20 अगस्त 2021 का ज्ञानप्रसाद – हिमालय की अलौकिक शक्तियों को प्रमाणित करती है मिस्टर फैरेल की यह सत्यकथा – पार्ट 1
11 और 12 अगस्त के लेखों में हमने आपको ज्ञानगंज ,सिद्धाश्रम ,शांगरिला इत्यादि हिमालय के अलौकिक क्षेत्रों का वर्णन किया था। Aajtak,ZeeNews य फिर किसी और TV चैनल की तरह यह विषय इतना पॉपुलर हो गया है कि क्या सही है और क्या fake है बताना कठिन हो गया है। आप यह शब्द गूगल सर्च बार में डाल कर तो देखिये, ऐसे -ऐसे दावे किये जा रहे हैं कि पैरों तले ज़मीन ही खिसक जाये। लेकिन हम अपनी रिसर्च के आधार पर, तथ्यों के आधार पर केवल वही कंटेंट लेकर आयेंगें जिन पर ऊँगली उठाना इतना आसान न हो, लेकिन अनजाने में त्रुटि तो हमसे भी हो सकती है जिसके लिए हम सदैव ही क्षमा प्रार्थी रहेंगें। हम कई महीनों से इस टॉपिक पर रिसर्च कर रहे थे और इसी निष्कर्ष पर उतरे हैं कि अलौकिक शक्ति रखने वाली अमर आत्माएं अभी भी हिमालय में मौजूद हैं और वे अनंत काल तक वहीं रहेंगी। आधुनिक वैज्ञानिक भी “जीवन के अमृत” की खोज में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका आदि देशों के विज्ञानी लंबे समय से आयु बढ़ाने और मृत्यु की प्रक्रिया की जांच कर रहे हैं। इन वैज्ञानिक प्रयोगों का वर्णन तो पार्ट 2 में किया जायेगा लेकिन आज का पार्ट 1 पृष्ठभूमि अवश्य ही बना रहा है। मार्च -अप्रैल 2004 के अखंड ज्योति (English edition )पर आधारित मिस्टर फैरेल की कथा रोचक के साथ -साथ अलौकिक भी कम नहीं है। हम प्रयास करेंगें किआपको मिस्टर फैरेल की यात्रा का आँखों देखा हाल एक live movie की तरह दिखाएँ।
तो आओ चलें इस आर्मी कमांडर के साथ साथ।
यह 1942 की घटना है जब कुमाऊं(उत्तराखंड ) के राजा ने पश्चिमी कमान के एल.पी. फैरेल नामक एक सैन्य अधिकारी को पहाड़ियों की पिकनिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था। श्री फैरेल को आमंत्रित करने का एक विशेष कारण था; ब्रिटिश होने के बावजूद उनकी भारतीय धर्म, भारतीय फिलोसोफी और संस्कृति में बहुत रुचि थी। उन्हें कुछ भारतीय योगियों के चमत्कारी कारनामों के प्रदर्शन को देखने के कुछ अवसर मिले। वह शुद्ध शाकाहारी बन गए थे। उन्होंने हमेशा ही हिमालय की ओर जाने के हर किसी अवसर का स्वागत किया ताकि कोई भी संत य योगी मिले जो उन्हें आध्यात्मिक साधना में दीक्षित कर सके?। मिस्टर फैरेल, राजा, रानी और उनका दल प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर नैनीताल के पास एक स्थान पर पहुँच गया। इस स्थान ने उन्हें इतना मंत्रमुग्ध कर दिया कि उन्होंने रात भर वहीं डेरा डालने का फैसला किया और वहीँ पर दर्जनों तंबू गाड़ दिए। यह सुनसान जगह नौकरों की चहल-पहल से भर गई। आधी रात तक गपशप, मौज-मस्ती, खाना-पीना चलता रहा। दिन भर की थकान के कारण सभी तुरंत गहरी नींद में सो गए। अभी मुश्किल से नींद का पहला चरण ही खत्म हुआ था कि “मिस्टर फैरेल को लगा कि उनकी खाट के पास कोई है।” वह उठे और उन्होंने स्पष्ट रूप से सुना- “जहां आपके तंबू लगाए गए हैं हमें उस जगह की जरूरत है ।आप इस जगह को खाली कर दें । अगर आप इस बात को समझने में असमर्थ हैं तो आपको सामने वाली उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी पर आना चाहिए। मैं आपको सब कुछ समझा दूंगा।” मिस्टर फैरेल ने कहा, “लेकिन आप हैं कौन?” इतना कह कर वह बेड से उठे, टार्च जलाई और इधर उधर देखने लगे, लेकिन वहां कोई नहीं था। वह तंबू से बाहर आये, लेकिन बाहर भी न तो किसी को देखा और न ही किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। उन्हें एक पल के लिए डर तो लगा लेकिन बाद में वह सामान्य हो गया। सोने के लिए वह फिर अपने बिस्तर पर वापस चले गए । उन्होंने देखा घड़ी में साढ़े तीन बजे थे। लाख कोशिशों के बाद भी वह सो नहीं सके। किसी तरह आंखें बंद कर रहे थे लेकिन उन्हें फिर से किसी की मौजूदगी का अहसास हुआ। इस बार बिस्तर पर लेटे हुए उन्होंने आँखें खोलीं और देखा कि उनके सामने एक व्यक्ति की परछाई खड़ी है। इस बार फिर उस व्यक्ति ने वही शब्द कहे। व्यक्ति की पहचान के लिए जैसे ही मिस्टर फैरेल ने टॉर्च जलाई तो वह परछाई गायब हो गई, उनका शरीर कांपने लगा और पसीना आने लगा। हम उस सेना अधिकारी की बात कर रहे हैं जो युद्ध में भीषण रक्तपात को भी देखकर नहीं घबराया, ऐसी कौन सी वस्तु थी जिसने उन्हें इतना भयभीत कर दिया था। क्षण भर के लिए एक अलौकिक (Supernatural) प्राणी की कल्पना से ही वह इतने व्याकुल हो गए थे । अब नींद कहाँ आनी थी। सुबह तक इसी तरह आँखें बंद करके अपने बिस्तर पर लेटे रहे लेकिन कुछ भी सुनाई न दिया। लेकिन मन में उस वर्णित पहाड़ी को देखने के लिए एक जिज्ञासा ज़रूर उभरी और उनके भीतर एक अजीब सा आकर्षण पैदा हो रहा था। उन्होंने कपड़े पहने, जूते पहने, चुपचाप तंबू से बाहर आए और उस पहाड़ी की ओर चल दिए ।
इस घटना का वर्णन करते हुए मिस्टर फैरेल ने स्वयं लिखा है:
“जिस स्थान तक पहुँचने के लिए मुझे निर्देशित किया गया था, वहाँ का रास्ता बहुत कठिन, तंग और खतरनाक था। मैं अपनेआप से ऊपर चढ़ने में सक्षम नहीं था लेकिन मुझे लगातार लग रहा था कि कोई मुझे रास्ता दिखा रहा है और मुझे ऊपर चढ़ने की ऊर्जा प्रदान कर रहा था। साढ़े तीन घंटे की कड़ी मेहनत के बाद मैं उस पहाड़ी के ऊपर चढ़ सका। भारी सांस और पसीने के कारण आगे बढ़ना मुश्किल लग रहा था। इसलिए मैं एक चौकोर पत्थर पर बैठ गया, कुछ आराम करने के लिए उस पत्थर पर लेट गया और मुझे नींद आ गयी । मुश्किल से दो मिनट बीते होंगें कि उसी आवाज ने मुझे जगाया और कहा – मिस्टर फैरेल, अब आप अपने जूते उतारो और धीरे-धीरे पत्थर पर चढ़ो और मेरे पास आओ। कानों में इन शब्दों के साथ, मैंने चारों ओर देखा और देखा कि एक बहुत ही कमजोर संत मेरे सामने खड़े थे। कमज़ोर तो थे लेकिन मस्तक पर इतना तेज़ था कि क्या कहें। परिचय की तो बात ही क्या करें मैंने उन्हें न तो कभी पहले देखा था और न ही कभी मिला था। बड़ी हैरानगी हुई कि इन्हे मेरा नाम कैसे मालूम हुआ। वह तो यहाँ थे पर उनकी परछाई रात को मेरे टेंट में कैसे पहुँच गयी ? हम दोनों के बीच संचार का कोई भी माध्यम – टेलीफोन रेडियो फ़ोन, रेडियो लिंक इत्यादि नहीं था फिर उनकी आवाज़ मुझ तक कैसे पहुँची? ऐसे अनेक प्रश्न मेरे मन में उठे। इन unending प्रश्नों पर विराम लगाते हुए साधु बाबा ने कहा- जो कुछ भी आपने सुना और देखा है वह सामान्य मानव मन से नहीं समझा जा सकता है। इसके लिए मनुष्य को सांसारिक सुखों और इन्द्रियों (5 senses) के आकर्षण का परित्याग करते हुए दीर्घ साधना और योगाभ्यास करना होता है। आपको यहाँ एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए बुलाया गया है।”
आजकल के विज्ञान ने तो 5 इन्दिर्यों के बजाये 7 प्रमाणित करके रख दी हैं। कभी इन इन्द्रियों की चर्चा भी करेंगें, अवश्य ही इनका ज्ञान भी हमारा जीवन सुखमय बनाने में सहायक होगा।
तो चलते हैं आगे :
फैरेल यह पता नहीं लगा सके कि वह संत व्यक्ति थे या देवता। उनके मन में उठने वाले विचार इन दिव्य विभूति द्वारा एक खुली किताब की तरह लगातार पढ़े जा रहे थे। फैरेल चट्टान पर चढ़ आये और कुछ ही देर में उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ साधु बैठे थे। वह स्थान इतना छोटा था कि वहाँ केवल एक ही व्यक्ति बैठ सकता था।
फैरेल लिखते हैं :
“सामने रखे अग्निकुंड में धूनी का आभास हो रहा था। साधु महाराज ने अपने अत्यंत कमजोर हाथ से मेरी पीठ पर थपथपाया और मैं दंग रह गया कि उस बूढ़े शरीर में यह बिजली जैसी शक्ति कैसे हो सकती है। मेरा शरीर जो थकावट के कारण दर्द से लगभग टूट चुका था अब एक फूल की तरह हल्का लग रहा था उनके प्रति सम्मान के एक विनम्र भाव में मैंने घुटने टेक दिए और उनके पैर छुए। मैंने कई साधु देखे थे, लेकिन मैंने हमेशा महसूस किया है कि जिन साधुओं और संतों ने भारतीय फिलोसोफी को प्रभावित किया और उसकी गरिमा को बढ़ाया, वे उस तरह के नहीं थे जो सड़कों पर घूमते रहते हैं , भिक्षा मांगते रहते हैं , बल्कि वास्तव में वह हैं जो एकांत-साधना में रमे समर्पित व्यक्ति हैं। उनके भौतिक शरीर का वजन भले ही केवल 40 -50 किलोग्राम हो लेकिन उनकी ऊर्जा की तीव्रता और शक्ति हजार बमों से भी अधिक है और वे ज्ञान के भंडार हैं । साधु महाराज ने मुझसे कहा, ” जहां आपने टेंट लगाए हैं, मैंने एक युवा को उस स्थान तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया है। वह पिछले जन्म में मेरा शिष्य था, तब उसकी साधना अधूरी रह गयी थी , मैं अब फिर से उसका मार्गदर्शन करना चाहता हूं ताकि वे विश्व कल्याण के लिए साधना और तपस्या कर सके । लेकिन उसके पिछले जन्म की यादें सुप्त ( inactive ) हो गयी हैं। इस जन्म के प्रभाव और परिस्थितियों ने उसे इतना अधिक आकर्षित कर दिया है कि वह फिर से साधना करने में असमर्थ है। मैंने अपनी सूक्ष्म प्रेरणा से उसे बुलाया है। यदि वह आता है और निर्देशित स्थान का पता लगाने में असमर्थ है, तो वह भ्रमित हो जाएगा, confuse हो जायेगा उस स्थिति में जो कुछ मैं चाहता हूँ वह संभव नहीं होगा इसलिए आप कृपया उस स्थान को तुरंत खाली कर दें।
फैरेल ने कहा – “भगवान! कृपया मुझे भी मेरे पिछले जन्म के बारे में भी कुछ बातें बताएं” साधु महाराज ने उत्तर दिया- ” बेटे ,ये सिद्धियां (उपलब्धियां) प्रदर्शन के लिए नहीं होती हैं। वे कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए ही होती हैं और बेहतर है कि उनका उपयोग केवल उनके उदेश्यों के लिए ही किया जाए। लेकिन जब मैं उसे उसके पिछले जन्म की घटनाएँ दिखाता हूँ तो अगर आप चाहें तो बेशक उस समय उपस्थित हो सकते हैं। अब तुम जाओ। कैंप में लोग आपको ढूंढ रहे हैं। मैं भी जल्दी में हूं।”
To be continued :
बहुत बहुत धन्यवाद्।
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। जय गुरुदेव