22 जुलाई 2025 का ज्ञानप्रसाद
कल वाले लेख की भांति आज भी अपने साथिओं से क्षमाप्रार्थी हैं कि युगसंधि,युग परिवर्तन, नवयुग, विचार क्रांति आदि विषयों से सम्बंधित ऑनलाइन जितना साहित्य एवं उदाहरण उपलब्ध हैं,उन्हें प्रस्तुत करना कोई सरल कार्य नहीं है, सिर चकराने जैसी स्थिति आना स्वाभाविक है। परम पूज्य गुरुदेव के संरक्षण में जितनी भी योग्यता,अनुभव, Analytical capability हमें प्राप्त हुई है उसका भरपूर उपयोग करके दो दिन (कल और आज) जो ज्ञानप्रसाद लेख प्रस्तुत किये, अवश्य ही गुरुवर के अधिकतर शिष्यों ने इस ज्ञानगंगा में डुबकी लगाकर हंसवृत्ति प्राप्त की होगी। कमैंट्स/काउंटर कमैंट्स इस तथ्य के साक्षी हैं।
इन दोनों लेखों को प्रस्तुत करने हेतु श्रम और समय केवल इस उद्देश्य से लगाया गया है कि कल आरम्भ होने वाले लेख “नवयुग का अवतरण सुनिश्चित है और सन्निकट” समझने में सहायता मिल सके।
इन्ही शब्दों के साथ,शांतिपाठ करते हुए, हम अपने साथिओं को आज की ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने के लिए छोड़े जाते हैं :
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स्थूल और सूक्ष्म ज्योतिष भारतीय ज्योतिष के दो स्तर हैं जो अलग-अलग दृष्टिकोण से मनुष्य के जीवन, कर्म और भाग्य को देखते हैं।
यहाँ इनके बीच अंतर को उदाहरण सहित समझाया गया है:
1. स्थूल ज्योतिष:
स्थूल का अर्थ है “प्रतक्ष्य दिखाई देने वाला”।
यह ज्योतिष मुख्यतः भौतिक जीवन, घटनाओं और स्पष्ट अनुभवों से संबंधित होता है। जब हम किसी ज्योतिषी के पास अपनी जन्म कुंडली लेकर जाते हैं और वह उसको स्टडी करके ग्रह-स्थिति आदि के आधार पर विवाह, नौकरी, बीमारी, संतान, संपत्ति जैसे जीवन के प्रतक्ष्य दिखने वाले विषयों की भविष्यवाणी करता है तो उसे “स्थूल ज्योतिष” कहते हैं। यह भविष्यवाणी मुख्यतः पंचांग, राशि और ग्रहों की भौतिक गति पर आधारित है। उदाहरण के तौर पर यदि कहा जा रहा है कि आपकी कुंडली में सप्तम भाव में शनि बैठा है, तो स्थूल ज्योतिष कहेगा कि विवाह में देर होगी या जीवनसाथी कठोर स्वभाव का होगा।
2. सूक्ष्म ज्योतिष:
सूक्ष्म का अर्थ है “अदृश्य या गहरे स्तर का”। यह ज्योतिष आत्मा, कर्म, संस्कार और मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों से जुड़ा होता है।
यह ज्योतिष जन्म से पहले के संस्कारों, पूर्वजन्म के कर्मों, और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को स्टडी करके विश्लेषण करता है एवं इसका Analysis ध्यान, अंतर्दृष्टि और दिव्य अनुभव पर आधारित होता है। इसे समझने के लिए गहराई, अंतर्ज्ञान और साधना की आवश्यकता होती है। यह बताता है कि किसी “विशेष योग” बनने के पीछे क्या कारण है।
धरती पर परम पूज्य गुरुदेव,महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद जैसी आत्माओं के अवतरण का क्या उद्देश्य है। इस फिलॉसॉफी के अंतर्गत अगर किसी की कुंडली में विवाह में बाधा है,तो सूक्ष्म ज्योतिष यह देखता है कि क्या यह आत्मा पूर्वजन्म का छूटा हुआ कोई अधूरा कर्म लेकर आई है ? क्या गुरुदेव के तीन जन्मों में किए सत्कार्य सभी एक दुसरे के साथ जुड़े हुए थे ? इस फिलॉसॉफी के अनुसार संसार की समस्या केवल एक भौतिक समस्या नहीं बल्कि कर्मों की परिपक्वता है।
उपरोक्त चर्चा से यही निष्कर्ष निकालता है कि स्थूल ज्योतिष बताता है कि “क्या होगा” जबकि सूक्ष्म ज्योतिष बताता है कि “क्यों होगा”
सूक्ष्म दृष्टि से देखे जा रहे युग परिवर्तन के कुछ संकेत नीचे दिए गए हैं:
1.चेतना का उत्कर्ष:
बहुत से लोग अब आत्मबोध, ध्यान, योग, और आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह आत्म-जागरण की दिशा में संकेत है।
2.पुराने ढाँचों का टूटना:
राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं जो वर्षों से स्थिर थीं, अब प्रश्नों के घेरे में हैं। पुरानी व्यवस्थाएं अस्थिर हो रही हैं।
3.जलवायु और प्रकृति में असंतुलन:
पर्यावरणीय आपदाएँ, वैश्विक तापमान वृद्धि और मौसम का असामान्य व्यवहार, यह दिखा रहा है कि प्रकृति भी एक बदलाव के दौर में है।
4.तकनीकी युग के साथ नैतिक संघर्ष:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial intelligence), सोशल मीडिया, और तकनीकी प्रगति ने जीवन को बदल दिया है, लेकिन साथ में ही नैतिकता, गोपनीयता और आत्मीयता को भी चुनौती दी है।
5. नवीन पीढ़ी का विचारधारा परिवर्तन:
युवा वर्ग अब पारंपरिक ढांचे को नहीं स्वीकारता। वह तर्क, स्वतंत्रता, समता और व्यक्तिगत अनुभव को अधिक प्राथमिकता देता है।
6. अंतर्मुखता की ओर झुकाव:
बहुत से लोग अब बाहर की दुनिया से थककर अपने भीतर उत्तर खोजने लगे हैं। यह आत्म-साक्षात्कार की ओर संकेत करता है।
महर्षि अरविंद, परम पूज्य गुरुदेव जैसे तत्वज्ञानी मानते हैं कि
“हर युग का अंत एक चेतना के परिवर्तन से होता है। जब मानवता अपनी सीमा को पार करने लगती है, तब नया युग जन्म लेता है।”
युगसंधि का क्या अर्थ है ?
जब एक पुराना युग समाप्त हो रहा होता है और नया युग प्रारंभ हो रहा होता है इस प्रक्रिया को युगसंधि कहा जाता है। यह काल स्पष्ट नहीं होता, बल्कि धीरे-धीरे परिवर्तन होते हैं।
पौराणिक युगसंधि का उदाहरण:
द्वापर युग से कलियुग की संधि सबसे प्रसिद्ध और शास्त्रों में वर्णित युगसंधि है। महाभारत युद्ध के समय द्वापर युग का अंत हो रहा था। भगवान श्रीकृष्ण के देहत्याग के साथ द्वापर समाप्त हुआ और कलियुग का आरंभ हुआ।
उस समय युग परिवर्तन का संकेत दे रही निम्नलिखित घटनाएं थीं:
धर्म का पतन,भाई-भाई में युद्ध, अधर्म का बोलबाला।
शांति की जगह अशांति,पूरा आर्यावर्त युद्ध से जल रहा था।
ऋषियों की भविष्यवाणी थी कि अब “कलियुग” का आरंभ हो रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का अंतर्धान होना,अवतार का पृथ्वी से विदा लेना नए युग का संकेत था।
विष्णु पुराण के अनुसार “श्रीकृष्ण के शरीर त्यागते ही, कलियुग का प्रवेश हो गया।”
आधुनिक युगसंधि के उदाहरण:
20वीं सदी से 21वीं सदी का परिवर्तन।
दो विश्व युद्ध: पूरी मानवता का आत्मघात जैसे द्वापर के अंत में महाभारत।
-औद्योगिक और तकनीकी विस्फोट: मशीनों का युग शुरू हुआ।
-पर्यावरण संकट: महामारी, और युद्ध
साथ ही एक जागरण: योग, ध्यान,आध्यात्मिक चेतना, नई सोच का विकास।
तत्वज्ञानी और संतों की भविष्यवाणी:
परम पूज्य गुरुदेव ने कहा:
“21वीं सदी उज्ज्वल भविष्य की निर्माता होगी। यह युगसंधि काल है, संकट भी हैं और समाधान भी।”
युगसंधि को समझने के लिए एक सरल उदाहरण:
जिस प्रकार सूर्योदय से पहले का समय अंधकारमय होता है, लेकिन वह अंधकार किसी नए प्रकाश की पूर्वसूचना लेकर आता है,ठीक उसी प्रकार युगसंधि में संकटों की अधिकता होती है, लेकिन उसके भीतर नवयुग के बीज छिपे होते हैं।
युगसंधि के संकेत (लक्षण):
1.पुरानी व्यवस्थाओं का टूटना: जैसे शिक्षा, राजनीति, समाज।
2.नई चेतना का उदय: तकनीक, आत्मज्ञान, समता।
3.संघर्ष और द्वंद्व: युद्ध, जलवायु संकट, मानसिक तनाव।
4.सत्य की खोज: विज्ञान और अध्यात्म का संगम।
20वीं सदी का अंत और 21वीं सदी की शुरुआत एक स्पष्ट युगसंधि है, जहाँ मानवता ने भौतिकवाद से आध्यात्मिकता की ओर, एकांगी सोच से समग्र दृष्टिकोण की ओर कदम बढ़ाया।
भारतीय संदर्भ में युगसंधि को तीन प्रमुख स्तरों पर देखा जा सकता है:
1. भारतीय संस्कृति में युगसंधि का उदाहरण
पुरानी संस्कृति:कर्मकांड प्रधान पूजा-पद्धति,पाखंड, जातिवाद, अंधश्रद्धा
बाह्य धर्म पालन
नई दिशा:ध्यान,योग, गायत्री मंत्र, आंतरिक साधना,विवेक आधारित धार्मिकता,समता, मानवता, विश्वबंधुत्व
2. भारतीय राजनीति में युगसंधि का उदाहरण
पुरानी राजनीति: अंग्रेज़ों की गुलामी,रजवाड़ों का शासन,जाति आधारित राजनीति, वंशवाद और भ्रष्टाचार
नई दिशा: लोकतंत्र, जागरूक नागरिक,टेक्नोलॉजी का उपयोग (ई-वोटिंग, सोशल मीडिया),पारदर्शिता की माँग
3.व्यक्तिगत जीवन में युगसंधि का उदाहरण
पुराना जीवन: परिवार केंद्रित सोच,परंपराओं को बिना सोचे मानना,केवल नौकरी, विवाह,संतान को जीवन का लक्ष्य मानना
नया दृष्टिकोण:आत्म-विकास, मानसिक स्वास्थ्य, करियर में विविधता (जैसे योग, कला,फ्रीलांसिंग),आध्यात्मिक जागरूकता,जीवन उद्देश्य की खोज।
इस तथ्य को समझने के लिए एक युवा का उदाहरण दिया जा सकता है जो IT सेक्टर छोड़कर ध्यान साधना और समाज सेवा में आ जाता है। वह पूछता है, “मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?” यह उसके अंदर की आध्यात्मिक युगसंधि है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में तो चिरंजीव बिकाश शर्मा जी का साक्षात् उदाहरण दिया जा सकता है जिन्होंने DSVV से Tourism की Master’s डिग्री होने के बावजूद,Explosives में काम करने के बावजूद शुक्ला बाबा को समर्पित होना उचित समझा।
निष्कर्ष:
युगसंधि केवल सामाजिक घटना नहीं, एक गहरी चेतनात्मक प्रक्रिया है।
यह तब होती है जब कोई व्यक्ति, समाज या देश पुराने ढांचे को छोड़कर नए युग की ओर बढ़ता है।
20वीं और 21वीं सदी के बीच का अंतर एक युग परिवर्तन की तरह है जहाँ सोच, तकनीक, जीवनशैली और मूल्यों में गहरा अंतर दिखाई देता है। यह अंतर केवल समय का नहीं, चेतना, दृष्टिकोण और व्यवस्था का भी है।
आइए युगसंधि के विषय का समापन कुछ और निम्नलिखित उदाहरणों से करें :
1. प्रौद्योगिकी (Technology):
20वीं सदी: टेलीफोन, रेडियो, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, टाइपराइटर
21वीं सदी: स्मार्टफोन, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्मार्ट होम्स
कुछ वर्ष पूर्व ही रेलवे स्टेशन पर टिकट खिड़कीपर बुकिंग करवाई जाती थी,आज Apps से फ़ोन पर ही बुकिंग हो रही है।
2. शिक्षा: 20वीं सदी: गुरू-केंद्रित शिक्षा, परीक्षा-आधारित शिक्षा।
21वीं सदी: विद्यार्थी-केंद्रित, स्किल और प्रैक्टिकल लर्निंग
अब YouTube, Coursera, ChatGPT जैसे माध्यमों से बच्चे खुद सीख रहे हैं।
3.राजनीति और दुनिया:
20वीं सदी: दो महायुद्ध, औपनिवेशिक स्वतंत्रता संघर्ष।
21वीं सदी: वैश्विक महामारी (COVID-19), साइबर युद्ध, जलवायु संकट
निष्कर्ष:
20वीं सदी ने बुनियादी ढाँचा और स्वतंत्रता दी, जबकि 21वीं सदी हमें चुनौतियों और आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही है।यह बदलाव केवल बाहर नहीं, मनुष्य की चेतना में भी हुआ है।
समापन, जय गुरुदेव
