वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

चमत्कारों की वैज्ञानिक दुनिया-1

है न कितना आकर्षक शीर्षक, साथिओ ? अपनी सर्वप्रिय एवं सर्वोपरि  मैगज़ीन अखंड ज्योति के जनवरी 1971 वाले अंक में “चमत्कारों के वैज्ञानिक पक्ष” वाला लेख देखा तो हमसे सेव किये बिना रहा न गया। न जाने कितनी ही बार इसको पढ़ा,चर्चा को ठीक/गलत ठहराया लेकिन मन नहीं माना कि इस कंटेंट में कोई भ्रम यां त्रुटि हो सकती है क्योंकि यह मेरे गुरु की दिव्य लेखनी का परिणाम था। गुरु पर शंका करना; इसे बड़ा घोर अपराध क्या हो सकता है !!!!

यह नहीं कि इतने वर्ष विज्ञान के विद्यार्थी होने के बाद हमारी तथ्यों की पुष्टि करने की प्रवृति बनी है, बाल्यकाल से ही हम ऐसा सोचते आ रहे हैं। हमारे जम्मू नगर में बिहारी नाम के योगी द्वारा घोड़े की नाल से तैयार की गयी लोहे की अंगूठियां पहनाकर चमत्कार बहुत ही प्रचलित था। उनके द्वार पर लोगों की लाइन लगी रहती थी लेकिन हमें कोई विश्वास नहीं था, यां यूं कहें कि चमत्कारों पर कभी विश्वास हुआ ही नहीं। इसी प्रवृति ने इस विषय पर इतनी रिसर्च करवाई, समझने को प्रेरित/प्रोत्साहित किया कि  हम आपके समक्ष एक उत्कृष्ट लेख प्रस्तुत करने के योग्य हुए। 

तो आओ शांतिपाठ के साथ आज की ज्ञानगंगा में डुबकी मार,जीवन को सार्थक बना लें : 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: 

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लेख का शुभारंभ निम्नलिखित उदाहरण से होता है:     

एक बार लन्दन की “हालवनं रोड” पर एक मकान में आग लग गई। आग की भयंकरता के बारे में बताया जाता है कि वह इतनी तीव्र थी कि फायर ब्रिगेड  के अच्छे से प्रबन्ध के बावजूद दो मकान तो देखते ही देखते भस्म हो गये। इस अग्निकांड में केवल एक वृद्धा ही सहायता के पंहुचने से पहले धुएं से घुट कर मर गई। जब सभी व्यक्ति  निकाल लिये गये, तब एकाएक मकान मालकिन चिल्लाई,“अरे एक बच्चा ऊपर के कोठे में रह गया।” सब लोग आश्चर्य से उसकी ओर देखने और पूछने लगे, “माता जी, घर के सब  लोग तो यह सामने खड़े हैं। फिर कौन छूट गया ?” मकान मालकिन ने बताया,“मेरी एक महिला मित्र कल ही किसी कार्य से कालचेस्टर नगर गई है। चलते समय वह मेरे पास आई और लौटकर आने तक के लिये अपने बच्चे को मेरे पास छोड़ गई। तभी एकाएक आग लग गयी। बच्चा ऊपर के कोठे पर सो रहा था और Alzheimer  की बीमारी के कारण मुझे उसकी याद नहीं रही। कोई बचा सकते हो तो उसे बचाओ अन्यथा मैं अपनी मित्र को क्या मुँह दिखाऊंगी?

फायर ब्रिगेड के एक सिपाही ने हिम्मत की और वह जलती आग में कूद  पड़ा। बड़ी कठिनाई से आग और धुएं  से बचता हुआ वह उस पलंग के पास तक पहुँचा जहाँ वह बच्चा सो रहा था। वहाँ पहुँच कर उसने जो दृश्य देखा उसे देखकर वह स्तब्ध रह गया। उसके रोंगटे खड़े हो गए। किसी अज्ञात शक्ति ने प्रेरित किया होता तो बहुत संभव था। मारे भय और घबराहट के वह स्वयं भी आग में जल मरता । उसने देखा पलंग के पीछे के हिस्से तक आग फैली हुई पाँवों को छू रही है लेकिन प्रकाश का एक दिव्य गोला बच्चे को आवृत्त किए हुए  है, उसके कारण न तो पीछे से, न ही आजू-बाजू से और न ही आगे से आग की लपटें बढ़ पा रही हैं। सारी छत गिर गई थी लेकिन उस पलंग का एक ही भाग किस तरह बचा हुआ था, कोई नहीं जानता!!!! सिपाही डर रहा था कि उस दिव्य प्रकाश में हाथ डाले या नहीं, तभी जैसे उससे किसी ने कहा, “उठाओ,जल्दी करो,देर करने का समय नहीं है।” सिपाही ने बच्चे को समेट लिया और बाहर की ओर भागा। उसका पीछे मुड़ना ही था कि वह प्रकाश भी गायब हो गया और पलंग को भी आग ने पकड़ लिया। जब बाहर आया और बच्चे की  डाक्टरी जांच की गई तो लोग आश्चर्य में डूब गये कि न तो उसका शरीर गर्म हुआ, न कहीं चोट आई और न ही वह बिलकुल जला। उससे भी अधिक आश्चर्य लोगों को तब हुआ जब सिपाही ने सारी घटना की विस्तृत जानकारी दी।  

पुरातन ग्रंथों में इस तरह के न जाने कितने ही किस्से पढ़ने को मिलते हैं। “अद्भुत,आश्चर्यजनक किन्तु सत्य” सीरीज से भला कौन अपिरचित है जिसमें इस तरह के अनेकों चमत्कारों का वर्णन है। यहाँ नोट करने वाली बात यह है कि गुरुदेव ने किसी भी चमत्कार का कभी समर्थन नहीं किया।  वर्तमान चर्चा में “चमत्कार का वैज्ञानिकता” को समझने का प्रयास किया जा रहा है। ऑनलाइन/ऑफलाइन/सभी उपलब्ध स्रोतों के आधार पर बताने का प्रयास किया जा रहा है कि चमत्कार पूर्णतया अवैज्ञानिक नहीं होते।    

अग्निकांड के वर्तमान उदाहरण को कुछ लोग ईश्वर की कृपा मान रहे थे, कुछ इसे किसी देवदूत की उपस्थिति के साथ जोड़ रहे थे और अन्य कुछ और ही कह रहे थे। 

एक नास्तिक और अनात्मवादी वर्ग ऐसा भी था जो किसी भी चमत्कार की बात मानने के बजाए इसे “मात्र एक संयोग” मान रहा था ।

योगदर्शन सम्बन्धी भारतीय पुस्तकों में ऐसे चमत्कार स्थान-स्थान पर मिलते है जिनमें (1) शरीर को हलका या भारी कर लेना (2) दूसरों के मन की बात जान लेना (3) हिप्नोटिज्म (4) परकाया प्रवेश (5) शाप देकर बुरा करना या आशीर्वाद देकर किसी को कुछ अलौकिक सहायता देना।(6) झोली में हाथ डालकर मिट्टी उछालकर पल भर में हज़ारों मील दूर उपलब्ध कोई मनोवांछित पदार्थं मंगा कर खिला देने की आश्चर्यजनक बातें वर्णित की गई  हैं। 

जहाँ-तहाँ लोकश्रद्धा को ठगने और जालसाजों द्वारा भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाने जैसी घटनाओं  को छोड़ दिया जाये और योग विद्या के विशुद्ध विज्ञान की ओर जाया जाये तो पता चलता है कि इस तरह की अनोखी और अलौकिक घटनायें असत्य  न होकर  विज्ञान सम्मत तथ्य होती हैं ।

प्रोफेसर स्वामी राममूर्ति  शरीर को भारी करके हाथी को छाती पर चढ़ा लेते थे। स्टार्ट इन्जनों वाली कारों की गति को रोक देते थे । इसे सारा संसार  जानता है। प्राणायाम, प्राणशक्ति के तथ्य को बल देने के लिए यहाँ मात्र 5 मिंट की वीडियो अटैच की गयी है जिसमें हमारे साथी प्रोफेसर राममूर्ति के बारे में जान सकते हैं।

महर्षि दयानन्द बिहार में थे,एक भक्त किसी गाँव से दूध लेकर उन्हें देने जा रहा था। रात में उसे सांप ने घेर लिया। किसी तरह वह बचकर पहुंचा तो पास जाते ही उसके कहने से पूर्व ही दयानन्द ने उसके साथ घटित सारी बातें सुना दीं। 

परकाया प्रवेश की घटनाएं अखण्ड-ज्योति मे पहले छप चुकी है और उसकी पुष्टि अँगरेज़ सेनापति एल पी फैरेल ने भी की है। फैरेल द्वारा आलौकिक शक्तियों का वर्णन करते दो लेख हमारे साथी पहले ही पढ़ चुके हैं लेकिन फिर भी Revise करने में कोई हर्ज़ नहीं है, इसलिए वोह दोनों लिंक भी अटैच किए जा रहे हैं:  https://life2health.org/2021/08/19/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%af-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a5%8c%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b/

परकाया प्रवेश सिद्धि की वह स्थिति होती है जिसमें बताने वाला  अन्य व्यक्तियों की अनुभूतियों को स्वयं में आत्मसात कर लेता है। अपनी आत्मा या मन को किसी दूसरे शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया या भाव को भी परकाया प्रवेश ही कहते हैं। 

पदार्थों का रूपान्तरनान्तरण (Transformation of substances) की एक घटना जो स्वामी विवेकानन्द के साथ हैदराबाद में घटित हुई उसे सभी जानते हैं। पैराग्राफ  32  में अपनी पुस्तक “एक योगी की आत्मकथा” में स्वामी योगानन्द ने लिखा है कि राम नामक एक व्यक्ति को  डाक्टरों ने मृत  घोषित कर दिया था।  उसके कई घण्टे बाद श्री श्यामाचरण लाहिडी ने उसे औषधि के रूप में Castor oil  की सात बूँदें देकर जीवित ही नहीं स्वस्थ भी कर दिया था। इसी पुस्तक के पैराग्राफ  34  में स्वयं श्यामाचरण लाहिडी जो बाद में स्वयं ही बहुत बड़े योगी हुए , का ऐसा ही वृतान्त  है। श्यामाचरण लाहिड़ी उन दिनों दानापुर (पटना) के मिलिट्री इन्जीनियरिंग अकउंटेंट  थे । उनका ट्रांसफर रानीखेत हुआ। वह ट्रांसफर उनके आफिसर को एक संत  द्वारा हिप्नोटिज्म जैसी  क्रिया के आदेश से ही कराया गया था। जब श्यामाचरण लाहिड़ी उनसे मिले तो हिमालय जैसे निर्जन  एकान्त मे जहाँ मिठाई और पकवान तो क्या दूध भी मिलना कठिन था, योगबल से ही उन योगी ने एक मिट्टी का बर्तन देकर कहा, “तुम जो चाहो इससे निकाल कर खा लो।” श्री श्यामाचरण लाहिड़ी ने लिखा है मैंने जो भी इच्छा की वह वस्तु मुझे उस मिट्टी के बर्तन मे ही मिल गई। कढ़ी और बंगाल की मिठाइयाँ तक उससे निकाल कर मैंने खाई ।

2021 में प्रकाशित लेखों के ऊपर दिए गए दोनों लिंक्स में इस विषय पर बहुत ही विस्तार से अलौकिक शक्तियों का वर्णन है। हम जानते हैं कि “समय का न होना” साथिओं की सबसे बड़ी समस्या है लेकिन इन रोचक, परिश्रम से तैयार किये गए लेखों को सेव करके, बाद में पढ़ना भी अनुचित नहीं होगा।    

यह चमत्कार उन व्यक्तियों के जीवन से सम्बन्धित हैं जिनकी प्रमाणिकता  मे कोई सन्देह नहीं किया जा सकता । मनोमय शक्ति (Mental power) द्वारा पदार्थ के Transfer की, योग की अपनी एक अलग ही सिद्धि और शाखा है। यदि कोई तर्कशील और केवल विज्ञान पर आस्था रखने वाला व्यक्ति (हमारे जैसा) इन तथ्यों से इनकार कर दे, उसे सन्तुष्ट करने के लिये तत्वदर्शन (फिलॉसोफी) कोई सिद्धांत  प्रस्तुत न कर सके तब तो इन बातों को असत्य भी माना जा सकता था लेकिन आज विज्ञान की उपलब्धियाँ और वैज्ञानिक ही इन तथ्यों को मान रहे हैं इसलिये अविश्वास का कोई कारण नहीं रह जाता ।

शब्दसीमा की बेड़ियाँ हमें इससे आगे लिखने की अनुमति नहीं दे रहीं, उचित रहेगा कि चमत्कारों की दुनिया का अवलोकन कल तक के लिए पोस्टपोन कर दिया जाए। 

तब तक के लिए मध्यांतर, जय गुरुदेव  


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