आज का यह स्पेशल सेगमेंट अन्य वीकेंड सेगमेंट से और भी बहुत स्पेशल और लोकप्रिय होने वाला है क्योंकि पिछले दो दिनों का रिपोर्ट कार्ड ही तो अपने समर्पित सहकर्मियों के समक्ष प्रस्तुत करना है।
आज का सेगमेंट आरम्भ करने से पहले ही हम अपने सहकर्मियों से करबद्ध निवेदन करते हैं कि आज हम अपने ह्रदय में उठ रही भावनाओं को खुल कर आपके समक्ष प्रकट करने का प्रयास करेंगें, ऐसी भावनाएं जो किसी व्यक्ति विशेष के लिए केंद्रित नहीं हैं बल्कि general सी हैं।
हमारे सहकर्मी ही हैं जो इस सेगमेंट को लोकप्रिय बनाने में सहयोग देते हैं जिसके लिए हम आपका जितना भी धन्यवाद् करें कम है।अपने सहकर्मियों द्वारा पोस्ट की गयीं सभी contributions ही हैं जिन्होंने इस स्पेशल सेगमेंट को “सबसे लोकप्रिय” की संज्ञा देने में योगदान दिया है। आज भी उन्ही के सहयोग से यह सेगमेंट लिख रहे हैं। हमारा सदैव यही उद्देश्य रहा है कि इस छोटे से समर्पित परिवार के समस्त योगदान एक dialogue की भांति हों, एक वार्तालाप की भांति हों ताकि एक “संपर्क साधना”, communication process, के द्वारा इसे lively बनाया जाए। थोड़े से प्रयास से ही हमें जो सफलता प्राप्त हुई है उसे आप स्वयं ही देख रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं कि अपनी अनुकम्पा सदैव हम पर बरसाते रहें ताकि हम और भी अधिक प्रगति कर सकें। आज तक की प्रगति का श्रेय हम अपने गुरु को देते हैं जिन्होंने आप जैसी दिव्य आत्माओं को, हीरों को चुन-चुन कर हम जैसे निर्धन की झोली में डाल दिया और हम इन हीरों को एक समर्पण की माला में पिरोने में सदैव प्रयासरत रहते हैं। हमें तो बार-बार सन्देश मिलते रहे कि आपका काम पोस्ट करना है, कोई पढ़े या न पढ़े ,कोई देखे या न देखे , कोई सुने या न सुने, यह track करना असम्भव है, लेकिन हमारे गुरु ने इस असम्भव को संभव कर दिखाया। आज की परिस्थिति ऐसी है कि छोटे से छोटा कमेंट, छोटे से छोटा योगदान भी हमारी दृष्टि से, अंतःकरण से ओझल नहीं हो सकता।
संपर्क स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए परम पूज्य ने दो दिन पहले एक ऐसा परीक्षा-पत्र हमारे हाथ में थमा दिया जो हमारे लिए सच में out of syllabus था। इतना ही नहीं, गुरुदेव ने इस परीक्षा के लिए कोई पूर्व सूचना भी न दी थी। हमें तो अपने विद्यार्थी जीवन के कठिन दिन स्मरण हो आये जब हमारे हेडमास्टर पिताजी surprise test देते थे, surprise test का नाम सुनकर हमारे ह्रदय की गति तो अवश्य ही तेज़ हो जाती थी लेकिन बहुत आश्चर्य की बात है कि हम ऐसी परीक्षा में में टॉप पर ही रहते थे, क्लास के समर्पित और परिश्रमी विद्यार्थी जो ठहरे ( यह कोई self -praise नहीं है ,पूर्णतया सत्य है)
गुरुदेव द्वारा दी गयी परीक्षा में भी हमारा रिजल्ट ऐसा ही रहा है। आइए देखें,आखिर हुआ क्या था :
हमारे समयानुसार हम प्रतिदिन 4:30 बजे शाम को ज्ञानप्रसाद पोस्ट करते हैं, जो भारतीय समयानुसार early morning 3:00 बजे आपके पास डिलीवर हो जाता है। अलग अलग देशों में उनके समयानुसार ही मिलता है। 5 घंटे उपरांत रात 9:30 बजे जब हम अपने सहकर्मियों के कमैंट्स देख रहे थे, उनके रिप्लाई कर रहे थे तो अचानक दृष्टि पड़ी कि हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप disappear है। न कोई सहकर्मी, न कोई पोस्ट और कुछ भी नहीं। हमने यह ऐसे समय में नोटिस किया जब कुछ ही घंटों बाद हमारा सोने का समय होता है। गुरुदेव से प्रार्थना कर रहे थे कि यह कैसे हो गया, गुरुदेव, कोई तो रास्ता दिखाइए, गुरुदेव, जिन सहकर्मियों में हमारे प्राण बस्ते हैं उनसे संपर्क के बिना हम सारी रात कैसे गुज़ारेंगे, नींद तो आएगी नहीं। जीवन में जब भी अपने गुरु का स्मरण किया है वह हमारी सहयता के लिए दौड़े चले आये हैं। उन्होंने एक पथ प्रदर्शक की भांति भटके हुए पथिक का एक दम मार्गदर्शन किया और एक नए ग्रुप का जन्म हो गया।
इस नए ग्रुप के जन्म से जो ज्ञान प्राप्त हुआ और मार्गदर्शन मिला, आप सभी ने देख लिया। शायद गुरुदेव ने यह परीक्षा इसीलिए ली कि हम वोह तथ्य जान सकें जिनका ज्ञान परीक्षा दिए बिना संभव ही नहीं था। इन दो दिनों में हम सभी को समझाने का प्रयास करते रहे कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की कार्य प्रणाली क्या है ,हमारे परिवार में मानवीय मूल्यों के पालन का क्या स्थान है लेकिन अधिकतर परिजनों का प्रयास यही था कि हम अधिक से अधिक “अपना” ( जो उनका था ही नहीं) कंटेंट शेयर कर दें ,अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच कर वायरल बन जाएँ । अगले दिन हमारे समयानुसार 9:30 प्रातः ( जब भारत में रात 8:00 बजे होते हैं) हमने शुभरात्रि सन्देश भी पोस्ट किया लेकिन उसे केवल उन्ही समर्पित सहकर्मियों ने देखा जो पहले से ही देखते आ रहे थे; जो नए लोग धड़ाधड़ जुड़ रहे थे उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था, वह केवल कहीं से भी प्राप्त posts को forward किये जा रहे थे, बिना किसी इंटरेस्ट के कि कोई इन्हे देख भी रहा है कि नहीं। बहुत से लोग इस स्थिति से दुःखी होकर छोड़ भी रहे थे। लगभग 12 लोगों ने इस नए ग्रुप को छोड़ा लेकिन इन में से अधिकतर हमारे पहले वाले ग्रुप में जुड़े थे, उनका विचार था कि दो groups में जुड़ने का क्या औचित्य? यह तथ्य मसूरी इंटरनेशनल स्कूल की आदरणीय अंजू बहिन जी के मैसेज से clear होगा जिसमें उन्होंने लिखा कि मेरे फ़ोन की गैलरी भर जाती है इसलिए मैं इस ग्रुप में ज्वाइन नहीं कर सकती।
हमारा मूल्यांकन और गुरुदेव का मार्गदर्शन साथ साथ चलता रहा, हमें विश्वास था कि कोई न कोई सार्थक विकल्प निकल ही आएगा। गुरुदेव तो हर क्षण यही कह रहे हैं “तू मेरा कार्य कर बाकि सब मुझ पर छोड़ दे।”
नए ग्रुप की भागदौड़ ने इतनी अस्तव्यस्तता पैदा कर दी कि हमारे दोनों प्रयास( शुभरात्रि सन्देश और ज्ञानप्रसाद) dustbin में ही पड़ते दिखे। दो दिनों के दैनिक ज्ञानप्रसाद में कमैंट्स की संख्या लगभग 600 से गिर कर 300 तक पहुँच गयी और संकल्प सूची सिकुड़ कर लगभग 12 से 4 तक आ गयी। कल अपलोड हुई महाशिवरात्रि वाली वीडियो को केवल 245 views और 113 कमेंट मिलने, क्या यह हमारे गुरु का अपमान नहीं है ? क्या यह स्थिति हमें स्वीकार्य हो सकती है ? कदापि नहीं। हमारे लिए तो यह आत्महत्या जैसी स्थिति हो सकती है।
वर्तमान युग की यह पहचान बन चुकी है कि हम अधिक से अधिक सोशल मीडिया साइट्स पर सक्रीय हों, विज्ञापनबाजी के तंत्र को अपनाएं ताकि हमारी वाहवाही हो, लेकिन हम उस गुरु के शिष्य हैं जिन्होंने आज 100 वर्ष बाद भी बिना किसी विज्ञापन के अखंड ज्योति पत्रिका को परिजनों के हृदयों में वास करवाया है। इसका एक ही कारण है – मानवीय मूल्य जिन्हें हम बार- बार तोते की भांति रटते रहते हैं।
हमारा परिवार बहुत ही समर्पित सहकर्मियों का जमावड़ा है जिन्होंने इस दुविधा की घड़ी में हमारा साथ दिया, हमारा मार्गदर्शन किया। ऐसे ही कुछ सहकर्मियों के सुझाव आपके समक्ष रख रहे हैं।
1.Hare Krishna Vishwajit जी लिखते हैं :
जय गुरुदेव, प्रिय परिजन Dr Arun Trikha जी नये whatsapp group पर अपना review दे रहा हूँ । इस group के setting में एक change करें । ” only admin can send messages to this group “-
because useless messages oftenly keep coming in this group, If every member of our Gayatri pariwar say hello, then whole day goes for reading about these messages. If anyone wants to give some advice to you, then he will message you personally.
2.बहिन सुमनलता जी ने भी इसी तरह का सुझाव दिया था :
व्हाट्सएप ग्रुप के लिए धन्यवाद।आपसे एक निवेदन करना चाहती हूं यदि आप सहमत हों और ग्रुप के किसी सदस्य को कोई आपत्ति भी ना हो, आप शुभ रात्रि संदेश ग्रुप पर ही भेज दिया करें। एक ग्रुप पर,दूसरा यूट्यूब पर,पर्याप्त है।व्यक्तिगत वाले को विशेष संदेश के लिए ही प्रयोग किया जाए तो उचित होगा।आगे जैसा आप विचार करें,
हम उसका सम्मान करेंगे।जो हमें उचित लगा ,निवेदन कर दिया।अतिरिक्त समय की भी बचत हो जाएगी आपके।
3. बहिन रेणु श्रीवास्तव जी ने लिखा कि लगता हैं हमारे सहयोगियों का नये whatsapp group में व्यस्तता बढने के कारण ध्यान कम हो गया है। कृपया इधर भी ध्यान दें, यही आग्रह है।जयगुरूदेव।
4. इसी तरह संजय जी और स्वाति जी जो यहाँ कनाडा के ही निवासी है,उन्होंने फ़ोन करके यही सुझाव दिया कि व्हाट्सप्प ग्रुप को ओपन करने का अर्थ होता है सभी के लिए उपलब्ध, एक तरह से भीड़ इक्क्ठी करना,हम भीड़ तो इक्क्ठी नहीं कर रहे हैं। हमें ऐसे लोगों से संपर्क करना चाहिए जो गुरुदेव का साहित्य पढ़ें, समझें, औरों को पढ़ाएं और समझाएं। जो जानकारी हमने उन्हें दी वह आपके साथ भी शेयर कर रहे हैं ,सभी के लिए लाभदायक हो सकती : ज्ञानप्रसाद लेखों को पढ़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहला स्रोत है, हमारी वेबसाइट, दूसरा है यूट्यूब का कम्युनिटी सेक्शन। व्हाट्सप्प तो है ही लेकिन इस प्रकार का गतिरोध आ जाए तो सब उड़ जाता है।
स्वाति जी से क्षमाप्रार्थी हैं किव्यस्तता के कारण इधर कनाडा में सम्पन्न हुए रुद्राभिषेक की वीडियोस आज के ज्ञानप्रसाद में शेयर करने में असमर्थ हैं। बहिन जी की प्रतिभा आपके समक्ष शीघ्र ही प्रस्तुत करेंगें।
और भी अनेकों सुझाव आए, सभी को यहाँ पेस्ट करना संभव नहीं है। इन सुझावों का सम्मान करते हुए जब हमनें settings को चेंज किया तो जो सबसे पहली प्रतिक्रिया आयी वह शायद आप सबने देख ली। हम इसके बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहेंगें क्योंकि हमारी upbringing, वर्षों की शिक्षा ( और विद्या ) एवं मानवीय मूल्य आड़े आ जाते हैं।
धन्य हैं हमारे गुरुदेव जिन्होंने सदैव गिरों को उठाने का बीड़ा उठाया हुआ है, हम भी तो ठोकरें खाते, गिरते-उठते उनके मार्गदर्शन में अपनी समर्था के अनुसार जो कुछ बन पा सकता है आपके समक्ष प्रस्तुत किये जा रहे हैं और आप उसे सम्मान देकर हमें कृतार्थ किये जा रहे हैं, कैसे उतारेंगे आपका ऋण, हमें कुछ भी मालूम नहीं । हमें ऐसे सहकर्मी चाहिए जो हमारे साथ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ गुरुकार्य में साथ दें, न कि ऐसे मौकापरस्त जिन्हें केवल अपनी TRP की ही चिंता हो, जो धड़ाधड़ अपनी ही कहे जाएँ, केवल शेयर और फॉरवर्ड करते जाएँ बिना सोचे समझे कि हम क्या कर रहे हैं।
हमें अपनी flattery तो कभी भी पसंद नहीं आई लेकिन अनिल मिश्रा जी का निम्लिखित कमेंट अवश्य आप सबके समक्ष रखना चाहेंगें :
भाई जी! आपको सादर प्रणाम है, आप सतत् गुरु-चेतना से प्राप्त आशीष व स्नेह का वितरण करते रहें. गुरुदेव कहते थे कि बेटा! हाथी🐘 का बेटा हाथी होता है……वजन हाथी पर हाथी के बराबर ही लादा जाता है,बैल🐂 के ऊपर बैल के लायक वजन लादा जाता है.
तो! हमें लगता है कि आप पर गुरुदेव ने हाथी के बराबर वजन लाद दिया है…. अन्यथा इतने लोगों के लिए आत्मीयता,,,,,,हृदय से बहाते रहना एक बहुत कठिन परीक्षा जैसा होता है.
गुरुदेव-माताजी सतत् आपका पोषण करते रहें🙏जय गुरुदेव🙏
इस गतिरोध में गुरुदेव ने हमारा मार्गदर्शन करते हुए यही निर्देश दिया है कि एक ही व्हाट्सअप ग्रुप जिसे ब्रॉडकास्ट लिस्ट कहते हैं, रखा जाए, उसमें केवल समर्पित साधकों की ही एंट्री सुनिश्चित की जाए और जो असली मायनों में गुरु का शिष्य हो उसका समर्थन किया जाए। हम गुरुदेव के बहुत ही आभारी हैं जिन्होंने इस तरह की स्थिति create करके साधकों (so called ) की असलियत से हम सबको अवगत करते हुए सावधान कर दिया। इस स्थिति ने हमें बहुत कुछ सीखने को दिया। हम सोमवार को जो ज्ञानप्रसाद लेख प्रस्तुत करेंगें उसका शीषक “क्या कभी हमने अपनेआप को जानने का प्रयास किया है” और भी बहुत कुछ कह जायेगा। अखंड ज्योति पत्रिका जिसका एक-एक शब्द हमारे लिए अमृततुल्य है इस लेख का आधार है।
तो यही है आज का यह स्पेशल सेगेमेंट ज्ञानप्रसाद लेकिन इसका समापन करने से पूर्व हमारी समर्पित बहिन प्रेमशीला मिश्रा जी के बेटे और बहुरानी को उनकी विवाह वर्षगांठ पर बधाई दे दें। उनकी वर्षगांठ तो कल थी लेकिन सूचना लेट मिलने के कारण belated happy marriage anniversary भी तो हो सकती है।
आज की संकल्प सूची और भी सिकुड़ गयी है। केवल दो ही समर्पित सहकर्मी सुजाता उपाध्याय और संध्या कुमार संकल्प पूरा कर सके हैं और दोनों ही गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
अंत में केवल इतना ही कहेंगें कि हमने व्हाट्सप्प ग्रुप का original नाम Gayatri Pariwar Dr Arun Trikha रख दिया है जो एक ब्रॉडकास्ट ग्रुप है। आप उसे ठीक उसी तरह हैंडल कर सकते हैं जैसे पहले करते आ रहे थे।
सभी सहकर्मियों से निवेदन है कि अगर कोई और बेहतर “नाम” सुझाना चाहे तो उसका स्वागत है।
जय गुरुदेव