27 अगस्त 2021 का ज्ञानप्रसाद : पांडुकेश्वर ,बद्रीनाथ और माणा गांव – भारत का अंतिम गांव https://drive.google.com/file/d/1RCMP6yp0Chl6Kqa6JeUrbFJsQQ_eKsGG/view?usp=sharing
आज का लेख आरम्भ तो किया तो उदेश्य केवल पांडुकेश्वर ग्राम के बारे में लिखना ही था क्योंकि परमपूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा का इसके साथ सम्बन्ध था, लेकिन रिसर्च करते-करते इतना विस्तृत विवरण मिलता गया कि डर लगने लगा कि कहीं देवभूमि उत्तराखंड में ही न खो जाएँ। इस दिव्य भूमि का क्या कहें, शब्द नहीं हैं ,चप्पे -चप्पे पर भगवान का वास् है। इस भूमि को हमारा नमन ,इसे समझने के लिए कई जन्म लेने पड़ेंगें – एक जन्म में असम्भव ही लगता है। और इतनी सारी जानकारी को दो पन्नों के लेख में compile करना बहुत ही बड़ा कार्य है। किसी बात को अधिक शब्दों में बयान करना बहुत ही आसान है लेकिन जब बात आती है कम शब्दों की तो दुविधा में पड़ जाते हैं। इसीलिए हमारी इस capability को judge करने के लिए अक्सर इंटरव्यू में बहुत ही स्टैण्डर्ड प्रश्न पूछा जाता है- Tell us about yourself in 2 minutes .
लेख के साथ ढाई मिंट की वीडियो attach की है क्योंकि 5 -6 फोटो और वीडियो लगाने का और कोई विकल्प नहीं था।हम अनुभव कर सकते हैं कि आप लगातार इतने बड़े- बड़े लेख पढ़ रहे हैं और फिर इतने बड़े -बड़े कमेंट भी लिख रहे हैं आप अवश्य ही थक चुके होंगें ,इसलिए कल कोई लेख नहीं होगा, केवल महेंद्र भाई साहिब की एक वीडियो होगी। हर बार की तरह आपसे आज ही संकल्प लेते हैं कि वीडियो की description अवश्य पढ़ें और परमपूज्य गुरुदेव को श्रद्धा और आदर के पुष्प अर्पित करते हुए अधिक से अधिक लोगों में शेयर करें ,कमेंट करें।
तो आओ चलें उत्तराखंड की दिव्य भूमि की ओर।
पांडुकेश्वर ग्राम :
पांडुकेश्वर ग्राम असंख्य आलेखों के लिए लोकप्रिय है।महाभारत के सबसे लोकप्रिय आलेखों में एक का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया है कि यह वह स्थान है जहां पांडवों के पिता राजा पांडु ने ऋषियों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए प्रयाश्चित में गहरी तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि पांडु जो धृतराष्ट्र के छोटे भाई थे अपना सिंहासन धृतराष्ट्र को देने के बाद इसी पांडुकेश्वर में अपनी पत्नियों माद्री और कुंती के साथ रहने का प्रण लिया था । ऐसा कहा जाता है कि एक दिन राजा पांडु शिकार पर गये और उन्होंने गलती से एक ऋषि को मार डाला जो हिरण के रूप में अपनी पत्नी के साथ प्रेम कर रहे थे । मरते समय ऋषि ने पांडु को श्राप दिया कि वह भविष्य में किसी से प्रेम नहीं कर पायेंगें और यदि उन्होंने ऐसा करने की कोशिश की तो उनकी मृत्यु हो जाएगी। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए राजा पांडु ने “योगध्यान बद्री” का दौरा किया और भगवान विष्णु की एक कांस्य मूर्ति स्थापित की और वहां गहन ध्यान किया। इस बीच योगध्यान के माध्यम से माद्री और कुंती ने पांडवों को जन्म दिया। बाद में, एक दिन जब माद्री अलकनंदा नदी में स्नान कर रही थी तो राजा पांडु उनकी ओर आकर्षित हुए और ऋषि के श्राप के अनुसार उनकी मृत्यु हो गई। पांडव अपने 12 साल के वनवास के दौरान अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए पांडुकेश्वर आए थे। ऐसा माना जाता है कि अर्जुन ने भी वनवास के दौरान यहीं पर ध्यान लगाया था और भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए उनका आशीर्वाद लिया था। बाद में पांडवों ने वासुदेव मंदिर का निर्माण किया और इसे भगवान विष्णु, माद्री और देवी लक्ष्मी को समर्पित किया।
साथ में दिए हुए नक्शे में आप देख सकते हैं कि पांडुकेश्वर, बद्रीनाथ और जोशीमठ के बीच स्थित है। बद्रीनाथ से पांडुकेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर
और जोशीमठ से पांडुकेश्वर की दूरी 18 किलोमीटर है। यहाँ पहुँचने के लिए ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से लगभग 274 किलोमीटर और देहरादून से 302 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। समुद्र तल से लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित और भगवान विष्णु के पवित्र मंदिर बद्रीनाथ के रास्ते में, पांडुकेश्वर देवभूमि में सबसे लोकप्रिय दिव्य स्थानों में से एक है। पांडुकेश्वर दो पवित्र धामों योगध्यान बद्री और भगवान वासुदेव मंदिर का घर है। हिंदू पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि वासुदेव मंदिर का निर्माण बहादुर पांडवों ने भगवान वासुदेव के सम्मान में किया था।
बद्रीनाथ धाम :
गढ़वाल हिमालय पर्वतमाला के बीच प्रकितिक सौंदर्य में बसा “बद्रीनाथ धाम दर्शन” विष्णु उपासकों के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक माना जाता है। समुद्र तल से लगभग 11000 फुट ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर एक महान धार्मिक महत्व रखता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मूल रूप से महान हिंदू दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने 7वीं शताब्दी में किया था। योगध्यान बद्री मंदिर, जो सप्त बद्रियों में से सबसे महत्वपूर्ण बद्री के रूप में माना जाता है, पांडुकेश्वर में स्थित है। जैसा नाम से ही विदित है सप्तबद्री भगवान विष्णु को समर्पित सात मंदिरों का समूह है। यह सातों मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं और इनके नाम इस प्रकार हैं : बद्रीनाथ मंदिर ,अदि बद्री ,वृद्धा बद्री ,ध्यान बद्री ,अर्ध बद्री , भविष्य बद्री और योगध्यान बद्री। योगध्यान बद्री मंदिर में भक्त भगवान कुबेर और भगवान उधव को श्रद्धांजलि देने के लिए आते हैं और सर्दियों के मौसम में, भगवान विष्णु की लेटी हुई मूर्ति को श्रद्धांजलि देते हैं । हम सब भलीभांति जानते हैं कि मौसम के कारण भगवान बद्रीनाथ के दर्शन वर्ष के केवल कुछ एक महीनों में ही हो पाते हैं, और शरद ऋतु में इस मंदिर के कपाट ( द्वार ) बंद रहते हैं। इन दिनों में मूर्तियों को स्थानांतरित करके योगध्यान बद्री में स्थापित किया जाता है। मूर्तियों को बद्रीनाथ से स्थानांतरित करने के दिन स्थानीय लोग और पुजारी “देववर” नामक एक प्रमुख उत्सव का आयोजन करते हैं। इसी तरह के एक और उत्सव का आयोजन तब किया जाता है जब मूर्तियों को वापस बद्री मंदिर में ले जाया जाता है।
माणा गांव – भारत का अंतिम गांव
उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा से सटा एक सुप्त गाँव माणा, नवम्बर के दिनों में गतिविधियों से चहल पहल कर रहा होता है। इसके निवासी 18 नवंबर तक पैकिंग कर गांव छोड़ने की तैयारी कर रहे होते हैं। चीन की सीमा से लगा भारत का आखिरी गांव माना जाने वाला “माणा” अगले छह महीने तक सोने के लिए तैयार है। यह अभ्यास हर साल सर्दियों की शुरुआत में दोहराया जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त पहाड़ों में बसा, समुद्र तल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर बसे इस ग्राम में सर्दियों के दौरान बर्फ पड़ी रहती है और यह ग्राम सोया रहता है। बद्रीनाथ मंदिर से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित इस बस्ती का जीवन तीर्थयात्रा पर ही निर्भर करता है।मंदिर के कपाट बंद होने से गांव में गतिविधियां भी ठप हो जाती हैं और सर्दी के मौसम में एक भयानक सन्नाटा सा छा जाता है। गांव के सभी निवासी छै मॉस के लिए स्थानांतरण कर जाते हैं। गांव से स्थानांतरण के कुछ दिन पहले सभी परिवार एक विशेष पूजा में शामिल होते हैं। अनुष्ठान के बाद, गाँव को “स्थानीय देवता -घंटाकरण-” के संरक्षण में छोड़ दिया जाता है। फिर ग्रामीण गोपेश्वर, पांडुकेश्वर, जोशीमठ, आदि में अपने अन्य घरों के लिए निकल जाते हैं। इस छोटी सी बस्ती जैसे गांव में इंटर कॉलेज भी है जो बाकि सैशन केलिए पांडुकेश्वर में स्थानांतरित हो जाता है। और जैसे ही अप्रैल में बर्फ पिघलनी शुरू होती है, लोगों के लौटते ही गाँव में फिर से जान आ जाती है। प्राचीन शास्त्रों में माणा का पौराणिक महत्व है, जहां इसे मणिभद्रपुरम कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पांडव “स्वर्ग” (स्वर्ग) की यात्रा में इस गांव से गुजरे थे। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास ने इस गांव में महाभारत का वर्णन किया था और भगवान ब्रह्मा के निर्देश पर भगवान गणेश ने इसे लिखा था। महाभारत काल के व्यास और गणेश गुफाओं के अवशेषों के अलावा, सरस्वती नदी का उत्पति स्थल और 140 मीटर ऊंचा वसुधारा नामक वॉटरफॉल यहां के मुख्य पर्यटक आकर्षण हैं। दो पहाड़ी गुफाएं और चट्टानों पर प्राचीन भारतीय ग्रंथों की खुदाई पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। एक चाय की दुकान पर “भारत की आखिरी दुकान” का साइनबोर्ड पर्यटकों के लिए एक मनोरंजन है और लोग इसके सामने सेल्फी लेते देखे गए हैं। एक समय में यह ग्राम भारत और तिब्बत में व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था, लेकिन तिब्बत के चीन में विलय के बाद यह व्यापर समाप्त हो गया। ऐसा माना जाता है कि तिब्बत में इस ग्राम के कई निवासियों की संपत्ति थी और कैलाश मानसरोवर जाने के लिए एक मार्ग इसी गांव से होकर जाता था । माणा निवासी जड़ी-बूटियों, पश्मीना, कंबल, ऊनी, कालीन आदि के व्यापार में लगे हुए हैं। अन्य सीमावर्ती गांवों के विपरीत, यह ग्राम विभिन्न सरकारी योजनाओं के सौजन्य से अच्छी तरह से विकसित है।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो।