वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अपनी शक्तियों को सार्थक दिशा दें 

आज आरम्भ हो रही ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला में अनेकों प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना है, गुरुदेव के मार्गदर्शन में रचे जानी वाली अन्य लेख श्रृंखलाओं की भांति इस लेख श्रृंखला में भी प्रत्येक लेख एक अद्भुत/दिव्य जानकारी लेकर आएगा जिससे अनेकों साथी प्रेरित होकर इन ज्ञानप्रसाद लेखों को पढ़ने में प्रोत्साहित होंगें,इस प्रोत्साहन से कमेंट किये बगैर नहीं रहेंगें और गुरुदेव के ज्ञानरथ  को  आगे हांकने के लिए सक्रियता एवं नियमितता से काउंटर कमेंट करेंगें। 

हमारे साथी जानते हैं कि जब भी नई ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला का शुभारम्भ होता है उसके पीछे छिपे उद्देश्य एवं पृष्ठभूमि का वर्णन अवश्य होता है क्योंकि यदि उद्देश्य का ज्ञान ही नहीं है तो “अँधेरे में तीर मारने जैसी बात हुई।”

आइये पहले पृष्ठभूमि  की बात कर लें : 

हम अक्सर कहते आए  हैं कि हम न तो कोई लेखक हैं, न ही कोई उच्चस्तरीय ज्ञानी,जैसे-जैसे  गुरुवर हमारी अल्पबुद्धि को देखकर निर्देश देते हैं उसका पालन करते जाते हैं, गुरुआज्ञा सर्वोपरि है। 

इस शृंखला का बीजारोपण,कुछ समय पूर्व शांतिकुंज से प्राप्त हुए दैनिक सन्देश से हुआ जिसका शीर्षक था “मौन-मन और वाणी का संयम” सन्देश पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ कि गुरुवर ने शायद हमारे लिए ही लिखा है, हमें ही निर्देश दिया है। मन में जब विचारों का प्रवाह उठ खड़ा होता है, उसे व्यक्त करने के लिए लेखन/वाणी का सहारा लेकर न जाने हम कहाँ से कहाँ पंहुच जाते हैं। हमारे साथी, इस स्थिति को लेकर,हमारे बारे में क्या सोचते हैं, यह तो नहीं मालूम, लेकिन हमें इतना मालुम है कि  यदि हम मन में उठते विचारों को व्यक्त न कर लें तो हमारे पेट में गुड़गुड़ होता रहता और इस गुड़गुड़ का निवारण तभी हो पाता है जब हम इस ज्ञान तो Vomit out  कर लेते हैं। विज्ञान साक्षी है कि विचारों के संयम से लाभ होने के बजाए हानि होती है। 

शांतिकुंज से आये सन्देश को तो एकदम अपने स्पेशल फोल्डर में सेव कर लिया लेकिन जिज्ञासा रही कि 9 पन्नों के इस सन्देश का सोर्स क्या है,यह तो हो नहीं सकता कि गुरूवर ने मात्र 9 पन्नों की कोई पुस्तिका रची हो। सोर्स ढूंढने का प्रयास जारी रहा और इस प्रयास का अंत तब हुआ जब गुरुवर की 69 पन्नों की अद्भुत रचना “शक्ति संचय का  स्रोत-संयम” हमारे हाथ लग गयी। इस पुस्तक के मुख पृष्ठ का स्क्रीनशॉट आज की चर्चा के साथ संलग्न है। 

तो साथिओ हुआ न गुरुवर का साक्षात् निर्देश ?

इसी निर्देश का पालन करने के लिए आदरणीय चिन्मय जी की 20 मिंट की वीडियो भी सामने आ  खड़ी हुई जिसमें अधिकतर बातें इस पुस्तक के कंटेंट से  जुड़ी हुई दिख रही हैं। हम कह सकते हैं कि आने वाले ज्ञानप्रसाद लेखों को पढ़ते समय पाठकों के मुख से यह शब्द “चिन्मय भैया यही तो बता रहे थे” अनायास ही निकल पड़ेंगें। 

तो साथिओ गुरुवर का निर्देश और चिन्मय जी की वीडियो एक अद्भुत संयोग हुए कि नहीं ?

यह हुई इस लेख श्रृंखला की पृष्ठभूमि,अब बात करते हैं उद्देश्य की। साथिओ, शक्ति,संचय,संयम,अपव्यय,एनर्जी संवर्धन आदि जैसे शब्द इतने प्रचलित हो चुके हैं कि सामान्य व्यक्ति ऐसा Taken for granted लिए हुआ है कि उसे इन  शब्दों की एवं उनके पीछे ज्ञान की पूरी तरह जानकारी है और वह  उन्हें समझने का प्रयास ही नहीं करता । गुरुदेव की अनेकों रचनाओं को इस धारणा से, सरसरी निगाह से पढ़ा जाता है कि इसका तो हमें पता ही है। दूसरी तरफ वोह रचनाएँ हैं जो इतनी गूढ़ और कठिन हैं कि उन्हें समझने की हिम्मत जुटा  पाना,सामान्य पाठक के बस की बात नहीं। 

ऐसी स्थिति में End product क्या निकला ? पुस्तक आसान है, इसे इसलिए नहीं पढ़ा कि जानते हैं, पुस्तक कठिन है, इसे इसलिए नहीं पढ़ा कि कठिन है। तो हमने क्या सीखा? शायद कुछ भी नहीं !!! इसी स्थिति से उभरने के लिए, हमारी मीनमेख निकालने की आदत, तार्किक प्रवृति ने हमें गुरुवर में साहित्य पर रिसर्च करने को प्रेरित किया है। 

आने वाली शृंखला के उद्देश्य को समझने के लिए विज्ञान के अति सरल एवं बेसिक सिद्धांत Law of energy conservation  का उदाहरण देना उचित रहेगा। Conserve का अर्थ होता है संरक्षण, बचाना आदि। 

इस सिद्धांत के अनुसार एनर्जी कभी भी बचाई नहीं जा सकती, यह हमेशा परिवर्तित होती रहती है। चूल्हे पर बन रही दाल में छिपे केमिकलज़  (Chemical energy) खाने पर हमें शक्ति देते हैं जिसे लाइफ एनर्जी कहते  हैं, खाने से प्राप्त एनर्जी से ही हम दिन भर के कार्य करते हैं जिसे हम मैकेनिकल एनर्जी कहते हैं। दाल को पकाने में गैस बर्नर से निकल रही Heat एनर्जी, सिलिंडर में समाहित LPG भी एक और प्रकार की एनर्जी है। तो साथिओ यह Energy transformation है न कि Energy conservation. एक प्रकार की एनर्जी दूसरी प्रकार में बदल रही है। क्या कोई बहती नदी की धारा को रोक पाया है ? बहना तो उसका  स्वभाव है। 

रोज़मर्रा के इन्हीं सरल  सिद्धांतों को समझ पाना ही आने वाली लेख श्रृंखला का उद्देश्य है। साथिओं के लिए अपना मूल्याङ्कन करने का यह एक स्वर्ण अवसर है कि गुरुदेव द्वारा निर्धारित “संयम के मापदंड” में हम कहाँ खड़े हैं। 

हम जानते हैं कि आज भूमिका बहुत ही बड़ी हो गयी है लेकिन इसके इलावा और कोई विकल्प ही नहीं था। 

आइए नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा का ध्यान करते, आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ करें:

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मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ विभूतियां मिली हुई हैं । शारीरिक शक्ति, सामाजिक और सामूहिक शक्ति में तो वह बढ़ा चढ़ा ही है, साथ में ही वह शक्ति के अनंत एवं असीमित  स्रोत से भी ऐसे जुड़ा हुआ है कि जब चाहे आवश्यकतानुसार अतिरिक्त शक्ति प्राप्त कर सकता है। इतनी शक्ति होने के बावजूद, हमारे आगे पीछे अधिकांश लोग निर्बलता और अभावों का रोना रोते हुए देखे जाते हैं, तुलना करते देखे जाते हैं,यह कहते पाए जाते हैं कि “सृष्टि के अन्य प्राणियों की तुलना में मेरा स्वरूप तो नगण्य ही है,मेरे से शक्तिशाली तो अनेकों प्राणी हैं।” कमजोर प्राणियों की संख्या तो थोड़ी है अन्यथा ऐसे जीवजन्तु और पशु पक्षियों की जातियां तो हज़ारों  की संख्या से ऊपर है जो मनुष्य को  शरीरबल में पछाड़ सकते है। शरीरबल में कमजोर होते हुए भी मनुष्य ने इतनी प्रगति की है, ऐसे साधन विकसित करने में सफल हुआ है कि  वह संसार का एकमात्र  शक्तिशाली अधिपति हो सकता है । एक तरफ तो अभावग्रस्त, दुर्बल और अज्ञानी लोगों की भरभार है तो दूसरी ओर ऐसे महापुरुष भी हुए हैं  जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर संसार को एक से एक बढ़ चढ़कर अनुदान दिये हैं, देते आ रहे हैं और हमारा विश्वास है कि हमारे पूज्यवर जैसे युगपुरुष सदैव ही संसार में आते रहेंगें और हम जैसे अज्ञानीओं का हाथ पकड़ते रहेंगें। 

हमारे चारों ओर विज्ञान के जो चमत्कार दिखाई देते हैं उन्हें देखकर तो सोचना स्वभाविक है कि यह सब उपलब्धियां ऐसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों की देन हैं  जिन्होंने अपनी विभूतियों का उपयोग किया और उन्हें इस सार्थक और विकासशील दिशा में लगाया।

एक व्यक्ति सारे समाज की चिन्तनधारा को मोड़ देता है, वह अपने भीतर ऐसी विचारशक्ति अर्जित कर लेता है कि अन्य सभी लोग उसके अनुरूप सोचने लगते है। प्रतिभाशाली एवं अयोग्य  व्यक्तियों से यह संसार भरा  पड़ा है। एक ओर जहाँ ऐसे व्यक्तित्व  हैं जो अपनी शक्ति द्वारा पूरे समाज की समस्याओं को हल कर सकते हैं तो दूसरी ओर ऐसे लोग भी है जो अपनी साधारण सी कठिनाइयों का निवारण भी नही कर पाते ।

प्रश्न उठता है कि “सृष्टि नियन्ता” ने प्रतिभाशाली लोगों को इस तरह की शक्तियां प्रदान करते समय क्या कोई पक्षपात बरता है ? उत्तर मिलता है कि नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। उसने सभी के लिए लाभ उठाने के द्वार खोल रखे हैं एवं  प्रत्येक को यह अवसर दिया है कि वह उस अनंत, असीमित, अपरिमित शक्ति का उपयोग अपने तथा समाज के लिए कर सके। व्यक्तियों की शक्ति एवं महानता का कारण साधन और परिस्थितियाँ नहीं हैं। महापुरुष और साधारण व्यक्तियों के अन्तर का कारण शक्तियां और विभूतियाँ ही नहीं हैं; निष्ठा,समर्पण,कठिन परिश्रम,श्रद्धा, तप जैसे अनेकों Elements हैं। परम पूज्य गुरुदेव जैसे    महापुरुष निर्धन से निर्धन परिस्थितियों में भी आगे बढ़े हैं,महान कार्य करने में सफल हुए हैं,सारे विश्व का कल्याण कर गए हैं, कर रहे हैं, करते रहेंगें। 

उन सफलताओं का बेसिक आधार “उपलब्ध शक्ति का अभीष्ठ दिशा में सही उपयोग” है। वे शक्तियाँ हमें भी प्राप्त हैं, प्रत्येक को उपलब्ध हैं लेकिन साधारण व्यक्ति केवल दो निम्नलिखित कारणों से ही उन शक्तियों का  लाभ उठा नहीं पाते: 

1.पहला कारण तो  यह है कि व्यक्ति उन शक्तियों को अनावश्यक और अवांछनीय रूप से खर्च कर देते हैं। अनावश्यक और अनुचित कार्यों में शक्तियाँ खर्च कर देने से उनका उपयोग आवश्यक और उचित कार्यों में नहीं हो पाता। साधन सीमित हों, उनसे आवश्यक कार्य किये जाएँ  तो अतिरिक्त साधन भी प्राप्त किये जा सकते हैं लेकिन सीमित  साधनों को अनावश्यक कार्यों में खर्च कर दिया जाय तो वे साधन तो समाप्त होंगे ही आगे का स्रोत भी बन्द हो जायगा। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति बिज़नेस प्रारम्भ करना चाहता हो,उसका बिज़नेस प्लान ठीक हो और वह स्वयं भी योग्य और समर्थ हो तो पूँजी की कमी कहीं से भी पूरी हो जाती हैं। प्रतक्ष्य स्रोत (बैंक,फाइनेंस कंपनी) अगर न भी सहायक हों  तो भगवान् किसी नरसी मेहता जैसे को स्वयं ही भेज देते हैं। नरसी मेहता की कृष्ण भक्ति की विस्तृत जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है, साथिओं से आग्रह है कि इस लेख के सन्दर्भ में इस कथा को अवश्य देख लें। 

चलो साथिओ आगे बढ़ते हैं :  

योग्य एवं समर्थ व्यक्ति को किसी  भी सरकारी या गैर सरकारी सोर्स से सहायता मिल सकती है। लेकिन यदि वह उस पूंजी को वह अपने शौक/ मौज में ही खर्च करना चाहे तो उसे कोई भी सहायता देने के लिए तैयार नहीं होगा। ऐसी स्थिति में उसकी अपनी जमापूंजी तो खर्च होगी ही साथ ही साथ बैंक आदि में भी नाम बदनाम होगा। 

जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी शक्तियों को अनुचित कार्यों में खर्च करते हैं,बैंक की भांति ईश्वर से शक्ति प्राप्त करने की पात्रता भी खो देते हैं, उनके लिए वह असीमित शक्ति का स्रोत भी बन्द हो जाता है ।

2. अपनी शक्तियों से लाभ न उठा पाने का दूसरा कारण उन्हें ठीक  दिशा में प्रयुक्त न करना है। कुकर में समाहित Steam power, स्टीम इंजन में पैदा हो रही “वाष्प शक्ति,Steam power” जब इकट्ठी हो जाती हैं तो उसका उपयोग करना ही पड़ता हैं। यदि उसका उपयोग न किया जाय तो बर्तन फट सकता है, भयंकर नुकसान हो सकता हैं।

कल तक के लिए मध्यांतर, जय गुरुदेव                 


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