वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

औघड़दानी गुरुदेव की शक्तियां 

https://youtube.com/shorts/WqOmLYa8QmE?si=f157NTULuu5-93Fp (गुरुदेव हमसे  प्रार्थना कर रहे हैं) 

आज का ज्ञानप्रसाद लेख उन चार साधकों का विवरण दे रहा है जिन पर गुरुदेव की कृपा बरसी।यदि हम निम्नलिखित सन्देश को अपने अंतर्मन में उतार  लें तो हमारा प्रयास सार्थक होता दिखेगा:

ज्ञानरथ परिवार के साथी जानते हैं कि अखंड ज्योति में “लीला प्रसंग” शीर्षक से प्रकाशित हुए कंटेंट पर आधरित वर्तमान लेख श्रृंखला के पहले पार्ट (मार्च 1992) का समापन गुरुवार को हुआ था, आज अप्रैल 1992 वाले अंक का शुभारम्भ हुआ है। 

तो आओ सभी गुरुचरणों में समर्पित होकर,विश्वशांति की कामना के साथ आज के ज्ञान-अमृत का पयपान करें:

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: 

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औघड़दानी उसे कहते हैं जो अनायास ही भक्तों पर प्रसन्न हो अपनी विभूतियाँ लुटाता रहता है । बाबा भोलेनाथ इसी नाम से प्रसिद्ध भी हैं। कालजयी, महाकाल, समुद्रमंथन से निकले हलाहल को, वारुणि को अपने कण्ठ में धारणकर देवसत्ताओं को अमृतपान का लाभ देते हैं । हमारी गुरुसत्ता परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जिन्होंने  “मानवता के लिए दुष्प्रवृत्तियों का हलाहल स्वयं धारण कर” विश्वहित के लिए  जीवन जिया, उनका वही साक्षात् शिवरूप हममें से अनेकों ने प्रत्यक्ष अपने जीवन में देखा है । 

पिछले 60 वर्षों में अगणित परिजन उनके द्वारा प्रदत्त संजीवनी शक्ति से लेकर दिव्य संरक्षण एवं  भौतिक विभूतियों से लेकर आध्यात्मिक सिद्धि के पात्र बने । इन प्रसंगों को पढ़कर सहज ही मन में पुलकन,कम्पन तथा स्फुरणा होती है, प्रश्न उठता है  कि यदि हम इस दिव्य सत्ता के अंशधर हैं तो कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता है ? वे स्थूलतः हमें प्रतक्ष्य नहीं दिख रहे तो क्या ? उनका दिव्य सुरक्षा कवच तो हमारे चारों ओर उसी प्रकार विद्यमान है। वह सूक्ष्म सत्ता हर परिजन के आसपास ही है, कोई भी बेटा/बेटी  जो समर्पित भाव से जब भी माँगते है  तो गुरुदेव सब कुछ देने को आतुर हैं, शर्त केवल एक ही है,मांगने वाले की पात्रता का विकास। जिसने भी “बोओ और काटो का सिद्धांत” अपने अंतःकरण में उतार लिया, गुरुदेव उसके लिए दौड़े आते हैं।   

जब हम पिछले  शतक के घटनाक्रमों पर दृष्टि डालते हैं तो अगणित ऐसे प्रसंग देखने को मिलते हैं,जिनसे  परमपूज्य गुरुदेव की दिव्य सत्ता के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं ।

आज के लेख में वैद्य मदन लाल जी,अनीता चौधरी,सूर्यभानु जी की पत्नी  एवं मायावर्मा जी की कथाएं वर्णित की गयी हैं।  

1.वैद्य मदन लाल जी की कहानी:

वैद्य श्री मदन लाल राजस्थान क्षेत्र  के एक प्रखर कार्यकर्ता रहे हैं । उन दिनों वे गवर्नमेंट आयुर्वेदिक चिकित्सालय पहुना में सेवारत थे।  एक दिन गायत्री तपोभूमि मथुरा में पूज्य गुरुदेव के साथ बैठे थे। चर्चा चलती रही, फिर पूज्य गुरुदेव घीयामण्डी की ओर चल पड़े। साथ में उन्हें भी लेते गए। विभिन्न प्रसंगों पर चर्चा होती रही। घीया मण्डी में घर की छत पर बैठे गुरुदेव ने वार्त्ता प्रसंग को सहज ही विराम देते हुए कहा कि “मदन तुम्हें कुछ जरूरत हो तो माँग लो।” मदन लाल जी ने कहा तो नहीं कि यह चाहिए लेकिन सहज ही  विनम्रतावश कहा कि “पूज्यवर सब कुछ आपका ही तो  दिया हुआ है, कुछ भी तो नहीं चाहिए।” इस पर गुरुदेव बोले, 

वैद्य जी बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने अनगिनत असाध्य रोगियों को  गायत्री मंत्र बोलकर एक ही दवा दी: यज्ञ की भस्म के साथ रोग के लिए दी जाने वाली वनौषधि का चूर्ण, क्वाथ या आसव। देखा कि कई बार दवाएँ बदल दिए जाने पर भी रोगी ठीक हो गया। श्वास के एक  रोगी को दस्त  की दवा चली गयी तो वह भी ठीक हो गया तथा दस्त  के रोगी को बोतल में मात्र पानी ही  दिया गया और वह भी ठीक हो गया। बाद में वे मात्र भस्म देकर ही रोगियों को स्वास्थ्य लाभ दिया करते थे । 

2.चौधरी दम्पति की कहानी:

रामपुर के एक सज्जन श्री कौशल कुमार चौधरी व उनकी पत्नी अनिता चौधरी ने अपनी प्रथम संतान को जन्म के संबंध में प्रमाणों के साथ एक विस्तृत विवरण लिखकर भेजा।  वन्दनीय माता जी एवं  परम पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद के साथ उन्हें निर्देश मिला कि सविता देवता की उपासना करो। निश्चित ही सुसंतति की प्राप्ति होगी। गर्भधारण करते ही खून में हिमोग्लोबिन  की अत्यधिक कमी होने के कारण चिकित्सकों ने औषधियाँ आरंभ कर दीं। किन्तु शीघ्र ही डेढ़माह के अंदर ही एबॉर्शन हो गया । ऐसा दो बार हो जाने पर पुनः यहाँ आकर पूज्यवर से प्रत्यक्ष आशीर्वाद माँगा बताया कि डाक्टर्स ने जीन्स में डिफेक्ट बताया है । रिपोर्ट में लिखा था कि रक्त के कोषों का कल्चर करने के बाद पाया गया है कि इस प्रकार की क्रोमोसोमल काम्पलीमेण्ट (Chromosomal complement)  की बनावट बार-बार एबॉर्शन के लिए जिम्मेदार है । क्रोमोसोम नं 12  की लोकेशन पर मोनोसोमी, ट्राइसोमी की विकृति पायी गयी । तय था कि लुकोसाइट कल्चर की रिपोर्ट के बाद उनके गर्भधारण के प्रयास के बाद प्रत्येक  चिकित्सक का एक ही जवाब होता कि वे एबॉर्शन करवा लें व आगे संतान सुख की बात सोचें ही नहीं । परम पूज्य गुरुदेव ने वंदनीय माता जी के पास से एक रक्षाकवच मँगाकर श्रीमती चौधरी को पहनने को दिया। इसके पहनने के बाद ही उन्होंने  नियमित सूर्य का ध्यान व गायत्री उपासना का क्रम आरंभ कर दिया । गर्भधारण हुआ,सोनोग्राफी व बच्चे की माँ के जीन्स के विश्लेषण से जानकारी मिली कि बच्चा बिल्कुल ठीक है, बीस सप्ताह तक गर्भ में बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहेगा। गुरुदेव एवं माता जी की ओर से पुंसवन संस्कार कराने संबंधी निर्देश मिला। वह भी कराया गया । सब कुछ ठीक चल रहा था कि हिमोग्लोबिन फिर से गिरने लगा।उन्होंने गुरुदेव को पत्र लिखा एवं दवाएँ चालू रखीं। पत्र लिखने के अगले दिन ही हिमोग्लोबीन सामान्य आ गया था जिसका डॉक्टरों के पास कोई भी  बुद्धि सम्मत समाधान नहीं था।अंततः 18 नवम्बर 1991  सोमवार, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उन्हें एक स्वस्थ, सुन्दर तेजस्वी संतान  की प्राप्ति हुई। 

यहाँ स्मरण रखा जाना चाहिए कि उनकी ओर से चिकित्सा उपचार सितम्बर 1988 से ही चल रहे थे लेकिन पूज्यवर का प्रत्यक्ष आशीर्वाद व बाद में परम वंदनीय माता जी का उन्हें मिलता रहा जिसकी परिणति तब हुई जब स्वयं गुरुदेव सूक्ष्म व कारण सत्ता की अंशधारी सत्ता बन चुके थे । 

ईश्वरीय अनुकम्पा हर व्यक्ति पर बरस सकती है व बरसती है, यदि उस व्यक्ति ने अपना पुरुषार्थ करने में कोई कसर न छोड़ी हो। यदि उस व्यक्ति ने निष्ठापूर्वक अपने ओर से सभी प्रयास कर लिए हों तो ईश्वरीय कृपा अवश्य बरसती है, यह एक अनिवार्यता है कि व्यक्ति पहले अपना प्रयास पूरा कर ले, फिर द्रौपदी की याचना से लेकर मगरमच्छ के जबड़े में फँसे गजराज तक की पुकार ईश्वर सुनते हैं। हर परिजन इसी धारणा एवं विश्वास से परम पूज्य गुरुदेव व परम वंदनीय माता जी को अपनी समस्या संबंधी पत्र लिखता रहा कि उसने अपनी ओर से पूरी कोशिश कर ली है, अब जीवन की गाड़ी आपकी कृपा से ही आगे बढ़ेगी।

लेकिन आज जब हम 2025 में यह पंक्तियाँ लिख रहे हैं लोगों की प्रवृति इंस्टेंट परिणाम की बन चुकी है, हथेली पर सरसों जमाने की बन चुकी हैं। ईश्वर कोई मुर्ख नहीं हैं बिना किसी साधना किये आपके  रोने-धोने से पिघल जायेंगें। 

3.जबलपुर के श्री सूर्यभानु लिखते हैं कि 1977 में उनकी पत्नी की तबियत अचानक काफी खराब हो गयी। चार माह तक बुखार ही नहीं उतरा। डाक्टर बीमारी का इलाज तो कर नहीं पाए, कई एण्टीबायोटिक्स देकर जीवनी शक्ति को बुरी तरह से झिंझोड़ जरूर डाला। तब विवश होकर उन्होंने पूज्यवर को पत्र में अपनी व्यथा व्यक्त करके पोस्ट कर दिया । आश्चर्य यह कि इधर पत्र पोस्ट किया ही था कि  बुखार कम होने, तबियत अच्छी होने की प्रक्रिया आरंभ हो गयी। आशीर्वाद देता रिप्लाई भी आ गया। आशीर्वाद रामबाण सिद्ध हुआ व दो माह में ही वह  बिल्कुल स्वस्थ हो नियमित दिनचर्या में भाग लेने लगीं। तब से आज तक नीरोग हैं। माना जा सकता है कि समर्पणभाव से की गयी उनकी याचनाभरी करुण पुकार ही उनकी पत्नी के स्वास्थ्य के ठीक होने के मूल में पूज्यवर की अनुकम्पा को बरसाने का कारण बनी।

कई बार ऐसे प्रसंग भी आते थे, जब परम पूज्य गुरुदेव दूसरों के कष्ट स्वयं पर लेकर उन्हें हल्के कर देते थे । 

संयमित दिनचर्या, नियत आहार व तप-साधना के चलते कभी किसी भी प्रकार की कोई व्याधि पूज्यवर को नहीं हुई। ऐसे में उन्हें कभी किसी प्रकार की तकलीफ हुई भी होगी तो वह किसी का कष्ट निज पर ओढ़ने के कारण ही हुई होगी।

4.श्रीमती मायावर्मा से सभी अखण्ड-ज्योति परिजन उनकी काव्य प्रतिभा के कारण परिचित हैं। 6 दिसंबर 1967 को अपने हस्तलिखित पत्र में पूज्यवर उन्हें लिखते हैं कि

गुरुदेव ने मायावर्मा जी को यह पत्र उनके एक पत्र का उत्तर देते हुए लिखा था जिसमें उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव के अचानक अस्वस्थ हो जाने पर चिन्ता व्यक्त की थी।  लश्कर ग्वालियर वासी श्रीमती मायावर्मा के ऊपर आए संकट कई बार स्वयं पूज्य गुरुदेव ने अपने ऊपर लेकर हल्के किये। इसकी साक्षी मायावर्मा जी स्वयं एवं अनेकों समीपस्थ परिजन हैं जिन्होंने पूज्यवर के पत्र आज भी अपने ह्रदय में मणिमुक्तों का भांति सुरक्षित रखे हैं।   

अप्रैल 1992 पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला में तो मायावर्मा जी के बारे में इतना ही लिख कर समापन कर दिया लेकिन अखंड ज्योति के ही मई 2000 अंक के पृष्ठ 43 पर “पत्रों के आईने से झलक दिखाती अखंड ज्योति” के अंतर्गत, मायावर्मा जी के बारे में बहुत उत्कृष्ट कहा गया है। कल इसी विषय को जारी रखते हुए, गुरुदेव की लेखनी से मायावर्मा जी का प्रेरणादायक विवरण जानने का सौभाग्य प्राप्त होगा, तब तक के लिए मध्यांतर। 

जय गुरुदेव, धन्यवाद्  


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