ऑनलाइन ज्ञानरथ के समर्पित एवं सूझवान सहकर्मियों को हमारा नमन ,वंदन एवं सुप्रभात।
आज 20 दिसंबर 2020 का लेख है तो बहुत ही छोटा परन्तु इस के एक -एक अक्षर पर चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। अगर ऐसा करेंगें तो गायत्री महामंत्र के प्रतक्ष्य परिणाम देखने में अधिक समय नहीं लगता।
हम में से अधिकतर लोग गायत्री माता के उपासक हैं और सभी ने किसी न किसी समय गायत्री मन्त्र का जाप अवश्य किया होगा। गायत्री मन्त्र के विषय को लेकर कितने ही लेख ,पुस्तकें ,वीडियो ,ऑडियो इस समय उपलब्ध है लेकिन फिर भी ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती और इसका दिन प्रतिदिन विकास ही होता जाता है। “ यह एक अटल सत्य है” जिसको झुठलाना असंभव ही है।
आज के लेख में कुछ बेसिक साइंस के नाम प्रयोग किये गए हैं वैसे तो हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक इन सबको जानते ही होंगें लेकिन फिर भी हम सरलता लाने का प्रयास करेंगें।
गायत्री-उपासना द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है। आत्मसाक्षत्कार काअर्थ होता है जीवात्मा और परमात्मा के बारे में जानना। इसके फल से साधक की आत्मिक शक्ति की ऐसी वृद्धि और विकास हो सकता है कि वह महामानव बन सकता है। गुरुदेव का उदाहरण हमारे समक्ष है जिन्होंने गायत्री माँ को ही अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। जैसे गुरुदेव ने सारा जीवन लोकहित में समर्पित कर दिया सर्व विदित है कि इस मंत्र का उपयोग स्वार्थ के लिए नहीं, परमार्थ के लिए करना चाहिए। अक्सर यह अनुभव हुआ है कि जहाँ गायत्री मंत्र का उच्चारण होता है, वहाँ देवता भी सहायता करते हैं।
कैसे ?
गायत्री मंत्र भगवान सूर्यनारायण का आवाहन मंत्र है। गायत्री मंत्र का उच्चारण करते ही जप करने वाले के ऊपर प्रकाश की एक शक्तिशाली झलक स्थूल सूर्य में से पड़ जाती है। प्रार्थना के समय चाहे सूर्य उदय हो रहा हो, चाहे मध्याह्न का समय हो, चाहे सूर्य अस्त हो रहा हो, चाहे आधी रात का समय हो पर जिस दिशा में सूर्य होगा उसी तरफ से झलक आएगी। । रात्रि के समय तो झलक पृथ्वी को भेदकर आती है। यह झलक श्वेतवर्ण ( white ) की कुछ सुनहलापन लिए होती है। जब गायत्री मन्त्र का जप करने वाले का हृदय पूर्ण हो जाता है, तो वह झलक इंद्र -धनुष के सात रंगों में बाहर निकलती है। Rainbow के सात रंगों से तो हर कोई परिचित है। जप करने वाले के सामने जो कोई होता है उस पर उसका शुभ प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव केवल जप करने वाले के हृदय से ही बाहर नहीं निकलता, वरन उसकी आभा (aura ) में से भी अर्द्धचंद्र ( Half – moon ) के आकार में निकलता है। प्रत्येक किरण त्रिकोणाकार और जीवनी शक्तियुक्त होती है। उस किरण के सामने जो मनुष्य बैठा हो अथवा सामने से आता हो तो यह किरण उसके हृदय और मस्तक को स्पर्श करती है और इन अंगों के दोनों चक्रों को कुछ समय के लिए जाग्रत करती है। प्रत्येक किरण एक नहीं, अनेक मनुष्यों पर प्रभाव डालने में समर्थ होती है और ऐसी किरणें संख्या में सात होने के कारण उनका असर अनगिनत मनुष्यों पर पड़ सकता है।
Aura को दैनिक जीवन में समझने के लिए हम जलते हुए बल्ब को देख सकते हैं यां दीपक को देख कर अनुभव कर सकते हैं। दोनों के आस पास एक गोले की तरह एक सर्किल सा दीखता है और इसे हम कुछ दूर तक अनुभव कर सकते हैं। गुरुदेव के बारे में भी ऐसा सुनने में आया है कि जब लोग गुरुदेव के पास चरण स्पर्श को जाते थे तो एक “अद्भुत तेज़” का अनुभव होता था। इसे ही aura कहते हैं।
“यदि एक साधारण मनुष्य की आभा उसके शरीर से 18 इंच बाहर तक फैलती हो, तो उसकी आभा द्वारा जो किरणें निकलेंगी, उनके नीचे का भाग नौ फीट लंबा और पाँच फीट चौड़ा होगा। जिस मनुष्य का अधिक विकास हो चुका है, उसकी आभा यदि हर तरफ 50 गज तक फैलती हो, तो उसका प्रभाव क्षेत्र बहुत विस्तीर्ण होगा। मनुष्य की ऐसी आभा उसकी वासना तथा मानसिक प्रकृति की बनी होती है और उसकी देह में ओत-प्रोत रहती है। यह आभा मस्तक से जितने ऊपर तक जाती है, उतनी ही पैरों के नीचे पृथ्वी के भीतर भी फैलती है। गायत्री मंत्र या कोई और मन्त्र जप करने वाले की आभा जितनी अधिक विस्तीर्ण होगी उतना ही अधिक प्रभाव उसका पड़ेगा। और उससे भी बड़ी बात यह है कि यदि एक बड़ा समुदाय गायत्री मंत्र का उच्चारण कर रहा हो तो उससे बहुत बड़ी शक्ति उत्पन्न होती है। इससे मंत्र का उच्चारण करने वाले सब एकरूप हो जाते हैं। इसी लिए सामूहिक यज्ञों और मंत्रोउच्चारण को प्राथमिकता दी जाती रही है। अभी अभी हमने ब्रह्मस्त्र यज्ञ के बारे में लेख पढ़ा है। उसके बारे में अभी बहुत कुछ बाकि है। जब सामूहिक मंत्रोउच्चारण होता है तो सभी करने वालों से सात-सात किरणें निकलती हैं। ये किरणें कितने विशाल क्षेत्रफल में फैलेंगी और उनका प्रभाव कितना अधिक होगा, यह सहज में समझा जा सकता है।
अब आधनिक विज्ञान ने भी यह पता लगा लिया है कि संसार में कोई शब्द या विचार नष्ट नहीं होता। जो बातें मनुष्य कहता या सोचता है, वे तरंगरूप ( Wave Theory ) में आकाश में फैल जाती हैं और हजारों-लाखों वर्ष तक आकाश मंडल में व्याप्त रहती हैं। बहुत-से वैज्ञानिकों ने तो यहाँ तक कल्पना की है कि हम दो- चार हजार वर्ष पुराने समय में कही गई बातों की उन तरंगों को यंत्र द्वारा फिर से ज्यों-की-त्यों सुनकर उनका रिकॉर्ड बना सकते हैं। वैज्ञानिकों के लिए इस कल्पना को व्यावहारिक रूप देना चाहे अभी असंभव हो, पर जो भारतीय योगी त्रिकाल की बातें जान लिया करते थे, वे इस शक्ति से संपन्न अवश्य थे। विशुद्धानन्द जी त्रिकालदर्शी थे ,हमने देखा ही है उन्होंने गुरुदेव के बारे में कैसी चेतावनी दी थी और हम सबको सतर्क रहने को कहा था
सारांश यह कि शब्दों और विचारों का अस्तित्व नष्ट नहीं होता। यही बात गायत्री मंत्र के विषय में है। अब तक असंख्य महापुरुष श्रद्धा और साधनापूर्वक जो गायत्री का जप करते आए हैं, उसका प्रभाव नष्ट नहीं हो गया है, वरन सूक्ष्मजगत् में उसका अस्तित्व बना हुआ है।
यही बात ज्ञान के बारे में भी कही जा सकती है। ज्ञान भी एक प्रकार की एनर्जी ही है। जिसके पास ज्ञान होता है उसी आभा ही कुछ अध्भुत होती है। इसीलिए कहा गया है की ज्ञानी के पास बैठने से कुछ अध्भुत अनुभव होता है। और जब ज्ञान का विस्तार होता है तो कइयों का जीवन बदल जाता है। ज्ञान ही एक ऐसा धन है जो जितना खर्च करो उतना ही बढ़ता है। जैसे मन्त्रोच्चारण करने वाले को तो फल मिलता ही है जिसके लिए किया जाता है उसका भी कुछ अंश उसे प्राप्त होता है। ज्ञान से हमारा परिष्कार तो होता ही है लेकिन इसके वितरण से कितने ही और परिष्कृत होते जाते हैं। यह एक chain reaction है। गुरुदेव ने इसीलिए ज्ञान प्रसार पर इतना ज़ोर दिया है। यदि 100 परिजनों में गुरूदेव के विचार जाते हैं तो जो विचार पहुंचा रहा है उसे खुद ब खुद लाभ मिल रहा है। इसीलिए हम ऑनलाइन ज्ञानरथ के लेखों को अधिक से अधिक लोगों में प्रचार करने के लिए कहते हैं। आज के युग में यह कार्य कितना सरल हो गया है , केवल कॉपी -पेस्ट ,शेयर का बटन ही तो दबाना है। एक गुरुदेव का समय था जब एक -एक के घर जाकर अखंड ज्योति देकर आते थे। फिर कुछ दिन बाद लेने जाते थे, पैदल जाते थे , साइकिल पर जाते थे आदि आदि। आज इंटरनेट के युग अगर हम कुछ न कर सकें तो हमारी ही कमज़ोरी है ,साधन तो पर्याप्त हैं ही।
इति श्री
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित
