अध्याय 26. विचार संयम का रहस्य

10  दिसंबर 2021  का ज्ञानप्रसाद – अध्याय 26. विचार संयम का रहस्य  

आज का  ज्ञानप्रसाद भी कल वाले  ज्ञानप्रसाद की तरह कुछ बड़ा  (3 पन्नों का) है।  बहुत ही उत्तम जानकारी और शिक्षा से भरपूर इस लेख को भी अपने अन्तःकरण में उतारते हुए अभ्यास करने की आवश्यकता है मनोनिग्रह विषय की  30 लेखों की इस अद्भुत  श्रृंखला में आज प्रस्तुत हैं  अध्याय 26   हर लेख की तरह आज भी हम लिखना चाहेंगें यह अद्भुत श्रृंखला आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के स्वाध्याय पर आधारित  प्रस्तुति है।ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार  रामकृष्ण मिशन मायावती,अल्मोड़ा के वरिष्ठ सन्यासी पूज्य स्वामी बुद्धानन्द जी महाराज और छत्तीसगढ़ रायपुर के विद्वान सन्यासी आत्मानंद जी महाराज जी का आभारी है जिन्होंने  यह अध्भुत  ज्ञान उपलब्ध कराया। इन लेखों का  सम्पूर्ण श्रेय इन महान आत्माओं को जाता है -हम तो केवल माध्यम ही हैं। 

तो आइए चलें आज के लेख  की ओर : 

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26. विचार-संयम का रहस्य 

ऊपर में साधनाओं के जो दो प्रकार बताये गये ,उनका जब समुचित अभ्यास किया जाता है तो वे मन के चेतन स्तर की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं और साथ ही परोक्षरूप से अवचेतन के संयम में भी सहायता प्रदान करते हैं। आपातकालीन स्थितियों के लिए जो विशेष साधनाएं बतलायी गयी है, उनका समुचित फल तभी प्राप्त होगा, जब हम मूलभूत संयम के सामान्य अनुशासनों का नियमित रूप से अभ्यास करते हैं।

सामान्य अनुशासनों में सबसे महत्वपूर्ण बात है विचार का संयम। जो अपनी विचारधारा को मोड़ना जानता है, वह मन के संयम का उपाय भी जान लेगा।

हम अपने विचारों का संयम कैसे करते हैं ? 

विचार-संयम का अर्थ यह नहीं कि प्रारंभ से ही मन में कोई विचार न रहे। विचारहीन अवस्था एक अनर्थकारी अवस्था भी हो सकती है। प्रारंभिक अवस्था में विचार-संयम का तात्पर्य है अच्छे विचारों को प्रयत्नपूर्वक मन में उठाने की क्षमता का विकास करना तथा असत् या गलत विचारों को मन में उठने देने से रोक देना। 

अपने एक उपदेश में विचार- संयम पर कुछ विस्तार से चर्चा करने के बाद बुद्ध ने सारांश में कहा:

“भिक्खओं! स्मरण रखो, गलत विचारों पर विजयी बनने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम समय-समय पर मन के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन करते रहें, उन पर मनन करें, जो अशुभ हैं उनको जड़ से निकाल दें और शुभ का सृजन करें।”

स्वामी विवेकानंद कहते हैं:

“हम अभी जो कुछ हैं, वह सब अपने चिन्तन का ही फल है। इसलिए तुम क्या चिन्तन करते हो इस विषय में विशेष ध्यान रक्खो। शब्द तो गौण वस्तु है। चिन्तन ही बहुकाल-स्थायी है और उसकी गति भी बहु दूरव्यापी है। हम जो कुछ भी चिन्तन करते हैं, उसमें हमारे चरित्र की छाप लग जाती है, इस कारण साधु-पुरुषों की हंसी और गाली में भी उनके हृदय का प्रेम और पवित्रता रहती है और उससे हमारा कल्याण ही होता है।”

यह जो ‘तुम क्या चिन्तन करते हो, इस विषय में विशेष ध्यान ‘ रखना है, वह इतना महत्वपूर्ण है कि हमें उसकी विधि अवश्य जान लेनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, हम यह सीख लें कि अच्छे विचारों को कैसे उत्पन्न किया जाय। यदि हम अच्छे विचारों को उत्पन्न करना चाहते हैं, तो हमें केवल मुंह से ही नहीं परन्तु समस्त इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये जानेवाले आहार के सम्बन्ध में भी सावधानी बरतनी होगी। इस पर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। यदि आहार शुद्ध है, तो हमारा विचार भी शुद्ध होगा। यदि आहार अशुद्ध है, तो हमारा विचार भी अशुद्ध होगा। गलत आहार करने का कोई प्रयोजन नहीं। हम क्यों गलत आहार से उत्पन्न होनेवाले गलत विचारों को दबाने में अपनी शक्ति का वृथा क्षय करें? वास्तव में तो विचार-संयम का मतलब विचार- दमन नहीं, बल्कि उस पर प्रभुत्व प्राप्त करना है। 

उच्चतम स्थिति में अवश्य ही विचार-संयम का तात्पर्य विचार के सम्पूर्ण रुक जाने से है। जबतक हम अपने को अहंकार या शरीर से एक मानते हैं , तब तक हम इस अवस्था पर नहीं पहुंच सकते। स्वामी विवेकानंद प्राणायाम पर जो निम्नलिखित सबक सिखाते हैं, वह विचार को बन्द करने की प्रक्रियाओं का संकेत करता है:

“अपने को ईश्वर से अभिन्न समझो। कुछ समय बाद विचार अपने आगमन की घोषणा करेंगे और वे कैसे प्रारंभ क्षेत्र होते हैं, इस बात का हमें ज्ञान होगा और हम जो कुछ भी सोचने जा रहे हैंं उसके प्रति सचेत हो जायेंगे। इस स्तर पर ठीक वैसा ही अनुभव होगा, जैसा कि हम प्रत्यक्ष किसी आदमी को देखते हैं। इस सीढ़ी तक हम तभी पहुँच पाते हैं जब हमने अपने को मन से अलग करना सीख लिया है और तब हम अपने को अलग और मन को एक अलग वस्तु के रूप में देखते हैं।विचार तुम्हें पकड़ने न पायें; डटकर खड़े हो जाओ, वे शान्त हो जायेंगे। 

इन ( इष्टदेवता विषयक) पवित्र विचारों का अनुसरण करो ; उनके साथ चलो और जब वे अन्तर्निहित हो जायेंगे तब तुम्हें सर्वशक्तिमान् भगवान के चरणों के दर्शन होंगे। यह स्थिति ज्ञानातीत ( अति चेतन) अवस्था है। जब विचार विलीन हो जायं, तब उसी का स्मरण करो और उसी में तन्मय हो जाओ।” 

यहाँ पर यह उल्लेखनीय होगा कि हम विचारशून्य अवस्था की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनाओं का अभ्यास किये बिना अधीर न हो बैठें। मन को जहाँ तक बने पवित्र विचारों से भर लेना उचित होगा। इससे मन शुद्ध होगा। जब मन शुद्ध हो जाता है, तो विचार अपने आप रुक जाता है। 

गायत्री-मंत्र का जाप मनोनिग्रह में बड़ा सहायक है। मन्त्र का अर्थ यह है:

“हम उस दीप्तिमान सविता की वरेण्य प्रभाव का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को (शुभ कार्यो में) प्रेरित करे।”

यह वास्तव में समझ को परिष्कृत करने की साधना है और यह मन की पवित्रता से साधित होता है। पहले कह चुके हैं, मन जितना पवित्र होगा, उसे वश में करना उतना ही सरल होगा।

पतंजलि के अनुसार पवित्र  ऊँ मन्त्र का जाप मनोनिग्रह में मूलभूत रूप से सहायक होता है। वे कहते हैं :

“वह ( ईश्वर) प्रणव के द्वारा सूचित होता है. इस प्रणव के जाप और उसके अर्थ ( ईश्वर) का चिन्तन करने से एकाग्रता की प्राप्ति होती है। उससे आत्मनिरीक्षण हो सकता है तथा एकाग्रता में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।” 

जब मन निग्रहीत हो जाता है तो आत्मनिरीक्षण और एकाग्रता सधती है। स्वामी विवेकानंद पतंजलि के इन 28वें और 29वें सूत्रों पर व्याख्या करते हुए लिखते हैं:

“जप अर्थात् बारमबार उच्चारण की क्या आवश्यकता है ? हम संस्कार विषयक मतवाद को न भूले होंगे। हमें स्मरण होगा कि समस्त संस्कारों की समष्टि हमारे मन में विद्यमान है। ये संस्कार क्रमशः सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होकर अव्यक्त भाव धारण करते हैं। पर वे बिल्कुल लुप्त नहीं हो जाते, वे मन के अन्दर ही रहते है और ज्यों यथोचित उद्दीपन मिलता है,बस त्योंही वे चित्त रूपी सरोवर की सतह पर उठ आते हैं। परमाणु-कम्पन कभी बन्द नही होता। जब यह सारा संसार नाश को प्राप्त होता है ,तब सब बड़े-बड़े कम्पन या प्रवाह लुप्त हो जाते हैं ; सूर्य, चन्द्रमा, तारे, पृथ्वी सभी लय को प्राप्त हो जाते हैं, पर कम्पन परमाणुओं में बचे रहते हैं। इन बड़े-बड़े ब्रह्माण्डों में जो कार्य होता है, प्रत्येक परमाणु वही कार्य करता है। ठीक ऐसा ही चित्त के बारे में भी है। चित्त में होनेवाले सभी कम्पन् अदृश्य अवश्य हो जाते हैं, फिर भी परमाणुओं के कम्पन् के समान उनकी सूक्ष्म गति अक्षुण्ण बनी रहती है और ज्योंही उन्हें कोई संवेग मिलता है, बस , त्योंही वे पुन: बाहर आ जाते हैं। अब हम समझ सकेंगे कि जप अर्थात् बारम्बार उच्चारण का तात्पर्य क्या है। हम लोगों के अन्दर जो आध्यात्मिक संस्कार हैं, उन्हें विशेषरूप से उद्दीप्त करने में यह प्रधान सहायक है।” 

‘क्षणमिह सज्जनसंगतिरेका, भवति भवार्णवे तरणि नौका’ – साधुओं का एक क्षण भी सत्संग भवसागर पार होने के लिए नौका- स्वरूप है।’ सत्संग की ऐसी जबरजस्त शक्ति है। बाह्य सत्संग की जैसी शक्ति बतलायी गयी है, वैसे ही आन्तरिक सत्संग का भी है। इस ओंकार का बारम्बार जप करना और उसके अर्थ का मनन करना ही आन्तरिक सत्संग है। जप करो और उसके साथ उस शब्द क्षेत्र के अर्थ का ध्यान करो। ऐसा करने से देखोगे, हृदय में ज्ञान का आलोक आयेगा और आत्मा प्रकाशित हो जायेगी। 

‘ऊँ’ शब्द पर मनन तो करोगे ही, पर साथ ही उसके अर्थ पर भी मनन करो। कुसंग छोड़ दो; क्योंकि पुराने घाव के चिह्न अभी भी तुम में बने हुए हैं; उनपर कुसंग की गर्मी लगनेभर की देर है कि बस, वे फिर से ताजे हो उठेंगे। ठीक इसी प्रकार हम लोगों में जो उत्तम संस्कार हैं, वे भले ही अभी अव्यक्त हों, पर सत्संग से वे फिर जाग्रत-व्यक्त हो जायेंगे। संसार में सत्संग से पवित्र और कुछ नहीं है, क्योंकि सत्संग से ही शुभ संस्कार चित्तरूपी सरोवर की तली से ऊपर सतह पर उठ आने के लिए उन्मुख होते हैं।

इस ओंकार के जप और चिन्तन का पहला फल यह देखोगे कि क्रमश: अन्तर्दृष्टि विकसित होने लगेगी और योग के मानसिक और शारीरिक विध्नसमूह दूर होते जायेंगे।

धन्यवाद् ,जय गुरुदेव 

 कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को  ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से  चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।

अगला लेख-२७. अवचेतन मन का संयम -भाग 1

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आज के लेख में आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के 8 सूझवान व समर्पित नवयुग शिल्पकारों ने अपने भाव भरे आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों की हवन सामग्री से कमेन्ट्स रूपी आहुति डाल कर 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण किया है l वह नव युग शिल्पकार सजग सैनिक  हैं : (1) सरविन्द कुमार पाल – 43, (2) अरूण कुमार वर्मा जी – 30, (3) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 27, (4) प्रेरणा कुमारी बेटी – 25, (5) संध्या बहन जी – 25, (6) कुसुम बहन जी – 25, (7) डा.अरुन त्रिखा जी – 24, (8) निशा दीक्षित बहन जी – 24 उक्त सभी सैनिकों  को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से अनंत ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई हो एवं  सभी पर आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता  की असीम अनुकम्पा सदैव बरसती रहे यही आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की गुरुसत्ता से विनम्र प्रार्थना व  मंगल कामना है l धन्यवाद l जय गुरुदेव 

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