मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण  प्रयोगशाला 

28 दिसंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण  प्रयोगशाला 

25 दिसंबर वाले लेख में हमने संक्षिप्त वर्णन किया था कि सूक्ष्मीकरण से 5 शरीरों की शक्ति 3125 गुना हो जाती है। आज हम इसी तथ्य का वैज्ञानिक पक्ष और व्याख्या देखेंगें।अखंड ज्योति  जुलाई 1984 अंक पर आधारित आज के ज्ञानप्रसाद में हम समझने का प्रयास करेंगें कि गुरुदेव ने अपने शरीर को पका कर कैसे वाष्पीकृत किया। 

आदरणीय सरविन्द भाई जी ने अपनी अंतरात्मा की अभिलाषा को व्यक्त किया है कि आज 24 आहुतियों की संकल्प सूची प्रकाशित न करके आदरणीय विनीता जी की बहन की दिवंगत आत्मा की शांति हेतु आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से श्रद्धांजलि पेश की जाए। अपने सहकर्मियों के प्रति ऐसी भावना के लिए धन्यवाद् सरविन्द जी।  

भगवान को सृष्टि के आरम्भ में एक से अनेक बनना पड़ा था, तब कहीं जाकर इतनी बड़ी  सृष्टि की रचना  सम्भव हो पायी थी । विश्व में महान परिवर्तन करने वालों को भी अपने सहयोगियों की संख्या बढ़ाकर यही करना पड़ा है।

ऋषिकल्प व्यक्तियों को अपनी निज की क्षमता को ही कई खण्डों में विभाजित करके कई गुना करना पड़ता है। हम सभी जानते हैं कि चीरने, कूटने, तोड़ने, पीसने की प्रक्रिया द्वारा एक वस्तु के कई टुकड़े हो जाते हैं। आमतौर से इस कूट-पीस द्वारा प्रत्येक टुकड़ा कमजोर पड़ता जाता है। Union is Strength वाली बहुचर्चित कहानी हम से बहुतो ने अपने स्कूल-काल में अवश्य पड़ी होगी।  इस कहानी में भी यही शिक्षा दी गयी थी कि अलग- अलग की शक्ति काम होती है लेकिन ज्यों ही सब इक्क्ठे हुए तो शक्ति कई गुना हो गयी। लेकिन यहाँ  जो बात हम  कर रहे  हैं और इससे बिल्कुल  ही विपरीत है।यह एक अपवाद (Exception ) है कि  कई बार छोटे टुकड़े बड़े टुकड़ों से अधिक शक्तिशाली  भी होते हैं । इसको समझने के लिए अगर नौवीं -दसवीं कक्षा  की बेसिक साइंस की सहयता ले ली जाये तो बेहतर होगा।  

अणु ,परमाणु और विद्युत् अणु -Molecule,Atom and Electron:

Molecule(अणु ),atom(परमाणु )और  electron (विद्युत्अणु) पदार्थ के ही सूक्ष्म कण हैं और ज्यों ज्यों छोटे होते जाते हैं अधिक शक्तिशाली होते जाते हैं जैसे कि परमाणु बम्ब अणु बम्ब से अधिक शक्तिशाली  होता है 

सभी जानते हैं कि पदार्थ की सूक्ष्म इकाई अणु (Molecule )  है जो स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है एवं उसमें पदार्थ के सभी गुण विद्यमान होते हैं। सभी अणुओं की सूक्ष्मता का स्पष्ट अनुमान अभी तक हो नहीं पाया है। अलग-अलग पदार्थों के अणु का आकर एक इंच के अरब-भाग ( 1/1000000000) का हो सकता है तो किसी का इंच के दस लाखवें भाग के बराबर। यह तो ठोस  ( Solid ) की बात हुई। द्रव्य रूप (liquid) में पोटेन्सी बढ़ने से इन सूक्ष्म अणुओं की संख्या व सामर्थ्य और बढ़ जाती है, इसका प्रतिपादन होम्योपैथी के विद्वानों ने किया है एवं प्रयोग परीक्षणों द्वारा उसे सिद्ध भी कर दिया है। द्रव्य से विरल एवं विराट रूप वाला स्वरूप गैस का है। हमारे चारों ओर स्थित अदृश्य हवा का जो जखीरा है, उसके एक घन इंच (Cubic Inch)  में लगभग पाँच हजार शंख (5 ,00,00,00,00,00,00,00,000,000 ) अणु विद्यमान हैं। शंख ( बजाने वाला नहीं) अरब ,खरब की तरह एक बहुत बड़ा गणना का यूनिट है। आप देख ही रहे हैं कि शंख में कितने zero हैं। 

अब आती है बात इन अणुओं के size से सूक्ष्मीकरण के सम्बन्ध की:

पदार्थ जितना सूक्ष्म होता चला जाता है, इन अणुओं की संख्या भी बढ़ती  जाती है एवं ऊष्मा-ऊर्जा (Heat Energy)  के कारण उसकी गति में अभिवृद्धि हो जाती है। गैस रूप में अणुओं की गति सबसे तेज़  होती  है, यही वह स्टेज है जो पदार्थ को अति सूक्ष्म बना देती हैं। इसीलिए सूक्ष्मीकरण तो वाष्पीकरण के साथ जोड़ा गया है। 

Solid ,liquid and gas are three forms of matter. All of them are made of small units called molecules . In solids molecules are near to each other and cannot move,in liquids molecules are away from each other and can move a little bit and in gases the molecules are far apart and can move faster. When gas, liquid and solid are heated molecules in them start moving. In gases this speed is highest and so they become- SUKSHAM. 

मानवी काया की सूक्ष्म संरचना को विकसित किया जा सकने पर वह उसे अत्यन्त सामर्थ्यवान बना देती है। मानव शरीर  के अंदर  तीन शरीर, पाँच कोश एवं षट्चक्र इसी स्तर के हैं। शरीर के मेरुदंड (spinal cord ) के भीतर, ब्रह्मनाड़ी में अनेक चक्रों की कल्पना की गयी है लेकिन मुख्य रूप से छह चक्र होते हैं | इन छह चक्रों के नाम- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञाचक्र हैं तथा इनके स्थान क्रमशः योनि, लिंग, नाभि, ह्रदय, कंठ और भ्रूमध्य है | इन छह चक्रों के अलावा एक सातवां चक्र होता है जिसे सहस्रार चक्र कहते हैं यह चक्र मष्तिष्क में पीछे की तरफ़, सबसे ऊपर होता है और  सहस्त्रों पंखुड़ियों वाले कमल पर बैठा है |

इन्हें विकसित कर अन्तःसत्ता को विराट् बनाया जा सकता है। ये सभी एक ही शरीर के अंग अवयव होते हुए भी अपना-अलग विशिष्ट अस्तित्व प्रदर्शित करने लगते हैं।

शास्त्रों में मानव की चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है। यह चार अवस्थाएं 1. जागृतावस्था, 2.स्वप्रावस्था, 3.सुषुप्ति एवं 4. तुरीयावस्था हैं। योग साधना द्वारा  तुरीयावस्था प्राप्त करके सूक्ष्मीकृत हुआ जा सकता है। यह अवस्था सहज ही सबको उपलब्ध नहीं हो पाती, लेकिन जो इस स्थिति तक पहुँच पाते हैं, मानव कल्याण का एक महत्वपूर्ण पुरुषार्थ उन्ही से  सम्पन्न होता है।”

ऐसा वर्णन है कि जिन-व्यक्तियों ने पूर्व जन्मों  में संयम,साधना और योग-उपासना द्वारा अध्यात्म चेतना की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त कर लिया होता है वे  दिव्यात्माएं ऋषि आत्माएं कहलाती हैं एवं आत्मसत्ता को ऊंचा उठाने वाले धर्म के मर्म का परिचय जन-साधारण को देती हैं। समय-समय पर परिस्थिति विशेषानुसार उनका प्राकट्य होता रहता है एवं उनके द्वारा दिए गए  ज्ञान-सत्पथ के माध्यम से उस काल के सामान्य पुरुष,आत्मिक प्रगति के पथ पर बढ़ते एवं जीवनमुक्त होते जाते हैं। सृष्टि की युग-व्यवस्था कुछ ऐसी है कि हर समय  दिव्यात्माएं सूक्ष्म जगत में अपने क्रिया-कलापों में संलग्न रहती हैं। इसी कारण धर्म का,श्रेष्ठता का,आदर्श एवं  निष्ठा का, सर्वथा लोप नहीं हो पाता।

शरीर एक सर्वांगपूर्ण  प्रयोगशाला है:

मानव शरीर में ऋषियों, देवताओं, अवतारों का निवास बताया गया है। विभिन्न स्थानों पर उनकी स्थापना है। दिव्य समुद्रों, दिव्य नदियों, दिव्य पर्वतों का निवास भी इस शरीर में है। शरीर रुपी मल-मूत्र की गठरी होते हुए भी इसकी सूक्ष्म सत्ता का निरिक्षण  करने पर लोक-लोकान्तरों की झलक झाँकी उनमें मिलती है। शरीर एक सर्वागपूर्ण प्रयोगशाला है। इसमें वे सभी यन्त्र उपकरण फिट हैं, जो मनुष्य द्वारा अब तक बनाये जा चुके या भविष्य में जिनके बनने की सम्भावना है। ब्रह्मांड की  एक गांठ में समग्र ब्रह्मांड सन्निहित है। इसका अर्थ यही हुआ कि विराट में जो विशेषताएं विद्यमान हैं, वे सभी छोटी आकृति बनाकर पिण्ड में भी निवास करती पायी जाती हैं। जो कुछ है प्रसुप्त  स्थिति में है। इसे जागृत किया जा सके तो पिण्ड में से ही ब्रह्माण्ड प्रकट हो सकता है। 

नीच  को महान बनाने के लिए एक ही उपचार है- वाष्पीकरण (evaporation )। वायु बन कर कोई भी वस्तु बहुत फैल जाती है और दूर-दूर तक अपने प्रभाव का परिचय देती है। जैसे एक मिर्च थोड़ी-सी जगह में ही रखी रहती है, पर यदि उसे आग में जलाया जाय तो वह वायुभूत होकर दूर-दूर तक फैलेगी और उस गंध से दूर-दूर तक के लोगों को खांसी उठेगी। यही सूक्ष्मीकरण हुआ। थोड़ा-सा तेल लेकर पानी की सतह पर डाल दिया जाय तो वह लहरों के साथ-साथ दूर-दूर तक फैल जायेगा। Perfume  का उदाहरण भी इसी श्रेणी में आता है। आयुर्वेद और होमियोपैथी में प्रयोग आने वाली भस्मों से हम सब परिचित हैं -इन्हे Nanomedicine का नाम दिया गया है। विज्ञान में Nano  का  अर्थ होता है बहुत ही छोटा ,Micro और Milli से कहीं दूर छोटा। आयुर्वेद में अधिक समय तक एक औषधि को लगातार घोंटते रहने पर उसमें विशेष सामर्थ्य के उत्पन्न होने का वर्णन है। होम्योपैथी में भी पोटेन्सी सिद्धान्त ( Strength Principle )  इसी आधार पर चलता है कि उस मूल द्रव्य को अधिकाधिक बारीक करके अधिक शक्तिशाली बनाया जाता है।

परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं:

हमारी सूक्ष्मीकरण साधना में क्या उपक्रम चल रहा है,क्या विधि व्यवस्था अपनाई जा रही है, यह पूछने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह “एक विशेष प्रयोग” है और उसमें मार्गदर्शक का सिलसिलेवार अनुशासन ही सब कुछ है। किसी दूसरे का इसके बारे में  पूछना व्यर्थ है क्योंकि यह कोई ऐसी विधि नहीं जिसका कोई भी अनुकरण कर के सीख ले।   हमें अपने अनुभवी मार्गदर्शक के परामर्श पर चलना होगा, उन्ही को निर्णय लेना है कि हमने क्या  करना है, क्यों करना है और किसलिए करना है। हमारे सभी  प्रश्नों के विस्तृत विवरण हमारे मार्गदर्शक के पास ही हैं।

सूक्ष्मीकरण साधना वाष्पीकरण (Evaporation) का एक स्वरुप – 

मोटे तौर से सूक्ष्मीकरण साधना का एक ही स्वरूप है-वाष्पीकरण। इसमें अपनी ही प्राण ऊर्जा को इतना प्रचण्ड किया जाता है कि उससे अपने ही अन्तराल में सन्निहित पाँच कोश इतने गरम हो सकें कि एक स्वतंत्र इकाई के रूप में उनकी सत्ता विनिर्मित हो सके। पानी खौलता है तो अलग-अलग बुलबुले  उठने लगते हैं। प्रत्येक बुलबुला अपनी एक स्वतंत्र इकाई बनाता है और जब तक आवश्यकता रहती है अपना अस्तित्व बनाये रखता है और फिर वातावरण की ठंडक से दूसरे बुलबुलों  के साथ विलीन हो जाता है। कितना बड़ा बुलबुला  किस कार्य के लिए, किस विधि से, कितना  शक्तिशाली बनाया या उठाया जाय यह निर्णय करना उसके मार्गदर्शक का काम होता है। हमारे जैसे अनगढ़ पाठकों के लिए इस सारी क्रिया का  सिद्धान्त जान लेना ही बहुत बड़ी बात  है। विवरण की गहराई में जाना ठीक  न होगा।

सूक्ष्मीकरण की प्रक्रिया वस्तुतः जीवित अवस्था में साधक के सूक्ष्म एवं कारण शरीर की परिष्कृति एवं प्रगति का एक ऐसा राजमार्ग है  जिसे समय समय पर उच्चस्तरीय आत्माओं ने अपनाया व अपनी मुक्ति हेतु नहीं, अन्यायों के हित साधन हेतु स्वयं को खपाया है।

यह प्रक्रिया ऋषि परम्परा की एक शाश्वत व्यवस्था है। मानव को मिली तीन शरीर रूपी ( स्थूल ,सूक्ष्म और कारण)  विभूतियाँ ईश्वर प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों में से हैं जिनका ठीक से प्रयोग न करने पर मानव  दुर्गति की ओर जाने को बाधित हो जाता है। संस्कारों की संचित सम्पदा लेकर जन्मीं देवआत्माओं  को कोई अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ता और  वे स्वेच्छा से ही उस पथ पर चल पड़ती  हैं जिसके लिए उनका इस धरती पर अवतरण होता है । अदृश्य जगत की उच्चस्तरीय आत्माएं धरित्री पर  उनके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करने के लिए उन्हें वांछित आत्मबल देती हैं।  सामान्य बुद्धि के लिए इस  व्यवस्था को समझ पाना सहज नहीं होता क्योंकि जो कुछ होना होता है  वह सब कुछ नियन्ता की विधि-व्यवस्था का ही एक अंग है।

परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं :

हमारी सूक्ष्मीकरण- वाष्पीकरण युग साधना से जन समुदाय को क्या कुछ मिलने वाला है, वर्तमान परिस्थितियों में कैसे परिवर्तन आने वाला है, यह असमंजस सहज ही किसी के मन में उठ सकता है। आने वाले लेखों में हमारे सहकर्मी विस्तृत वर्णन देखेंगें।

अगली प्रस्तुति -एक वीडियो 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

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