9 सितम्बर 2025 का ज्ञानप्रसाद : Source- गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां”
आज का ज्ञानप्रसाद लेख परम पूज्य गुरुदेव के 374 पृष्ठों के उत्कृष्ट ग्रन्थ पर आधारित है जिसका शीर्षक “गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां” है। इस विशाल एवं अति काम्प्लेक्स कंटेंट को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर लाने से पहले ही सावधान करने की आवश्यकता है कि अध्यात्म के क्षेत्र में हम जैसे अधिकतर छात्र नर्सरी के ही विद्यार्थी है और यह यह ज्ञान Ph.D लेवल का है। Proper बैकग्राउंड न होने के कारण,समस्त ज्ञान पाने की उत्सुकता में कहीं हम भटक कर ही न रह जाएँ। इसलिए उचित तो यही होगा कि थोड़ा-थोड़ा करके,समझते हुए,साँस लेते हुए, Step by step बेसिक ज्ञान ही ग्रहण करने का प्रयास किया जाये।
पंचकोष और तीन शरीर एक दूसरे के साथ इतने जुड़े हुए हैं कि इन्हें अलग करना लगभग असंभव है,जब भी एक की चर्चा होगी दूसरे का वर्णन होगा ही।
आज के लेख में माँ गायत्री के पांच मुख,दस भुजाओं का पांच कोषों से सम्बन्ध वर्णन किया गया है।
तो आइए विश्वशांति की कामना के साथ, गुरुदेव के आह्वाहन को शिरोधार्य करते आज के लेख का शुभारम्भ करें :
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
*********************
अनेक स्थानों पर गायत्री के पंचमुखी एवं दशभुजा धारी होने का वर्णन आता है। इस तथ्य को दर्शाती अनेकों तस्वीरें एवं मूर्तियाँ भी मिलती हैं। अनेकानेक घरों में पंचमुखी गायत्री की स्थापनाएँ भी की हुई मिलती हैं। वस्तुतः यह तथ्य किसी को भ्रमित करने वाला कोई Myth या कथागाथा से जुड़ा कहा-सुना वर्णन नहीं है बल्कि गायत्री के पाँच मुखों के रूप में मानवी आत्मसत्ता पर छाए पाँच कोषों,पांच आवरणों का वर्णन है। यह पांच कोष, जिनसे ऑनलाइन
ज्ञानरथ गायत्री परिवार से साथिओं को बार-बार परिचित कराया जा रहा है 1)अन्नमय कोष 2) प्राणमय कोष 3) मनोमय कोष 4) विज्ञानमय कोष और 5) आनन्दमय कोष के नामों से प्रचलित हैं।
आत्मा के यह पांच रूप, आवागमन के बंधन व छुटकारे के वैसे ही द्वार हैं, जैसे मनुष्य के शरीर में साँस आने-जाने के लिए नाक के छिंद्र होते हैं। जो मनुष्य योगविद्या के गूढ़ ज्ञान और विज्ञान को जानकर, समझकर इन कोशों को जगा पाता है, वह परम पद प्राप्त कर सकता है।
माँ गायत्री की दश भुजाएँ जीवन के कष्टों और दुःखों का निवारण करने वाली महाशक्तियाँ हैं। जिस मनुष्य के ऊपर मातृसत्ता की इन दश भुजाओं का वरदान है, उसे किसी भी प्रकार का कोई दुःख कभी भी सता नहीं सकता।
परम पूज्यगुरुदेव ने गायत्री योग एवं गायत्री तंत्र के रूप में गायत्री महाविज्ञान का प्रारम्भिक पक्ष लिखने के बाद गायत्री महाविज्ञान के तीन खण्डों की जब विधिवत् रचना कर उसे प्रकाशित किया तो उसका तीसरा खण्ड पंचकोशी साधना व उसका “वैज्ञानिक विवेचन” बना। उन्होंने हिमालय साधना से लौटते ही इस गूढ़ साधना के व्यावहारिक पक्षों का अभ्यास “अखण्ड ज्योति” के पृष्ठों में तथा बाद में विशिष्ट साधना सत्रों” के माध्यम से मथुरा से ही 1963-64 में आरम्भ कर दिया था। गुरुदेव ने 46 श्लोकों वाली “गायत्री मंजरी” रूपी एक पुस्तक लिखी थी,इन श्लोकों की व्याख्या के रूप में 374 पृष्ठों के जिस ग्रन्थ का जन्म हुआ था उसका शीर्षक “गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां” था,वर्तमान लेख श्रृंखला इसी ग्रन्थ पर आधारित है।
हमारे ऋषिगणों ने गहन तपश्चर्या, अन्तर्मुखी योगसाधना एवं गायत्री महामन्त्र के व्रत अनुष्ठानों के द्वारा शक्ति अर्जित कर यह जान लिया था कि मानवी काया स्थूल, सूक्ष्म व कारण, तीन शरीरों में बँटी हैं। इसमें ऊपर से नीचे तक ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन ग्रंथियाँ हैं। शरीर पंचतत्त्वों से बना है एवं आत्मा के पाँच कोष हैं। पांच तत्व (पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि एवं आकाश) के सम्मिश्रण से जहाँ यह पार्थिव देह बनती है वहाँ पंचमुखी गायत्री हमें बताती है कि यह शरीर पांच तत्वों के जड़ परमाणुओं का सम्मिश्रण मात्र है जो चेतना/आत्मा/ऊर्जा से अलग है। पाँच फाटकों के किले में बन्द यह जीव (मनुष्य) पंचकोषों से घिरा है एवं इन फाटकों के खुलते ही आत्मा सभी बन्धनों से मुक्त हो जाती है ।
जन सामान्य की भाषा में कोष का अर्थ खज़ाना होता है।पंचकोष आत्मसत्ता के पाँच खजाने के Storehouse के समान है जिनमें बहुमूल्य सम्पदा भरी पड़ी हैं। जब इस सम्पदा का सदुपयोग नहीं किया जाता, इनका बिगड़ा हुआ रूप मनुष्य को नाना प्रकार के पाप-ताप, शोक-क्लेश,दुर्भाग्य,चिन्ता-शोक, अभाव व दारिद्र्य प्रदान करता है। दूसरी तरफ जो मनुष्य साधना द्वारा अमूल्य रत्नों की पिटारी का सदुपयोग कर लेता है, वह देवमानव बनता चला जाता है।
आने वाले लेखों में पांच कोषों का विस्तृत विवरण देने की योजना है,इस संक्षिप्त भूमिका में इन कोषों की Summary ही उचित है। कल वाले लेख में भी इन कोषों के बारे में कुछ लिखा गया था।
यहाँ एक बात और क्लियर करने योग्य है- आवरण का अर्थ Covering होता है, प्याज़ की एक-एक परत, नारियल के तने की एक-एक परत इसके उदाहरण हैं।
1.प्रथम आवरण कोष है अन्नमय कोश है :
अन्नमय कोष के माध्यम से ही रज-वीर्य (Human semen) प्रधान मानवी काया का निर्माण होता है। इस कोष की स्थिति विकासक्रम के अनुरूप ही शरीर का ढाँचा व रंगरूप बनता है। मनुष्य जैसे आहार का सेवन करता है, उसी के अनुरूप “अन्नमय कोष” का विकास होता है। आहार में छिपे “सूक्ष्म संस्कार” ही विकृति से सामान्यावस्था एवं फिर उस कोष के विकास में सहायक होते हैं। इसीलिए तो कहा जाता है “जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन।” इसी अन्नमय कोश में कितनी ही व्याधियां छिपी बैठी रहती हैं। उपवास, आसन, सिद्धि,तत्त्वशुद्धि एवं तप-तितिक्षा द्वारा ही इस कोष को Refine करके, परिपुष्ट करते हुए शरीर को नीरोग बनाया जा सकता है। योग साधना द्वारा अन्नमय कोश की बन्धन ग्रंथियों को खोल कर अनेकानेक जटिलताओं से मुक्ति एवं जीवन्मुक्ति का प्रथ प्रशस्त किया जा सकता है । गायत्री साधक यदि उपरोक्त चार उपक्रम अपनाते हुए अन्नमयकोश को साधता है तो उसका तेजोवलय (Aura) बढ़ता है, स्वास्थ्य में सौन्दर्य परिलक्षित होता दिखाई देता है एवं प्रगति के अन्य द्वार खुलते चले जाते हैं ।
2.दूसरा आवरण प्राणमय कोष है जो प्राणशक्ति (Life energy) का स्थूल काया में निहित वह समुच्चय है जो हर व्यक्ति के चारों ओर छाया रहता है। प्राण ओजस्-तेजस् के रूप में विद्यमान होता है। जिस व्यक्ति का प्राणमय कोष सुदृढ़ है, उसका आत्मबल उच्च एवं विकसित स्थिति में रहता है। प्राणशक्ति का अभाव ही मन एवं शारीरिक रोगों का कारण बनता है।गायत्री साधना द्वारा प्राणायाम की शक्ति से प्राण को खींचकर, धारण कर, निखिल विश्व में संव्याप्त प्राणशक्ति के चैतन्य समुद्र से, स्वयं को सतेज,ऋद्धि-सिद्धि सम्पन्न बनाया जा सकता है। दीर्घायु, चैतन्यता, स्फूर्ति, सक्रियता, मोहक आभामण्डल, प्राणशक्ति रूपी कोष के संचय की बहिरंग फलश्रुतियाँ हैं। प्राणायाम द्वारा सूर्य चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से इड़ा-पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों को सक्रिय किया जा सकता है। गुरुदेव ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त प्राण शक्ति के आकर्षण के लिए अनेकों उपाय बताए हैं, यहाँ पर इनका विवरण देना अनुचित ही होगा ।
3.तीसरा आवरण मनोमय कोष चंचल मन को एकाग्रचित्त कर उसे संयम तथा ध्यान की विभिन्न विधियों के माध्यम से मस्तिष्क की सोई हुई क्षमताओं के जागरण के बारे में बताता है। जप व ध्यान, त्राटक साधना,पंचतन्मात्रा जैसी अनेकों साधनाएं इसी कोष को साधने से होती हैं। इसी कोष के द्वारा अतीन्द्रिय क्षमताओं को जगाया जाता है। गुरुवर ने चित्तवृत्ति के निरोध हेतु ध्यान,जप, त्राटक,तन्मात्र सिद्धि रूपी चार उपाय मनोमय योग के रूप में बताए हैं। जिसने इन चार को जान लिया,समझो उसने इस तीसरी तिजोरी के रत्न भंडार को प्राप्त कर लिया ।
4.चौथा कोष “विज्ञानमय कोष” के नाम से जाना जाता है। “विज्ञान अर्थात् विशिष्ट ज्ञान” ऐसा ज्ञान जो यह बोध करा दे कि “मनुष्य वस्तुतः आत्मा है पार्थिव काया नहीं, शरीर, गुण, स्वभाव सब से ऊपर ईश्वर का राजकुमार है।” मनुष्य को इस तथ्य का बोध “सोऽहं साधना” से होता है। अजपा जप, आत्मानुभूति योग, आत्मदेवता की साधना, ग्रंथिओं का भेदन इसी कोष के जागरण की प्रक्रिया के विभिन्न अंग हैं।
5.वेदमाता गायत्री का अंतिम एवं पाँचवाँ मुख “आनन्दमय कोष” के रूप में वर्णित किया गया है। जिस आवरण में पहुँच कर “आत्मा को परमानन्द की प्राप्ति हो, व्यक्ति स्थितप्रज्ञ समाधि की स्थिति में पहुँच जाए उसे आनन्दमय कोष कहते हैं। यह सहज समाधि की, चरम आनन्द की स्थिति है, पूज्यवर ने जिसका वर्णन “रेटीकुलर एक्टीवेटिंग सिस्टम” के समतुल्य बताया है। नादयोग की साधना, शब्द ब्रह्म की साधना, सुरतियोग, बिंदुयोग, पंचतत्त्वों की तात्विक साधना तथा तुरीयावस्था का परमानन्द आदि विषयों की व्याख्या इसमें की गयी है।
Reticular Activating System (RAS) मस्तिष्क का एक बहुत ही
महत्वपूर्ण Nerve network (तंत्रिका जाल) है, जो ब्रेनस्टेम (Brainstem) के अंदर रेटिक्युलर (मछवारे के जाल की भांति) फॉर्मेशन द्वारा हर जगह फैला हुआ है। इस सिस्टम का मुख्य कार्य:
1.चेतना (Consciousness) और जागरूकता (Awareness) बनाए रखना है। यह तय करता है कि आप जाग रहे हैं या सो रहे हैं। नींद से जगाने और ध्यान केंद्रित करने का कार्य इसी प्रणाली से होता है।
2.Sensory input को फ़िल्टर करना है। हमारे चारों ओर लाखों ध्वनियां और संवेदनाएँ होती हैं, लेकिन RAS यह तय करता है कि किस जानकारी पर ध्यान देना है और किसे अनदेखा करना है। उदाहरण: आप भीड़ में शोर सुनते हैं, लेकिन अचानक कोई आपका नाम लेता है तो आपका ध्यान तुरंत उस पर जाता है ,यह RAS की वजह से होता है।
3.मोटिवेशन और फोकस बढ़ाना है। यह आपके दिमाग को “Alert Mode” में डालता है, ताकि आप पढ़ाई, काम या किसी गतिविधि पर केंद्रित रह सकें।
4.नींद-जागरण चक्र (Sleep-Wake Cycle) को संतुलित करता है। RAS ही Circadian rhythm (दिन-रात की Time clock) को नियंत्रित करने में मदद करता है। उदाहरण: RAS आपके दिमाग का “फिल्टर और अलार्म सिस्टम” है। जैसे मोबाइल में नोटिफिकेशन सेटिंग्स होती हैं, कौन सा संदेश Popup हो और कौन सा Mute रहे, उसी तरह RAS यह तय करता है कि कौन सी जानकारी दिमाग तक पहुँचे और कौन सी ब्लॉक हो।
