https://youtu.be/MjdazvDvMDU?si=F4i9_zRRRAYBwLF2 (आज का प्रज्ञागीत फिर से नीरा जी की खोज है)
आज अक्टूबर 2025 का अंतिम शनिवार है। बहिन सुमनलता जी के सुझाव पर,साथिओं के समर्थन से, प्रत्येक अंक की रोचकता को दर्शाती आप सभी की प्रतीक्षा इस तथ्य को सार्थक का रही है कि गुरुवर का अपनत्व एवं प्रेम वाला Element कितना शक्तिशाली है। प्रेम और सम्मान एलिमेंट का ही प्रतिफल है कि हमारी आदरणीय बहिन पुष्पा जी ने हमारे सुझाव को सार्थक करते हुए आज के विशेषांक में चार चाँद लगा दिए हैं। हमें स्मरण है कि जब बहिन जी ने अपनी शांतिकुंज यात्रा का शुभारम्भ करते हुए ट्रेन में से हमें अपडेट करना शुरू कर दिया था तो हमने निवेदन किया था कि इस सारी यात्रा का यथासंभव विवरण देने की कृपा करें,ऐसा करने से From horse’s mouth वाली उक्ति को बल मिलेगा। बहिन जी ने हमारे सुझाव को मान कर,हमारा सम्मान किया उसके लिए हम बहुत ही आभारी है। लगभग 700 शब्दों और 27 क्लिप्स में बहिन जी का जो परिश्रम समाया हुआ है उसके लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। ऐसा विवरण इक्क्ठा करके,सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करना कोई सरल कार्य नहीं है, आज तो जल्दी-जल्दी में,जिस प्रकार प्राप्त हुई जानकारी को प्रस्तुत कर रहे हैं, भविष्य में यदि उचित रहा तो इस मौन साधना की अच्छी सी वीडियो भी बना सकते हैं। बहिन जी द्वारा यह सारी जानकारी आज सुबह ही प्राप्त हुई थी, हमने इसे आज ही प्रकाशित करना उचित समझा क्योंकि अगले शनिवार तक देर हो जानी थी।
इस Deviation के लिए, हम जानते हैं कि हमारी दोनों बहिनों (आद सुमनलता जी एवं आद संध्या जी) को कोई भी स्पष्टीकरण देने की हमारी समर्था नहीं है। आद सुमनलता जी का सुझाव था कि इस सारे के सारे विशेषांक को हम केवल अपने व्यक्तिगत अनुभवों, अनुभूतियों के लिए ही प्रयोग करें। बहिन जी ने इस सुझाव का यह लॉजिक दिया था कि हम तो सारा महीना बात करते ही रहते हैं लेकिन भाई साहिब को एक दिन देना कोई अनुचित नहीं है। बहिन संध्या जी ने तो कितनी बार कहा है कि आपने अपने विशेषांक को भी हमारे लिए समर्पित कर दिया।
इस विषय में हम एक बार फिर से दोहराना चाहेंगें कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य हमारे लिए सम्मानीय है,उसका योगदान सर्वोपरि है। हमारे समर्पित साथी ही हैं जिन्होने मात्र आठ वर्ष में हमें 44000 सब्सक्राइबर्स और 7.5 मिलियन व्यूज दिलवाए। हम आठ वर्ष इसलिए कह रहे हैं कि चैनल तो पिछले 15 वर्ष से चल रहा था लेकिन लोगों को पता ही 2017 में चला जब हमने आदरणीय चिन्मय जी के इंटरव्यू शेयर किये। उस समय तक सब्सक्राइबर संख्या मात्र 2 ही थी, इंटरव्यू शेयर करते ही संख्या 2 से 850 की छलांग लगा गयी, अब तक की सबसे बड़ी छलांग एक वर्ष के 2250 सब्सक्राइबर्स होना है।
इस सारी प्रगति का श्रेय हमारे नियमित,पर्यटक सहकर्मियों को ही जाता है, हम सब को तो मात्र वही 5-7 साथी ही दिख रहे हैं जो नियमितता से, निश्चित समय पर सार्थक कमेंट कर रहे हैं, लेकिन “जय गुरुदेव” लिखने वालों का अपना ही योगदान है, सभी का सामूहिक प्रयास है, यदि ऐसा न होता तो 2250 सब्सक्राइबर्स कहाँ से आए।
“यहाँ पर एक अटल सत्य को अवश्य मानना होगा कि यदि गुरु की शक्ति न होती तो हम आज तक 2 सब्सक्राइबर्स पर ही बैठे होते।”
तो Deviation के लिए साथिओं से करबद्ध क्षमाप्राथी हैं एवं बहिन पुष्पा जी के परिश्रम एवं प्रयास के लिए धन्यवाद् करते हैं, उन्होंने ऐसी प्रतक्ष्य जानकारी दी है जो किसी भी सोर्स से मिलना असंभव है।
आप पहले बहिन जी द्वारा भेजा गया निम्नलिखित विवरण देख लीजिये,उसके बाद जब हमारी Tape शुरू हो जाएगी तो शब्द सीमा की बेड़ियाँ ही उसे बांध पाएंगीं, बोलना तो हमारी सबसे बड़ी हॉबी है। आद अरुण वर्मा जी ने तो वाणी संयम के लाभ प्राप्त कर लिए लेकिन सभी अरुण इतने समर्पित थोड़े होते हैं । गुरुवर कान खींचकर डाँटते भी हैं लेकिन हम अपनी छोटी पोती (पिस्ती) को याद करते उसी की तोतली वाणी में कह देते हैं “No dadji, नो दादजी”
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ॐ श्री गुरु सत्तायै नमः 🙏🙏 ॐ सद्गुरु देवाय नमः 🙏🙏
मैं पुष्पा सिंह आज अपने शांतिकुंज में और टिहरी विशिष्ट साधना केन्द्र गायत्री शक्तिपीठ में किए गए नौ दिवसीय संजीवनी साधना का संक्षिप्त विवरण दे रही हूँ :
मैं 11अक्टूबर 3:00 बजे सुबह शांतिकुंज पहुंच गयी थी और हमें नचिकेता भवन में ठहरने को जगह मिली और उसी दिन से नौ दिवसीय संजीवनी सत्र शुरू हुआ जिसमें “सुबह की साधना का” शुभारम्भ आरती से शुरू करके, सुबह का ध्यान साधना गुरूदेव जी की आवाज के साथ करना, फिर प्रवचन,30 माला जप ,उसके बाद हवन, अखंड दीप दर्शन करने के बाद फिर से प्रवचन, गीत -संगीत फिर नाश्ता-पानी के लिए छुट्टी ।
फिर “दोपहर की साधना” माता जी की आवाज के साथ मंत्र जप,उसके बाद गीत -संगीत, प्रवचन। इसी तरह “शाम की साधना” भी होती जिसमें गुरुदेव जी से संबंधित बातें प्रवचन के माध्यम से बताई जाती थीं। कुछ प्रवचनकर्ता अपनी अनुभूतियों को भी बताते कि जब गुरुदेव माता जी स्थूल शरीर में थे तब हम लोग कैसे रहते थे, कैसे खाते-पीते थे वगैरह वगैरह …
चार दिनों तक ऐसे ही साधना होती रही फिर हमें बताया गया कि अगर कोई “मौन साधना” के लिए टिहरी या मुनस्यारी जाना चाहता है तो वो जा सकता है। तो कुछ लोग टिहरी के लिए जाने को तैयार हुए और साथ में मैं भी आठ भाइयों के साथ मैं भी 15 तारीख को सुबह की साधना शांतिकुंज में करके नौ बजे शांतिकुंज की ही गाड़ी से टिहरी के लिए प्रस्थान किए जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति से 1500 रुपये लेकर पहले ही ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया गया था।
12:30 बजे हम लोग टिहरी केन्द्र पहुंच गये। वहां पहुंचने पर हमें रहने को रूम दिया गया, फिर खाना खाने को हॉल में बुलाया गया और बहुत ही प्यार के साथ वहां के महाराज जी जो खाना बनाते हैं उन्होंने खिलाया और भी उनके सहयोगी भाई थे सभी का व्यवहार बहुत अच्छा रहा।
फिर आराम करने के बाद शाम में आरती: पहले महाकाल मंदिर में, फिर गायत्री मंदिर में, हम सभी लोगों को बुलाकर करवाई गयी। फिर शाम में प्रज्ञा चाय पीने को मिला। उसके बाद वहां शाम पांच बजे ही खाना खिलाया जाता है और रात का खिचड़ी दी जाती है। उसके बाद 6:00 बजे नादयोग करने के पश्चात हमें “मौन साधना का संकल्प” कराया गया और मौन साधना का महत्व बताया गया कि हम मन में जो जप-तप-यज्ञ करते हैं उसका कितना लाभ मिलता है। अब हमें जरुरत पड़ने पर इशारे में या लिखकर अपनी बात को बतानी थी।
हम सभी नौ लोगों का पांच दिन की मौन साधना सम्पन्न हुई। पांचवें दिन शाम में नादयोग के बाद, ॐ कार के साथ मौन तुड़वाया गया,
उसके बाद अमृतसर पिलाया (मीठा शरबत जैसा), उसके बाद हम सभी ने बारी-बारी से अपना परिचय दिया और मौन साधना के दौरान हुई अनुभूति कैसी रही, कैसा लगा ,सब पूछा गया। उसके बाद सुबह की साधना करने के बाद हमें 100 रूपये का गुरुदेव जी का साहित्य खरीदकर पहाड़ से नीचे जाकर घरों में, दुकानों में, वो साहित्य गुरुदेव जी के संक्षिप्त परिचय के साथ बांटने को भेजा गया। ये टारगेट पूरा करके हम लोग वहां थोड़ा बहुत घूमते हुए वापस आए। वहां मंदिर के सामने ही बर्फ वाले और बिना बर्फ वाले दोनों ही देव हिमालय देखते ही बनते थे। एक और अलौकिक अनुभूति होती थी। फिर उसके पहले ही गंगोत्री से निकलकर आती हुई गंगा नदी का सब दर्शन करके एवं सूर्योदय होता देखकर आकाश की लालिमा देखते ही बनती थी।
एक दिव्य अनुभूति जैसे गुरुदेव जी जो कहते हैं – गंगा की गोद , हिमालय की छाया, स्वर्णिम सूर्योदय ये सारे दृश्य वहीं सामने दिखाई देते हैं। जय गुरुदेव जी 🙏🙏🙏
अद्भुत नजारा ॐ
हम लोग लौटते समय फिर खाना खाकर 1:00 बजे के करीब वहां से टिहरी बांध परियोजना को देखते, चंबा की तरफ से रास्ते का जो नजारा था वो भी देखते बनता था। नदी, पहाड़ झरना सब मन मोह रहे थे। लगभग शाम पांच बजे हम लोग शांतिकुंज वापस आ गये।
सब मिलाकर टिहरी का मौन साधना सत्र बहुत बढ़िया प्रेरणादायक
रहा। मन खुशियों से भर गया ॐ शांति
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तो साथिओ कैसा रहा बहिन पुष्पा जी द्वारा वर्णित आँखों देखा हाल ?
अब आती है हमारी बात !!
18 माह पूर्व आरम्भ हुए इस विशेष विशेषांक को जब भी प्रस्तुत किया,हर बार गुरुवर का ऐसा मार्गदर्शन एवं संकेत मिला कि बेटे जिनके लिए तू लिख रहा है वोह केवल यूट्यूब चैनल के सब्सक्राइबर्स नहीं हैं, ज्ञानरथ को हांकने वाले सहयोगी नहीं हैं, ज्ञानप्रसाद पढ़ने वाले,गुरुकक्षा में वितरित हो रहे गुरुज्ञान के सहपाठी नहीं हैं आदि आदि, बल्कि उनसे कहीं ऊपर हैं, उनका मूल्यांकन करके तू Evaluation Scale का अनादर कर रहा है, यह सभी अमूल्य हैं।
दो दिन पूर्व “ भिखारी नहीं, बेटा बनकर आओ” शीर्षक से पोस्ट किया गया दिव्य सन्देश हमें अपनी दिवंगत माँ के साथ ऐसे जोड़ गया कि वर्णन करने के लिए शब्द ही नहीं हैं, माँ का स्नेह-प्यार याद करके इतने भावुक हो जाते हैं कि अश्रुधारा रुकते ही नहीं रूकती, स्वयं से पूछते हैं,ईश्वर से पूछते हैं, “क्यों बनाया हमें इतना भावनाशील?, आज के संसार में ऐसे कैसे रहा जायेगा, यहाँ तो भांति-भांति के लोग हैं।” लेकिन क्या करें, भावनाओं पर अपना वश कहाँ है। कल ही प्रकाशित हुई वीडियो में देख रहे हैं,गुरुवर किस भावना में रुआंसी वाणी में बोल रहे हैं “हम कुत्ते से भी – – -”, यदि हम उस गुरु की संतान हैं तो उसका कुछ न कुछ अंश अवश्य आना ही चाहिए, जगहंसाई होती है तो होती रहे: मर्द होकर एकदम बच्चों की तरह,नारिओं की तरह अश्रु बहा देता है लेकिन क्या मर्द तो दर्द नहीं होता उसे भी होता है, कोई अपना दर्द कण्ट्रोल कर लेता है तो कोई नहीं।
एक दिन शाम तो वाक् करते समय आद नीरा जी हमसे पूछने लगीं कि बड़ी हैरानगी होती है कि पांच भाई बहिन में केवल आपको ही मम्मी पापा की इतनी चिंता क्यों होती थी,आप ही घर-बाहर के सभी कामों में क्यों उनकी सहायता करते रहते थे, आपने कभी कोई गेम भी नहीं खेली,सारा दिन किताबी कीड़े की भांति पढ़ना यां लड़कियों की भांति माँ के साथ हाथ बंटाना, क्या यह Womanish नहीं है? शायद हो, लेकिन हमने पहले ही लिख दिया है हमें किसी के कहने की कोई परवाह नहीं है, जगहंसाई की कोई चिंता नहीं है।
जिस दिव्य सन्देश की बात यहाँ पर हो रही है उसकी ही तरह हमारी माँ अंतिम समय तक हमारे आने का एक-एक दिन इंतज़ार करती रहीं। उन दिनों फ़ोन/व्हाट्सप्प आदि का ज़माना तो था नहीं, 30 पैसे के नीले अंतर्देशीय पत्र ही लिखे जाते थे,लगभग 10 दिन पंहुचने में लगते थे,पत्र मिलते ही प्रतीक्षा शुरू हो जाती थी, जिस दिन घर पंहुचना होता था, सुबह से ही माँ सभी को बताती थी आज काकू ने आना है, शायद ही कोई बार ऐसी हो जब हम आये हों और माँ सामने खिड़की से सटे तख़्त पर बैठे, खिड़की खोल कर हमें देख न रही हो,इसीलिए हम हमेशा कहते हैं, माँ केवल माँ होती है।
जय गुरुदेव













