वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

चमत्कारों की वैज्ञानिक दुनिया-2 

हमारे साथी देख रहे हैं कि  हम पिछले कई दिनों से ज्ञानप्रसाद लेख के साथ परम पूज्य गुरुदेव की आग्रह करती वीडियो अटैच कर रहे हैं, उद्देश्य केवल एक ही है, गुरुदेव के साहित्य की दिव्यता,शक्ति को जानना, समझना और समझकर उसका विश्वभर में प्रसार करना। इससे बढ़कर गुरुभक्ति कोई भी नहीं हो सकती। 

आज का ज्ञानप्रसाद चर्चा के उसी बिंदु से आगे बढ़ रहा है जहाँ कल छोड़ी थी। 

आज भी हमने अपनी बुद्धि,विवेक,समझ एवं योग्यता का प्रयोग करके विज्ञान की जटिलता को यथासंभव सरल करने का प्रयास किया है ताकि हमारे साथिओं को किसी प्रकार का कष्ट न सहन करना पड़े। हमारा प्रयास यही रहता है कि ज्ञानप्रसाद जितने भी सरल हो सकें उतने किये जाएँ ताकि जिस व्यक्ति ने कभी स्कूल का गेट भी पार नहीं किया, वोह भी समझ जाये। 

तो आइए विश्वशांति की कामना के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का शुभारंभ इस धारणा से करें कि इस अमृत का एक-एक कतरा मृत शरीर में भी जान डाल दे,सोते को जगा दे, जगे हुए को उठा दे, उठे हुए के चला दे और चलते हुए को दौड़ा दे,ऐसी Electromagnetic force हो आज के ज्ञानप्रसाद में। 

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आइन्स्टीन जैसे सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने भी इन तथ्यों  से इनकार नहीं किया बल्कि माना था कि मनुष्य के मस्तिष्क में ऐसे  गुण व्याप्त हैं कि वह एक ही समय में कलकता,मुंबई,मथुरा में तीनों स्थानों पर उपस्थित हो सकता है। परम पूज्य गुरुदेव के अनेकों स्थानों पर एक साथ उपस्थित होना हम उनकी अफ्रीका यात्रा पर आधारित लेखों में बार-बार पढ़ चुके हैं। 

“मस्तिष्कीय द्रव्य” (Mind stuff ) ही वह तत्व है जो प्रकाश को धारण करके उसकी गति  से किसी भी वस्तु का स्थानान्तरण (Transformation) कर सकता है। पदार्थ को शक्ति में बदल कर उसे कहीं भी सूक्ष्म अणुओं के रूप में बहाकर ले जा सकता है और उसे एक सेकंड से भी कम समय में फिर पदार्थ में बदल सकता है। हम अपने साथिओं को विज्ञान की गुत्थिओं में तो नहीं उलझाना  चाहते लेकिन इतना अवश्य बता दें कि प्रकाश की गति (Speed of light) 1 बिलियन किलोमीटर प्रति घंटा है। इस स्पीड से अनुमान लगाया जा सकता है हमारे मन-मस्तिष्क में उठ रहे विचार कितनी तेज़ी से एक जगह से दूसरी जगह यात्रा कर रहे हैं। लंदन से कोलचेस्टर की दूरी 68 मील है,इतनी दूरी पर सन्देश प्राप्त होना अवश्य ही Mental/Mind stuff के कारण हुआ होगा।

इसीलिए परम पूज्य गुरुदेव ने “युगनिर्माण” के लिए “विचारों की क्रांति” को आधार बनाया है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से गुरुदेव के साहित्य को विचारों (कमैंट्स/कॉउंटर कमेंटस)  के माध्यम से ग्लोब के किसी भी भाग तक पंहुचाया जा सकता है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम कुछ एक समर्पित साथिओं के प्रयास पर ही निर्भर हुए बैठे हैं जो अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के वशीभूत कभी गुरु के ज्ञान का अमृतपान करते हैं, कभी नहीं करते हैं, कभी कमेंट करते हैं,कभी नहीं करते हैं, उनकी ज़रूरतें इतने से ही पूरी हो जाती हैं। जब गुरुदेव ने अखिल विश्व गायत्री परिवार की संरचना की थी, हमने ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का बीजारोपण किया था तो इंटरनेट की स्पीड से विस्तार की बात सोची थी, ऐसा हो भी रहा है। हमारा कभी भी उद्देश्य नहीं था कि हम यूट्यूब के 5-7 साथिओं तक सिमट कर रह जायेंगें। 

साथिओं की पूर्वस्वीकृति एवं सहमति से इस शनिवार के विशेषांक में इस तरह की चर्चा की योजना बन रही है। हमारे कुछ साथिओं की व्यक्तिगत समस्याओं का वर्णन भी करने की आशा कर रहे हैं।

प्रकाश की गति से सम्बंधित विज्ञान की गहराई एवं जटिलता में न उलझ कर आइए देखें कि  “मस्तिष्कीय द्रव्य ( Mind stuff)” क्या होता है ?

साइकोलॉजी,फिलॉसॉफी,आध्यात्मिकता एवं योगिक ज्ञान ने Mind stuff को अपने-अपने हिसाब से समझने का प्रयास किया है 

“मस्तिष्क द्रव्य यां मन-पदार्थ” एक दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक शब्द है जो उस मूल “पदार्थ” या सार को संदर्भित करता है जिससे “मन/विचारों  का निर्माण होता है। इस पदार्थ को  विचारों,धारणाओं, भावनाओं और चेतना का कच्चा माल (Raw material) भी कहा गया है। इस स्टफ को समझने के लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि चर्चा  किस संदर्भ में हो रही है।  

1. फिलॉसॉफी में Explanation:

विलियम किंगडन क्लिफोर्ड जैसे विचारकों और बाद के आदर्शवादियों ने “मन-पदार्थ” का प्रयोग यह अर्थ देने के लिए किया कि परम वास्तविकता “मानसिक” है, भौतिक नहीं। इस दृष्टिकोण में, पदार्थ और ऊर्जा, मन-पदार्थ के रूप हैं, और भौतिक जगत चेतना के समान मूल सार से निर्मित है।

उदाहरण:

जिस प्रकार भौतिक जगत की सभी वस्तुएँ परमाणुओं से बनी हैं,उसी प्रकार सभी “अनुभव” और “विचार” मन-पदार्थ से बने हैं।

2. मनोविज्ञान में Explanation: 

“मन-पदार्थ” का अर्थ “मन की विषयवस्तु और प्रक्रियाएँ” संवेदना, स्मृतियाँ, कल्पना, तर्क और भावनाएँ हो सकती हैं।  यह कोई शाब्दिक पदार्थ नहीं है बल्कि “हमारे आंतरिक जीवन” को बनाने वाले मानसिक अवयवों के बारे में बात करने का एक तरीका है।

3. आध्यात्मिक या योगिक परंपराओं Explanation:

भारतीय फिलॉसॉफी  (जैसे वेदांत या योग) चित्त (चित्त), मन-क्षेत्र या मानसिक पदार्थ का उल्लेख करते हुए, इसी तरह के विचार का प्रयोग करता है। यह “मन-तत्व” शांत, उत्तेजित या धुंधला हो सकता है और ध्यान के माध्यम से इसे परिष्कृत (Refine) किया जाता है ताकि यह वास्तविकता को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करे।

योग सूत्र से उदाहरण:

योग से मन-तत्व के उतार-चढ़ाव को शांत क्या जा सकता है,विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है, हाई स्पीड में उढ़ते हुए मन को लगाम लगाई जा सकती है। यदि मन थिएटर में चल रही कोई रोचक मूवी है तो मन-तत्व पीछे से प्रोजेक्टर रूम में स्पूल पर चल रही फिल्म की रील है। मन -तत्व के  बिना, कोई दृश्य, विचार या स्मृतियाँ अस्तित्व में नहीं आ सकतीं।

कल वाले लेख में आग लग जाने की घटना का वर्णन श्री सी डब्ल्यू लेडवीटर ने भी अपनी  प्रसिद्ध पुस्तक “Invisible helpers( अदृश्य  सहायक) में किया है। उन्होंने ने भी कोलचेस्टर में दूर बैठी बच्चे की माँ के मस्तिष्क की उस शक्ति से जोड़ा है जिसमें ज्ञान,विचार,संकल्प आदि सब  विद्यमान रहते हैं । काल और पदार्थ से भी परे यह अदृश्य सत्ता (Mind stuff) सब कुछ करने में समर्थ है। जिस समय लन्दन के मकान में आग  लगी, बच्चे की माँ कोलचेस्टर में सो रही थी। मनुष्य का प्रेम जहाँ होता है मन भी वहीं रहता है। माँ का ध्यान बच्चे की ओर जाना  स्वाभाविक था उस समय उसके “मानसिक तन्तुओं”  का प्रवाह बच्चे तक गया और उसी के फलस्वरूप उसे स्वप्न में इस बात की अनुभूति हुई कि बच्चा कष्ट  में है, उसकी  नीद टूट गई। वह भगवान् से सम्पूर्ण एकाग्रता और पूरा अन्तःकरण में प्रार्थना करने लगी कि भगवन् मेरे बच्चे की रक्षा करो। प्रार्थना की यह एकाग्रता जो मां के मस्तिष्क में विकसित हुई उसने विद्युत चुम्बकीय प्रवाह (Flow of electromagnetic power) उत्पन्न किया जो बच्चे पर केन्द्रित ध्यान से उस तक पहुँचा और उसी ने बच्चे की रक्षा की।

अपनी मानसिक शक्तियों को एकाग्र करके योगीजन ऐसे ही अनेक चमत्कारपूर्ण घटनायें किया और दिखाया करते हैं। यद्यपि इन घटनाओं का  आत्मकल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं है तो भी यह चमत्कार बताते हैं कि मनुष्य के  शरीर में “भौतिक शक्तियों” से भी सामर्थ्यवान “आत्मिक शक्तियाँ” इस में समाई हैं। इन शक्तियों का  विकास करके ही मनुष्य इस संसार में आने का ध्येय प्राप्त कर सकता है।

आत्मिक और एटॉमिक शक्तियों को समझने के लिए हम 2023 में प्रकाशित लेख का निम्नलिखित लिंक दे रहे हैं :  

https://life2health.org/2023/03/28/यह-एटॉमिक-शक्ति-नहीं-आत

आइए चलते चलते यह भी देख लें कि  मनुष्य जीवन से बड़ा कोई चमत्कार क्यों नहीं है?

फिलॉसॉफी के अनुसार  मनुष्य जीवन सृष्टि का सबसे बड़ा चमत्कार है। चेतना (Consciousness) तो  पेड़ और पशु भी रखते हैं लेकिन आत्मबोध, विवेक, नैतिकता और आत्मविकास केवल मनुष्य के पास ही है।  हिन्दू फिलॉसॉफी  में 84 लाख योनिओं के बाद प्राप्त  होने वाले मनुष्य जीवन को “मोक्ष का द्वार” माना गया है

विज्ञान के अनुसार मानव शरीर का ढांचा (Human Anatomy),ट्रिलियन्स कोशिकाएं, जटिल तंत्रिकातंत्र, और सोचने की क्षमता के कारण ब्रह्मांड की सबसे जटिल एवं चमत्कारिक रचनाओं में से एक है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्य ही वह माध्यम है जो ईश्वर को जान सकता है, अनुभव कर सकता है। गायत्री परिवार, वेद, उपनिषद आदि सभी ने कहा है,  “मानव जीवन दुर्लभ है, इसे व्यर्थ न जाने दो।”

“चमत्कारों की वैज्ञानिक दुनिया” का समापन यही पर होता है। 

जय गुरुदेव  


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