वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अलग-अलग विधि से किये गए मंत्र जप के लाभ एवं हानियां 

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आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार होने के साथ-साथ सितम्बर महीने का भी प्रथम दिन है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक साथी एवं परम पूज्य गुरुदेव द्वारा संचालित गुरुकुल का प्रत्येक विद्यार्थी कुछ अधिक ही ऊर्जा लेकर आया होगा,ऐसा हमारा अटूट विश्वास है। तो आद सरविन्द जी की भांति क्यों न कम  से कम इस सितम्बर माह के लिए गुरुदेव के बताए मार्ग पर चलने का तो संकल्प ले ही लें, कहीं ऐसा न हो कि संकल्प केवल लिखे-लिखाये ही रह जाएँ।

आज का लेख “हमारी व्यक्तिगत समस्या” का समाधान ढूंढने के उद्देश्य से की गयी वर्षों की रिसर्च की निष्कर्ष है तो है ही साथ में लेख का अधिकतर भाग इसकी बैकग्राउंड की ओर केंद्रित है। 

आज प्रस्तुत की गई भूमिका में ऑनलाइन रिसर्च का योगदान तो है ही लेकिन उन परिजनों का भी बहुत बड़ा योगदान है जिनसे लगातार, बार-बार चर्चा करने पर भी कोई ठोस उत्तर न मिला क्योंकि यदि किसी ने हमारी समस्या का उचित समाधान कर दिया  होता तो हमें इतना परिश्रम क्यों करना पड़ता। So they were the driving force behind this research !!!!

तो क्या थी हमारा समस्या ?

वर्षों से मन में प्रश्न उठते जा रहे थे कि 

1. मंत्र जप ऊँची आवाज़ में  यां  धीमी आवाज़ में करना चाहिए? 

2. मंत्र जप धीमी गति यां तेज़ गति में करना चाहिए? 

3. मंत्र जप अकेले में यां सामूहिक करना चाहिए?

4. मंत्र जप अच्छे हेडफोन्स लगाकर करना चाहिए यां उनके बिना? 5.गुरुदेव द्वारा बताए गए Posture (कमर सीधी, हाथ गोदी में, आँखें बंद आदि) के पीछे क्या विज्ञान है? 

6.अपने घर की एकांत पूजास्थली में यां प्राकृतिक वातावरण( सरोवर, सूर्यदेव,प्रकृति के सानिध्य) में करने के क्या लाभ/हानि हैं ?

यह प्रश्न/जिज्ञासाएं,उन अनेकों जिज्ञासाओं का बहुत ही छोटा सा भाग हैं जो हमारे मन/मस्तिष्क को बार-बार झकझोड़े जा रही थीं, न जाने कितनों से इनके समाधान के लिए निवेदन किये,लेकिन केवल निराशा के इलावा कुछ भी हाथ न लगा। 

फिर क्या था,हमने अपनी रिसर्च आरम्भ कर दी,जो भी जानकारी प्राप्त हुई उसे अपने ऊपर प्रयोग करके प्रभाव अनुभव करने के प्रयास करना आरम्भ कर दिए। गुरुदेव का बेसिक मंत्र “अध्यात्म और साइंस”  का सहारा लेकर जो-जो कुछ प्राप्त हुआ उसके प्रतक्ष्य  प्रभाव दिखने लगे,बहुत ही प्रसन्नता हुई एवं विचार आया कि साथिओं के साथ शेयर करना अनुचित नहीं होगा।

आज हम प्रतक्ष्यवाद के युग में रह रहे  हैं,जो भी करते हैं उसके परिणाम प्रतक्ष्य दिखने चाहियें। 

हमारी सबसे बड़ी समस्या थी कि जिससे भी बात की उसने यही कहा कि हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, यही परम्परा है। हमें  तो यह कोरा अन्धविश्वास दिखा,यदि गायत्री मंत्र/यां कोई अन्य मंत्र का जप करने पर, Endorphins (Feel-good chemicals) रिलीज़ नहीं होते,साधक को मानसिक शांति नहीं मिलती,अच्छी नींद नहीं आती, पाचन शक्ति ठीक नहीं होती तो समझ लेना चाहिए कि  कुछ न कुछ गलत हो रहा है, हम केवल लकीर ही पीट रहे हैं। 

शास्त्रों के तथ्यों पर कहीं भी, कभी भी कोई किंतु/ परन्तु नहीं कर सकता लेकिन बिना सोचे/समझे परंपराओं का पालन करते  जाना अंधविश्वास नहीं तो और क्या है? बदलते समय के साथ, विज्ञान की बढ़ती समझ के साथ परंपराओं का बदलाव करना ज़रा सा भी अनुचित नहीं है।अमिताभ बच्चन/शाहरुख खान की वर्ष 2000 की बहुचर्चित मूवी “मोहब्बतें” में परम्परा, प्रतिष्ठा का लगातार पाठ करने वाले  नारायण शंकर को राज आर्यन के समक्ष शीश झुकाना पड़ा था।

तो साथियों इतनी लंबी भूमिका के लिए क्षमा याचना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारंभ करते है।आज और कल इसी तरह के प्रश्नों पर चर्चा करने का विचार है। बहुत से साथियों के लिए इस जानकारी में कुछ भी नयापन न हो लेकिन वैज्ञानिक पक्ष बहुत ही रोचक होने वाला है, ऐसा हमारा विश्वास है।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: **************   

मंत्र जप की परंपरा में तीन प्रकार के जप  बताए गए हैं, हर विधि के अपने लाभ और हानियां होती हैं।

  1. वातावरण शुद्धि: ऊँचे स्वर का कंपन (vibration) आसपास की जगह को भी प्रभावित करता है। यह वातावरण में शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
  2. सामूहिक प्रभाव: जब कई लोग मिलकर ऊँचे स्वर में जप करते हैं (जैसे कीर्तन, भजन, संकीर्तन), तो सामूहिक ऊर्जा बहुत अधिक बढ़ जाती है।
  3. स्पष्टता और ध्यान: शुरुआती साधकों के लिए ऊँची आवाज़ में जप करना ध्यान केंद्रित रखने में मदद करता है।
  4. ध्वनि कंपन से शरीर पर प्रभाव:आवाज़ से उत्पन्न “ध्वनि तरंगें” (Sound waves)  गले, छाती और मस्तिष्क में कंपन पैदा करती हैं, जिससे नाड़ी तंत्र संतुलित होता है।
  5. सकारात्मक भाव जगाना:ऊँचे स्वर से मंत्र जपने पर आंतरिक उत्साह और भक्ति की भावना जागृत होती है।
  1. ऊर्जा बाहर खर्च होना: ऊँची आवाज़ में जप करने से कंपन बाहर की ओर जाता है, जिससे भीतर की एकाग्रता (Internal absorption) कम हो सकती है।
  2. आसपास के लोगों को बाधा: यदि वातावरण उपयुक्त न हो, तो दूसरों को बाधा या असुविधा हो सकती है।
  3. गले पर असर: लंबे समय तक ऊँचे स्वर में जप करने से स्वरयंत्र (vocal cords) पर दबाव पड़ सकता है।
  4. अंतरमुखी साधना में कमी: ऊँचे स्वर का जप बाहर की ऊर्जा को जगाने में उपयुक्त है लेकिन  गहन ध्यान और आत्मसाधना के लिए मौन जप अधिक फलदायी माना गया है।
  5. अहंकार की संभावना: कभी–कभी ऊँचे स्वर का जप प्रदर्शन की भावना (दूसरों को दिखाने) से जुड़ सकता है, जो आध्यात्मिक लाभ घटा सकता है।

सारांश:

शुरुआत करने वाले और सामूहिक साधना करने वालों के लिए ऊँचे स्वर का जप श्रेष्ठ है।

गंभीर ध्यान,आत्मसाधना और सूक्ष्म ऊर्जा जागरण के लिए मौन या धीमे स्वर का जप अधिक लाभकारी है यानि  ऊँची आवाज़ का जप बाहर और वातावरण के लिए अच्छा है, जबकि मौन जप भीतर की यात्रा के लिए श्रेष्ठ है।

मंत्र-जप की Volume के साथ-साथ इसकी  गति (Speed ) भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है : 

  1. गहराई और एकाग्रता: धीरे जपने से हर अक्षर स्पष्ट उच्चरित होता है और मन पूरी तरह मंत्र में डूबता है।
  2. श्वास और मन का संतुलन: धीमी गति का जप श्वास को लयबद्ध करता है, जिससे मन शांत होता है।
  3. ध्यान के लिए उपयुक्त: धीमा जप ध्यान (Meditation) की तैयारी करता है और भीतर की ऊर्जा जगाता है।
  4. सूक्ष्म प्रभाव: ध्वनि कंपन भीतर गहराई तक पहुँचता है और मानसिक शांति देता है।
  1. शुरुआती लोगों को नींद या सुस्ती आ सकती है।
  2. यदि समूह में सभी बहुत धीमे जपें तो ऊर्जा उतनी Energized  महसूस नहीं होती।
  1. ऊर्जा और उत्साह:तेज़ गति का जप मन को उत्साहित करता है और आलस्य दूर करता है।
  2. सामूहिक जप और कीर्तन – तेज़ लय से समूह में जोश और सामूहिक ऊर्जा बढ़ती है।
  3. मन को बाँधना: अगर मन बहुत चंचल हो तो तेज़ गति से जकरने पर भटकने का समय नहीं मिलता।
  1. अक्षर अस्पष्ट हो सकते हैं और मंत्र की शुद्धता बिगड़ सकती है।
  2. बहुत तेज़ जप से ध्यान “भीतर” नहीं जाता, अधिकतर ऊर्जा बाहर खर्च होती है।
  3. लंबे समय तक तेज़ जप करने से गले और साँस पर दबाव पड़ सकता है।

तो साथिओ आज के ज्ञानप्रसाद लेख  का कल तक के लिए  यहीं पर मध्यांतर होता है, धन्यवाद्, जय गुरुदेव


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