“मन की गठरी कैसे खोल दूं आपके सामने ?
मेरी बातें तंदुल की तरह हैं, मैं सुदामा की तरह…..”
यहां हिंदी साहित्य की इन पंक्तियों को लिखने का बस इतना सा प्रयोजन है कि ये पंक्तियां सदा से ही मेरे मनोभावो से मेरी स्थिति से मेल खाती हैं । दो चार पंक्तियों में खुद को व्यक्त करना क्या सरल है?
कम से कम अड़तीस पंक्तियां तो चाहिए ही इस अड़तीस साल के जीवन की कथा व्यथा कहने के लिए।
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तो सुनिए
सादर प्रणाम भैया
मैं स्नेहा गुप्ता पत्नी श्री रामानंद गुप्ता, गांव गहमर ,गाजीपुर,उत्तर प्रदेश,से हूं
बाइस सालों का वैवाहिक जीवन है । पति आसाम रैफल्स में सिपाही हैं ,बेटा निर्झर आनंद, “मेरठ प्रभात आश्रम गुरुकुल में नवीं का छात्र, छः वर्षीय बेटी स्तुति आर्या (मिट्ठी) साथ में रहती है।
मां बाप स्वप्न था और मेरा भी आत्मविश्वास की परिस्थितियों से बड़ा मनोबल होता है तो शादी के बाद बड़े संयुक्त परिवार में जो उस समय 15 सदस्यो का था जूझते हुए ,जिम्मेदारियों से, तनावो से,दुख से, शोक और संघर्ष की पीड़ा की थकान से सुस्ताते हुए, रुक-रुक फिर से मजबूत बन कर चलते हुए M.A,B.Ed के बाद हिंदी विषय में नेट परीक्षा चार बार पास किया । मैं JRF कर सकती थी लेकिन हर बार बाधाऐं जीत जाती और मैं हार जाती ।
Tgt, Pgt, lt grade test, ctet, किसी टेस्ट में पास तो किसी में बस किनारे पर रह जाती ।कारण परिवार में पढ़ाई के लिए बिना थके समय निकालना भगवान के लिए भी दुर्लभ है।
सासू मां जो इसी साल (2023) आठ जनवरी को उस लोक को गई; ससुर, पति, पुत्र सभी देवता समान हैं। उनकी ओर से कोई रोक नहीं ,मेरी ओर से कोई शिकायत भी नहीं ।
अभी 90-95 वर्षीय ससुर की जो की पहले जिद्द थी अब अंतिम खुशी है कि परिवार एक में ही रहे और उनकी खुशी मेरे लिए सर्वोपरी है।
लेकिन इस बड़े से परिवार में भी एक परिवार ऐसा है जो पहले मेरे समस्त दुःखों का दाता था । अब नहीं के बराबर क्योंकि अब मुझे महसूस हुआ करता है कि गुरुदेव ,गायत्री माता ढाल लेके खड़ी हैं। इसमें भी उन परिवारों का कोई दोष नही क्योंकि अब मैं जान चुकी हूं कि यह सब हमारे कर्म बन्धन हैं जो लगता है कि अब बस चुकता ही होने वाले हैं ।
अभी मैंने uphesc असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा 51 के लिए आवेदन किया है। पिछली बार भी किया था लेकिन तब भी असफल रही।
कारण मेरी लापरवाही बिलकुल भी नहीं थी, पित्त की पथरी संग अनेक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थी ।अभी जांच नहीं कराया है लेकिन गुरुदेव की कृपा से अब लगभग मुक्त और बिलकुल स्वस्थ महसूस कर रही हूं । लेकिन इतने दिनो तक किताबों से प्रायः दूर होने से और अन्य अनेक कारणों से मन मस्तिष्क सुन्न सा लगता है। स्मृति तो बिलकुल ही क्षीण सी महसूस हो रही है।
जीवन की उलझनों में कुछ इस प्रकार उलझ गई थी कि मैंने घरवालों,बाहर वालों के साथ साथ खुद को ही समझाया की अब मैंने पढ़ाई लिखाई छोड़ दिया है। लेकिन और मन भी है जो कभी हारा नहीं,वह यह समझने को तैयार नहीं है। और मैं यह रोज ही खुद से बार बार कहती कि नही मुझे सफल होना ही है क्योंकि
सफलता बहुत ही सहज है बस अपना सर्वश्रेष्ठ देना है और ये पूरा संघर्ष इसी के लिए है ।
अभी परीक्षा में ईश्वरीय कृपा से अप्रत्याशित रूप से कुछ माह की देरी लग रही है,चाहती हूं रात दिन एक करके गुरुकृपा से सफलता प्राप्त करूं ताकि मेरे पति जो पिछले सताइस सालों से जंगलों में सिपाही की नौकरी में कठोर तप कर रहे हैं उन्हें थोड़ा आराम दे पाऊं और गुरु चरणों में उनकी भी प्रीत हो गई है तो वो भी कुछ साधना कर सकें अपना आत्म कल्याण कर सकें।
मेरी नन्ही सी मिट्ठी जो कुछ ही सालों में अगर ईश्वरीय इच्छा होगी तो आचार्य कुलम जाना चाहती है और वो बचपन से ही भाई और पिता के साथ के लिए ,प्यार के लिए तरसते तड़पते आई है,वह उस अपने पिता के साथ कुछ समय बिता सकें ।
मेरे छोटे भाई ,बहन जो सभी बीएड, बीटीसी, कर शिक्षण को अपना कैरियर बनाना हैं उनको भी प्रेरणा दे सकूं।
दोनों स्वर्गीय माताएं एक जन्म दायनी दूसरी सासू मां और मेरे दोनो पिता जिनकी गहरी अभिलाषा थी/है मेरी सफलता, उन्हें पूर्ण कर सकूं,
मेरे अनेक राष्ट्र वादी भाई बिना किसी स्वार्थ के ,दिन रात ,अपने अपने स्तर पर मेरे राष्ट्र को जगाने का सनातन संस्कृति के हित में काम कर रहे हैं जिनमे से “आपका अखबार, मनीष ठाकुर शो,जयपुर डायलॉग जैसे यू ट्यूब चैनल्स” प्रमुख हैं मैं इन्हें सहयोग देना चाहती हूं उसके लिए अर्थ चाहिए ।
और सबसे अधिक महत्वपूर्ण अभी तो मैं घर परिवार की किच-कीच और झिक-झिक में ही उलझी हुई एक समान्य घरेलू महिला हूं ऐसे में मैं कुछ कहूं तो
मेरे गुरु के बारे में कोई मेरी क्यों सुनेगा ।
इसलिए सफलता चाहिए ।ताकि मेरी बातों का मूल्य बढ़ जाए।
मैं नित्य ही ब्रह्म मुहूर्त से पहले उठती हूं,चाहती हूं कि फ्रेश होकर सबसे पहले जप ध्यान करूं क्योंकि यह मेरे जीवन में वैसा ही है जैसे मोबाइल को चार्ज करना,लेकिन इसके लिए भी मुझे संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि बिना अपने हिस्से का काम किए सुबह नहा धोकर मैं साधना करूं यह असम्भव नहीं तो उचित भी नहीं है और रात में काम निपटाना चाहूं तो उसे घर में एक जने अपसगुन मानती हैं ।तब क्या करती ?
ऐसे ही किसी दिन मेरे जीवन का अनमोल जागृत अवस्था का जो जप तप ध्यान में बिताना चाहिए वो ब्रह्म मुहूर्त झाड़ू पोछा में बीत जाता है तो हार कर किसी दिन बिना नहाएधोए ही धूप दीप,जप ध्यान में जुट जाती हूं ।
बस ऐसे ही चलते रहता है उस समय मेरी एक मात्र कामना यह होती है कि गुरुदेव मुझे मेरा अपना घर दीजिए जिससे मैं रात को सारा काम करके सोऊं और सुबह झट साधना कर सकूं ।।
अब हमेशा ही मेरे हृदय में भाव उठता है कि
कोई मुझ से पूछे कि कैसी हूं ?
तो मैं बांहे फैलाकर कहती हूं कि बस पूछिए मत ईश्वर की कृपा बरस रही है,जीवन सुख- शांति, सौभाग्य से, प्यार और अध्यात्म से पूर्ण हो गया है और मैं ऐसा ही कहती भी हूं । उस समय माहौल कुछ हंसी का हो जाता है जब कोई सास,जेठानी पैर छूने पर मुझे आशीष देती हैं की मेरी बीमारी ठीक हो जाए तब मैं हंसते हुए कहती हूं कि कौन सी बीमारी ? उसे तो मेरे गुरुदेव ने ठीक कर दिया होगा ,बस मुझे जांच करानी है।
तब वो लोगकहते है कि पूजा पाठ तो हम भी करते हैं लेकिन हमारे साथ तो ऐसी अनुभूति नही होती।
तो मैं उन्हें गायत्री माता और गुरुदेव के बारे में बताती हूं।
मैं जानती हूं और कहती भी हूं कि मेरे बाबूजी (ससुर)बस कुछ ही दिनों के मेहमान हैं फिर सबका अपना जीवन होगा इसलिए मुझे मेरा काम करने दो ,अपना जीवन लक्ष्य हासिल कर लेने दो लेकिन कोई रोकता भी नहीं, कोई छोड़ता भी नहीं ।
जीवन की इस यात्रा में इसी प्रकार से सफर कर रही हूं। लेकिन मैं खुश हूं,अपने आने वाले कल के लिए पूरी तरह निश्चिंत हूं क्योंकि मेरी मुट्ठी में गायत्री महा मंत्र रूपी परम मणि आ गई और जीवन रूपी बस की ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर के रूप में मेरे गुरुदेव खुद ही कमान संभाले हुए हैं।
अब जिसके नाथ महाकाल वो अनाथ कैसे होगा ।
गुरु सत्ता की कृपा
उनके होने की अनुभूति कुछ इस तरह से जीवन में रच बस गई है कि समझ नहीं पा रही हूं कि कहां से शुरू करूं? फिर अपने हृदय के गहरे भावों को उसी रूप में व्यक्त कर पाना भी तो मुझ जैसे के लिए सहज नहीं है। लेकिन गुरु कृपा से आज के ज्ञान प्रसाद निर्झर की चर्चा कर त्रिखा बाबूजी ने ही हमे प्रेरणा दिया कि आज की अनुभूति निर्झर और प्रभात आश्रम से जुड़ी वाली ही लिखें
जैसा कि कुछ दिन पहले ही गुरु प्रेरणा से कमेंट में मैने पांच साल पहले के कलह पूर्ण,नरकीय जीवन की कुछ झांकियां लिखा था ।तो मैं कलह से थक , हार कर मां गायत्री की कृपा से मैं अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने लिए वाराणसी में किराए पर रहने
आ गई ।यह जून 2018 की बात है।
इसके बाद मेरा बेटा बनारस में पढ़ने लगा और धीरे धीरे हमारा जीवन भी पटरी पर आ गया । तब मैं गुरुदेव को आज की तरह नही जानती थी। स्मार्ट फोन भी उसी रक्षा- बंधन पर भाई ने ही दिया तब गुरुदेव के बारे में यूट्यूब पर सर्च करते रहती थी लेकिन गायत्री मंत्र पर पूर्ण निष्ठा थी इसलिए कभी भी दिन हो या रात बिरात कभी भी उठकर गायत्री जपने लगती थी। सब कुछ सामान्य हो गया ।घर वालो का व्यवहार भी ।
तब एक दिन मेरा प्रारब्ध मुझे खोजते हुए मुझ तक आ पहुंचा।
छुट्टी का दिन था । बेटा बाहर पास ही में खेल रहा था और रोज की तरह ही मैं मिट्ठी बेटी को नहला कर कम्बल में लपेट दी और बोली की बेटा थोड़ी देर लेटे रहो मैं भी नहाकर आती हूं । मन में आया कि कपड़ों का ढेर लगा है,छुट्टी भी है धो लेती हूं लेकिन कुछ प्रेरणा सी महसूस हुई और मैं कपड़े छोड़ नहाकर बाहर आ गई। देखा मिट्ठी सो गई थी,सोचा नित्य की तरह ही गायत्री मंत्र जप कर लूं फिर प्रेरणा हुई कि नहीं पहले देख तो लूं की ये इतनी जल्दी सच में सो गई है या बहाने बनाई है । धीरे से कम्बल हटा कर चेहरा देखा तो होश उड़ गए I मिट्ठी दूध की बोतल की तरह “गुड नाईट लिक्विड” (Mosquito killer) चूसते हुए मुस्कुरा रही थी।। मेरी स्थिति कुछ भी कहने लायक नहीं है । मैने बेटे को चिल्लाया जो उस दिन संयोग से खेलने दूर नहीं गया था I हम दोनों मिट्ठी को लेकर पास के डाक्टर के पास गए जिन्होंने असमर्थता जताते हुए मना कर दिया। उस समय भी मुझे गुड नाईट के जहर के भयंकर परिणाम के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और मैंने रास्ते में
यूट्यूब पर ही इस से जुड़ी दुर्घटनाएं देखीं और डर गई।
रोते तड़पते हम मां-बेटे मिट्ठी को हॉस्पिटल ले गए जहां उसका इलाज शुरू हुआ। अंदर मेरी फूल सी बेटी वेंटीलेटर पर थी और हम अकेले मां- बेटे बाहर बैठे रो रहे थे ।तब मुझ बेसहारा बेबस मां को केवल गायत्री मां की याद आई और हमने रो- रो कर उन्हें पुकारा । मेरा आर्त हृदय मां को पुकारने लगा कि मां आप सब जानती हैं इससे पहले भी एक बेटे को खो चुकी हूं और किन परिस्थितियों में यहां अकेले जीती हूं। आप सब जानती हैं।अगर मिट्ठी को कुछ हुआ तो इस बार तो पति को भी मुंह दिखाने लायक नहीं बचूंगी । मेरा हृदय रोता तड़पता रहा था कि अगर मेरी बच्ची नहीं बची तो घर वाले, गांव वाले मुझे जीने नही देंगे और मैं मिट्ठी के बिना जी भी कैसे सकती हूं ? यह कहकर कि और रहो अकेले,काम करने से भागकर बनारस गई है, इसे तो आदत ही है बाहर रहने की ,घरवाले मुझे तिल तिल मारेंगे । मां मैं किस प्रकार यह दुख ,यह शोक सह सकूंगी ? नही, मैं तो कहीं दूर जंगलों में चली जाऊंगी,दर- दर की ठोकरें खाऊंगी, भीख मांगुगी पर पति को, परिवार वालों को मैं अपना अभागा मुंह नहीं दिखाऊंगी । फिर दूसरा मन कहता कि मेरे बेटे का क्या होगा ,पति तो नौकरी पर चले जायेंगे तो इसे कौन प्यार करेगा ,कौन इसकी देखभाल करेगा ? मां के रहते बिना दोष के ही यह मासूम बिना मां का हो जायेगा । हम मां-बेटे रोते रहे ,ऐसे में मेरा छोटा सा बेटा निर्झर मेरे किसी बड़े गार्जियन की तरह दौड़-दौड़ कर एटीएम कार्ड से बिल चुकाता,दवाएं लाता। जिसे देख कर सब हैरान थे ।
करुणा की सागर ममता भरी मां गायत्री ने मेरी आर्त पुकार सुन लीऔर मेरी बेटी को काल के क्रूर हाथों से छीनकर मेरे आंचल में डाल दिया।
शाम होते होते घर वाले भी आ गए थे।लेकिन दुर्भाग्य अभी पीछे हटने को तैयार नहीं था। अगले ही दिन हॉस्पिटल में ही एक मरीज के परिजन ने बताया कि उसकी बहन का नवजात शिशु तो रास्ते में ही दम तोड चुका था लेकिन इस डॉक्टर ने पैसे के लिए उसे वेंटीलेटर पर रखा था और लाखों का बिल बना दिया। तब मैं बहुत डर गई I मेरे आंखों के सामने कुछ ही दिन पहले पढ़ी फेसबुक की वो हृदय विदारक घटना आ गई जिसमे दिल्ली के एक बहुत बड़े हॉस्पिटल ने मामूली सर्दी बुखार के एक बच्चे को सिर्फ पैसों के लिए मृत्यु के मुंह में धकेल दिया था। मिट्ठी को उसकी जगह रख कर, देखकर मैं कांप गई । मेरी बच्ची जो एक दिन बाद खतरे से बाहर है क्या उसके साथ भी ऐसा संभव नहीं है? जब डॉक्टर ने कहा कि अभी दो तीन दिन बाद जहर फिर से असर दिखा सकता है तब मेरा डरा हुआ मन और घबरा गया।।
हम मिट्ठी को घर ले जाना चाहते थे लेकिन डॉक्टर नही छोड़ रहे थे । दो रात रुकने के बाद मेरे बहनोई ,देवर , भाई सब ने मिलकर कोशिश किया लेकिन फिर भी वह नही माने । तब मैं डॉक्टर के पैरों पर गिर पड़ी यह कहते हुए कि आपने मेरी बच्ची की जान बचाई मैं आपके इस उपकार का बदला उम्र भर नहीं चुका सकूंगी । जीवन भर आपको दुआ दूंगी लेकिन अब मुझे अब मुझे मेरी बच्ची को घर ले जाने दीजिए ।
डॉक्टर ने अनमने ढंग से डिस्चार्ज किया ।लेकिन जाने से पहले एक इंजेक्शन लगाने को बोले । मेरे भाई और खुद मेरा मन डर गया कि कोई भरोसा नहीं यह एक सुई क्या न कर दे। सो हमने नम्रता पूर्वक मना कर दिया और इस प्रकार मां गायत्री की कृपा से हम खुशी खुशी मिट्ठी को लेकर घर आ गए।
2019
बात 2019 की है जब हम लोग बनारस में ढल चुके थे ,सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन आर्य समाजी परिवार के संस्कारों के बीज अंकुरित होने लगे ।बेटा अंग्रेजी माध्यम से पढ़ता था जैसा कि आजकल यह बिलकुल सामान्य लेकिन जरूरी बात है, लेकिन मेरा मन तड़पता था कि अंग्रेजी पढ़कर यह अपने देश की सनातन संस्कृति को कैसे जानेगा ?और जब जानेगा ही नहीं तो उसकी रक्षा क्या करेगा।? क्योंकि हमारे सनातन संस्कृति की समस्त धरोहर तो संस्कृत भाषा में है ।
फिर आस-पास इंग्लिश शिक्षा से पढ़े बच्चो की दयनीय मानसिक स्थिति को देखकर मैं सोचने लगी कि हम भी तो वही कर रहे हैं। अंग्रेजी के भूत और मां- बाप की सोच ने, किस प्रकार हमारे मासूम बच्चों को बाहरी दुनिया से काट कर किताबी कीड़ा बना दिया है और उस पर भी हासिल कुछ नहीं। ऐसे ही मन में बवंडर उठते रहे । दूसरी बात अर्थ से जुड़ी थी। किराए पर रहते हुए खर्च देखकर यकीन हो गया कि ऐसे किराए पर रहते हुए तो अपने घर का सपना पूरा नहीं हो पाएगा । फिर कब तक ऐसे अकेले किराए के छोटे से, गर्मियों में आग तपते मकान में जीवन गुजारेंगे ?
तब कोई भी राह नही सुझती।
ऐसी स्थिति में मैने मां गायत्री से प्रार्थना किया कि मां मैं यहां अकेले नहीं रहना चाहती लेकिन कितनी बार बेटे का स्कूल बदलूं ? फिर घर वाले क्या व्यंग्य करेंगे सोच कर उदास हो जाती थी। मां से कहती मां मुझे सम्मान जनक स्थिति में अपने घर पहुंचा दो।
तब संयोग से मे पता चला कि “प्रभात आश्रम” में एडमिशन शुरू होने ही वाला है और वो लोग दस साल के ही बच्चों को लेते हैं। लेकिन उसके नियम बहुत कठोर हैं जिसमे सबसे प्रमुख है कि छठवीं के बाद सात सालों तक इंटर पास करने तक बच्चा घर नहीं आ सकेगा । बहुत कठिन स्थिति थी निर्झर तो तैयार था लेकिन मुझे अपनी ममता को समझना और परिवार वालो को भी समझाना कठिन था।
विचार आता कि मेरी जेठ के बच्चों की शादियां होनी है अगर निर्झर नहीं आएगा तो कैसे जीने देंगे सब । इसके दादा दादी कैसे तैयार होंगे? इसके पापा कैसे मानेंगे? इन्ही प्रश्नों से जूझते हुए ,सबको समझाते हुए राजू ( ambrish अन्य गुरुकुल में अध्ययन कर चुका मेरा छोटा भाई ) के साथ जनरल डब्बा में बहुत ही कष्टदायक यात्रा करके चार दिन चलने वाली प्रवेश परीक्षा अंतिम दिन किसी प्रकार मेरठ पहुंचे ।
आश्रम का दिव्य वातावरण , वहां के बच्चों के शिष्टाचार ने बहुत प्रभावित किया। लेकिन प्रतिभा के बावजूद बहुत दिनो से पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण निर्झर प्रवेश परीक्षा में असफल हो गया।
हम लोग दिल्ली में किसी के घर रुके थे वहां लौट गए । हम सबका मन उदासी और द्वंद्व से भरा था ,राजू का मन एडमिशन न होने से एक तरफ जहां उदास था तो वही यह सोच कर खुश भी था की मिट्ठी निर्झर भाई बहन जिनमे असीम प्रेम है एक दूसरे से अब दूर नहीं होंगे । निर्झर के दुख का कारण गुरुकुल से ज्यादा उसमें सिखाए जाने वाले धनुर्विद्या के लिए था ।
मेरा बच्चा पूरी रात रोते रहा ।
पूरी रात मन में विचारों का बवंडर मचा रहा ।क्या करें ? क्या उपाय है।? तभी प्रवेश पुस्तिका की एक पंक्ति जिसमे लगभग यही लिखा था कि लिखित परीक्षा पास कर लेना,मात्र प्रवेश की गारंटी नहीं है क्योंकि अंतिम निर्णय आश्रम के अधिपति महान संत स्वामी जी, स्वामी विवेकानंद जी द्वारा लिया जाएगा।इस पंक्ति से
हमें राह सूझी:
एक तो वहां कोई सिफारिस , सोर्स नही चलता है , और दूसरे मेरे लिए दिल्ली से मेरठ आश्रम तक की बस से यात्रा बहुत कष्ट पूर्ण थी, फिर भी दिल्ली से वापस बनारस लौटने से पहले एक बार स्वामी जी से मिलकर फिर से टेस्ट लेने की प्रार्थना करने का फैसला करके हम लोग आश्रम गए । फिर बहुत कोशिश करने पर अन्य भक्तो की भांति दर्शन के दौरान मैंने स्वामी जी से निर्झर को एक और मौका देने की प्रार्थना किया । पहले तो कुछ सुनने से ही मना कर दिया गया लेकिन फिर ईश्वरीय प्रेरणा और संत प्रवृति के कारण स्वामी जी ने निर्झर को पास बुलाया ।अनेक प्रश्न पूछे जिसमे एक था की मेरठ किस चीज के लिए प्रसिद्ध है जिसका जवाब निर्झर नही दे पाया और हम निराश लौट आए ।उसके बाद हम लोग बनारस अपने जीवन में फिर से रम गए। न जाने क्यों निर्झर पहले से कुछ शांत हो गया,पढ़ाई में भी मन लगाने लगा।। हम सब खुश थे । लेकिन गुरुकुल जाने की उसकी इच्छा जिंदा थी और मेरा मन उसे भेजना नहीं चाहता था। हम दोनों मां गायत्री पर फैसला छोड़ दिए थे। इसी बीच राजू ने बताया कि उसे पता चला है कि दो बच्चे आश्रम के कठोर जीवन को सह नहीं पाए और घर चले गए हैं तो उनकी सीट खाली हो गई है।।तो
कुछ चमत्कार भी हो सकता है।
मैं निर्झर के लिए स्लेबस से बाहर की बहुत सी अच्छी किताबें देती थी और जिन्हे वो पढ़ता भी था। एक बार (12 सितंबर 2019 को) मुगलसराय स्टेशन के बुक स्टाल वाले भैया जो हमे पहचान गए थे अपनी पसंद से जोसेफ मर्फी की पुस्तक “अवचेतन मन की शक्ति ” दिए उसे पढ़ने के बाद मैने निर्झर को दिया और कहा कि यह लो और मन की शक्ति से तुम अपने गुरुकुल जाने की इच्छा को पूरी कर लो। कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन दुपहर में जब मै जप कर रही थी,तभी आश्रम से फोन आया कि वेटिंग लिस्ट में निर्झर का नाम आया है लेकिन उसके लिए एक बार फिर से आश्रम लाना होगा और पुनः परीक्षा भी देनी होगी। अचानक से मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन फिर सहज होकर मैंने कहा निर्झर के अर्ध वार्षिक परीक्षा बाद 26 सितम्बर बाद ले आऊंगी ।मैं कुछ उदास हो गई औरनिर्झर तो मारे खुशी से उछल-उछल कर नाचने लगा। ईश्वरीय इच्छा सोच कर और निर्झर की खुशी और अच्छे भविष्य के लिए हम लोग एक बार फिर से आश्रम आए । इस बार मुझे स्वामी जी के व्यवहार में संत सी आत्मीयता महसूस हुई । स्वामी जी लगभग घंटे भर निर्झर के विवेक की, बोध की, क्षमताओं की परख करते रहे अंत में निर्णय आया कि बच्चा बहुत ही प्रतिभाशाली है लेकिन बहुत अधिक चंचल होने से अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
यह तो मैं जानती ही थी क्योंकि उसके बचपन से ही मैं महसूस करती आई थी कि वह लाखों बच्चों से भी अधिक चंचल है (उद्दंड नही) जिस कारण बचपन में उसकी पिटाई भी बहुत हुई थी । खैर यह तो अलग बात है।तो हमे बताया गया कि उसका एडमिशन किया जा रहा है लेकिन एक महीने तक बच्चे के बुद्धि ,विवेक और आचरण को परखने के बाद ही अंतिम रूप से हां कहा जायेगा ।इस प्रकार शाम से रातहो गई थी और रुकने की कोई व्यवस्था नहीं होने से जल्दी-जल्दी जितना हो सका उसके जरूरत की चीजे खरीद कर,नामांकन दाखिल कर हम लोग दिल्ली चले गए ।मुझे अच्छे से स्मरण है वह नव रात्रि का प्रथम दिवस था ।
दिल्ली लौटते हुए हम तीनों मैं, मिट्ठी और राजू उदास बस चले आ रहे थे। मिट्ठी रोती रही, मेरा हृदय ऐसा चीत्कार मरता कि मन करता उल्टे पांव आश्रम लौट कर निर्झर को साथ ले चलें लेकिन चलते गए,आंसू पीते हुए। अगले दिन रात्रि में जिनके घर रुके थे उन अम्मा ने हम लोगो को नवमी मेला दिखाने ले गई । इतना बड़ा मेला मैने नही देखा था ।भीड़ में सब लोग हंसते झूमते घूम रहे थे और मेरी आंखे हर तरफ निर्झर को खोजती ।
मेरी आंखे देखती कि इतना बड़ा मेला देखकर निर्झर किस प्रकार उछलता कूदता ।किस प्रकार डायनासोर वाली ट्रेन पर बैठता,कैसे झूला झूलता ।
मेरा हृदय तड़पता रहा था। सोचती अब तो आश्रम में उसकी लंबी आयु पीले धोती कुर्ता में बीत जाएगी अब
मैं उसके लिए सुंदर कपड़े कैसे खरीदूंगी? मेरे बच्चे का तो पूरा शौक ही खत्म हो जाएगा और उसकी प्यारी चंचलता ? जब आठ साल बाद कठोर तपस्या से निकल कर वह घर आएगा तो क्या उसकी चंचलता बनी रहेगी ? तब तक तो वह बहुत बड़ा हो जायेगा तो मेरे गोद में कैसे सोएगा । मां,बाप, बहन ,परिवार से दूर रहकर हम लोगों की तरफ से उसका हृदय विमुख भी तो हो सकता है और दो साल की मिट्ठी तो रोते हुए मुझसे लड़ती भी की क्यों मेरे भाई को गुरुकुल भेजी ?
अब मेरे साथ कौन खेलेगा ?
ऐसी स्थिति में मां गायत्री को पुकारते हुए जैसे तैसे एक महीना बिता और आश्रम से सकारात्मक संदेश आया । निर्झर ने अपने व्यवहार से अपनी प्रतिभा से स्वामी जी का हृदय जीत लिया था और इस प्रकार
मां गायत्री ने मुझे किराए के घर से अपने घर लौटने का सम्मानजनक रास्ता दिखाया । सिर्फ दिखाया ही नहीं बल्कि मेरा हाथ थाम कर उस राह की चुनौतियों से पार भी लगाया ।
हां वापस घर आकर सबके पूछने पर मेरा एक ही उत्तर होता था जो मात्र एक उत्तर नही मेरे हृदय का सच्चा भाव भी था कि
जो परमपिता परमेश्वर उसकी यहां रक्षा करते वही परमपिता उसकी वहां भी रक्षा करेंगे।। जीव की अपनी- अपनी यात्रा अपने अपने कर्म होते हैं उसी अनुसार उसके भाग्य होते हैं हम मां बेटे का भाग्य यही है
मैने उसे नही भेजा है ।उसे स्वयं परमात्मा ने चुना है तप के लिए।क्योंकि जो जितना कठोर तपस्या करेगा वो उतना ही अधिक चमकेगा …….
और जाते हुए मैने निर्झर से वादा किया कि इन सात सालों में मैं भी तप करूंगी तुम्हारे कल्याण के लिए तुम्हारी रक्षा के लिए
,गायत्री जप रूपी तप ।।।।।।।।
और मैं नित्य प्रार्थना करती हूं की गुरुदेव, मां गायत्री, आश्रम के सभी बच्चों की ,सहयोगियों की और स्वामी जी रक्षा करें।सबकी
जय गुरुदेव जय गुरु मां जय मां गायत्री