वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

पूज्यवर कैलाश मानसरोवर क्षेत्र में

29 जुलाई 2020 का ज्ञानप्रसाद
चेतना की शिखर यात्रा 2

आज का लेख केवल दो पन्नों का है क्योंकि आज ” गुरुदेव की हिमालय यात्रा ” का पूर्णविराम हो रहा है। तो आइये चलते हैं गुरु देव के साथ साथ ।

गुरुदेव ने मानसरोवर झील के तट पर बैठ कर कुछ देर ध्यान किया और फिर परिक्रमा भी की। एक परिक्रमा में लगभग 3 घंटे लगते हैं। गुरुदेव देख रहे थे कि हंस मोती खा रहे हैं कि नहीं। हंस मोती तो खाते दिखे नहीं लेकिन कुछ चुन -चुन कर अवश्य कुछ खा रहे थे। भावार्थ तो फिर भी यही बनता है कि हंस इतना बुद्धिमान है कि चुन -चुन कर खा रहा है। उसे विदित है कि मानसरोवर झील में से मछली खानी है या वनस्पति। निर्मल चेतना शुद्ध और सत्य को ही ग्रहण करती है, शेष को नकार देती है। कैलाश पर्वत मानसरोवर से दिखाई तो देता है लेकिन इतना पास भी नहीं है। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि गूगल सर्च से अलग -अलग परिणाम आए तो हमने इस दूरी को अपने सूझवान पाठकों पर ही छोड़ दिया। शिवलिंग के आकार का प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण कैलाश पर्वत एक आध्यात्मिक स्रोत होने के कारण पुरातन काल से ही हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। इस के आसपास छाय पर्वतों की संख्या 16 है। 16 पंखुड़ियों वाले कमल के बीच विराट शिवलिंग एक अद्भुत दृश्य दिखते हैं। आप इस दृश्य के satellite image गूगल से देख सकते हैं। शिवलिंग आकार वाला कैलाश पर्वत सबसे ऊँचा है और काले पतथर का बना हुआ है और आस पास की 16 पंखुड़ियां लाल और मटमैले पतथर की हैं। कैलाश पर्वत की परिक्रमा करना अपने में एक महत्व लिए हुए है। गुरुदेव को परिक्रमा करते कुछ तिब्बती मिले। उनमें से कइयों की आयु 60 वर्ष के लगभग होगी, उनमें से एक ने गुरुदेव को पूछा – आप भारतीय हैं ? हमारे गुरु को आपने क्या दर्ज़ा दिया हुआ है ? उनदिनों तिब्बत से लामा लोग भारत आया करते थे। चीन ने तिब्बत की सभ्यता में घुसपैठ की और उसका परिणाम हम आज भी देख रहे हैं। उस वृद्ध ने फिर पूछा – बताओ न ,आप तो अपने आदि गुरु को प्रणाम करने जा रहे हो। हमारे लामा भी तो कैलाश के ही रूप हैं। गुरुदेव ने कहा –

” कोई भी गुरु तिब्बत या भारत का होने कारण पूजनीय नहीं होता। यह नियति का विधान भी हो सकता है। अगर हम एक ही दिशा में प्रगति करते रहें और दूसरी दिशा की उपेक्षा करें तो प्रकृति का उल्लंघन कर रहे हैं। तिब्बत के शासकों और धर्मगुरुओं ने चेतना के क्षेत्र में तो बहुत प्रगति की परन्तु लौकिक पक्ष छोड़ दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि व्यवाहरिक जगत में वह कमज़ोर हो गया। उसकी प्रगति एकांगी हो गयी और इसी का दंड तिब्बत को भुगतना पड़ा। ”

गुरुदेव का तर्क सुनकर वह वृद्ध आशान्वित हुआ। उसने फिर पूछा – क्या तिब्बत को अपना गौरव फिर से वापिस मिल सकेगा ?

गुरुदेव कहने लगे :

” कोई भी जाति हमेशा एक ही दशा में नहीं रहती , जाति ही क्यों ,व्यक्ति यां इस प्रकृति का कोई भी घटक हमेशा एक जैसा नहीं रहता। उत्थान और पतन दोनों ही स्थितियां सभी के जीवन में आती हैं। ”

यह सुनकर वह वृद्ध तिब्बती गुरुदेव के समक्ष नतमस्तक हो गया। गुरुदेव उससे छोटी आयु के थे और न ही कोई योगी ,सन्यासी लग रहे थे। उसने फिर एक और जिज्ञासा व्यक्त की। कहने लगा – भगवान शिव का दिव्यधाम कैलाश क्या यही है ? यह कह कर वह वृद्ध करबद्ध मुद्रा में गुरुदेव के सामने खड़ा हो गया। गुरुदेव ने उस पर एक दृष्टि डाली और कहने लगे ;

” जिस लोक को भगवान शिव का दिव्यधाम कहते हैं वह तो अपार्थिव ( अलौकिक ) है। उसका कोई रूप थोड़े ही है। इसी तरह अयोध्या भगवान राम और ब्रजधाम भगवान कृष्ण के प्रतिरूप हैं। ”

हम अपने पाठकों को आग्रह करेंगें कि वह इसके बारे में डिटेल से मनन करें क्योंकि त्रुटिपूर्ण या अधूरी धारणा प्रायः गलत निष्कर्ष ही निकालती है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ दिनों में ही पूरी होती है। इसके शिखर पर जाने का दुःसाहस तो अभी तक किसी ने नहीं किया। लगभग 22000 फुट ऊँचे शिखर तक पहुँचने के लिए डेढ़ मील सीधी चढ़ाई है। तिब्बत में होने के कारण गुरुदेव को विचार आया कि अदिबद्री की और रुख किया जाये। बौद्ध सम्प्रदाय के धूलिंग मठ और अदिबद्री का आपस में कुछ सम्बन्ध तो है लेकिन इस पुस्तक ” चेतना की शिखर यात्रा 2 ” में बहुत ही संक्षिप्त वर्णन है। हाँ इतना वर्णन अवश्य है कि लगभग 1500 वर्ष पूर्व बद्रिकाश्रम धूलिंग मठ में ही था।

तो मित्रो हम गुरुदेव की इस वाली हिमालय यात्रा को यहीं पर पूर्ण विराम देते हैं।

इस लेख को मिला कर हमने कुल 9 लेख ऑनलाइन ज्ञानरथ के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत किये। लगभग 40 पन्नों ,12000 अक्षरों के यह लेख हमने अपने विवेक और सहकर्मियों की सहायता से घोर चिंतन ,मनन और रिसर्च से तैयार किये। अनगनित वीडियो देखीं ,कई परिजनों से सम्पर्क करके गुरुदेव क्र बारे में जानने का प्रयास किया। इन लेखों द्वारा जिन्होंने भी दादा गुरु, उदासीन बाबा , निखिल , महावीर स्वामी ,सत्यानन्द , बौद्ध परिजन ,संदेशवाहक ,प्रतिनिधि के सानिध्य में हुए वार्तालाप का आनंद प्राप्त किया वह सब अत्यंत सौभाग्यशाली हैं। जो इस सौभाग्य से वंचित रह गए उनके लिए यह सारे लेख हमारे You Tube चैनल के कम्युनिटी सेक्शन में सुरक्षित हैं। हमारी वेबसाइट में भी यह लेख उपलब्ध हैं। दोनों प्लेटफॉर्म पर और भी कई लेख और जानकारी मिल सकती है। अगर किसी कारण कोई प्रॉब्लम आती है तो आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं यां अपना फ़ोन नंबर भेज सकते हैं।
जय गुरुदेव

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