4 सितम्बर 2025 का ज्ञानप्रसाद
अखंड ज्योति के जनवरी 1971 अंक में “चमत्कार कोई अवैज्ञानिक तथ्य नही” शीर्षक से प्रकाशित हुए लेख पर आधारित दो अंकों की लेख शृंखला का आज दूसरा एवं समापन लेख प्रस्तुत है। शब्द से ध्वनि, ध्वनि से संगीत की यात्रा करते हुए आज हम संगीत के कुछ ऐसे सकारात्मक पक्षों की चर्चा कर रहे हैं जिनसे हम से बहुतेरे अपरिचित हो सकते हैं। ज्ञान न होने के कारण ही किसी शक्ति का दुरूपयोग होता है। यही कारण है कि High volume,High pitch म्यूजिक, गाड़िओं के हॉर्न, DJ जैसे दुरुपयोगों ने संगीत के दिव्य पक्ष को पीछे छोड़ दिया है।
आज का लेख संगीत के दिव्य पक्ष की बात करते हुए बता रहा है कि संगीत के सात स्वर मानवी शरीर के सात चक्रों से सम्बंधित हैं।
आइए विश्वशांति की कामना के साथ, गुरुदेव के आह्वाहन को शिरोधार्य करते आज के लेख का शुभारम्भ करें :
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
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जहाँ हम ध्वनि की इतनी निंदा कर रहे हैं, ध्वनि की रचनात्मक उपयोगिता भी है। भाषण, परामर्श, शिक्षण, सत्संग आदि में “शब्द के माध्यम से ज्ञान संवर्धन” के निरन्तर प्रयत्न चलते रहते हैं। व्यवसाय जैसे पारस्परिक सहयोग पर आधारित अगणित क्रियाकलापों में शब्द संचार (Communication) की ही प्रमुख भूमिका रहती है। प्रचार एवं हंसी मज़ाक के लिए नियोजित विभिन्न उपायों/ उपचारों में कथन-गायन का ही आश्रय लिया जाता है। संगीत और अभिनय कला का अधिक विस्तार होने और विज्ञान का सहयोग मिलने से सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन जैसे नये माध्यम निकले हैं, इससे पूर्व यह कार्य छोटे-बड़े रंगमंचों द्वारा सम्पन्न होता था। ज्ञानसंवर्धन ही नहीं, विनोद और विविध-विधि उत्तेजनाओं के लिए भी मनुष्य ने “शब्द शक्ति” का भरपूर उपयोग किया है।
सामान्यतः “संगीत” को भाव संचरण एवं मनोविनोद के लिए प्रयुक्त किया जाता है लेकिन यह उसका छोटा सा उपयोग है। संगीत की गहराई में उतरने पर उसे एक स्वास्थ्य संरक्षण एवं मानसिक सन्तुलन के लिए उपयोगी शक्ति के रूप में कारगर सिद्ध होते देखा जा सकता है। इतना ही नहीं इन दिनों क्षेत्रों की प्रगति बढ़ाने के लिए संगीत का उपयोग एक महत्वपूर्ण पोषण एवं उत्तेजना की तरह ही बन पड़ता है। इस प्रकार “ध्वनि शक्ति की एक शाखा”, संगीत की उपयोगिता में एक नई कड़ी और भी जुड़ जाती है। संगीत के क्षेत्र में धीरे-धीरे लेकिन लगातार प्रगति के कारण संगीत को शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सा के लिए भी एक प्रभावी माध्यम की तरह प्रयुक्त किया जाने लगा है। Music therapy से भला कौन अपरिचित है ?
पुरानी बात है कि एक टाइपिंग कंपनी ने Music company को एक ऐसा “बैकग्राउन्ड म्यूजिक” तैयार करने का आर्डर दिया जिससे टाइपिंग में होने वाली अशुद्धियाँ कम हो सकें। इस कंपनी ने जो बैकग्राउन्ड म्यूजिक बना कर दिया उसको बजाने से टाइपिस्टों से होने वाली अशुद्धियों में 38.8 प्रतिशत कमी हुई। हवाई-अड्डों पर उड़ान करने वाले यात्री एवं क्रू मेंबर्स की लगातार लम्बी फ्लाइट्स की Monotonous लाइफ के कारण अशान्त मन को शान्त करने के लिए बैकग्राउन्ड म्यूजिक बजाया जाता है।“बैकग्राउन्ड म्यूजिक” तैयार करने वाली कम्पनियाँ ग्राहकों की इच्छानुसार संगीत-तर्ज बना देते हैं जिससे वाँछित लाभ हो।
कुछ ही समय पूर्व की Researches से ज्ञात हुआ है तीव्र एवं उत्तेजक संगीत से ह्रदय गति 22 प्रतिशत तथा सांस लेने की गति 50 प्रतिशत बढ़ जाती है।
डाक्टर लोग हमारे शरीर में होने वाली क्रियाएँ जैसे हृदय की धड़कन, आँख की पलकों का खुलना/ बन्द होना, साँस का निरन्तर चलना आदि क्रमबद्ध प्रक्रियाओं को “बायोलॉजिकल-क्लास” कहते हैं अब यह निस्संदेह सिद्ध किया जा चुका है कि संगीत की मन्द एवं तीव्रगति इस ‘बायोलॉजिकल क्लास’ को प्रभावित करती है। ब्रिटेन की “संगीत-चिकित्सा सोसायटी (Music therapy society)” का दावा है कि दमा से पीड़ित फेफड़ों पर संगीतमय-ध्वनि से श्वास-प्रश्वास की गति सही तथा सक्रिय हो सकती है। पश्चिम-जर्मनी के वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि Stomach ulcer का इलाज आपरेशन/दवाओं की अपेक्षा संगीत से अधिक शीघ्रता से ठीक किया जा सकता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में संगीत का सबसे अधिक सफल उपयोग विभिन्न मानसिक रोगों में अस्वस्थ मन को शान्त करने में तथा बौद्धिक क्षमता प्रदान करने में पाया गया है। मानसिक रोगों के क्षेत्र में Music therapy का उतना ही सफल योगदान है जितना कि सर्जरी एवं दवाओं का है। Music therapy की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे कोई भी अवाँछनीय “साइड इफेक्ट” नहीं होते। इस स्टेटमेंट को लिखते समय, हमें यह भी जान लेना चाहिए कि “साइड इफ़ेक्ट” वाली बात तब तक ही सत्य हो सकती है जब तक इसका ठीक से प्रयोग किया जाए। Loud music, high pitch म्यूजिक के घातक परिणाम हम आये दिन देखते आ रहे हैं। शस्त्र से रक्षा भी होती है और आक्रमण भी, चाकू, कलम और क़त्ल दोनों ही कर सकता है। नुक्लिएर शक्ति का दुरूपयोग हम सब देख ही रहे हैं। Noise explosion से उत्पन्न होने वाले प्रभाव की तरह संगीत का भी ऐसा उपयोग हो सकता है जो घातक प्रतिक्रिया उत्पन्न करे। टेक्नॉलजी ने तो ऐसे संगीतों के आविष्कार कर लिए हैं जो मछुआरों को जल क्षेत्र में बिखरी हुई मछलियों को एक स्थान पर एकत्रित करने और उन्हें सरलतापूर्वक पकड़ने में सहायता करते हैं। हमारे Vancouver वाले बेटे ने अपने घर के बैक गार्डन में चूहों और Pests आदि को भगाने के लिए ज़मीन में कुछ छोटे-छोटे Solar-powered eqipments लगाए हुए हैं, जब भी कोई उनके पास से गुज़रता है तो वह बीप करते हैं अर्थात वह Motion sensors हैं। वैज्ञानिकों ने ऐसे ध्वनि यन्त्र तैयार कर दिए हैं जिनकी ध्वनि सुनकर चूहों की भूख कुछ समय के लिए समाप्त हो जाती है और वे प्रजनन में अक्षम हो जाते हैं। कल्पना की गई है कि भारत में खाद्यान्न की 10 प्रतिशत उपज चूहे खत्म कर जाते हैं। अब इस इलेक्ट्रानिक यंत्र की सहायता से यह समस्या हल की जा सकेगी। इस यंत्र में धातु की एक छड़ लगी हुई है जिसके हिलने से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लहरें उत्पन्न होती हैं जिसे सुनकर चूहे उत्तेजित हो जाते हैं और उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है। अमरीकी फर्म का दावा है कि इसका प्रभाव केवल चूहों पर ही होता है। चूहों की भाँति अन्य प्राणियों के विनाश में भी इस प्रक्रिया का उपयोग हो सकता है। यहाँ तक कि शत्रु देशों के सैनिक बिना बारूद या गैस का सहारा लिए मारक ध्वनि प्रवाह उत्पन्न करके रुग्ण, दुर्बल अथवा मृतक बनाये जा सकते हैं।
लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से विनाश की चर्चा को अनुचित ठहराते हुए यह कहना ठीक रहेगा कि उपरोक्त चर्चा केवल जानकारी के लिए ही गयी है। विनाश तो चारों ओर से बिना किसी बात के ही ही बरस रहा है। बात तो सृजन और उत्थान की सोचनी चाहिए, हमें तो यह ढूंढ़ना है कि “ध्वनि शक्ति” का उपयोग पक्ष किसी प्रकार हाथ में लिया जा सकता है।
हम जैसे अनेकों साथी संगीत क्षेत्र में “दीपक राग और मेघ मल्हार” जैसे प्रयोगों से अवश्य ही परिचित होंगें। तानसेन का शक्तिशाली “दीपक राग” यदि बुझे दीपक को जला सकता है वह बुझे मन को भी प्रकाशमय बनाने में समर्थ हो सकता है। जिस “मेघ मल्हार राग” को सुनकर मेघ मालाएँ उमड़ और बरस सकती हैं वह प्रकृति की अन्य सामर्थ्यों को भी अनुकूलता बरसाने के लिए सहमत कर सकती है। अन्तरिक्ष में/ब्रह्माण्ड में बहुत कुछ भरा पड़ा है उन अनुदानों से ही धरातल एवं प्राणि समुदाय को सुविकसित होने का अवसर मिला है। अभी भी इस क्षेत्र में अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त करने की असीम सम्भावनाएँ विद्यमान हैं।
यज्ञोपचार के साथ किये गये मन्त्रोच्चारण का प्रभाव अभीष्ट वर्षा के रूप में उपलब्ध होने का उल्लेख कथा-पुराणों में मिलता है। “ध्वनि विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा, मंत्र विद्या” की लुप्त कड़ियाँ यदि ढूंढ़ी जा सकें तो “मंत्र शक्ति” को श्रद्धा परिधि में आगे बढ़ाकर एक प्रचण्ड शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
संगीत के माध्यम से स्नायविक दुर्बलता (Neurological weakness) एवं मानसिक विकृति(Mental disorder) के निराकरण में उत्साहवर्धक सफलता मिल रही है। उपयोगी पशु-पक्षियों में अधिक प्रजनन कर सकने की समर्थता बढ़ाई गई है। दुधारू पशुओं ने अधिक दूध दिया है। पौधों को जल्दी बढ़ने और अधिक फसल देने में भी संगीत का उत्साहवर्धक प्रतिफल उत्पन्न हुआ है।
इन भौतिक प्रयोगों से आगे का वह क्षेत्र है जिसे प्राचीनकाल में “नादयोग” कहते थे। उस विद्या को अपनाकर अध्यात्म क्षेत्र की रहस्यमय शक्तियों को जागृत किया जाता था और मानवी काया में छिपी दिव्य सामर्थ्यों से लाभान्वित हुआ जाता था। संगीत और योग दोनों ही नाद विद्या के अंतर्गत आते हैं। नादयोग मन को एकाग्र करने का अतिउत्तम साधन है। जब साधक का मन नाद पर एकाग्र हो जाता है तब वह बाहरी विषयों से मुक्त हो जाता है।
संगीत के स्वरों का सीधा सम्बन्ध मनुष्य शरीर में व्याप्त सात चक्रों से है। संगीत के सात स्वर (सा,रे,ग,म,प,ध,नि) संगीत के आधार माने जाते हैं। संगीत के साधक को इन साथ स्वरों के अभ्यास के बिना संगीत में प्रवीणता प्राप्त नहीं हो सकती। प्रत्येक स्वर का सम्बन्ध एक चक्र से है। मूलाधार का “सा” से, स्वाधिष्ठान का “रे” से, मणिपूर का “ग” से, अनाहत का “म” से, विशुद्ध का “प” से, आज्ञा का “ध” से और सहस्राधार का “नि” से सम्बन्ध है। साधारणतः स्वरों के लिए हृदय,कण्ठ और मूर्धन्य (जीभ और तालू) तीन को ही नाद उत्पत्ति का कारण मानते हैं। व्यवहार में सप्त स्वर इन्हीं तीन स्थानों से प्रकट होते दिखाई देते हैं। संगीत में तन्मयता उत्पन्न करने की महान शक्ति का कारण ऋषियों ने इन्हीं चक्रों के जागरण में अनाहृत नाद के माध्यम से जाना।
उपासना में भी संगीत को हृदय की वाणी का नाम दिया है, यही कारण है कि शांतिकुंज की संगीत टोली प्रत्येक आयोजन की एक महत्वपूर्ण इकाई है।
मूलाधार से सहस्रार तक प्रत्येक चक्र के माध्यम से निरन्तर उतार-चढ़ाव करते रहने पर कुण्डलिनी जागरण में सफलता मिल सकती है। जैसे-जैसे “ध्यान” में तल्लीनता बढ़ती है, संगीत की तल्लीनता भी साधक को कुण्डलिनी जागरण के समीप ले पहुँचती है। साधना के विशाल एवं आत्मिक क्षेत्र को तालबद्ध लयबद्ध संगीत लहरों से प्रभावित करने और उससे लाभान्वित होने के लिए विशाल कार्यक्षेत्र विद्यमान है। साधना के साहसी लोगों को संगीत के क्षेत्र में प्रवेश करने लिए पदार्थ वैज्ञानिकों (Material scientists) की तरह ही निष्ठापूर्वक प्रवेश करना चाहिए, प्रयोग करने चाहिए एवं उससे प्राप्त होने वाले सभी परिणामों को प्रकाशित करके जनसाधारण को मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। अवश्य ही देव संस्कृति विश्विद्यालय इस क्षेत्र में पूरी तम्यता से कार्यरत होगा।
हमें तो इस समय परम पूज्य गुरुदेव की उत्कृष्ट रचना “Music, the nectar of life (संगीत, जीवन का अमृत)” स्मरण आ रही है जिसमें संगीत से सम्बंधित विस्तृत ज्ञान समाहित है। आदरणीय चिन्मय जी द्वारा हमें भेंट की गयी इस पुस्तक को हमने एक अमूल्य रत्न की भांति अपने दिल में संजोकर रखा हुआ है।
तो साथिओ संगीत की अद्भुत शक्ति पर आधारित इस लेख का यहीं पर समापन होता है।
जय गुरुदेव, धन्यवाद्
