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इन्द्रियों की प्रकार और संयम की बुनयादी जानकारी 

18 फरवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – इन्द्रियों की प्रकार और संयम की बुनयादी जानकारी 

आज से हम इन्द्रिय संयम पर एक लेख श्रृंखला आरम्भ कर रहे है। इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले लेख परम पूज्य गुरुदेव की केवल 25 पन्नों की लघु पुस्तक “इन्द्रिय संयम का महत्व” पर आधारित हैं। हमारी अति समर्पित सहकर्मी आदरणीय संध्या कुमार जी, जिन्होंने इन लेखों का संकलन किया है, यह लेख हमें लगभग 3 सप्ताह पूर्व भेजे थे लेकिन उस समय चल रही कड़ी के कारण हमें इतनी लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ी जिसके लिए हम क्षमा प्रार्थी है। परम पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित अन्य पुस्तकों की तरह यह यह लघु पुस्तक भी मानव जीवन के परिष्कार के लिए अत्याधि, विस्तृत ज्ञान का भंडार समेटे हुए है एवं इसकी उपयोगिता असीमित है। हम निवेदन करेंगें कि इस पुस्तक का अध्ययन ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के प्रत्येक परिजन को स्वयं तो करना ही चाहिये, अपने मित्र- बंधुओं को भी अवश्य करवाना चाहिये तथा इसके ज्ञान का चिंतन, मनन कर जीवन में अनुपालन करते हुए अपने जीवन को परिष्कृत करना चाहिये।

जब हम इन लेखों की एडिटिंग कर रहे थे तो हमें लगा कि दिसंबर 2021 में प्रस्तुत किये गए अध्याय 27 के अंतर्गत दो लेख “अवचेतन मन का संयम” भी कुछ इसी प्रकार के थे। आशा करते हैं कि पाठक इद्रिय संयम और मन संयम के अंतर् को समझने का प्रयास करेंगें। 

आज के इस प्रथम लेख में संध्या जी हमें बता रही हैं कि इन्द्रियां क्या होती हैं, इन्द्रियां कितने प्रकार की होती हैं और इन्द्रियों पर कण्ट्रोल -इन्द्रिय संयम कैसे प्राप्त किया जाता है। 

तो आइये जाने इन प्रश्नों के उत्तर। 

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इन्द्रियां और इनके प्रकार :

परम पूज्य गुरुदेव ने सरलता से समझाते हुए कहा है कि इन्द्रियां मनुष्य को परमात्मा की तरफ से प्रदत्त वरदान हैं, जिनके सहयोग से मानव अपने जीवन में आनन्द एवं सहयोग प्राप्त करता है। यदि शरीर एक मशीन है तो इन्द्रियां,उसे सुचारू रूप से चलाने वाले औजार या कल पुर्जे हैं, इन्द्रियां मनुष्य की सेवक हैं। सभी इन्द्रियां बेहद महत्वपूर्ण हैं जिनका उद्धेश्य मनुष्य को उत्कर्ष एवं आनन्द पहुंचाना है, इनके सहयोग से मनुष्य निरन्तर जीवन के मधुर रस का आनन्द लेते हुए जीवन को सफल बना सकता है।’इन्द्रियां ‘ग्यारह मानी जाती हैं, पांच ज्ञानेन्द्रिया एवं पांच कर्मेन्द्रिया, इस तरह दस एवं ग्यारहवीं ‘संकल्प-विकल्प’ क्रिया करने वाला ‘मन’।

ज्ञानइन्द्रिय को Five Gateways of Knowledge कह कर भी समझा जाता है। जैसे आँख से हमें भला-बुरा देखने का ज्ञान होता है। कान से हम ठीक या गलत सुनने का ज्ञानप्राप्त करते हैं। पांच ज्ञानेन्द्रिय एवं उनके द्वारा किये जाने वाले कृत्य इस प्रकार हैं-

(1)आंख, जिसका कार्य है भला-बुरा देखना। 

(2) कान, जिसका कार्य कोमल या कठोर शब्द सुनना। 

(3) जिव्हा, जिसका कार्य है खाद्य-अखाद्य का स्वाद जानना। 

(4) नाक, जिसका कार्य है सुगंध-दुर्गन्ध को सूंघना ।

(5) त्वचा, जिसका कार्य है कोमलता-कठोरता का अनुभव करना।

इन प्रत्येक इन्द्रियों का एक देवता ( गुण) होता है, जिससे विषयों की उत्पत्ति होती है। आंख का विषय “रूप” है तथा देवता या गुण “सूर्य” है, सूर्य या अग्नि ना हो तो आंखे बेकार हैं। कान का विषय “शब्द” है तथा देवता या गुण “आकाश” है। नाक का विषय “गन्ध” है, एवं देवता या गुण “पृथ्वी” है। जिव्हा का विषय “रस” है एवं देवता या गुण “जल” है,तथा त्वचा का गुण “स्पर्श” है एवं देवता या गुण “वायु” है। इन गुणों या विषयों के कारण इन इन्द्रियों का उपयोग बहुत अधिक है। 

 ये हैं पांच कर्मेन्द्रिया एवं उनके कार्य-

(1) वाणी- मुख से बोलते या स्वाद चखते हैं। 

(2) हाथ , इससे कार्य करते हैं। 

(3) पैर, इससे चलते हैं। 

(4) जननेंद्रिय, इससे मूत्र त्याग करते हैं। 

(5) गुदा, इससे मल त्याग करते हैं।

ज्ञानेन्द्रिया शरीर के ऊपरी हिस्से में होतीं हैं एवं कर्मेन्द्रिया निचले हिस्से में होतीं हैं तथा समस्त इंद्रियों का संचालक या सूत्रधार है मन जो हृदय में स्थित होता है। यदि मन शांत-गम्भीर, एकाग्र है तो वह इंद्रियों का संचालन सुचारू रूप से कर, जीवात्मा को उत्कर्ष एवं आनन्द की ओर ले जाता है। 

सभी इन्द्रियां अलग-अलग विशेषताएं, गुण समेटे हुए हैं, जिनका सदुपयोग करने से मानव का जीवन उन्नत एवं आनंदित होता है एवं इसके विपरीत इनका दुरुपयोग करने से जीवन निम्नतर एवं दुःखी होता है। 

हम इसकी व्याख्या इस तरह से भी कर सकते हैं : हमारा शरीर एक रथ की भांति है, इस रथ पर आरूढ़ होने वाला जीवात्मा है। जीवात्मा को यह रथ मोक्ष प्राप्ति के लिए प्राप्त हुआ है। पाँच ज्ञानेन्द्रिया एवं पांच कर्मेन्द्रिया (कुल 10 इन्द्रियां) इस रथ (शरीर) के दस घोड़े हैं।  संकल्प-विकल्प क्रिया करने वाला ‘मन’ ही है जिसके हांथ में इन दस घोड़ों को नियंत्रित करने की शक्ति होती है। इन इंद्रियों के घोड़े विषयों की सड़क पर चलते हुए मुक्ति यात्रा की ओर बढ़ते हैं। मन जिसके पास बुद्धि-विवेक होता है, इसका सारथी है, यदि सारथी सजग है तो इन्द्रियां विषयों में ना भटक कर अपने स्वामी को उसके स्वामी के पास यानि परमात्मा के निकट पहुँचा देतीं हैं। 

छठी इन्द्रिय -Sixth sense:

पांच ज्ञानेन्द्रिय एवं पांच कर्मेन्द्रियों के अलावा एक “छठी इन्द्रिय” होती है जिसे अंग्रेजी में ‘सिक्सथ सेंस’ कहते हैं। इस इन्द्रिय की चर्चा यदा कदा सुनने को मिल जाती है। जागृत छठी इंद्रिय वाले दिव्यजन प्राचीन काल, मध्य काल में कुछ मिल जाते थे किंतु वर्तमान समय में इनका सर्वथा अभाव है। कहा जाता है कि जिनकी छठी इंद्रिय जागृत होती है, उन्हें असीमित ज्ञान होता है। वह एक ही स्थान पर बैठे-बैठे दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं एवं दुनिया के किसी भी कोने के व्यक्ति से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि योग में छठी इंद्रिय जागृत करने के लिए कई आसन हैं। स्वच्छ एवं शांत वातावरण में बैठ कर मौन रहते हुए, भृकुटी ( eye brow ) के मध्य में, अंधेरे में ध्यान लगा कर श्वास-प्रश्वास (inhale-exhale) पर ध्यान रखा जाता है। इस क्रिया को लगातार एकाग्रता से करते रहने से वह अंधेरा हल्का होकर नीला होता है तथा वहां धीरे-धीरे प्रकाश नजर आने लगता है। इससे मन की क्षमता का विकास होता है तथा भूत एवं भविष्य में झांकने की क्षमता का विकास होता है और इसी तरह से छठी इंद्रिय जागृत होने का मार्ग प्रशस्त होता है। 

छठी इंद्रिय को जागृत करना साधारण मनुष्य की पहुँच से बाहर की बात है। यह दिव्य एवं दृढ़ निश्चयी आत्माओं द्वारा ही सम्भव हो सकता है। अतः “असम्भव छठी इंद्रिय” को छोड़ कर दस इंद्रिय यानि पाँच ज्ञानेन्द्रिय,पांच कर्मेन्द्रियों का सदुपयोग कर मानव अपना जीवन सुखद, उन्नत एवं सरल बना सकता है । 

संयम मनुष्य का “बेहतरीन गुरु”:

इंद्रियों का सदुपयोग संयम पर निर्भर करता है। इंद्रियों के सदुपयोग से शरीर में वीर्य एवं बल की प्रचुरता रहती है। संयम द्वारा मनुष्य का जीवन महान बनता है। जब संयम द्वारा मन वश में होता है तब अन्य इंद्रियों का संचालन सही ढंग से हो पाता है। इंद्रिय-संयम से मनुष्य का जीवन नियंत्रित एवं आनंदित हो पाता है।

संयम मनुष्य के जीवन की खुशी का मूल तत्व है क्योंकि आत्मसंयमी, आत्मज्ञानी मनुष्य को विषयों में आसक्ति (attachment) नहीं होती है। संयम ही संस्कृति के विकास एवं स्थायित्व का मूल होता है । संयम पर आधारित संस्कृति ही प्रभावशाली एवं दीर्घजीवी होती है। संयम’ का वास्तविक अर्थ होता है कण्ट्रोल करना, अपनी बिखरी हुई शक्तियों को एक निश्चित दिशा देना, अपने लक्ष्य को ही साधते रहना, जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक न हो, उस ओर ध्यान न भटकाना तथा अपनी संपूर्ण शक्ति को संचित कर अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगे रहना। 

संयम को इस तरह भी परिभाषित किया जा सकता है कि हमारे अन्तःकरण में क्या घटित हो रहा है, उस ओर सचेत रहना, जागरूक रहना ही संयम है। जो कार्य नहीं करना है उस ओर मन लालायित होता है, उसे न करने में प्रयास करना ही संयम है। वास्तविक रूप में संयम का सही अर्थ है व्यर्थ के आकर्षण के प्रति आकर्षित न होना। इस तरह संयम को मनुष्य का “बेहतरीन गुरु” माना जा सकता है क्योंकि वह गुरु की भांति अनुचित के प्रति आकर्षित होने से रोकता है और उचित के प्रति प्रोत्साहित करता है। इस तरह संयम के माध्यम से मनुष्य के निर्णय उचित एवं स्थिर होते हैं तथा मनुष्य का स्वभाव धीरे-धीरे गम्भीर होता है जिससे जीवात्मा परिष्कृत होती है ।

संयम जीवन को संवारने का मूल अस्त्र है। एक ईमानदार, सच्चरित्र मनुष्य ईमानदारी से नेक कार्य करके धन अर्जित करता है, हिम्मत, दृढ़ता, परिश्रम एवं बुद्धिमानी से उसमें वृद्धि करता है,चतुराई से अपने धन को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाता है और संयम से उसकी रक्षा करता है। अतः जीवन के हर क्षेत्र में संयम नितांत आवश्यक है। धन की रक्षा संयम द्वारा ही सम्भव है, बिना संयम धन अर्जन व्यर्थ हो जायेगा।

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प सूची :

17  फ़रवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 4  समर्पित साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। यह समर्पित साधक निम्नलिखित है :

(1 ) अरुण वर्मा -37,(2)प्रेरणा कुमारी -34,सरविन्द कुमार-33,(4)पूनम कुमारी -25

इस पुनीत कार्य के लिए सभी  युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और अरुण वर्मा  जी आज के   गोल्ड मैडल विजेता हैं। कृपया हमारी व्यक्तिगत और समस्त परिवार की सामूहिक बधाई स्वीकार करें।  कामना करते हैं कि परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आपके परिवार पर सदैव बनी रहे। हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव

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