वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

म्यूजिक थेरेपी को समझने के लिए एक अति सरल लेख

आज के लेख का शुभारंभ बिना किसी भूमिका के परम वंदनीय माता के चरणों में गिरकर क्षमा याचना से कर रहे हैं,हमें मां का महाप्रयाण कैसे भूल गया यह हमारी समझ से बाहिर है। लेकिन हमें विश्वास है कि माँ का ह्रदय बहुत विशाल होता है, वह अपने बेटे को क्षमा का दान अवश्य प्रदान करेंगीं। इसी दिशा में संलग्न वीडियो सब कुछ कह रही है। 

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दिसंबर 2023 में जब हमने मनुष्य शरीर के सात योगिक चक्रों पर रिसर्च करते हुए जिस  ज्ञानप्रसाद लेख को लिखा था उसमें हमने इतनी अधिक रिसर्च की थी कि एक 26 पन्नों की लघु पुस्तिका का जन्म हो गया था। “हमारे शरीर में स्थित सात चक्रों की संक्षिप्त जानकारी” शीर्षक वाली यह पुस्तिका इंटरनेट आर्काइव पर उपलब्ध है, इसका लिंक नीचे दे रहे हैं : 

https://archive.org/details/20231225_20231225_2254/page/n25/mode/2up

मनुष्य जीवन में सात रंगों, सात संगीत स्वरों, सात महासागरों, परिवार के सात यूनिट्स का क्या महत्व है,इससे हम सब भलीभांति परिचित हैं,इसीलिए तो हम जीवन को “सतरंगी” की परिभाषा से सुशोभित किए  हुए हैं।

जिस तरह हमने इस पुस्तिका को लिखने में “इंद्रधनुष के साथ रंग” और “हमारे शरीर के सात योगिक चक्रों” को कनेक्ट करने का प्रयास किया था,ठीक उसी तरह का प्रयास “संगीत के सात स्वरों” के लिए भी किया है। प्रयास तो यह भी किया गया है कि किसी  तरीके से “रंग” और “संगीत” दोनों ऊर्जा क्षेत्रों का समन्वय करते हुए योगिक चक्रों से जोड़ा जाए, हम अपने लिए सफल भी हुए हैं लेकिन उचित यही समझा गया है कि यह संयुक्त ज्ञान, साधारण पाठक के लिए बहुत ही काम्प्लेक्स होगा।

“संगीत के सात स्वर” और “इंद्रधनुष के सात रंग” दोनों ही अपना-अपना ऊर्जा स्पेक्ट्रम लिए हुए हैं,दोनों में अपनी-अपनी Wavelength है, अपनी-अपनी Frequencies हैं,अपनी-अपनी Vibrations हैं जो किसी विशेष कम्पन से शरीर के सात चक्रों को जागृत करने में समर्थ हैं। सम्पूर्ण भावना से दिव्य मंत्रों  के सही उच्चारण से शरीर में उठ रही “दिव्य कम्पन” को “ब्रह्मांडीय कम्पन” से जोड़ने की शक्ति है।ब्रह्मांड के साथ ऐसा कनेक्शन होने पर मनुष्य द्वारा “ब्रह्मशक्ति” को अपने शरीर में समाहित करके आश्चर्यजनक परिणाम देखना कोई अविश्वसनीय बात नहीं है।हमसे अनेकों ने कई बार ऐसे चमत्कारों को देखा होगा। यही वह ब्रह्मशक्ति है, ब्रह्मऊर्जा है जो मानव को महामानव और देवमानव बनाने में सहयोग करती है। यही कारण है कि हमारे अभिभावक,हमारे गुरुदेव बार-बार उनके द्वारा रचित दिव्य साहित्य को पढ़ने के लिए आग्रह करते हुए कहते हैं कि अगर आपने यह साहित्य पढ़ लिया तो आप अब्राहम लिंकन भी बन सकते हैं। साधारण से, सरल से दिखने वाले साहित्य में जो शक्ति समाई हुई है, उसे केवल वही बता सकते हैं जिन्होंने इसका लाभ उठाया है।

म्यूजिक थेरेपी के जिस ज्ञान को अर्जित करने में पिछले कुछ दिनों में हमने  जो प्रयास किए उसकी Complexity को देखते हुए यही निष्कर्ष निकाला है कि आज के  लेख को केवल “संगीत के सात स्वरों” का योगिक चक्रों पर प्रभाव” तक ही सीमित रखा जाये। इस एकाकी लेख में,जिसका आज ही समापन हो जाएगा,ठीक उसी  प्रकार “म्यूजिक थेरेपी” का संक्षित सा वर्णन किया जा रहा है जैसे लघु पुस्तिका में “कलर थेरेपी” की बात की थी।

तो आइए देखें कि शरीर के 7 चक्रों से जुड़ी ध्वनियाँ, मनुष्य की अनेकों बीमारियों को हील करने में कैसे सहायता करती हैं। 

आज 2025 में हम जिस Music therapy की बात कर रहे हैं, वर्षों पूर्व विश्व भर के साहित्य में एक विशेष स्थान बना चुकी है। बहुत पीछे जाने की तो आवश्यकता नहीं है, मात्र 73 वर्ष पूर्व बॉलीवुड की बहुचर्चित सुपरहिट मूवी “बैजू बावरा” के भक्ति रत्न “मन तड़पत हरि दर्शन” में 

यह शक्ति साक्षात् देखी जा सकती है। फिल्म का नायक बैजू अपने गुरु स्वामी हरिदास के दर्शन को तरस रहा है, गुरु बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं, हिलने में भी असमर्थ हैं, लेकिन मुरली मनोहर के दर्शनों के लिए मंदिर पहुंचने का संघर्ष कर रहे हैं। शिष्य के संगीत की सूक्ष्म शक्ति, उसमें समाहित भावना, गुरु को चलने के समर्थ बना देती  है, यह है संगीत की शक्ति, सूक्ष्म की शक्ति। कहते हैं कि इसी भक्ति रत्न से मोहम्मद रफी साहिब के करियर को उड़ान मिली थी। साथियो यही है उड़ने की आशा,गुरु की शक्ति एवं प्रेरणा।

विश्वभर में प्रतिदिन शाम 6:00 बजे प्रसारित होने वाला,परम वंदनीय माता जी की दिव्य वाणी में “दैनिक नादयोग” संगीत की शक्ति का एक और जीता जागता उदाहरण है।

बहिन सुमनलता जी ने अपने संगीत के ज्ञान से परिवार को निम्नलिखित कमेंट देकर शिक्षित किया है जिसके लिए हम आभारी है : 

लय और ताल में गाया गया, सुना गया संगीत मन को शांति प्रदान करता है। संगीत के सात सुर: सा (षडज), रे (ऋषभ) गा(गांधार) , मा (मध्यम) ,पा(पंचम) ,धा(धैवत), नि(निशाद) साथ चक्रों को प्रभावित करते हैं। 

हम सब जानते हैं कि मानव शरीर में मौजूद 7 चक्र भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को हील करने का काम करते हैं, इस Divine  healing  में चक्रों से जुड़ी सात संगीत स्वरों की Sound vibrations  का बहुत बड़ा  योगदान है। 7 चक्रों के उपचार और संतुलन के लिए साउंड थेरेपी एक प्राचीन और प्रभावशाली विकल्प है। 

हमारी सबकी प्रिय संजना बेटी द्वारा सुझाई गयी  डॉ दुर्गेश उपाध्याय जी की म्यूजिक थेरेपी पर आधारित अनेकों Research papers  यूट्यूब वीडियोस, लेखों के रूप में उपलब्ध हैं। इस रिसर्च के बारे में कुछ अधिक न कहते हुए आगे बढ़ते हैं।  

शरीर के चक्रों के साथ जुड़ी ध्वनि तरंगें (Sound waves),उनकी Wavelength, Frequency आदि, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक होती हैं।

शरीर में मौजूद हर चक्र के साथ एक ध्वनि तरंग जुड़ी हुई है और प्रत्येक चक्र से संबंधित ध्वनि (बीज मंत्र), उसकी Frequency और संगीत,मनुष्य की  ऊर्जा को संतुलित करने और शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक होते हैं। इस ध्वनि का लाभ पाने के लिए “चक्र केंद्रित आसनों” और “श्वास तकनीकों” को ध्वनि के साथ मिलाकर करना बहुत लाभदायक समझा गया है।  इन ध्वनियों और आवृत्तियों (Frequencies) के उपयोग से ऊर्जा प्रवाह (Energy flow) संतुलित होता है जो  शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य में सुधार करता है। कहने का अर्थ यह है  कि यदि मनुष्य  इन ध्वनियों के माध्यम से खुद के चक्र को हील करना चाहता तो “चक्र संबंधित बीज मंत्रों” का जप करते हुए ध्यान करना आवश्यक है। मैडिटेशन यानि ध्यान के समय इन Sound vibrations  को सुनना,उनसे संबंधित साउंड थेरेपी या बाइनोरल बीट्स” सुनना लाभदायक है। इन ध्वनियों के सही लाभ एवं बारीकियां किसी  अच्छे हेडफोन के प्रयोग से ही संभव है, उसी से दाएं और बाएं कान के सुनने की शक्ति का अंतर समझा जा सकता है।

निम्नलिखित संक्षिप्त विवरण में इन चक्रों से जुड़ी ध्वनियाँ कौन सी हैं, इन ध्वनियों से सम्बंधित आर्टिफिशियल साउंड यानि उपकरण (फोन में सेव किया हुआ संगीत) से पैदा की गयी साउंड थेरेपी क्या हो सकती है,बताने का प्रयास है: 

यह चक्र रीढ़ के आधार पर स्थित होता है। इस चक्र की ध्वनि “सुरक्षा, स्थिरता और आधारभूत” आवश्यकताओं के लिए है। अगर किसी उपकरण के जरिये इस ध्वनि को बनाना चाहते हैं, तो गहरे और स्थिर ताल वाले संगीत का उपयोग करें। इस ध्वनि को महसूस करने के लिए एक आरामदायक स्थिति लें, अपनी आँखें बंद करें और गहरी साँस लें। जैसे ही आप साँस छोड़ते हैं, संगीत के कंपन को अपने पेट के निचले हिस्से से शुरू करते हुए अपने मन-मस्तिष्क में गूंजने दें।

यह चक्र नाभि के नीचे स्थित होता है। इससे जुड़ा बीज मंत्र  का प्रयोग “रचनात्मकता, भावनात्मक संतुलन और यौन ऊर्जा” को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह ध्वनि पानी की आवाज़ या सौम्य प्रवाह वाले संगीत से मिलता-जुलता है।

यह चक्र पेट के ऊपरी भाग में स्थित होता है। इसके बीजमंत्र की  ध्वनि की उपयोगिता “आत्मविश्वास, शक्ति और इच्छाशक्ति” को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह हल्का और प्रेरक संगीत से मिलता-जुलता है।

यह चक्र हृदय के पास स्थित है। इस चक्र की  ध्वनि का उपयोग “प्रेम, करुणा और भावनात्मक हीलिंग” के लिए किया जाता है। यह एक प्रकार से कोमल, शांत और दिल को छूने वाला संगीत जैसा है।

यह चक्र गले के पास स्थित है। इस चक्र के मंत्र की  ध्वनि “संचार, सत्य और अभिव्यक्ति” के लिए होता है। इसका संगीत बिलकुल बांसुरी, गले के स्वर, या हल्के गान जैसा होता है।

यह चक्र भौहों के बीच स्थित होता है। इस चक्र के मंत्र की ध्वनि “अंतर्ज्ञान, ज्ञान और मानसिक स्पष्टता” को जागृत करता है। यह ध्वनि ध्यान संगीत या ओम् ध्वनि की गूंज जैसी होती है।

यह चक्र सिर के शीर्ष पर स्थित होता है। इसके  बीजमंत्र की उपयोगिता “आध्यात्मिकता, ब्रह्मांडीय चेतना और आत्मज्ञान” के लिए की जाती हो। यह एक प्रकार का शांत, ध्यानपूर्ण और आध्यात्मिक संगीत है।

“संगीत आत्मा की सात्विक खुराक है।” ब्रह्म के परम पवित्र प्रणव नाद ओंकार (ऊँ) की उत्पत्ति सृष्टि के साथ मानी गई है। भारतीय संगीत के सात स्वर न केवल हमारी शारीरिक तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं बल्कि पशु-वृतियों का नाश  भी करते हैं और हमारे अन्दर अध्यात्मिक एवं सात्विक विचारों का संचार भी करते है। भारत के योगियों ने सात स्वरों की उत्पति मानव शरीर के सात यौगिक चक्रों से मानी है। जब स्वरों को गाना बजाया जाता है तो स्वरों में  अलग-अलग निश्चित संख्या में जो आंदोलन होता है उनके कंपन का प्रभाव मानव शरीर के यौगिक चक्रों पर पड़ता है। 

“नाद”  का अर्थ ” ब्रह्मांडीय ध्वनि ” अर्थात “ब्रह्मांड का कंपन” है। गुरबानी कहती है: 

“यदि मनुष्य निरंतर उस निष्कलंक सच्चे प्रभु की महिमामय स्तुति गाता है, उसके अंतःकरण में नाद की निष्कलंक ध्वनि-धारा कंपन करेगी। यदि इस ऊर्जा के साथ तालमेल बैठ गया तो ब्रह्मांड की ध्वनि भीतर गूंज सकती है।” योगियों की भाषा में संगीत “नाद योग” है। 

वैसे तो Vacuum में Sound को सुनना असंभव होता है लेकिन नासा ने तीन वर्ष पूर्व प्रकाशित वीडियो में ब्रह्मांडीय ध्वनि को ॐ कहा है। इस वीडियो की लोकप्रियता इसके दर्शकों की एवं कमैंट्स करने वालों की संख्या से प्रमाणित हो रही है। 

आज के ज्ञानप्रसाद लेख का यहीं पर समापन होता है। आदरणीय सुजाता बहिन जी से आग्रह पर कल से तीन शरीरों पर आधरित ज्ञानश्रृंखला आरम्भ हो रही है। सभी साथिओं से करबद्ध निवेदन करते हैं कि इस दिव्य लेख श्रृंखला में अपना अधिक से अधिक योगदान देते हुए इस कठिन ज्ञान को समझने और समझाने का प्रयास करें, ऐसा न करने की स्थिति में End result यही होगा- हमने तीन शरीरों  लेख श्रृंखला का अमृतपान किया था    


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