वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

पंडित लीलापत जी से गुरुदेव ने कहा, “बेटे,तुम्हें कड़वी बातें सुनने का बहुत ही शौक है।” लेख शृंखला का 13वां लेख 

15 वर्ष पूर्व पंडित लीलापत शर्मा जी की दिव्य रचना, “युगऋषि का अध्यात्म-युगऋषि की वाणी में” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 13वां लेख प्रस्तुत है। 

प्रस्तुत लेख में गुरुदेव बता रहे हैं कि धर्म का रास्ता इतना आसान नहीं है। अपने दोष दुर्गुणों को छोड़ना पड़ता है, पवित्र जीवन जीना पड़ता है, समाज की सेवा करनी पड़ती है;यही धर्म-मार्ग यह है। कल इसी लेख को आगे बढ़ाने की योजना है। 

आज के लेख को पढ़ते हुए हमारे साथी कह सकते हैं कि यह सभी बातें तो हम वर्षों से जानते हैं इसमें नया क्या है? लेकिन हम तो इतना ही कहेंगें कि वर्षों से हम जानते हैं कि नहाने से शरीर की गंदगी से छुटकारा पाया जाता है,फिर भी रोज़ नहाते हैं। ठीक उसी तरह यह नियमित दैनिक ज्ञानार्जन हमारे अंतर्मन को धोने का कार्य करता है। 

आइए चलें आज के लेख को ओर। 

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पंडित जी बता रहे हैं:

शिविरों की व्यवस्था, प्रकाशन और भवन निर्माण की व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण पूज्यवर से सत्संग का लाभ मिले कई दिन निकल गए थे। एक शिविर का समापन हुआ, विदाई हुई तो  दूसरा शिविर प्रारंभ होने में कुछ दिन का अंतराल था, हमने इस अंतराल का लाभ उठाते हुए गुरुदेव से उस सत्संग को सुनाने के लिए निवेदन किया जो कितने ही दिनों से व्यस्तता के कारण छूटे  जा रहा था।  

पूज्यवर मंदिर के सामने पत्थर पर बैठे थे। हम उनके चरणों में प्रणाम किया, नीचे बैठ गए और गुरुवर से  बोले:

पूज्यवर बहुत समय पहले आपसे हनुमान और शंकर भगवान की उपासना की फिलॉसफी  के बारे में सुना था। आज  हमारी इच्छा है कि आप हमें  मर्यादा पुरषोतम भगवान श्रीराम और योगेश्वर श्रीकृष्ण की उपासना की फिलॉसफी के बारे में समझाएं । कृपा करके बताएँ कि भगवान राम और कृष्ण की सच्ची उपासना कैसे की जानी चाहिए ?

पूज्य गुरुदेव हमारी बात पर हँसे और बोले: 

तुम्हें कड़वी बातें सुनने का बहुत ही शौक है। जिन बातों को भक्तगण सुनना नहीं चाहते तुम मुझसे वही कहलवाना पसंद करते हो लेकिन सच्चाई  तो सच्चाई ही  है, कड़वी हो या मीठी। जब नीम की कड़वी पत्ती चबाने से मुँह कड़वा हो जाता है तो सागर का नमकीन जल भी मीठा लगने लगता है। जिस किसी ने भी कड़वी बातों को पचा लिया उसको सारा  जीवन भर मिठास आती रहती है ।

गुरुदेव बोले:

बेटा ! भगवान राम हमारे आदर्श हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उन्होंने अपने जीवन में किसी समस्या का समाधान किस ढंग से किया, यह हम उनसे सीख सकते हैं। 

भगवान राम का जन्म किस कारण हुआ ? 

तुलसीदास जी लिखते हैं : 

असुरता के विरुद्ध संषर्घ ही राम का आदर्श है। इस आदर्श को अपने जीवन में उतारना ही उनकी उपासना है। भगवान राम जीवनभर असुरों से लड़ते रहे। मात्र 16 वर्ष की आयु में उन्होंने ताड़का, सुबाहु, मारीचि नाम के राक्षसों का वध किया था। यह राक्षस ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के यज्ञों में विघ्न डालते थे। रावण विलासिता और अहंकार का प्रचार करता था,उसका भी वध किया। कुंभकरण आलस का प्रचार करता था, शूर्पणखा फैशन परस्ती का प्रचार कर दूसरों का चरित्र भ्रष्ट करती थी, उसका घमंड दूर किया। 

वर्षों के चली आ रही स्टेज शो के रूप में “रामलीला” एवं भगवान् राम के जीवन पर आधारित अनेकों टीवी सीरियल जहाँ भरपूर मनोरंजन का साधन हैं वहीँ उनके आदर्शों को भी चरितार्थ करते हैं। 

रामानंद सागर जी ने रामायण टीवी सीरियल के बारे में कहा था कि मेरा उद्देश्य भगवान् राम के आदर्शों को विश्व के घर-घर में पहुँचाना है। इस सीरियल के बनाने एवं प्रसारण में जिन कठिन परिस्थितिओं ने मेरे पसीने छुड़ा दिए थे उन्हें देखकर यही कहा जा सकता है कि इसकी सफलता के पीछे दिव्य शक्तियों का ही हाथ था। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथी उस दिव्य वीडियो से भलीभांति परिचित हैं जिसमें रामानन्द सागर परम पूज्य गुरुदेव से मार्गदर्शन ले रहे हैं। यहां एक बार फिर से दिए गए लिंक के माध्यम से उस दिव्य मुलाकात का अवलोकन करके हम सबको जो सुखद अनुभूति होती है उसे हम शब्दों में कैसे वर्णित कर सकते है।

तो मेरे सर्व आदरणीय, ह्रदय के करीब साथिओ, इस चर्चा को यहीं छोड़ कर पंडित जी और परम पूज्य गुरुदेव के संवाद की ओर  चलना उचित रहेगा। हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि ज्ञानप्रसाद लेख लिखते समय,उनसे सम्बंधित जानकारी की रिसर्च करते-करते भावनाओं की  प्रबल बाढ़ हमें न जाने कहाँ से कहाँ बहा ले जाती है, हमेशा भय रहता है कि कहीं हम लेख से इधर-उधर न भटक जाएँ। समय अभाव के कारण ऊपर दिए गए यूट्यूब लिंक में दिए गए तथ्यों की पुष्टि करने में हम असमर्थ हैं जिसके लिए हम क्षमाप्रार्थी  हैं।        

गुरुदेव पंडित जी को बताते हैं:

भगवान राम के इन लीलाचित्रों से हमें शिक्षा लेनी चाहिए, समाज में  फैली हुई असुरता से लड़ना चाहिए। 

15 वर्ष पूर्व 2010  में प्रकाशित रचना “युगऋषि का अध्यात्म-युगऋषि का वाणी में” जो वर्तमान लेख श्रृंखला का आधार है,उस समय व्यक्त की गयी भावनाओं की तुलना में आज का युग उससे कहीं आगे निकल चुका है। इन शब्दों को पढ़ रहा एक-एक साथी हमसे पूर्णतया सहमत होगा कि यदि हमने इन ज्ञानप्रसाद लेखों को केवल Ceremony के तौर पर पढ़ लिया,कमेंट कर लिया,जय गुरुदेव लिख दिया और इन आदर्शों को परिवार में समाहित नहीं किया तो भावी पीढ़ी हमें कभी भी क्षमा नहीं करेगी,हम उनके प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ होंगें। इस पीढ़ी के प्रति हमारी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है,यह कहकर कि “कोई सुनता ही नहीं है” परिस्थिति से भाग खड़े होने जैसा है। समाज में  हमें स्वयं को आदर्श प्रस्तुत करना पड़ेगा।         

नशेबाजी, फैशनपरस्ती, आलस्य, असंयम,जातपात, दहेज आदि जैसे अनेकों राक्षस जिस  प्रकार समाज को खाए जा रहे हैं वह किसी से छुपा नहीं है। बोलते तो सभी है लेकिन एक्शन तो आदरणीय कुसुम त्रिपाठी जैसे साथी ही ले रहे हैं जो घर-घर में अनेकों कार्यक्रमों के माध्यम से नशामुक्ति की बात कर रहे हैं। उनके इस प्रयास के लिए बहिन जी को परिवार की ओर से हम सबका हार्दिक आभार। ठीक इसी तरह हमारी एक और बहिन आदरणीय ज्योति गाँधी कन्या कौशल शिविरों में संलग्न हैं ,उन्हें भी हमारा हार्दिक धन्यवाद्।  

हम सब इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि नशेबाजी का राक्षस  किस प्रकार स्वास्थ्य, धन एवं प्रतिष्ठा को चौपट किए जा रहा है। 

“ऐसे राक्षसों/दानवों से लड़ना ही प्रभु राम की सच्ची उपासना है। प्रभु  राम के आदर्शों पर चलकर उनके कार्यों को पूरा करने वाला ही भगवान राम का सच्चा भक्त है।” 

भगवान राम की मूर्ति पर धूप, दीप, पुष्प, प्रसाद चढ़ाने वाले पर भगवान राम प्रसन्न नहीं होंगे। वे इसे भलीभाँति समझते हैं कि यह तथाकथित भक्त हमारा भक्त नहीं चापलूस है जो हमें भोला नादान समझकर ठगने आया है। प्रिय भक्तो ! भगवान इतना सस्ता नहीं कि सवा रुपए  का प्रसाद खाकर, फूल माला पहन कर, अगरबत्ती की सुगंध से प्रसन्न हो जाय और आपकी मनोकामना पूर्ण कर दे।

भगवान के भक्तों को यह भलीभाँति समझ लेना चाहिए कि समाज में व्याप्त असुरता को रोकने के लिए ईश्वर ने सामूहिक जिम्मेदारी अपने राजकुमार,अपने पुत्र/पुत्री को सौंपी है। उन सभी संतानों का परम  कर्तव्य है कि  जहाँ कहीं भी अनीति हो रही है उसे रोकें, हटाने का प्रयत्न करें, विरोध करें, असहयोग बरतें। जो भी तरीका अनुकूल जचे  उसे अपनाएँ। कमजोर से कमजोर व्यक्ति को इतना तो करना ही चाहिए कि अनीति में अपना सहयोग प्रत्यक्ष या परोक्ष, किसी भी रूप में न दे। बुरे कामों की प्रशंसा तो कभी भी न की जाय, उनके प्रति भर्त्सना, घृणा और विरोध की भावना तो अवश्य ही रखी जाय। यदि हम ऐसा करेंगे, तो ही  भगवान राम के भक्त कहला सकेंगे। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि खेद की बात है कि आजकल ऐसे समर्पित एवं साहसी भक्तों का अकाल पड़ा है। सभी कोई अपनी ही दुनिया में मस्त है क्योंकि आज के युग की सबसे बड़ी शक्ति “हिम्मत” लुप्त ही हो गयी है। 

आजकल तो भक्तगण दनादन रामायण का पाठ करने में लगे हैं। रात भर फुल वॉल्यूम में माइक पर चिल्लाते हैं। न खुद सोते हैं, न दूसरों को सोने देते हैं। नाच-नाच कर DJ आदि से अखंड कीर्तन करते हैं। 

गुरुदेव बता रहे हैं: 

हमने एक अखंड कीर्तन देखा था।  उसमें भक्तगण बड़े मस्त होकर नाच रहे थे। बाजे बजा रहे थे, शरीर को तोड़-मरोड़ रहे थे। हमने उनको श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया तो हमारे साथ खड़े मित्र बोले, “किसको प्रणाम कर रहे हो?” हमने कहा,“इन झूम-झूमकर कीर्तन करने वाले भक्तों को।” वे बोले, “इन सबने तो शराब पी रखी है। वह सब तो नशे में नाच रहे हैं। नशा उतरने पर इन्हें न राम से कोई मतलब रहेगा और न कीर्तन से।”

यदि भगवान के थोड़े से भी सच्चे भक्त होते तो समाज में से असुरता का कब का नाश हो गया होता। अगर सभी धर्मगुरु एकता और संगठन की शक्ति से समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में अपनी प्रतिभा और सम्मान का सदुपयोग करें, दुष्प्रवृत्तियों से जन-जन को मुक्ति दिलाने का प्रयास करें, परिवारों को कलह और विघटन से बचने की कोशिश करें तो सही मानवता फिर से वापिस लौट सकती है। 

अगर यह धर्माचार्य, धर्म के सच्चे मर्म को जानकर सही रास्ते पर चलते, समाज की सेवा को ही ईश्वर की सेवा समझते तो क्या देश में नशेबाजी रह सकती थी ? दहेज का दानव, बहिन-बेटियों को निगल सकता था? धूमधाम की शादियों में धन की बरबादी हो सकती थी? जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद, नारी का अपमान, जनसंख्या वृद्धि की समस्याएँ समाज में रह सकती थीं ? 

हमारा दावा है कि आज भी यदि धर्मतंत्र से जुड़े लोग लोकेषणा, वित्तेषणा  और अहम आदि के दिखावे को छोड़कर संगठित प्रयास करें तो देखते-देखते समाज बदलता चला जाएगा। 

यदि हम में से कुछ एक समर्पित साथी ही गुरुदेव की इस प्रेरणादायक वाणी को समझकर समाज सुधार के काम पर जुट पड़ें  तो समाज में स्वर्गीय परिस्थितियाँ उत्पन्न करना बिलकुल भी कठिन काम नहीं है,  लेकिन क्या किया जाए तथाकथित धर्माचार्य स्वयं भ्रम में पड़े हुए हैं और दूसरों को धर्म के नाम पर भ्रम में डालते रहते हैं। कहते हैं कथा सुनो, भागवत सुनो, भजन करो, गंगा स्नान करो, तीर्थयात्रा करो और स्वर्ग का टिकट ले जाओ। इन क्रियाओं को स्वर्ग का सीधा रास्ता बता  दिया गया है। धर्म का रास्ता इतना आसान नहीं है। अपने दोष दुर्गुणों को छोड़ना पड़ता है, पवित्र जीवन जीना पड़ता है, समाज की सेवा करनी पड़ती है;यही धर्म-मार्ग यह है।

आजकल जिसे लोग धर्म की संज्ञा दे रहे है, वह धर्म नहीं है। मरे हुए धर्म की लाश ढोई जा रही है। जीवंत धर्म का स्वरूप सबको समझाना होगा तभी देश ऊँचा उठ सकता है और घरों में स्वर्ग आ सकता है। 

गुरुदेव इसी  “धरती पर स्वर्ग के अवतरण” की बात कर रहे हैं। 

जय गुरुदेव 


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