ऑनलाइन ज्ञानरथ के समर्पित सहकर्मियों को हमारा हृदय से नमन अभिनंदन एवं आभार : आज का ज्ञान प्रसाद May 10,2020 चेतना की शिखर यात्रा 3 ”
सजल श्रद्धा- प्रखर प्रज्ञा स्मारकों की उत्पति “
8 नवंबर 1981 का दिन था । एक बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि । देवउत्थान एकादशी – पौराणिक गाथाओं के अनुसार इस दिन भगवन विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं । चार महीने की नींद का अपना महत्त्व है । इस अवधि में सभी कार्य जैसे विवाह इत्यादि बंद होते हैं । इस दिन संध्या के समय गुरुदेव के पास चार पांच कार्यकर्त्ता बैठे थे । इनमें से दो बाहर के और बाकि शांतिकुंज के स्थाई जीवनदानी थे । चर्चा आगामी दिनों की योजना की चल रही थी । गुरुदेव ने सहसा ही कहा अगले दिनों हमें शांतिकुंज के ऋषिकेश रोड वाले गेट की तरफ दो छतरियां बनवानी हैं। कार्यकर्ता इस बात का आशय समझने के लिए सजग हो गए । गुरुदेव ने कहा : जब हम और हमारे बाद माता जी शरीर छोड़ देंगे तो हम लोगों के अवशेष इन छतरियों में स्थापित किये जायेंगें । हम लोग शांतिकुंज में ही निवास करेंगें । यह छतरियां हमारा स्थूल स्वरुप का प्रतिनिधित्व करेंगी I इतनी बात सुनते ही कार्यकर्ता सोचने लगे शायद गुरुदेव शरीर छोड़ने की योजना बना रहे हैं । सभी मन ही मन सोचने लगे गुरुदेव के बाद हम कैसे जियेंगें । कोई भी समस्या होती गुरुदेव से आकर कहते उनका निवारण हो जाता । अब कैसे होगा -इत्यादि इत्यादि – एक कार्यकर्त्ता बिलख बिलख रोने लगे । कार्यकर्ताओं को उदास देख कर गुरुदेव बोले:
“अरे मैं शरीर छोड़ने के बाद भी यहीं रहने की बात कर रहा हूँ । तुम लोग ऐसे दुखी हो रहे हो जैसे मैं अभी ही अपनी काया- माया समेट कर जा रहा हूँ ।”
गुरुदेव ने वार्ता की दिशा बदली और हलकी- फुल्की बातें करनी शुरू कीं।
गुरुदेव ने कहा
“अभी मैं कम से कम नौ वर्ष इधर हूँ । इन छतरियों के बारे में विशेष बात यह है कि यह हमारे जीते जी निर्मित हो रही हैं । विश्व में शायद कोई ही स्मारक ऐसा हो जो उस के जीते जी बना हो । लेकिन यह छतरियां स्मारक थोड़े है। यह हमारा निवास है । मरण ने बाद हमारे पार्थिव स्वरुप का निवास “
चर्चा यहीं पूरी हुई । इसके बाद गुरुदेव के बताए स्थान पर दो छतरियों का निर्माण शुरू हुआ । उसके निर्माण के लिए विभिन्न तीर्थों से जल -रज और आवश्यक शिलायें मंगाई गयीं जिन्हे छतरी के गर्भ में स्थापित किया गया ।निर्माण के दौरान प्रतिदिन गुरुदेव यहाँ आते और निरिक्षण करते । कभी कभार पथरों को छू कर भी देखते । जो परिजन वहां पे मौजूद होते उन्हें लगता गुरुदेव अपने दिव्य स्पर्श से उस सामग्री में प्राण चेतना का संचार कर रहे हैं ।1982 की वसंत पंचमी को वह स्मारक बन कर पूरा हो गया और उस समय गुरुदेव ने उसका नामकरण किया ” प्रखर प्रज्ञा -सजल श्रद्धा “I स्थापना के समय माता जी भी उपस्थित थीं । परिजनों में यह आशंका आ रही थी कि शायद गुरुदेव या माता जी अपनी लीला समेटने की तैयारी कर रहे हैं गुरुदेव ने उनका मन पढ़ लिया और कहने लगे :
“अब हमारी उपस्थिति को हमेशा के लिए सुनिश्चित मान लिया जाये, जो हमारे साथ अंतस से जुड़े हुए हैं उन्हें इस बात की सच्चाई का आभास आने वाले दिनों में और प्रगाढ़ महसूस होगा ।
जिस जगह स्थापना की गयी वहां पास ही कुछ वर्ष विशेष दिनों पर जैसे 26 जनवरी , 15 अगस्त को गुरुदेव ध्वजारोहण करते रहे । 1982 की वसंत पंचंमी को गुरुदेव ने वहीं ध्वजारोहण किया । उस दिन आयोजन स्थल पर अद्भुत शांति थी । उपस्थित परिजनों को लगा कि ध्यान या साधना जैसी अवस्था है । प्रातः 8 बजे का समय रहा होगा । सूर्योदय के समय, यज्ञ स्थलियों के पीछे से , पूर्व दिशा से सूर्य लालिमा समाधि स्थल को अरुणिम आभा से आवृत ( envelop of dawn glow ) । गुरुदेव और माता जी के हाथों से स्थापना संस्कार आरम्भ हुआ तो धुप आहिस्ता आहिस्ता सिमटने लगी । आकाश में बादल सिमटने लगे और बादलों ने बूंदाबांदी की लहर छोड़ दी ।लगता था गायत्री नगर में इंदर देव ने जैसे छिड़काव किया हो ।पवित्रीकरण की तरह हुई इस बूंदाबांदी के बाद आकाश कुछ ही मिनटों में साफ़ हो गया । वसंत की शीतल धूप फिर खिल उठी ।
समारोह सम्पन्न हुआ ।प्रणाम का दौर शुरू हुआ । गुरुदेव माता जी शांतिकुंज के मुख्य भवन में अखंड दीप के पास परिजनों से मिल रहे थे । इन स्मारकों की स्थापना के बाद परिजनों में कई तरह के प्रश्न उठ रहे थे पर सभी संकोच कर रहे थे पूछें तो कैसे पूंछें । इस असमंजस ने एक पुराने परिजन को बुरी तरह व्यथित कर दिया । वह इतना अधिक विचलित दिखाई दिए तो गुरुदेव ने पूछ ही लिया
“क्या बात है मोहन ,कुछ दिनों से बहुत अधिक परेशान दिखाई दे रहे हो ,मुझे बताओ क्या बात है ।”
मोहन ने कहा-
” गुरुदेव मैं क्या बताऊँ, आप अच्छी तरह जानते हो । “
तू इस परेशानी से उबरना चाहता है – गुरुदेव ने कहा ।

मोहन ने कहा -आप जैसा ठीक समझें ।
इसके बाद गुरुदेव ने कहा कि मथुरा छोड़ने से महीने पहले मैंने कहा था :
” मेरे मरने के बाद यह शरीर किसी प्रयोगशाला को सौंप दिया जायेI यहाँ जीवविज्ञान पढ़ने वाले विद्यार्थी इसे चीरें फाड़ें और शरीर के सम्बन्ध में अपना ज्ञान बढ़ाएं। इससे बाद शरीर के सभी अंग निकाल लिए जाएँ और उन्हें ज़रूरत मंदों के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाये । शरीर के वे हिस्से जो किसी काम न आयें उन्हें जंगल में फ़ेंक दिया जाये ताकि चील कौवे उनसे अपना उदर भरण कर लें ।”
यह कह कर गुरुदेव रुके और उन्होंने देखा कार्यकर्त्ता के चेहरे पर संतोष का भाव था कि गुरुदेव ने उनके मर्म को समझ लिया है ।
गुरुदेव कहने लगे –
“अब छतरियों कि स्थापना से तुम्हे लगेगा कि पहले की हुई बात और अखंड ज्योति में छपी उन घोषणाओं का क्या होगा ।लोग जब घोषणओं की तुलना करेंगें तो तुम्हारे गुरु के बारे में अपवाद फैलेगा। पर तुम्हे तो अपने गुरु पे विश्वास है न ।”
” हाँ गुरुदेव ” -कार्यकर्त्ता ने कहा । तो सुन।
गुरुदेव कहने लगे :
” विदाई से पहले जो घोषणायें की थीं वे अक्षरशः सही हुई हैं और जो बची हैं वे भी सही होंगी । यथासमय उन घटना क्रमों का साक्षात भी हो जायेगा ।यह शरीर वही नहीं है जो मथुरा छोड़ कर हरिद्वार आया था ।यहाँ से अपने गुरु के पास चला गया था । अभी के लिए इतना ही काफी है ।अगर कोई दुनियादार तुमसे पूछे तो कहना मेरे गुरु ने अपने आप को हज़ारों लाखों कार्यकर्ताओं में बाँट दिया है । कई आदिवासियों के शरीर चील कौओं के लिए जंगलों में छोड़ दिए गए हैं । तुम ऐसे लोगों के नाम ,निवास और परिचय अदि भी दे सकते हो पर ध्यान रखना जिनकी फितरत संदेह की हो उनको संतुष्ट करना कठिन होगा ।”
गुरुदेव ने इन कार्यकर्त्ता को एक प्राचीन ऋषि का नाम दिया । बाकि दुनिया के लिए यही नाम था लेकिन गुरुदेव मोहन नाम से ही पुकारते थे ।1990 में गुरुदेव के महाप्रयाण के उपरांत इन्होने मोहन नाम लिखना ही छोड़ दिया ।उनका कहना था कि इस नाम को पुकारने वाला ही जब चला गया तो इसे लिखने का क्या औचित्य । सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा के बारे में गुरुदेव ने एक और रहस्य बताया । हज़ारों वर्ष पूर्व राजा भागीरथ के पीछे- पीछे माँ गंगा जिस मार्ग से चली वह सजल श्रद्धा -प्रखर प्रज्ञा के नीचे से ही गुज़रता है ।भूगर्भ विज्ञानी भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं । गुरुदेव माता जी की समाधि के पास श्रद्धा सुमन अर्पित करते एवं ध्यान करते साधक अपने अनुभव कई बार अखंड ज्योति में प्रकाशित करवा चुके हैं । यह स्मारक अनवरत साधकों को मार्गदर्शन देते आ रहे हैं एवं गुरुदेव माता जी की अनुपस्थिति में अपने प्रश्नो का समाधान पाते जा रहे हैं ।
जय गुरुदेव