वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर लेखों की पृष्ठभूमि 

27  मार्च 2023 का ज्ञानप्रसाद

सप्ताह का प्रथम  दिन सोमवार , ब्रह्मवेला का समय, दिव्य ज्ञानप्रसाद के  वितरण का शुभ अवसर, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना का जागरण, सभी संयोग एक ही ओर  इशारा कर रहे हैं कि आइए हम सब इक्क्ठे होकर, एक परिवार की भांति परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के श्रीचरणों में बैठ कर आज के  दिव्य ज्ञानामृत  का पयपान करें, सत्संग करें,अपने जीवन को उज्जवल बनाए, दिन का शुभारंभ सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा  से करें। दिव्य  ज्ञानपान से अपनी  एवं  सृष्टि के सभी प्राणियों की मंगल कामना करते हुए विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें। 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

पिछले सप्ताह से हम  अखंड ज्योति के अगस्त 1996 अंक  पर आधारित लेख प्रकाशित कर रहे हैं। यह स्पेशल अंक 1971 में स्थापित हुए युगतीर्थ शांतिकुंज की रजत जयंती को समर्पित है।  56 पन्नों के इस रजत जयंती स्पेशल अंक के एक-एक पन्ने पर, एक-एक लाइन में ऐसे तथ्यों का वर्णन है जिनको जानने के लिए शायद कितनी ही पुस्तकों का अध्ययन करना पड़े। इतने परिश्रम से तैयार किये गए इस दुर्लभ अंक के समक्ष हमारा शीश स्वयं ही झुक जाता है। 

उसी शृंखला में आज से अपने सहकर्मियों के समक्ष एक बहुत ही उलझे हुए विषय पर चर्चा करने का साहस  कर रहे हैं जिसे वैज्ञानिक आध्यात्मवाद यानि Scientific Spirituality का नाम दिया है। हमारे लिए  वैज्ञानिक बैकग्राउंड होने के कारण, यह विषय तो बहुत ही आकर्षक है लेकिन जिनकी यह बैकग्राउंड नहीं है उन्हें कठिनता आना स्वाभाविक है। कठिनता के बावजूद हम पूरा प्रयास करेंगें अधिक से अधिक सरलीकरण करके ही प्रस्तुत करें ताकि  सभी समझ सकें। 

आधुनिक विज्ञान से भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व अर्थात अध्यात्म शास्त्र निश्चित ही आगे था और रहेगा । इस तथ्य को समझने के लिए विज्ञान एवं अध्यात्म की  तुलना  करना बहुत ही आवश्यक है। 

आइए  ज़रा देखें कि विज्ञान क्या है और हमारे लिए यह क्या कुछ कर सकता है।  अवशय ही विज्ञान की प्रगति को reject करना, नकारना कोई समझदारी तो नहीं है लेकिन अध्यात्म को समझने के लिए यह चर्चा बहुत ही ज़रूरी है। इस समय आप जो ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कर रहे हैं यह विज्ञान की ही देन  है कि हज़ारों मील दूर से हमारे लैपटॉप से आपके फ़ोन पर एकदम कुछ ही keys को दबाकर पंहुच रहा है। लेकिन एक बहुत बड़ा प्रश्न हम से उत्तर मांग रहा है कि क्या  यह वैज्ञानिक प्रगति हमारे अंतःकरण में उठ रही जिज्ञासाओं का निवारण कर  सकती है ? क्या आधुनिक युग के मानव के ह्रदय में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर आधुनिक विज्ञान के पास है ? अगर है तो फिर क्यों हम सब यज्ञथेरपी, मंत्रविद्या का सहारा ले रहे हैं। संध्या बहिन जी नेचरथेरेपी से लाभ उठा रही हैं, क्या यह फिजिकल साइंस है,आध्यात्मिक साइंस है यां कोई और साइंस। जो भी हो एक बात तो सत्य है कि साइंस और अध्यात्म को अलग करना कठिन क्या असंभव है। यही कारण है कि दोनों को जोड़ कर ही scientific spirituality यानि वैज्ञानिक अध्यात्मवाद जैसे विषय का आविष्कार हुआ था।  

परम पूज्य गुरुदेव जैसे मनीषी ने भी इसी दिशा में अग्रसर होकर ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर की नींव रखी और इस केंद्र में हो रहे प्रयोग हम सबके समक्ष हैं।  आदरणीय चिन्मय जी के अनेकों लेक्चर इस विषय को समझने में सहायक हैं।  इसमें लेशमात्र भी शंका नहीं है कि वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का विषय समझना कठिन है लेकिन अगर थोड़ा सा भी प्रयास करके इसे समझ लिया जाए तो हमें यज्ञ करने के , मन्त्र उच्चारण के ,साधना क्रियाओं के  ,कर्मकांडों आदि से प्राप्त होने वाले लाभ और अधिक सार्थक हो सकते हैं। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि   अगर किसी कार्य को समझकर किया जाये तो अवश्य ही रूचि और लाभ दोनों ही अधिक होते हैं। 

विज्ञान और अध्यात्म को समझने के लिए निम्नलिखित चार points सहायक हो सकते हैं :        

1. विज्ञान की definition  क्या है ? ‘विगतं ज्ञानं यस्मात् तत् ।’, अर्थात ‘जिसमें से ज्ञान निकल गया हो, वह है विज्ञान। जो मुक्ति दिलाए उसे ही ज्ञान कहते हैं ।’ ऐसा ज्ञान केवल अध्यात्मशास्त्र से ही  मिलता है । भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व में यह ज्ञान मिलता है ।

2. दूसरा अंतर् है  कि  विज्ञान के ‘सत्य’ में निरंतर परिवर्तन होता रहता है । जैसे वर्षों से जिस डार्विन के  सिद्धांत को सभी मान्यता प्राप्त थी, आज उसे गलत  बताया जा रहा है । विज्ञान की पुस्तकों के नए से नए एडिशन  छापने पडते हैं जिनमें संशोधन किये जाते हैं। इसीलिए कहा जाता हैं कि  विज्ञान अपूर्ण है, it is never complete, it is always changing. इसके विपरीत आत्मज्ञान में परिवर्तन नहीं होता। अध्यात्म के शोध से प्राप्त सत्य एवं शाश्वत होता है, इसलिए वेद, उपनिषद आदि के revised edition तो  होते हैं लेकिन  सुधारित संस्करण कभी नहीं होते। 

इसी चर्चा को निम्नलिखित उदहारण से सहायता मिल सकती है :  

3. हमारे यहां हर घर के आगे तुलसी लगाने एवं पूजा करने की प्रथा है । प्रतिदिन उसकी पूजा और परिक्रमा होती है । जो बात हज़ारों वर्ष पूर्व से हमारे ऋषि मुनि जानते थे, आज के वैज्ञानिक बता रहे हैं  कि  तुलसी से 24  घंटे ऑक्सीजन ही निकलती  है जो हमारे लिए एवं  प्रकृति के लिए उपयोगी है । कोई आधुनिक प्रयोगशाला न होते हुए भी  भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व यह जानता था। हिन्दू वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में विज्ञान बताया गया है। वैसे तो सभी पौधों में ऑक्सीजन निकलती है, तुलसी के पौधे में क्या विशेषता है।  केवल 100 वर्षों  में पृथ्वी को नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लाने वाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाज विघातक शोध न करने वाला प्राचीन “हिन्दू विज्ञान” था। पूर्वकाल के शोधकर्ता हिन्दू ऋषियों की बुद्धि की विशालता देखकर आज के वैज्ञानिकों को अत्यंत आश्चर्य होता है। सहस्रों वर्ष पूर्व ही पश्चिमी  वैज्ञानिकों की न्यूनता सिद्ध करने वाले शोधकर्ता  हिन्दू ऋषि-मुनि ही हैं ।

4. Gravity का गूढ रहस्य उजागर करने वाले भास्कर आचार्य  जी ने अपने (दूसरे) ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ में Gravity  के विषय में लिखा है कि  आकाश की ओर फेंकी हुई कोई भी वस्तु पृथ्वी अपनी ओर खींच लेती है।  इससे सिद्ध होता है कि न्यूटन जिसने Gravity  का आविष्कार किया था उस से  500  वर्ष पूर्व ही भास्कर जी ने Gravity की खोज कर ली थी।

इन्ही तथ्यों को समझने के लिए ब्रह्मवर्चस रिसर्च केंद्र का जन्म हुआ था। 

गायत्री जयन्ती 3 जून, 1979 को गंगा के तट पर ज्ञान की एक नवीन धारा का अवतरण हो रहा था। युग के भगीरथ की बरसों की तप-साधना अपना साकार रूप ले रही थी । गायत्री और गंगा के इस अवतरण दिवस पर ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान का उद्घाटन हो रहा था। इस अवसर पर गायत्री परिवार के सदस्यों के अलावा देश के अनन्त विख्यात मनीषी भी आए हुए थे। आने वालों  में उत्तरप्रदेश के उस समय के गवर्नर आदरणीय गणपतराव देवजी  तपासे भी थे। उन्होंने उस समय क्या कहा था उसे कल वाले लेख में ही जानना उचित  होगा, क्योंकि आज इस  बैकग्राउंड को ही समझ लें तो बहुत है। जय गुरुदेव 

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