर  और दूसरी का नाम है  करंट। इन्ही दो वस्तुओं के आधार पर नए युग का ढाँचा खड़ा होगा। प्रत्येक मशीन, प्रत्येक क्रिया-कलाप किसी न किसी पावर से ही चलते हैं। चाहे कोई भी यंत्र हो, पावर न हो तो वह  चलेगा ही नहीं। जिस पावर  के द्वारा नए युग का  निर्माण-तंत्र चलने वाला है,वह पावर एटामिक पावर नहीं  बल्कि आत्मिक पावर  है। इस ,Man-making फैक्टरी में हम दो तरह के मनुष्य  बनाएँगे। एक का नाम होगा-‘मनस्वी’ और दूसरे का  नाम होगा ‘तपस्वी’  यह तो हमारी नर्सरी है। इस नर्सरी में हम छोटे-छोटे पौधे उगाएँगे, और फिर उनको सारे विश्व में भेज देंगे, ठीक उसी तरह जिस तरह हम नर्सरी से पौधे लाते हैं । हमारी यह विश्वव्यापी प्रयोगशाला अपने आप में एक अनोखी प्रयोगशाला है। ब्रह्मवर्चस आश्रम केवल हमारी शुरुआत का एक केन्द्र है, जहाँ हम शिक्षण करेंगे ओर नवयुग की एक हवा पैदा करेंगे। यह एक बहुत बड़ी फैक्टरी है जिसका प्रत्यक्ष परिणाम अगले ही दिनों आने वाला है।

पूज्य  गुरुदेव के प्रवचन के उपरोक्त अंश में न केवल ब्रह्मवर्चस की विशेषताएं झलकती हैं, बल्कि रिसर्च के आधार की झलक भी  मिलती है। यहाँ की रिसर्च  कागज, कलम, पुस्तकों, मशीनों, उपकरणों तक सीमित नहीं है। यद्यपि यह तत्व सहायक  जरूर हैं, लेकिन रिसर्च सेंटर मानव प्रकृति  (Human Nature ) के अध्ययन-अनुसंधान का सेंटर  है। यह सेंटर  प्रकृति और परमात्म तत्व से मनुष्य सम्बन्धों को समझने और  स्वीकार करने की प्रयोगशाला है। मनुष्य में सन्निहित दिव्य क्षमताओं के जागरण का एक  वैज्ञानिक केन्द्र है। 

प्राचीनकाल की ऋषि परम्परा  में  शुद्धिकरण, रचना  और शिक्षण की त्रिवेणी का संगम था। एकान्तवास, शुद्ध रिसर्च के लिए होता था ताकि बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप  के एकाग्र मनःस्थिति में अनुसंधानों का क्रियाकलाप ठीक तरह सधता रहे। भौतिक विज्ञान  में भी अन्वेषण- कर्ताओं को ऐसी  ही सुविधा, स्वतंत्रता और वातावरण दिया जाता  है। सृजन यानि रचना का कार्य ही ऐसा है, इसमें एकाग्रता और स्वतंत्रता के वातावरण में ही लोकोपयोगी सत्प्रवृत्तियों का स्वरूप उभर कर आता है। साहित्य सृजन से लेकर चिकित्सा उपचार,कला,  शिल्प, उपकरण, रसायन आदि के अनेक प्रयोजन विनिर्मित करना ऋषि परम्परा का दूसरा आधार रहा है। तीसरा कार्य शिक्षण का था।  शिक्षण के लिए बालक गुरुकुल में और प्रौढ़ आरण्यक में रखे जाते थे

युगान्तरीय चेतना उत्पन्न करने के लिए ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में जिस अनुसंधान को सम्पन्न किया जा रहा है, उसके भी तीन पक्ष हैं। शोध प्रक्रिया में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि इन दिनों दुनिया बहुत छोटी हो गयी है। मीलों के फासले आज की संचार और वाहन व्यवस्था ने समाप्त कर दिए हैं।  ऐसी दशा में समर्थ प्रतिपादन वही हो सकता है जो किसी देश धर्म के लोगों की परम्पराओं  तक सीमित न हो  बल्कि प्रखरता  सम्पन्न हो,  जो सार्वभौम एवं सार्वजनीन बनने का दावा कर सकें। जिसे परख-परीक्षण की हर कसौटी स्वीकार हो और  भौतिक विज्ञान के सिद्धान्तों की तरह इसे सर्वत्र एक स्वर से स्वीकारा जा सके।

ब्रह्मवर्चस के प्रारम्भिक दिनों से अपनी सूक्ष्मीकरण साधना में जाने से कुछ पहले तक परम पूज्य  गुरुदेव शाँतिकुँज से पैदल चलकर यहाँ स्वयं आते थे। यह सिलसिला प्रायः प्रतिदिन का था। यहाँ का भवन निर्माण, 14 मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा, पुस्तकालय की स्थापना एवं प्रयोगशाला के स्वरूप का निर्धारण सब कुछ उन्हीं की देख-रेख में हुआ। शोध संस्थान के स्वरूप का विकास हो जाने के बाद, यहाँ आकर शोधकर्मियों का मार्गदर्शन भी स्वयं ही करते थे। आज जहाँ लाइब्रेरी है वहीं  शोध गोष्ठियाँ हुआ करती थी। इन गोष्ठियों में वे बताते कि भारतीय साधना विज्ञान के अंतर्गत कितनी ही शाखा-प्रशाखाएं हैं। संसार के अन्यान्य साधना-सम्प्रदायों में अपने-अपने ढंग की साधना प्रचलित हैं। अपने शोध प्रयास किसी देश या सम्प्रदाय की सीमा बन्धन में बंधे हुए नहीं हैं। इसलिए अपनी शोध का क्षेत्र विश्व्यापी साधनाओं की क्रिया प्रतिक्रिया का परीक्षण ही होगा। 

ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर के अंतर्गत संम्पन्न किए जा रहे प्रयोगों  में यज्ञ विज्ञान का विशिष्ट स्थान है यज्ञ विज्ञान के कितने ही पक्ष हैं- यथा (1) मन्त्रोच्चार में सन्निहित शब्द शक्ति, (2) साधकों का पवित्र एवं परिष्कृत व्यक्तित्व, (3 ) अग्नि ऊर्जा का अभीष्ट प्रयोजन में सन्तुलित उपयोग आदि। इन प्रयोजनों का शास्त्रों में उल्लेख तो है पर उनके चल रहे विधानों, अनुपातों और सतर्कताओं का वैसा उल्लेख नहीं मिलता जिसके आधार पर समान उपचार बन पड़ने की निश्चिंतता रह सके। सही प्रोसेस  से अवगत न हो पाने पर सही परिणाम भी कैसे निकले। यज्ञ विद्या को अच्छी तरह से उपयोगी  बनाने के लिए शास्त्रों के साँकेतिक विधानों को समझने की आवश्यकता है। ब्रह्मवर्चस द्वारा ही इस स्थिति को  पूरा किया जाना है।

इस तरह अपनी चर्चाओं के दौरान गुरुदेव ब्रह्मवर्चस की रिसर्च प्रक्रिया  के स्वरूप को स्पष्ट करते रहते थे। 1984 की राम नवमी से आरम्भ होकर 1986 की वसंत पंचमी  को संपन्न हुई  सूक्ष्मीकरण साधना के बाद उनका यहाँ आना तो नहीं हुआ लेकिन शांतिकुंज में ही अपने निवास पर गोष्ठी,चर्चा, परामर्श द्वारा क्रिया-कलापों को संचालित करते रहते थे। गुरुदेव के महाप्रयाण के बाद यह दायित्व अखण्ड ज्योति के सम्पादक श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या जी  के कन्धों पर आ पड़ा है जिन्हे  ब्रह्मवर्चस की स्थापना के समय से ही गुरुदेव के सानिध्य में  रहने एवं  प्रशिक्षण पाने का सौभाग्य  प्राप्त हुआ है। आज 2023 में इस लेख को लिखते समय यह देखा जा सकता है कि लगभग 44  वर्षों  से लगातार प्रयोग-परीक्षणों का क्रम अनवरत चल रहा है। समय-समय पर प्राप्त हुए  निष्कर्षों को अखण्ड ज्योति में प्रकाशित भी किया जा रहा है। जिज्ञासुओं, मनीषियों, परिजनों, विज्ञानविदों के आग्रह को ध्यान में रखते हुए शोधपत्रों, रिसर्च बुलेटिन भी  प्रकाशित किए जा रहे हैं। विगत वर्षों के परिणामों को देखते हुए कहा जा सकता है कि ब्रह्मवर्चस का शोध अनुसंधान समस्त मानव समाज को वर्तमान बुद्धिवाद ( जिसके अनुसार बुद्धि ही ज्ञानप्रप्ति का वास्तविक मार्ग है) के कुचक्र से निकालने में सहायक ही नहीं समर्थ भी सिद्ध हो रहा है।

आज के लेख का समापन करते हैं लेकिन उससे पहले संकल्प सूची; सूची सिकुड़ तो रही है लेकिन कारण हम सब जानते हैं, आखिर  हम सब परिवारजन जो हैं।    

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 6  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, सरविन्द  जी आज फिर  गोल्ड मेडलिस्ट हैं, उन्हें बहुत बहुत बधाई।   

(1) सरविन्द कुमार-38 ,(2 )संध्या कुमार-25 ,(3) वंदना कुमार-25,(4)चंद्रेश बहादुर-27, (5)मंजू मिश्रा-25, (6 ) सुजाता उपाध्याय-27  

सभी विजेताओं को हमारी  व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।

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