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क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ? -पार्ट 2 

17 मार्च 2022 का ज्ञानप्रसाद – क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ? -पार्ट 2 

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ऑनलाइन ज्ञानरथ के स्तम्भ – शिष्टाचार, आदर, सम्मान, श्रद्धा, समर्पण, सहकारिता, सहानुभूति, सद्भावना, अनुशासन, निष्ठा, विश्वास, आस्था, प्रेम, स्नेह, नियमितता 

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 “क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ?” शीर्षक से 15 मार्च को आरम्भ हुई दिव्य लेख श्रृंखला का आज द्वितीय भाग प्रस्तुत है। इस भाग में शामिल करने के लिए हमें एक HD वीडियो मिली जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हम सच में ही इस दुर्लभ,कठिन क्षेत्र में रमण कर रहे हैं। हमारे पाठक भी अगर ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करते हुए इस वीडियो को देखें तो बहुत ही आत्मिक सहनति का आभास होने वाला है। दिसंबर 1960 की अखंड ज्योति पर आधारित इन लेखों की श्रृंखला की विशेषता यह है कि इतना विस्तृत विवरण कहीं और मिलना लगभग असंभव ही है। एक और विशेषता जो हमने अखंड ज्योति के अध्यन से नोटिस की कि परमपूज्य गुरुदेव दिव्य स्थानों का विवरण देते हुए अपने बारे में भी बता रहे हैं। यह बात आज तो शायद नोटिस न हो,कल वाले लेख में पाठक देखेंगें कि गुरुदेव के अंदर उठ रहे भावना,साहस ,व्यवहारिकता ,अंतरात्मा और बुद्धि के अंतर्द्वद्व का किस प्रकार निवारण किया था। यह स्थिति हम सबको मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है। इसलिए इन लेखों को एक continuous series की भांति पढ़ने की आवश्यकता है। 

आइये अब ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें :

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महाभारत मे पाण्डवों के स्वर्गारोहण का विस्तारपूर्वक वर्णन है। स्वर्ग जाने के लिए द्रौपदी समेत पाँच पाण्डव हिमालय में गये थे । अन्य सब तो बीच में ही शरीर त्यागते गये और युधिष्ठिर सशरीर सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने में समर्थ रहे । इन्द्र का विमान उन्हें स्वर्ग को ले गया है। यह स्वर्गारोहण स्थान सुमेरु पर्वत के समीप ही है। आगे चलने से पहले आइये सुमेरु पर्वत के बारे में जान लें। 

 “सुमेरु पर्वत का अस्तित्व और उस पर देवताओं का वास।”

दुनिया भर में अलग-अलग धर्मों का अस्तित्व मौजूद है। जाहिर तौर पर इन सभी धर्मों की मान्यताएं भी अलग हैं। लेकिन एक मान्यता है, जिसे दुनिया का हर धर्म स्वीकारता है। वह है “सुमेरु पर्वत का अस्तित्व और उस पर देवताओं का वास।” मानव और विज्ञान के लिए इस अनसुलझी पहेली जैसे पर्वत का वर्णन लगभग हर धर्मग्रन्थ में मिलता है। आप भी जानें इसकी खूबियां। 

धर्मग्रंथों में सुमेरु पर्वत जिसे मेरु पर्वत भी कहा जाता है, का जिक्र एक ऐसे पर्वत के तौर पर मिलता है जो सोने के समान चमकीले रंग का है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में मेरु पर्वत को अलौकिक पर्वत की संज्ञा दी गई है। अलौकिक का इंग्लिश में अनुवाद करें तो supernatural होता है जिसका अर्थ है नेचर य प्रकृति से भी ऊपर। इसी तथ्य को आधार मानते हुए इसे सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा समेत समस्त देवी-देवताओं का स्थान कहा गया है। हिंदू धर्म के Astronomy के सुप्रसिद्ध ग्रंथ कहे जानेवाले ‘सूर्य सिद्धांत’ के अनुसार, यह पर्वत पृथ्वी की नाभि पर स्थित है। मत्स्य पुराण और भागवत पुराण में इसकी ऊंचाई 84000 योजन बताई गई है जो धरती के कुल व्यास से करीब 85 गुणा है। कूर्म पुराण में बताया गया है कि जंबूद्वीप के मध्य में एक सुनहरा पर्वत स्थित है। 

जंबूद्वीप की चर्चा हम किसी और लेख तक स्थगित करना चाहेगें क्योंकि यह एक अलग ही विषय है। उस पर चर्चा करने का अर्थ अपने लक्ष्य से भटकना होगा।

 विष्णु पुराण के अनुसार, रात्रि के समय सूर्य के अस्त हो जाने पर यह पर्वत तेज अग्नि में प्रविष्ट हो जाता है और यह रात्रि में दूर से ही प्रकाशित होता है। जावा द्वीप (इंडोनेशिया) में प्रचलित लोक कथाओं में भी मेरु पर्वत का जिक्र “देव शक्तियों के घर” के रूप में मिलता है। यहां की प्राचीन पांडुलिपियों में जावा द्वीप की उत्पत्ति और मेरु पर्वत के कुछ हिस्सों को जावा द्वीप से क्यों जोड़ा गया, इसका रहस्य बताया गया है। इनके अनुसार, बतारा गुरु जो इंडोनेशिया हिन्दू धर्म के सर्वोच्च देवता का नाम है और जिन्हे वहां के लोग भगवान शिव ही मानते हैं, भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को यह आदेश दिया कि वह इस द्वीप पर मनुष्य को जन्म दें। क्योंकि उस समय जावा द्वीप हर समय हिलता और समुद्र में तैरता रहता था इसलिए ऐसे में वहां मानव जीवन सुरक्षित नहीं था। तब ब्रह्मा और विष्णु ने मेरु पर्वत के एक भाग को जंबूद्वीप से ले जाकर उसे जावा द्वीप से जोड़ दिया। ईसाई धर्म में सैंटा क्लॉज का निवास स्थान भी धरती के उत्तरी ध्रुव ऑलिम्पस या मेरु पर्वत को माना जाता है। मान्यता है कि क्रिसमस के दिन सैंटा यहीं से धरती पर आते हैं और लोगों को खुशियों का उपहार देकर लौट जाते हैं। चीनी और जापानी धार्मिक मान्यताओं में ईश्वर का स्थान ध्रुव तारे के ठीक नीचे और धरती के बीचोबीच माना जाता है। सुमेरु पर्वत भी धरती के मध्य में स्थित है। अगर हम पृथ्वी के मध्य का अनुमान लगाना चाहें तो भूमध्य रेखा ही एकमात्र tool है। भूमध्य रेखा कन्याकुंवारी से बिल्कुल ही पास है। 

बहुत समय से हम सुमेरु पर्वत पर स्टडी कर रहे हैं और तरह तरह के claim उजागर हुए हैं। एक जगह तो इस दिव्य पर्वत को तंज़ानिया अफ्रीका में भी बताया गया है। अगर ऊपर दी गयी dimensions को आधार माना जाये तो शायद यह ठीक ही हो। यह सब हमारे पुरातन ग्रंथों पर ही आधारित है तभी तो अक्सर कहा जाता है – when science fails, spirituality comes into play. 

तो आइये सुमेरु पर्वत के इस छोटे से किन्तु रहस्य्मय विवरण के साथ आगे बढ़ते हैं। 

यह स्वर्गारोहण शिखर दिखाई पड़ते हैं ।

इस लेख को और रुचिकर और ज्ञानपूर्ण बनाने के लिए हमने आपके लिए लगभग 15 मिनट की एक वीडियो शामिल की है। DEVBHUMI ADVENTURE AND TREKKERS के सौजन्य से प्रस्तुत की गयी यह वीडियो कोई Google Maps य Google Earth का प्रयोग करके नहीं बनाई गयी है बल्कि real life trekkers की HD वीडियो है। इस वीडियो के लिए हम उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं। हम आग्रह करते हैं कि आप इस क्षेत्र को जानने के लिए इस वीडियो को अवश्य देखें। https://youtu.be/DQPXymoMLHg

बद्रीनाथ से आगे तेरह मील चलने पर सीढ़ियों की तरह एक के ऊपर एक यह स्वर्गारोहण शिखर दिखाई पड़ते हैं । इन्हे स्वर्ग की सीढ़ियाँ भी कहते हैं। चौखम्भा शिखरों को भी स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है। इस प्रदेश से पहले यक्ष गंधर्व किन्नर रहते थे जिन्होंने स्वर्गारोहण के लिए जाती हुई द्रौपदी का अपहरण कर लिया था। भीम ने उनसे युद्ध करके द्रौपदी को छुड़ाया था। पुराणों में सुमेरु के स्वर्णमय होने का वर्णन है। कवियों ने स्थान-स्थान पर सोने के पहाड़ के रूप में सुमेरु को उपमा दी है। आज भी इस हिमाच्छादित सुमेरु पर्वत पर पीली सुनहरी आभा दृष्टिगोचर होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देवता की नगरी अलकापुरी यहाँ से समीप ही है। अलकनंदा के उद्गम स्थल को अलकापुरी कहा जाता है। इससे भी प्रदेश मे स्वर्ग होनेको बात पुष्ट होती है।

सुमेरु पर्वत, स्वर्गारोहण, अलकापुरी, नन्दनवन यह सभी स्थान हिमालय के उस भाग में आज भी मौजूद है। “इसे ही हिमालय का हृदय कहते है।” इस स्थान को यदि प्राचीन काल मे स्वर्ग कहा जाता था तो कोई असम्भव नहीं है। गंगा जी का उद्गम भी यह पुण्य क्षेत्र ही है। पुराणों मे वर्णन है कि गंगा स्वर्ग से नीचे उतरी। गंगा ग्लेशियर इसी प्रदेश में फैला हुआ है। भगवती शिवजी के मस्तक पर उतरी इस आख्यान की भी पुष्टि इस तरह होती है कि शिवलिंग शिखर गोमुख से ऊपर है। गंगा वहीं होकर आती है। शिवलिंग शिखर के पास ही नन्दनवन है। नन्दनवन स्वर्ग में ही था इसका वर्णन पुराणों में आता है। परमपूज्य गुरुदेव दादागुरु के दूत से यहीं मिलते रहे हैं। नन्दिनी नदी वहीं बहती है। स्वर्ग में रहने वाली कामधेनु की पुत्री नन्दिनी के साथ इस नदी की कुछ संगति बैठती है। चन्द्र पर्वत इसी प्रदेश में है। कहते हैं चन्द्रमा पर्वत पर निवास किया करते थे। बद्रीनाथ क्षेत्र से मिले हुए सूर्य कुण्ड, वरुण कुण्ड, गणेश कुण्ड अब भी मौजूद हैं। कहते हैं कि इन देवताओं का निवास इन-इन प्रदेशों में रहता था। केदार शिखर होकर इन्द्र का हाथी मिलते हैं। एक बार ऐरावत पर चढ़े हुए इन्द्र दुर्वासा ऋषि के आश्रम के समीप होकर गुज़रे और ऋषि के स्वागत का तिरस्कार किया तो उन्हें दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया था।

To be continued : 

 हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प 

17 मार्च 2022 के ज्ञानप्रसाद -एक वीडियो – के अमृतपान के उपरांत केवल दो ही समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :

(1) सरविन्द कुमार -24 ,(2 ) अरुण वर्मा-27 

 3 अंक का फर्क होने के बावजूद दोनों भाई गोल्ड मैडल विजेता हैं। दोनों ही भाई 

आज फिर दोनों समर्पित भाई अरुण वर्मा जी और सरविन्द कुमार जी गोल्ड मैडल थामते ऑनलाइन ज्ञानरथ को उच्त्तर शिखर पर पहुँचाने में कार्यरत हैं । दोनों को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्

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