18 अगस्त 2025 का ज्ञानप्रसाद
गुरुकक्षा के समर्पित सहपाठिओं को स्मरण कराना चाहते हैं कि पिछले गुरुवार को हमने “चमत्कारों की वैज्ञानिक दुनिया” लेख श्रृंखला का समापन किया था। इन लेखों की भूमिका में हमने लिखा था कि परम पूज्य गुरुदेव ने सदैव ही चमत्कारों का विरोध किया है, तो फिर यह लेख क्या दर्शाना चाहते हैं ? गुरुदेव की लेखनी से सुशोभित इन लेखों ने हमें इस तथ्य से परिचित करा दिया था कि “चमत्कार अवैज्ञानिक नहीं होते”, इस तथ्य के समर्थन में लन्दन की आग वाली घटना के साथ-साथ कितने ही उदाहरण देकर समझने का प्रयास किया था। अध्यात्म एवं विज्ञान दोनों ही चमत्कारों का समर्थन करते हैं लेकिन समस्या तो यही है कि हमारे पास उनके बेसिक ज्ञान को समझने के लिए न तो समय है और न ही Proper background. हम स्वयं इस कंटेंट को कई-कई दिन अध्ययन करके,समझकर, सरल करके, गुरु के संरक्षण में, गुरूकक्षा में इस आशा एवं उद्देश्य से प्रस्तुत करते हैं कि अन्धविश्वास में बह कर कहीं गलत धारणा न बना लें,तांत्रिक आदि लोग हमें धोखा देकर हमारा कोई अनर्थ न कर दें। अज्ञानता की इस स्थिति में हम अपने ही कारण नुक्सान उठाएंगें और फिर गुरुदेव से मनुहार करेंगें कि गुरुदेव अपनी कृपा करें कि सब ठीक हो जाए। ऐसा नहीं होता, गुरुदेव ने अनेकों बार प्यार से डांट-फटकार लगायी है।
हमारे साथी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि हम जो भी लिख रहे हैं यह सब गुरुदेव ही लिखवा रहे हैं, यहाँ तक कि जो कुछ लिखना होता है वह भी गुरुदेव स्वयं ही हाथ में थमा देते हैं। इस बार भी यही हुआ है। अभी “चमत्कारों की वैज्ञानिक दुनिया” का समापन हुआ ही था, हम आगे का सोच ही रहे थे कि उन्होंने उसी शृंखला को आगे बढ़ाने का न केवल निर्देश दिया बल्कि अखंड ज्योति के तीन अंक (1992 के मार्च,अप्रैल,मई) भी थमा दिए। फिर क्या था, हमने जल्दी से तीनों अंक सेव किये, क्योंकि कोई पता नहीं होता कि कब वेबसाइट डाउन हो जाए और हमारा कार्य बीच में अटक जाए।
“परमपूज्य गुरुदेव : लीला प्रसंग” शीर्षक के अंतर्गत इन तीनों लेखों में समाहित कंटेंट को गुरुदेव के मार्गदर्शन में, विभिन्न स्रोतों से अर्जित ज्ञान को आने वाले लेखों में समझने की योजना है।
तो साथिओं,इस धारणा के साथ कि ज्ञान के गंगाजल की एक-एक बूँद से प्राप्त ऊर्जा से हमारा रोम-रोम Electrify हो रहा है,आओ चलें आज के दिव्य ज्ञान के अमृतपान की ओर,विश्वशांति की कामना के साथ:
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
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“लीला प्रसंग प्रकरण” के अंतर्गत परम पूज्य गुरुदेव से जुड़े Occult (तंत्र विद्या) विवरणों को पढ़कर,उनकी सिद्धियों को देखकर बुद्धिजीवी वर्ग शंका कर सकता है एवं कह सकता है कि “अखण्ड-ज्योति” पत्रिका के पृष्ठों में यह विवेचना किस कारण प्रस्तुत की जा रही है, अखण्ड ज्योति में तो इस तरह के लेख कभी भी नहीं छपते थे। ऐसे वर्ग को बताना उचित रहेगा कि यह विवरण भी पूरी तरह से “अखण्ड ज्योति” के संकल्पों की परिधि के भीतर ही है। 1938 में हाथ से लिखा प्रथम अंक वसंत पंचमी पर निकलने वाले तथा 1940 की वसंत पंचमी से उसका अधिकृत छपा हुआ प्रथम संस्करण प्रकाशित करने वाले परम पूज्य गुरुदेव ने जीवन भर एक ही विषय को बहुविध रूप में संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया और वह विषय यह है कि
“मानव में अनन्त संभावनाएँ छिपी पड़ी हैं, उन्हें विकसित कर वह देवमानव, सिद्धि पुरुष,देवदूत स्तर तक पहुँच सकता है। हर व्यक्ति एक शक्तिपुँज है। यदि आत्महीनता से उबरा जा सके तो वस्तुतः असंभव दिख पड़ने वाला पुरुषार्थ भी संभव है, महामानवों के आप्तवचनों के द्वारा अभिव्यक्त इस संदेश को परम पूज्य गुरुदेव ने बड़े ही व्यावहारिक रूप में अपनी लेखनी के माध्यम से प्रकट किया।”
आज जब चमत्कारों के नाम पर नाना प्रकार के जाल धर्मतंत्र के अंदर ही बुने जाते व उनमें अनगणित भोले-भले व्यक्ति फँसते देखे जाते हैं तो सर्वसाधारण के शिक्षण के लिए यह जरूरी है कि उन्हें बताया जाय कि “सिद्धियों का विकास” अतिचेतन (Superconscious) का ही एक रूप हैं। उनका लक्ष्य व उद्देश्य हर पुरुषार्थ-परायण व्यक्ति को लोकमंगल में नियोजित होते हुए आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देने के लिए होना चाहिए।
आगे बढ़ने से पहले चेतना की तीन अवस्थाओं को समझना उचित रहेगा।
अतिचेतन (Superconscious) को सरल शब्दों में समझें तो यह हमारे मन की वह “उच्च अवस्था” होती है जो साधारण चेतना (Conscious,जाग्रत अवस्था) और अवचेतना (Subconscious) से ऊपर होती है। स्तर की दृष्टि से “मन” को निम्नलिखित तीन मुख्य स्तरों में बाँटा जाता है:
1. चेतन मन,जहाँ हम सोचते, बोलते, और निर्णय लेते हैं । यह हमारी रोज़मर्रा की जागरूकता है।
2. अवचेतन मन,जिसमें हमारी आदतें, स्मृतियाँ, भावनाएँ, और छुपी इच्छाएँ रहती हैं, जिनका हमें तुरंत एहसास नहीं होता।
3. अतिचेतन मन, जहाँ उच्चतम ज्ञान, प्रेरणा, अंतर्दृष्टि (Intuition), और आध्यात्मिक अनुभूतियाँ उत्पन्न होती हैं।
अतिचेतन मन ( Superconscious की विशेषताएँ:
सर्वोच्च प्रेरणा और रचनात्मकता का स्रोत गहन ध्यान, समाधि या प्रार्थना में सक्रिय होता है । यह स्तर समय, स्थान और सीमित तर्क से परे काम करता है।
कई संत, ऋषि, वैज्ञानिक और कलाकार अपनी अद्भुत खोजों का श्रेय इसी अवस्था से मिली “अंतर्दृष्टि” को देते हैं। आदरणीय चिन्मय जी विश्व के घर-घर में जाकर अपने उद्बोधनों में इसी “अंतर्दृष्टि” की बात करते आ रहे हैं। अभी कल ही एक लेक्चर में वह कह रहे थे कि इंसान बाहिर की दुनिया के बारे में तो सब कुछ जानना चाहता है, जान भी रहा है लेकिन अंदर का उसे कुछ भी पता नहीं है। उसे स्वयं के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है।
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में अतिचेतन मन की परिभाषा:
न्यूरोसाइंस अर्थात मनुष्य के मस्तिष्क के विज्ञान में Superconscious को अक्सर “गामा वेव्स (Gamma waves) और पीक कॉन्शसनेस( Peak consciousness) से जोड़ा जाता है
मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) में इसे Flow state या higher awareness कहा जाता है यानि एक उच्च स्तर की स्थिति।
गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस समाधि में दिव्य अनुभूतियाँ करते थे । यह अतिचेतन का अनुभव है।परम पूज्य गुरुदेव ने भी “साधना से सिद्धि” के अंतर्गत अनेकों उत्कृष्ट लेखों के माध्यम से इस अतिचेतन को समझने का प्रयास किया है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार उनकी Theory of Relativity किसी गणितीय तर्क/रिसर्च से नहीं, बल्कि “अचानक आए विचार” से शुरू हुई थी। यही अतिचेतन की प्रेरणा है। आइंस्टाइन तो बहुत ही उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे लेकिन साधारण मनुष्य को भी साधना करते समय ऐसे-ऐसे विचार आते देखे गए हैं जिन्हें सोच कर वह खुद ही अचंभित हो जाता है। ऐसे विचार केवल उस उच्च अवस्था में ही आते हैं जिसे अतिचेतन/Superconscious अवस्था कहा जाता है।
आइए मेडिकल साइंस में अतिचेतना को समझने का प्रयास करें :
Gamma waves peak consciousness का मतलब दिमाग़ की वह अवस्था है जब आपका मस्तिष्क “बहुत उच्च स्तर की सजगता, जागरूकता और एकाग्रता” पर काम कर रहा होता है।
सबसे पहले यह जानना बहुत उचित रहेगा कि Gamma waves क्या हैं?
हमारे मस्तिष्क में Brain waves के रूप में अलग-अलग इलेक्ट्रिक कर्रेंटस चलती हैं । इन Brain waves को Delta, Theta, Alpha, Beta, और Gamma। Gamma waves सबसे तेज़ होती हैं, इनकी फ़्रीक्वेंसी लगभग 30 से 100 Hz होती है । Peak consciousness यानि “चोटी के ध्यान” के लिए 40 Hz की इलेक्ट्रिक करंट उचित मानी जाती है। इस स्तर की तरंगें तब पैदा होती हैं जब मनुष्य का दिमाग़ एक साथ कई क्षेत्रों से सूचना प्रोसेस कर रहा हो।
अतिचेतन के लिए Gamma तरंगों का संबंध:
“गहरी ध्यान अवस्था” (Deep meditation) या intense learning के समय मस्तिष्क में Gamma तरंगों की सक्रियता बढ़ जाती है। यह अवस्था तब होती है जब मनुष्य न केवल जागरूक हैं, बल्कि अत्यधिक स्पष्ट सोच, गहन समझ और अंतर्दृष्टि में होते हैं।यही कारण है कि मनुष्य को उच्चकोटी के विचार इसी अवस्था में आते हैं, सार्थक होते हैं। Monk, योगी या अनुभवी ध्यान-साधक अक्सर Gamma wave activity को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।
इस स्थिति के लाभ:
1.बेहतर स्मृति के कारण अलग-अलग जानकारी को जोड़ने की क्षमता बढ़ती है।
2.उच्च रचनात्मकता: नई सोच और problem-solving में मदद मिलती है।
3.कुछ अध्ययनों में पाया गया कि Gamma waves के समय मस्तिष्क में Serotonin और Endorphin केमिकल्स के स्तर बढ़ते हैं जो गहरी शांति और सुख की अनुभूति प्रदान करते हैं। इन दोनों केमिकल्स को बढ़ाने के लिए यानि शांति प्राप्त करने के लिए आज का मानव क्या कुछ कर रहा है, इंटरनेट स्वयं ही बता सकता है। अनेकों वीडियोस इस विषय पर उपलब्ध हैं ,हम तो यही कहेंगें कि आज का मानव भटक गया है, उसे ठीक राह पर लाने के लिए अध्यात्म और साइंस का ही सहारा लेना पड़ेगा।
4.जब सुपर-कॉन्शियस स्टेट उपलब्ध होती है तो मनुष्य को ऐसा अनुभव होता है कि “सब कुछ स्पष्ट दिख रहा है, वह अपने अंतर्मन को भी जान सकता है ।
Gamma waves बढ़ाने के तरीके ज़्यादातर ध्यान, संवेदनशील अनुभव और मस्तिष्क की ट्रेनिंग पर आधारित होते हैं, क्योंकि यह तरंगें तब बनती हैं जब मनुष्य का मस्तिष्क उच्च स्तर की जागरूकता में होता है और इनफॉर्मेशन को अच्छे से प्रोसेस कर सकता है।
डॉक्टरों द्वारा बौद्ध साधु पर की गई ब्रेन स्टडी (EEG) करने में पाया गया कि इनके Gamma waves सामान्य से कई गुना अधिक थे। EEG भी ECG की तरह ही एक Diagnostic तकनीक है।
स्थिर लय में ॐ के जाप से मस्तिष्क में समन्वित(Coordinated oscillations) हलचलें उठती हैं।
ऐसी हलचलों का अनुभव करने के लिए मन को गहरे आराम में ले जाकर Gamma तरंगों को बढ़ाना होता है।
कुछ रिसर्च बताती है कि Gamma रेंज में तरंगें उठाने से मस्तिष्क एंजॉय करता है। हल्का संगीत,सितार वादन आदि भी आराम देते हैं। आधुनिक युग में योग का बहुत ही रिवाज हुए जा रहा है। योग और प्राणायाम, विशेषकर कपालभाति और अनुलोम-विलोम से मस्तिष्क में ऑक्सीजन का flow बढ़ता है।
सुबह-शाम तेज़ walk से भी Gamma activity जागृत होती है।
5. गहरी कृतज्ञता और प्रेम की भावना
हार्वर्ड और विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया कि Meditation करने वालों में Gratitude और compassion बहुत अधिक होते हैं। भावनात्मक रूप से जुड़ाव (love, empathy) भी gamma waves को बढ़ाता है। नींद की समस्या को हर तीसरे व्यक्ति को सताये हुए है। यदि सोने का समय नियमित हो,नींद पर्याप्त हो और नींद की क्वालिटी अच्छी हो तो Gamma तरंगें बहुत अधिक मात्रा में होती हैं, मनुष्य सारा दिन पूरी तरह से ऊर्जावान रहता है।
तो साथिओ इस लेख शृंखला का यहीं पर मध्यांतर होता है, गुरुदेव के जीवन काल में प्राप्त हुई सिद्धियों से कितनों को प्रतक्ष्य लाभ प्राप्त हुआ, कैसे हुआ,ऐसा ही कंटेंट आने वाले दिनों में प्रकाशित करने की योजना है।
जय गुरुदेव
