
12 अगस्त 2021 का ज्ञानप्रसाद – क्या गुरुदेव ज्ञानगंज गए थे ?
मित्रो आज के लेख में आप हमारे रिसर्च प्रयासों से परमपूज्य गुरुदेव के बारे में जानने की जिज्ञासा का अंदाज़ा लगा सकेंगें। हम सभी जानते हैं कि गुरुदेव चार बार हिमालय यात्रा पर गए और उनकी यात्राओं का अध्यन करने से मालुम होता है सुमेरु पर्वत वाला क्षेत्र ,कैलाश मानसरोवर वाला क्षेत्र, ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हे सिद्ध क्षेत्र कहा जा सकता है। हम कह रहे हैं “कहा जा सकता है”। इसमें कोई शंका की बात तो नहीं है लेकिन हम इसलिए ऐसा कह रहे हैं कि केवल उतनी ही जानकारी उपलब्ध है जितनी परमपूज्य गुरुदेव ने स्वयं बताई है ,शायद इससे अधिक न बताने का दादा गुरु का ही निर्देश हो। जो भी हो सारे विवरण बहुत ही रोचक हैं। हम इन विषयों पर पहले भी लिख चुके हैं ,हो सकता है आने वाले लेखों पर और भी लिखें। आप प्रतीक्षा कीजिये।आज आप ज्ञानगंज के अलौकिक क्षेत्र का आनंद उठाइये।
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ज्ञानगंज:
ज्ञानगंज जिसके कई नाम हैं हिमालय में एक ऐसा अदृश्य स्थान है जो अपनी आलौकिकता के लिए अति प्रसिद्ध है। हम इस स्थान के बारे में जानने के लिए इतने उत्सुक रहते हैं कि खुद नहीं जानते कि पिछले कुछ वर्षों में इसके बारे में कितनी बार पढ़ना शुरू किया ,कितने ही नोट्स बना कर लिख डाले, स्क्रीन- शॉट्स लेकर save कर लिए लेकिन हर बार इस विस्तृत ज्ञान को जानते-जानते हम इतना उलझ गए कि अपने आप में खोकर रह गए। इसके दो ही कारण समझ आए- 1 – ज्ञानगंज है ही अलौकिक तो रहस्य भी अलौकिक ही होंगें 2 – इंटरनेट पर इस विषय पर इतना ज्ञान है कि इसे compile करना ,summarize करना अस्मभव सा ही लगता है।
प्रतिदिन का नियमित लेख लिखने के साथ -साथ पिछले कई दिनों से जब भी समय मिला हम इस विषय पर रिसर्च करने में एक बार फिर प्रयासरत रहे और परिणाम फिर वही – जानकारी, जानकारी और केवल जानकारी ही जानकरी। सारे विश्व में इस विषय पर इतना अधिक कार्य हो रहा है कि लेख से लेकर ,पुस्तकों तक ,टीवी सीरियल से लेकर हॉलीवुड की फिल्मों तक इस विषय पर कार्य हो रहा है। 1933 में प्रकाशित नॉवेल “Lost Horizon ” पर आधारित 1937 की मूवी और फिर 1973 में इसका remake एक ब्रिटिश -अमरीकन मूवी है। इस फिल्म का synopsis लिखते हुए वर्णन किया गया है कि एक तूफान के दौरान एक जहाज़ हिमालय में कहीं अनजान जगह पर जाकर रुकता है , यह जगह इतनी अलौकिक है ,इतनी अजीब है, इतनी शाश्वत है कि यहाँ यौवन ही यौवन है और कभी कोई बूढ़ा ही नहीं होता है,बड़े बड़े महल ,सोने चांदी,हीरे जवाहरात से सुसज्जित बड़े-बड़े महल ,इस अलौकिक प्रदेश जिसका नाम शांगरिला है, इसकी शोभा बढ़ाते हैं। शांगरिला,सिद्धाश्रम ,सिद्धक्षेत्र इस प्रदेश के कुछ और नाम हैं। लेकिन एक बात हम स्पष्ट करना चाहेंगें ,यह एक मूवी है, कल्पना है। चेतना की शिखर यात्रा 2 के चैप्टर 19 ” जहाँ न पहुंचे काया ” ने हमारे मन में इस क्षेत्र के जानने की जिज्ञासा उठाई थी। चैप्टर 18 का शीर्षक तो “सिद्धलोक में प्रवेश” है परन्तु हम चाहते थे कि इस क्षेत्र को और अधिक जाना जाये और अगर हम जान पाए तो आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाये। परम पूज्य गुरुदेव इस क्षेत्र में गए थे इसका बहुत ही संक्षिप्त वर्णन इस पुस्तक में है ,अच्छा होता इसी में इस क्षेत्र का वर्णन कर दिया जाता। “जहाँ न पहुँच पाए काया” शीर्षक का अर्थ तो यही है कि जहाँ पर कोई भी स्थूल शरीर काया नहीं पहुँच पाए ,केवल सिद्ध पुरष जिन्होंने घोर साधना करके सिद्धियां प्राप्त की हैं वही इस अलौकिक प्रदेश में पहुँच पाए हैं। तो हमारे परमपूज्य गुरुदेव कौन से साधारण पुरष थे ,वह भी तो सिद्ध पुरुष थे।
परमपूज्य गुरुदेव ने हिमालय को पिता और गंगा को माँ कहकर संबोधित किया है। हिमालय केवल एक बड़ा सा विशालकाय पर्वत ही नहीं है , इसका सौंदर्य ,झरने ,अदिव्तीय जड़ी बूटियां,पर्वतारोहण,पर्यटन सम्पदा ही नहीं है ,यह एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ देवताओं का, सिद्ध आत्माओं का वास है। जिस दिव्य भूमि पर आज शांतिकुंज स्थापित है यहाँ कभी मुनि विश्वामित्र ने घोर तप किया था। इसीलिए उत्तराखंड प्रदेश जिसमें हरिद्वार ,ऋषिकेश,गंगोत्री ,यमनोत्री केदारनाथ ,बद्रीनाथ जैसे दिव्य स्थान शामिल हैं देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। और देखिये हमारे गुरुदेव की दूरदर्शिता – उन्हें मालूम था कि आने वाले दिनों में कौन हिमालय जाना चाहेगा,लोग शॉर्टकट के अभयस्त हो जायेंगें , कौन जाकर तपस्या -साधना करना चाहेगा; उन्होंने यहीं, शांतिकुंज में ही देवात्मा हिमालय का अद्भुत मंदिर और सप्तऋषि क्षेत्र बना दिया कि उनके बच्चों को कोई कठिनाई न हो। वैसे तो सारे शांतिकुंज में ही दिव्यता का अनुभव होता है लेकिन इन दो क्षेत्रों में तो दिव्यता चरम सीमा पर है। आजकल के समय में आवागमन के साधन पिछले समय से तो बेहतर ही हुए हैं लेकिन मनुष्य शॉर्टकट में विश्वास रखता है। उसे बिना कुछ किये, बिना शरीर को कष्ट दिए सब कुछ अपने ड्राइंग रूम में ही मिल जाना चाहिए। आप आज की स्थिति को ही देख लें – कोरोना ने हमें ऑनलाइन यज्ञों ,ऑनलाइन अनुष्ठानों ,ऑनलाइन संस्कारों की इतनी आदत डाल दी कि मनुष्य इसी तकनीक को पसंद कर रहा है लेकिन वह यह भूल रहा है कि वातावरण का कितना रोल है ,TB के रोगियों को चीड़ के वृक्षों वाले वन्य वातावरण में रखा जाता है। हमने भी एक वीडियो “शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम” शीर्षक से अपलोड की थी। https://www.youtube.com/watch?v=QfG2ioqUzSE&t=515s
ऑनलाइन यज्ञ तो ठीक है लेकिन वातावरण कहाँ से आएगा ? यही है ज्ञानगंज ,सिद्धाश्रम ,सिद्धक्षेत्र ,शांगरिला ,शंबाला का वातावरण। यह सभी नाम उन जगहों के हैं जिन्हें ” Land of the undying in the Himalayas ”
कहाँ है ज्ञानगंज ?
तिब्बत धरती नामक ग्रह पर सबसे सुंदर और अदूषित क्षेत्रों में से एक है। यह सुदूर क्षेत्र न केवल साहसिक प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि उन यात्रियों को भी आकर्षित करता है जो अपने जीवन में अस्तित्व का गहरा अर्थ खोजने के उद्देश्य से निर्देशित होते हैं। पिछली शताब्दी तक रहस्य में डूबा और अत्यधिक दूरस्थ, तिब्बत अभी भी काफी हद तक अज्ञात और अनदेखा है। जो बात इस हिमालयी क्षेत्र को और अधिक दिलचस्प बनाती है, वह है इससे जुड़े विभिन्न myths और पौराणिक कथाएं । ज्ञानगंज इस तरह का एक क्षेत्र है जिसने कई लोगों की रुचि पकड़ी है, जिससे विभिन्न बहसें, जाँच-पड़ताल और किताबें सामने आई हैं। हिमालय की रहस्यमय घाटियों के भीतर कहीं स्थित, ‘ज्ञानगंज’, अमरों की भूमि है। यह एक पौराणिक मान्यता है कि ज्ञानगंज रहस्यमय अमर प्राणियों का बसा हुआ एक नगर-राज्य है जो आवश्यकता पड़ने पर सूक्ष्म तरीकों से मनुष्य के अस्तित्व को प्रभावित करता है। किसी भी बुरे कर्म से रहित महान संत ही मानसिक बाधाओं और आयामों से गुजरते हुए इस आध्यात्मिक भूमि में स्थान पा सकते हैं। इस पौराणिक साम्राज्य का सटीक स्थान अज्ञात है क्योंकि यह माना जाता है कि ज्ञानगंज कृत्रिम रूप से मनुष्यों से खुद को छुपाता है, साथ ही साथ mapping तकनीक भी। कुछ का यह भी मानना है कि ज्ञानगंज वास्तविकता के एक अलग plane में मौजूद है may be in fourth dimension और इसलिए Sattelite यं GPS द्वारा इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। जब हम plane की बात आकर रहे हैं तो हमारा अभिप्राय ज्योमेट्री के x ,y और z plane हैं।
बौद्ध शम्बाला – बौद्ध धर्म के संदर्भ में
ज्ञानगंज का उल्लेख न केवल हिंदू पौराणिक कथाओं में बल्कि बौद्ध धर्म में भी मिलता है। इस किंवदंती की जड़ें तिब्बत में भी खोजी जा सकती हैं। तिब्बत में, इस आकाशीय साम्राज्य को शम्बाला के नाम से जाना जाता है, जो संस्कृत से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ है “खुशी का स्रोत”। बौद्धों का मानना है कि शम्बाला दुनिया की गुप्त आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा करती है। इस पौराणिक भूमि तक पहुंचने के निर्देश कुछ पुराने बौद्ध धर्मग्रंथों में दिए गए हैं, हालांकि, निर्देश अस्पष्ट हैं। बौद्ध भी मानते हैं कि ज्ञानगंज मृत्यु के नियमों की अवहेलना करता है। इस अमर भूमि में किसी की मृत्यु नहीं होती और चेतना सदैव जीवित रहती है। इसे शम्बाला और शांगरी-ला के नाम से भी जाना जाता है।
ज्ञानगंज की अवधारणा
प्राचीन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, ज्ञानगंज आठ पंखुड़ियों वाले कमल की संरचना जैसा दिखता है। यह बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। जीवन का वृक्ष जो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताललोक को जोड़ता है, उसके केंद्र में खड़ा है। यह एक झिलमिलाता क्रिस्टल के रूप में वर्णित है। इसके रहने वाले अमर हैं जो दुनिया के भाग्य का मार्गदर्शन करने के लिए जिम्मेदार हैं। इस रहस्यमय राज्य में निवास करते हुए, वे सभी धर्मों और विश्वासों की आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा और पोषण करते हैं। दूसरों को अपना ज्ञान प्रदान करते हुए, वे अच्छाई के लिए मानव जाति के भाग्य को प्रभावित करने के लिए नाजुक ढंग से काम करते हैं। तिब्बती बौद्धों का मानना है कि दुनिया में एक महान अराजकता के समय, इस आध्यात्मिक भूमि के 25 वें शासक इस ग्रह को बेहतर युग तक ले जाते हुए दिखाई देंगे।
दलाई लामा को जब ज्ञानगंज या शम्भाला का वर्णन करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने समझाया कि यह कोई भौतिक स्थान नहीं है जिसे लोग पा सकते हैं। यह स्वर्ग नहीं बल्कि मानव क्षेत्र में एक शुद्ध भूमि है। इस भूमि पर जाने का एकमात्र तरीका हमारे कर्मों से संबंधित है और वही कर्म इसका माध्यम बनते हैं । यह स्थान हिमालय के अमर प्राणियों का निवास, शहर है और इसके निवासियों ने प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से समस्त दुनिया के भाग्य का सूक्ष्म रूप से मार्गदर्शन किया है । संसार के सभी धर्मों और विश्वासों की आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा करते हुए, वे अमर प्राणी मानव जाति की भलाई के लिए काम करते हैं।
आध्यात्मिक और अमर शिक्षा प्राप्त करने के लिए, एक आध्यात्मिक नेता, गुरु साईं काका, ने एक बार ज्ञानगंज की अपनी यात्राओं के बारे में दुनिया के सामने खुलासा किया। उनके कथन के अनुसार, उनकी हर यात्रा के दौरान, एक ऋषि उन्हें ज्ञानगंज ले गए और यह राज्य पूरी तरह से अलग dimension या उच्च आयाम पर मौजूद है। ज्ञानगंज का एक अन्य आगंतुक एक अंग्रेजी सेना अधिकारी एल.पी. फैरेल रहा है, जिसने 1942 में ज्ञानगंज का अनुभव करने का दावा किया था। आप को इस तरह के और भी अनेकों अनुभव मिलेंगें ,अब यह आप पर निर्भर करता है कि आपने इस अलौकिक संसार पर विश्वास करना है कि नहीं। लेकिन हम इतना अवश्य कहेंगें : यद्यपि ज्ञानगंज की कहानियां मंत्रमुग्ध करने वाली, superficial और पौराणिक लगती हैं लेकिन नकारात्मकता, युद्ध और क्रूरता से भरी आजकल की दुनिया में यह कल्पना करना काफी आकर्षक और रोचक लगता है कि दुनिया में कहीं कोई ऐसी जगह मौजूद है जहां लोग वास्तव में नैतिक हैं और नम्रता से ,स्नेह से हमारा मार्गदर्शन करने, प्रभावित करने और हमारी रक्षा करने के लिए काम कर रहे हैं।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्