वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आधुनिक युग की एक “इन्द्रिय” सोशल मीडिया, इस पर संयम “आत्मबल” का परिचायक है 

कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख में जिस “मॉडर्न इन्द्रिय संयम” का संकेत दिया गया था उस का नाम सोशल मीडिया है। शायद ही कोई ऐसा मुनष्य होगा जिसे इस इन्द्रिय ने प्रभावित न किया हो। आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद लेख इसी  विषय पर चर्चा कर रहा है। 

भांति-भांति के संयम की चर्चा करते हुए हमने 20 शक्तिशाली लेखों का अमृतपान किया लेकिन “आधुनिक  समय का ऐसा संयम” जिससे हर कोई प्रभावित है,उसको नज़रअंदाज़ कर पाना हमारे लिए कठिन हो रहा है। आज का लेख  एक ऐसा लेख है जिसमें कमैंट्स के माध्यम से प्रत्येक साथी का व्यक्तिगत अनुभव द्वारा भागीदारी होना स्वाभाविक है। आज एक महत्वपूर्ण गांठ बांधने वाला तथ्य ही  इस लेख का Crux है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जिसमें बच्चे,युवा,वरिष्ठ आदि सब प्रकार के सहकर्मी हैं उन्हें यह समझ लेना होगा कि “हर शक्ति अपने  साथ एक बड़ी ज़िम्मेदारी लेकर आती है।”

तो साथिओ आइए विश्वशांति की कामना के साथ  आज की गुरुकक्षा का शुभारम्भ करें :

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

अर्थात शान्ति: कीजिये प्रभु ! त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में,अन्तरिक्ष में, अग्नि – पवन में, औषधियों, वनस्पतियों, वन और उपवन में,सकल विश्व में अवचेतन में,शान्ति राष्ट्र-निर्माण और सृजन में,  नगर , ग्राम और भवन में प्रत्येक जीव के तन, मन और जगत के कण – कण में, शान्ति कीजिए ! शान्ति कीजिए ! शान्ति कीजिए !   

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21वीं शताब्दी में मानव ने जितनी तेजी से प्रगति की है, उतनी शायद किसी अन्य युग में नहीं की। 21वीं शताब्दी का शुभारम्भ 1 जनवरी 2001 को हुआ और समापन 31 दिसंबर 2099 को होगा, अर्थात वर्तमान के वर्ष (2025) के अनुसार अभी इस शताब्दी के समापन में लगभग 75 वर्ष बाकि हैं।आने वाले 7-8 दशकों में मनुष्य क्या कुछ कर लेता यह तो केवल आने वाला समय ही बता सकता है क्योंकि  समय सबसे बलवान है। इसीलिए बी आर चोपड़ा साहिब के 104 एपिसोड वाले मेगासीरियल “महाभारत” के करैक्टर “समय” को इतना महत्व दिया गया था। उस युग के दर्शक आज भी “मैं समय हूँ” पंक्ति को याद करके मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। 

भारतीय संस्कृति और संयम:

भारतीय दर्शन में “संयम” को सर्वोच्च गुण माना गया है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:

“इंद्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते। एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥” 

अर्थात इंद्रियों पर नियंत्रण न होने से व्यक्ति का ज्ञान ढक जाता है।

सोशल मीडिया भी आधुनिक युग की एक “इंद्रिय” है जो हमारी दृष्टि, श्रवण और मन को प्रभावित करती है। अतः इस पर संयम “आत्मबल और विवेक का परिचायक है।

सोशल मीडिया आधुनिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह हमें अवसर देता है कि हम अपने विचार, ज्ञान और भावनाएँ विश्व के सामने रखें परंतु जब यह साधन उद्देश्यहीन, असंयमित और असभ्य हो जाता है तो वही साधन तनाव, झूठ और विभाजन का कारण बनता है। इसलिए आवश्यक है कि “हम सोशल मीडिया को एक साधना की तरह लें:जहाँ संयम उसका अनुशासन है और नेटिक्वेट उसकी मर्यादा है।”

“डिजिटल संसार में वही व्यक्ति सफल है,जो तकनीक पर नियंत्रण रखता है, न कि तकनीक उस पर।”

अतः हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह सोशल मीडिया का प्रयोग ज्ञान, सेवा, प्रेम और सद्भाव फैलाने के लिए करे,ताकि यह माध्यम मानवता को जोड़ने का पुल बने, दीवार नहीं। सोशल मीडिया संयम और नेटिक्वेट एक स्वस्थ, सभ्य और संतुलित डिजिटल समाज की आधारशिला हैं।

आज के युग की साइंस और टेक्नोलॉजी प्रगति ने संसार को एक “ग्लोबल विलेज” में बदल दिया है। इस परिवर्तन में सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। आज के युग के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स; फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, यूट्यूब, एक्स (ट्विटर), टेलीग्राम आदि केवल कम्युनिकेशन और डायलाग  के साधन नहीं, बल्कि विचार-विनिमय, व्यापार, शिक्षा, मनोरंजन और समाज सेवा के भी सशक्त उपकरण बन चुके हैं।

हम सब जानते हैं कि ऊपर बताए गए सोशल मीडिया प्लॅटफॉर्मस  का असीमित और असंयमित उपयोग व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक और नैतिक संतुलन को प्रभावित करता है। यहाँ स्वयं से यह पूछना ज़रूरी है कि इस समय हाथ में लिए फ़ोन को हम किस कार्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं ? कितना प्रयोग कर रहे हैं? हम अपनेआप को इनफार्मेशन से कितना ओवरलोड कर रहे हैं ? क्या घंटों  फ़ोन का प्रयोग करने से दोनों (फ़ोन और स्वयं हम) का संतुलन गड़बड़ा तो नहीं गया ?क्या हमें डॉक्टर ने फ़ोन प्रयोग करने से मना तो नहीं किया ?   

हाथ में लिए इस नन्हें से बुद्धूबक्से के उपयोग में संयम, विवेक,मर्यादा एवं अनुशासन इस डिजिटल दुनिया में उतना ही आवश्यक है जितना समाजिक दुनिया में। 

“सोशल मीडिया संयम और नेटिक्वेट” जैसे विषय हमारे परिवार के मानवीय मूल्यों की भांति अति प्रासंगिक एवं आवश्यक हैं। हमारे शक्तिशाली मानवीय मूल्यों ने हम सबको एक अटूट बंधन में बाँधा हुआ है जिसके लिए सभी की जितनी भी सराहना करें कम  ही रहेगी।  

सोशल मीडिया की क्रांति ने जहाँ आज एक क्लिक में पूरी दुनिया के साथ जोड़ा हुआ है वहीँ एक चुनौती भी लिए हुए है कि यह माध्यम “जितनी तेजी से जोड़ता है, उतनी ही तेजी से भटका भी रहा है/अलग भी कर रहा है।”  

आइए ज़रा टेक्नोलॉजी के सकारात्मक एवं नकारात्मक  प्रभावों पर संक्षेप में  दृष्टि दौड़ा लें। 

सकारात्मक प्रभाव: 

1.ज्ञान और जागरूकता का विस्तार:

कोई भी व्यक्ति अब ज्ञान साझा कर सकता है और सीख सकता है। ऑनलाइन व्याख्यान, वेबिनार, और डिजिटल लाइब्रेरी ने ज्ञान को सुलभ बना दिया है।
2.रचनात्मकता का मंच:
कलाकार, लेखक, संगीतकार, वैज्ञानिक, सभी को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला है। कई लोग सिर्फ सोशल मीडिया के कारण प्रसिद्ध हुए (यहाँ तक कि Influencer जैसे व्यक्तित्व भी)  और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला पाए।
3.सामाजिक और राष्ट्रीय जागरूकता:
पर्यावरण, स्वच्छता, रक्तदान, महिला सुरक्षा या मतदान जैसे अभियानों को सोशल मीडिया के माध्यम से जन-आंदोलन का रूप मिला।
4.संपर्क और संवाद का साधन:
परिवार, मित्र और सहकर्मी जो पहले दूर थे, अब कुछ सेकंड में जुड़ सकते हैं।
5.रोज़गार और व्यवसायिक अवसर:
डिजिटल मार्केटिंग, फ्रीलांसिंग और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में नई संभावनाएँ खुलीं।

नकारात्मक प्रभाव:

1.समय की बर्बादी और Addiction(आसक्ति)
बिना उद्देश्य सोशल मीडिया पर घंटों बिताना आज आम बात है। इससे समय, ऊर्जा और ध्यान तीनों नष्ट होते हैं।
2.मानसिक अस्थिरता और तुलना:
दूसरों की चमकदार जीवनशैली देखकर लोग स्ट्रैस  और हीनभावना में फँसते हैं।
3.फेक न्यूज और अफवाहें:
बिना वेरिफिकेशन  के खबरें फैलने से समाज में भ्रम, टकराव, जलन पैदा होते हैं ।
4.साइबर बुलिंग और ट्रोलिंग:
लोग बिना सोच-विचार अपमानजनक टिप्पणियाँ करते हैं, जिससे मानसिक आघात पहुँचता है।
5.गोपनीयता का उल्लंघन:
व्यक्तिगत फोटो, वीडियो या जानकारी, बिना अनुमति साझा करना एक गंभीर नैतिक अपराध है।
इन सबके बीच “संयम” ही वह कुंजी है जो उपयोगकर्ता को सुरक्षित, सकारात्मक और संतुलित रख सकती है।

आइए देखें सोशल मीडिया संयम का क्या अर्थ है ?

संयम का अर्थ है स्वयं पर नियंत्रण रखना। सोशल मीडिया संयम का अर्थ है, इन प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग उद्देश्यपूर्ण, सीमित और विवेकपूर्ण ढंग से करना। सोशल मीडिया का प्रयोग “साधन” के रूप में हो और उसे जीवन का आधार न बनाना उचित है 

संयम की सबसे बड़ी सीख ही यही है कि हम तकनीक के स्वामी बनें, उसके दास नहीं।

सोशल मीडिया संयम के सिद्धांत:

1.समय प्रबंधन-Time management :

रोज़ाना सोशल मीडिया उपयोग का समय तय करें। भोजन,अध्ययन या पारिवारिक समय में मोबाइल को हाथ तक न लगाएं ।
2.उद्देश्यपूर्ण उपयोग:

किसी भी पोस्ट या ऐप पर जाने से पहले यह स्पष्ट रखें कि आप वहाँ क्यों जा रहे हैं।
3.मानसिक स्वच्छता:

नकारात्मक, हिंसक या गाली-गलौज वाली सामग्री से बचें। प्रेरणादायक व शिक्षाप्रद सामग्री पर ध्यान दें।
4.गोपनीयता की रक्षा:

निजी जानकारी (जैसे पता, बैंक विवरण आदि) कभी साझा न करें।
5.डिजिटल उपवास:
सप्ताह में एक दिन या एक दिन में किसी निश्चित समय पर पूरी तरह से “नो सोशल मीडिया टाइम/डे” रखें।
6.वास्तविक जीवन को प्राथमिकता:

परिवार, मित्र, प्रकृति और पुस्तकों के साथ अधिक समय बिताएँ।
7.तुलना से बचें:
सोशल मीडिया पर दिखने वाली चीजें हमेशा सच्चाई नहीं होतीं, बहुत बार Fake चीज़ें बहुत ही मन लुभाती हैं। उन्हें आधार बनाकर स्वयं का मूल्यांकन करना  मूर्खता है, यह स्ट्रैस का बहुत बड़ा कारण है। नेटिक्वेट का अर्थ:

नेटिक्वेट (Netiquette) दो शब्दों का संयोजन है, Network+ Etiquette, यह इंटरनेट पर व्यवहार के नैतिक नियमों को बताता है।
जैसे हम वास्तविक जीवन में दूसरों के प्रति मर्यादा रखते हैं, वैसे ही ऑनलाइन दुनिया में भी सभ्यता और सम्मान बनाए रखना चाहिए। नेटिक्वेट का पालन करने से न केवल व्यक्ति का चरित्र झलकता है, बल्कि डिजिटल समाज में सद्भाव भी बना रहता है। हमारा सौभाग्य है कि हमारे साथी मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए Netiquette का पालन पहले से ही कर रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें दोहराना गलत नहीं है।  

नेटिक्वेट के प्रमुख नियम:

1.सम्मानपूर्वक संवाद करें:

असहमति प्रकट करते समय भी शालीन भाषा अपनाएँ। दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति से बचें।
2.Verification  के बाद ही शेयर करें:

बिना देखे,सोचे समझे शेयर करने की बीमारी कोरोना से भी खतरनाक बन चुकी है, इस Chain reaction से जितना हो सके दूर ही रहा जाए।कभी कभार अपना ओरिजिनल कंटेंट भी लिखने का प्रयास करें।  

3.गोपनीयता का सम्मान करें:

दूसरों की फोटो, चैट या संदेश उनकी अनुमति के बिना शेयर न करें।
4.स्पैमिंग से बचें:

लगातार अनावश्यक संदेश भेजना या प्रचार करना अशिष्ट व्यवहार माना जाता है।
5.समय और प्रसंग का ध्यान रखें:

औपचारिक समूहों में अनावश्यक चुटकुले या धार्मिक संदेश भेजना अनुचित है।
6.संवेदनशील विषयों पर संयम:

धर्म, राजनीति या जाति से संबंधित मुद्दों पर टिप्पणी करते समय अत्यधिक सावधानी रखें।
7.सकारात्मकता का प्रसार करें:

प्रेरणादायक पोस्ट, सद्भावना और प्रेम के संदेश शेयर करें। हमारे परिवार के लिए यह वाला पॉइंट सबसे महत्वपूर्ण है। 

हमारे साथी सोच रहे होंगें कि हमें तो इन बातों का पहले से ही पता है,पता तो “जीभ के संयम” का भी था तो फिर 40000 लोग लगातार “हम खाने के लिए जी रहे हैं यां जीने के लिए खा रहे हैं” अभी कुछ मिंट पहले तक क्यों देख रहे थे। 
संयम और नेटिक्वेट का पारस्परिक संबंध है,यदि संयम शरीर है, तो नेटिक्वेट उसकी आत्मा है। दोनों मिलकर डिजिटल जीवन को संतुलित, सुसंस्कृत और सुरक्षित बनाते हैं।

आज के लेख का समापन कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित निर्देशों के साथ हो रहा है :  

1.डिजिटल डायरी रखें:
प्रतिदिन लिखें कि आपने कितनी देर सोशल मीडिया का उपयोग किया और किन कारणों से।
2.नोटिफिकेशन सीमित करें:
केवल आवश्यक ऐप्स की नोटिफिकेशन्स ही  चालू रखें, बाकी सब बंद कर दें ।
3.टिप्पणी देने से पहले सोचें:
कोई भी कमेंट लिखने से पहले 10 सेकंड रुकें।
4.प्रेरणादायक समूहों से जुड़ें:
ज्ञानवर्धक और आध्यात्मिक प्लेटफॉर्म का हिस्सा बनें।
5.स्वयं को अपडेटेड  रखें:
साइबर सुरक्षा, फेक न्यूज की पहचान और ऑनलाइन नैतिकता के विषय में नियमित जानकारी लें।
6.स्वयं उदाहरण बनें:
यदि हम संयमित रहेंगे, तो हमारे बच्चे और विद्यार्थी स्वतः सीखेंगे।

आज के ज्ञानप्रसाद लेख का यहीं पर समापन होता है,कल फ़ोन संयम की बात करेंगें। 


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