16 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – क्या गायत्री मंत्र से ब्रह्मास्त्र विकसित किया जा सकता है ?
आज का लेख अति रोचक और बहुचर्चित विषय पर आधारित है। विषय है गायत्री मंत्र की शक्ति। गायत्री मन्त्र की शक्ति पर तो किसी को भी कोई लेशमात्र शंका नहीं है। लेकिन एक बहुत ही बेसिक प्रश्न है कि हम शक्ति की बात कर रहे हैं कि चमत्कार की। परमपूज्य गुरुदेव ने चमत्कार को सदैव ही नकारा है। आज हमें इंटरनेट पर तरह-तरह के दावे करता हुआ कंटेंट मिल जायेगा, लेकिन सत्य बात तो यह है कि जिस प्रकार एक वैज्ञानिक वर्षों तक लेबोरेटरी में अथक परिश्रम करने के उपरांत ही कुछ प्रमाण प्राप्त कर पाता है, आध्यात्मिक क्षेत्र में भी कुछ इसी प्रकार की प्रक्रिया है। गुरुदेव ने अपने शरीर को प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करने के बाद ही कुछ ठोस निष्कर्ष प्रस्तुत किये। गायत्री मंत्र द्वारा परमाणु हथियार ( ब्रह्मास्त्र ) जितनी शक्ति विकसित की जा सकती है क्या ? यही है आज का ज्ञानप्रसाद। इस जटिल विषय को सरल करने और समझने के लिए हमने सारे लेख को कुछ भागों में बांटा है जैसे कि – ब्रह्मास्त्र की परिभाषा, ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ,ब्रह्मास्त्र और nuclear weapon की तुलना, गायत्री मंत्र से ब्रह्मास्त्र की विकास प्रक्रिया।
यह लेख http://www.bookfact.com नामक वेबसाइट पर हमने कुछ समय पूर्व इंग्लिश में देखा। इसमें वर्णन किये गए तथ्यों की accuracy को चेक करने ने हमें काफी समय लगा क्योंकि जिस साइट और कंटेंट पर हम स्वयं विश्वास नहीं करते तो आपके समक्ष कैसे ला सकते हैं। इससे जग हंसाई के इलावा और कुछ भी प्राप्त नहीं होता। हमारे अनवरत प्रयास से यही निष्कर्ष निकला कि कंटेंट पर शंका करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
लेकिन एक बात याद रखने योग्य अवश्य है कि गायत्री मन्त्र से ब्रह्मास्त्र विकसित करना कोई सरल कार्य नहीं है – इसके लिए अनवरत ,अथक ,घोर साधना एवं ध्यान की आवश्यकता होती है।
इन्ही opening remarks से आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करते हैं :
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ब्रह्मास्त्र की परिभाषा : A weapon created by Brahma
धर्म और सत्य को बनाए रखने के उद्देश्य से सृष्टि के रचियता ब्रह्मा ने एक हथियार की रचना की जिसे ब्रह्मास्त्र का नाम दिया था। जब ब्रह्मास्त्र को छोड़ा गया, तो न तो कोई पलटवार था और न ही कोई बचाव जो इसे रोक सकता था। केवल एक ही हथियार “ब्रह्मदंड” था जो ब्रह्मा जी द्वारा ही बनाई गई एक छड़ी थी ।
हमारे पुरातन ग्रंथों में इस बात का वर्णन आता है कि ब्रह्मास्त्र एक परमाणु हथियार था जिसे विकसित करने के लिए उपयोगकर्ता को अत्यंत गंभीर एकाग्रता और ध्यान से करने की आवश्यकता है। एक और तथ्य है कि इस हथियार को एक दिन में केवल एक ही बार शत्रु को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और वह भी ऐसा शत्रु जिसे किसी अन्य माध्यम से पराजित नहीं किया जा सकता था।
ब्रह्मा जी ने ब्रह्मास्त्र से भी अधिक शक्तिशाली एक और हथियार की रचना की थी , जिसका नाम था ब्रह्मसिरिनामस्त्र। ब्रह्मसिरिनामस्त्र को कभी भी युद्ध में उपयोग नहीं किया गया था। इसमें (ब्रह्मास्त्र) के बराबर शक्ति थी, जो ब्रह्मा जी के 4 मुखों का प्रतिनिधित्व करती थी। महाभारत युद्ध में केवल द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, अर्जुन और कर्ण को ही इस शस्त्र का ज्ञान था।
ब्रह्मास्त्र और nuclear weapon की तुलना:
ब्रह्मास्त्र गंभीर पर्यावरणीय क्षति का कारण बनता है। जिस भूमि पर यह गिरता है वह कई शताब्दियों तक बंजर हो जाती है और उस क्षेत्र में स्त्री और पुरुष दोनों बंजर हो जाते हैं। हरियाली खत्म हो जाती है, बारिश बहुत ही कम हो जाती है और सूखे की तरह जमीन में दरारें पड़ जाती हैं । उस क्षेत्र के लोगों पर genetic प्रभाव भी होते हैं और आने वाली पीढ़ियां डिफेक्टिव बच्चों को जन्म दे सकते हैं । इन सभी विवरणों से संकेत मिलता है कि ब्रह्मास्त्र वास्तव में एक परमाणु हथियार था, क्योंकि इसके प्रभाव जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जैसे ही थे। 1939 से 1945, 6 वर्ष तक चलने वाले इस परमाणु विश्व युद्ध में लगभग 85 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
ब्रह्मास्त्र का प्रयोग:
पुराणों और महाकाव्यों में ब्रह्मास्त्र के उपयोग का कई बार उल्लेख किया गया है जिनमें से कुछ एक का संक्षेप में विवरण नीचे दिया जाता है :
1 महर्षि विश्वामित्र ने मुनि वशिष्ठ के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया, लेकिन वशिष्ठ ने ब्रह्मास्त्र को ब्रह्मदंड के प्रयोग से निरस्त कर दिया।
2 रामायण में, भगवान राम ने समुद्र से बाहर निकलने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने का प्रयास किया ताकि वानरों की सेना लंका की ओर कूच कर सके। लेकिन महासागरों के स्वामी, “समुद्र” प्रकट हुए और भगवान राम को ब्रह्मास्त्र के प्रयोग से होने वाले परिणामों के बारे में बताया और अनुरोध किया कि ऐसा न करें। अगर समुद्र सूखा हो गया तो इसमें सभी प्राणियों की मृत्यु हो सकती है । इसलिए भगवान राम ने इसे ध्रुमतुल्य की ओर लक्षित किया। यह जगह आधुनिक राजस्थान ही है जहाँ ब्रम्हास्त्र गिरने से एक रेगिस्तान बन गया। बाद में भगवान् राम ने एक पुल का निर्माण करना चुना, जो अभी भी भारत-श्रीलंका के बीच मौजूद है।
3 इंद्रजीत (मेघनाद) ने हनुमान जी को पकड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया, जो सीता की खोज के बाद अशोक वाटिका को नष्ट कर रहे थे । इंद्रजीत ने इसका प्रयोग लक्ष्मण के खिलाफ भी किया, लेकिन इसका जवाबी हमला हुआ।
4 महाभारत युद्ध में अर्जुन और अश्वत्थामा के टकराव के दौरान, दोनों ने ब्रह्मसिरोण अस्त्र का आह्वान किया था, लेकिन दोनों हथियारों की संयुक्त शक्ति से पृथ्वी पर समस्त जीवन समाप्त हो सकता था इसलिए वेदव्यास जी ने हस्तक्षेप किया और उन्हें अपने हथियार वापस लेने के लिए कहा। अर्जुन तो वापस बुला सकते थे लेकिन अश्वत्थामा को वापिस बुलाने का कोई ज्ञान नहीं था, इसलिए उसने अर्जुन के अजन्मे पोते परीक्षित पर हमला करने के लिए इसे फिर से निर्देशित किया, जो अभी अपनी मां के गर्भ में ही था। परीक्षित की तो माँ के गर्भ में ही मृत्यु हो गयी लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसे जीवन दान दिया।
हथियार को वापस लेना या इसके उपयोग के बाद हथियार को वापस बुलाना, प्रत्यावर्ती बाण के समान लगता है।
वेदों और पुराणों में कई हथियारों का वर्णन है जैसे कि अग्निस्त्र, ब्रह्मास्त्र, गरुड़स्त्र, कौमोदकी, नारायणास्त्र, पाशुपतास्त्र, शिव धनुष, सुदर्शन चक्र, त्रिशूल, वैष्णवस्त्र, वरुणास्त्र इत्यादि लेकिन त्रिशूल, सुदर्शन चक्र और ब्रह्मास्त्र सबसे शक्तिशाली हैं।
गायत्री मंत्र से ब्रह्मास्त्र की विकास प्रक्रिया:
यह विश्वसनीय है कि गायत्री मंत्र द्वारा ब्रह्मास्त्र release किया जा सकता है लेकिन यह इतना सरल नहीं है, इसके लिए अत्यंत कठोर एवं अलग प्रकार की साधना करनी पड़ती है। इस साधना में गायत्री मंत्र को उसके अक्षरों के ठीक विपरीत क्रम में एकाग्र करके जाप किया जाता है। मंत्र जाप की इस विधि को विलोम-अनुलोम (सामान्य तरीका अनुलोम) के रूप में जाना जाता है। अनुलोम-विलोम जाप के संयुक्त प्रभाव से गायत्री मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है और साधक सामान्य से अधिक शीघ्र सिद्धि प्राप्त करता है। लेकिन एक प्रश्न हम सबके मन में अवश्य ही उठ रहा होगा :
अगर यह इतना आसान है, तो गायत्री मंत्र जानने वाला हर कोई ब्रह्मास्त्र क्यों नहीं छोड़ सकता? नहीं, हर कोई साधक गायत्री मन्त्र जाप से ब्रह्मास्त्र नहीं पैदा कर सकता।
मंत्र शास्त्र में साधक (अभ्यासकर्ता) एक निश्चित अवधि के लिए अत्यधिक एकाग्रता के साथ अभ्यास करने के बाद ही किसी मंत्र पर सिद्धि प्राप्त करने में सक्षम होता है। तो इसके लिए सबसे पहले गायत्री मंत्र का सही तरीके से जाप करने के लिए दीक्षा लेनी होगी और उस पर अधिकार हासिल करने के लिए फिर उसे कई वर्षों तक अभ्यास करना होगा। तो फिर अगले चरण में साधक को उसी गति और आवृत्ति में गायत्री मंत्र का उल्टा जप करने का अभ्यास करना होगा और फिर उसमें भी सिद्धि प्राप्त करनी होगी।
इसके बाद ही व्यक्ति को मिसाइल उद्देश्य के लिए गायत्री मंत्र जाप करने का प्रशिक्षित कहा जा सकता है। इसके बाद साधक को उस पर सिद्धि प्राप्त करनी होती है, और जब वह इसे प्राप्त कर लेता है तो वह सक्रिय हो जाता है। यह स्थिति आने पर जब साधक इस मंत्र का जाप उस ऊर्जा के साथ करके घास के तिनके को भी छोड़ता है तो वह अपनी charged ऊर्जा के कारण ब्रह्म मिसाइल में बदल जाता है और मिसाइल बदले में रचयिता (ब्रह्मा) से शक्ति प्राप्त करता है।
The entire mantra Shastra is based on the concept that sounds produce vibrations which in turn are frequencies that can kill, heal or transcend.
High pitch sound कांच और यहां तक कि अन्य वस्तुओं को भी तोड़ने में सक्षम होती है।
अथर्ववेद ने साबित कर दिया है कि मन्त्रों ( संगीत) की शक्ति से मौसम बदले जा सकते हैं, वर्षा लायी जा सकती है, गर्मी पैदा की जा सकती है। मेघ मल्हार और दीपक राग कुछ इसी प्रकार के उदाहरण हैं जिनसे वर्षा लायी जा सकती थी और दीपक जल उठते थे। मन्त्रों की शक्ति इतना प्रबल है कि हमारे आसपास का वातावरण, मानव मन में विचार भी बदले जा सकते हैं। अभी अभी सम्पन्न हुई अनुभूतिओं की शृंखला में हमने देखा कि किस प्रकार गायत्री साधना ने हमारे सहकर्मियों के विचारों में परिवर्तन लाया ,कैसे उनके जीवन का कायाकल्प हो गया।
हम सब जानते हैं कि हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। इसका विस्तृत वर्णन हम यहाँ नहीं देंगें क्योंकि गूगल हमारी सहायता के लिए तो है ही। जब कोई साधक ध्यान करता है और अपनी कुंडलिनी (इस संदर्भ में ब्रह्मास्त्र) को ऊपर उठाता है, तो वह अपने आधार चक्र (मूलाधार) से ऊर्जा प्राप्त करता है और ऊपर की ओर बढ़ता है। फिर यह प्रत्येक चरण में उनमें से प्रत्येक से ऊर्जा प्राप्त करने वाले 5 अन्य चक्रों में प्रवेश करता है। अंत में यह लक्ष्य को क्राउन चक्र (सहस्रार) और एक चमक के साथ वहां फट जाता है। यही वह विस्फोट है जो सब ‘ भ्रम (माया)’ को नष्ट कर देता है और साधक को ‘अहं ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूँ )’ की भावना का ज्ञान करवाता है। युगतीर्थ शांतिकुंज के विलक्षण ‘भटका हुआ देवता मंदिर’ में ‘मैं ब्रह्म हूँ’ के साथ ही चार और वेदांत के सूत्र अंकित किये गए हैं जिससे परमपूज्य गुरुदेव ने हमें अपनेआप को पहचानने को कहा है।
आज के युग में ब्रह्मास्त्र का आह्वान करने और लोगों को मारने की आवश्यकता नहीं है, न ही सृष्टि को नष्ट करने की आवश्यकता है। आवश्यकता है तो केवल गायत्री मंत्र का उल्टे अक्षरों के साथ अभ्यास करने की, जिससे हम अपने अंदर उठ रहे आंतरिक ब्रह्मस्त्र को छोड़ कर निर्वाण या मोक्ष प्राप्त कर सकें। इति जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प सूची :
14 फ़रवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 4 समर्पित साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। यह समर्पित साधक निम्नलिखित है :
(1 ) अरुण वर्मा -38,(2 )संध्या कुमार-32 ,(3)सरविन्द कुमार -25,(4 )रेनू श्रीवास्तव-28,
इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और आदरणीय अरुण वर्मा जी आज गोल्ड मैडल विजेता हैं। कामना करते हैं कि परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आपके परिवार पर सदैव बनी रहे। हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव