23 जुलाई 2025 का ज्ञानप्रसाद
“नवयुग का अवतरण सुनिश्चित है और सन्निकट” शीर्षक से प्रकाशित अखंड ज्योति मई 1972 के दिव्य लेख को समझने के लिए हमने पिछले दो दिन पृष्ठभूमि का अध्ययन किया। दो भागों में प्रस्तुत होने वाले पहले भाग के ज्ञानप्रसाद में युग परिवर्तन में ईश्वर की इच्छा को माना गया है।
शब्द सीमा का पालन करते हुए सीधा लेख की ओर ही रुख करना उचित रहेगा।
******************
“युग परिवर्तन” की निकटतम सम्भावना के सम्बन्ध में गुरुदेव ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये:
निकट भविष्य में ही “युग परिवर्तन” प्रस्तुत होने वाला है इसमें किसी को सन्देह नहीं होना चाहिए। जिन्हें दूरदर्शी आँखें प्राप्त हों,यदि वोह नवयुग को लाने के लिए तीव्र गति से जुटाए जा रहे साधनों को बारीकी से देखें और समझें तो उन्हें विश्वास हो जायेगा कि यह एक ऐसी सुनिश्चित नियति एवं प्रारब्ध है जिसे किसी भी प्रकार से टालना संभव नहीं है। विधाता की कलम ने एक बार जो लिख दिया उसे वह स्वयं भी नहीं टाल सकते। सीताहरण के समय भगवान् राम लक्ष्मण जी से कहते हैं, “विधना का चक्र प्रिय भाई लक्ष्मण- – -” अर्थात “हे लक्ष्मण! यह जो कुछ घट रहा है, वह हमारे वश में नहीं है। यह सब विधाता (ईश्वर) की रचना है, उसकी योजना है, जो समय चक्र के अनुसार चल रही है।” भगवान् भी विधाता के निर्णय के आगे नतमस्तक होते हैं
“नवयुग के अवतरण” में एक प्रबल कारण “ईश्वरेच्छा” है।
Astronomy के आधार पर सूक्ष्म जगत की परिस्थितियाँ भी नवयुग का संकेत दे रही हैं। विशाल ब्रह्माण्ड में बह रही अदृश्य कॉस्मिक किरणें, रेडियो किरणें अति शक्ति एवं तीव्र गति से प्रवाहित हो रही हैं। इस प्रवाह के मार्ग में से गुजरने वाले ग्रह नक्षत्रों पर इन किरणों का असाधारण रूप से प्रभाव पड़ता है। हमें यह जानना चाहिए कि पृथ्वी समेत समस्त सौर मण्डल के सदस्य, एक दूसरे के साथ -साथ परिक्रमा कर रहे हैं। सभी तारे,नक्षत्र एक दुसरे के साथ रस्सी की भांति बंधे हुए हैं, परिक्रमा में निरत हैं। इस प्रक्रिया के अनुसार पृथ्वी अन्तरिक्ष के जिस स्थान पर आज है वहाँ लौट कर अरबों खरबों वर्ष में ही आ सकती है। विशाल आकाश में धरती आगे दौड़े जा रही है और पीछे का स्थल छूटता चला जा रहा है। एक Planet से दुसरे Planet पर एक दुसरे की किरणों का प्रभाव पड़ रहा है। किरणों की यह वर्षा कम-अधिक होती रहती हैं। किरणों का यह प्रभाव न केवल पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियों पर पड़ता है बल्कि प्राणियों की अन्तःचेतना भी उससे प्रभावित होती है।
पृथ्वी पर आ रही सूर्य की किरणों का प्रभाव भौतिक और मानसिक स्थिति पर पड़ते हुए हम निरन्तर देखते हैं। सर्दी, गर्मी, वर्षा के परिवर्तन पृथ्वी की परिस्थितियों में कितना प्रभाव उपस्थित करते हैं। इतना ही नहीं बसंत ऋतु का उल्लास और ग्रीष्म में थकान की उदासी का बाहुल्य प्राणियों की चेतना में अनायास ही परिलक्षित होता है। यह तो हुई सूर्य किरणों की बात। ऐसी असंख्य किरणें असंख्य ग्रह नक्षत्रों से बरसती हैं और उनकी समीपता तथा मात्रा के घटते बढ़ते रहने से पृथ्वी की भौतिक व चेतन स्थिति में भारी उतार-चढ़ाव आता रहता है। इस स्थिति से मनुष्य भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता।
सूक्ष्म तत्वज्ञानिओं के अनुसार, सतयुग की श्रेष्ठता और कलियुग की निकृष्टता ग्रहों की सूक्ष्म किरणों के प्रभाव पर ही आधारित है।
स्थूल ज्योतिष केवल सौर मण्डल के अंतर्गत घटित होने वाले क्रम का ही विवेचन करता है, सूक्ष्म ज्योतिष इससे कहीं ऊपर है। वह ध्रुव, महाध्रुव के पथ में आने वाले प्रभाव को देखता है। तत्वदर्शियों का कथन है कि अगले दिनों पृथ्वी ऐसे स्थान पर होगी जहाँ की अन्तर्ग्रही भौतिक एवं चेतन सूक्ष्म किरणें पृथ्वी निवासियों को अनोखे ढंग से प्रभावित करेंगी और धरती की परिस्थितियों में भारी हेर-फेर प्रस्तुत करेंगी। इस हेर-फेर से मनुष्यों के भावना स्तर में, चिन्तन और क्रियाकलाप में भी असाधारण परिवर्तन दिखेगा।
यह परिवर्तन विनाशात्मक नहीं सृजनात्मक होने वाला है। उससे निकृष्टता घटने और उत्कृष्टता बढ़ने की पूरी-पूरी संभावना है।
इन पंक्तियों को लिखते समय हम अपने पितास्वरूप परम पूज्य गुरुदेव पर गर्व किए बिना नहीं रह सकते। लगभग पांच दशक पूर्व 1972 में, तकनीकी, सामाजिक, राजनीतिक, परिवारिक आदि क्षेत्रों में जिन परिवर्तन की बात की थी, उन्हें आज 2025 में प्रत्यक्ष देखा जा रहा है। इन सभी क्षेत्रों में हुए बदलाव का विस्तृत विवरण अभी कल वाले लेख में ही प्रस्तुत किया गया था। 1972 में AI, ChatGPT आदि टूल्स का किसी ने नाम तक नहीं सुना था, आज इन Tools का जिस गति से विस्तार हो रहा है, आने वाले दिनों की प्रगति का अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
सूक्ष्मदर्शी-तत्वज्ञानी,इन दिनों प्रकृति में हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को बारीकी से देख रहे हैं और सुनिश्चित पूर्वसूचना दे रहे हैं कि युग परिवर्तन का समय अब अति निकट आ गया।
माता पिता बच्चों को स्वतन्त्र रूप से खेलने तो देते हैं लेकिन साथ ही यह ध्यान भी रखते हैं कि वे कहीं इस खेल-खेल में विपत्ति में तो फँसने नहीं जा रहे हैं। जब कुछ गड़बड़ देखते हैं तो वह दौड़कर उन्हें संभालते भी हैं।
ठीक इसी तरह ईश्वर ने मनुष्य को काफी स्वतंत्रता दी है। भले-बुरे कर्म करते हुए, सुख-दुख पाते रहने की स्वसंचालित प्रक्रिया में प्राणी भ्रमण करते रहते हैं। दृष्टा उसे साक्षी रूप में देखता रहता है, इसमें हस्तक्षेप नहीं करता लेकिन जब जनसमूह की दिशा ही बदल जाय और बहुसंख्यक समुदाय विनाश की ओर चल पड़े, अनुशासनहीनता अनियन्त्रित हो चले तो ऐसी स्थिति को सुधारने के लिए दृष्टा को अवतरित होना पड़ता है। समय-समय पर ऐसा होता भी रहा है। सुधारकों, देवदूतों और अवतारों को समय-समय पर इसी प्रयोजन के लिए भेजा जाता रहा है। जो रोग मामूली दवादारु की परिधि से आगे बढ़ जाता है उसके लिए कुशल सर्जन स्वयं सर्जरी करते हैं। साधारण चोरी, उठाईगीरी की पकड़ सिपाही ही करते रहते हैं लेकिन बड़ी समस्या के लिए रिजर्व फोर्स ही भेजनी पड़ती है। असुरता की, अधर्म की अतिशय वृद्धि होने पर,अधर्म को निरस्त करने एवं धर्म को प्रतिष्ठित करने के लिए अवतार लेने का ईश्वरीय आश्वासन निरर्थक नहीं सार्थक है। इतिहास साक्षी है कि जब भी सृष्टि के नियंता ने देखा कि सन्तुलन लड़खड़ाने लगा है,अनीति की शक्तियाँ अनियन्त्रित हो उठी हैं, मानवी प्रयत्न उसे संभालने में असफल हो रहे हैं तो दिव्य प्रवाह की आँधी आती है। यह आंधी कूड़े करकट को उड़ा कर कहीं से कहीं पहुँचा देती है। इस प्रक्रिया को “अवतार प्रक्रिया” का नाम दिया गया है। इसी प्रक्रिया को दूसरे शब्दों में “युग का परिवर्तन या प्रत्यावर्तन” कहा जा सकता है। समय-समय पर “महाकाल” इस युग परिवर्तन की व्यवस्था करते रहे हैं।
इस दिशा में आज भी इसी प्रकार का प्रयास प्रबल रूप से चल रहा है।
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पंक्तियां 1972 में, 53 वर्ष पूर्व लिखी थीं लेकिन आज 2025 में जिस प्रकार का प्रयास दृष्टिगोचर हो रहा है उससे गुरुवर को “युगदृष्टा” कहने में रत्ती भर भी संदेह नहीं रहता। 19 जुलाई को आयोजित ज़ूम मीटिंग में आदरणीय चिन्मय जी ने जिन पॉइंट्स पर प्रकाश डाला, गुरुवर के संदेश सार्थक होते दिख रहे थे। हमारा सौभाग्य था कि हमें भी इस मीटिंग में आमंत्रण प्राप्त हुआ था,विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गुरुदेव द्वारा कहा गया एक-एक शब्द दृष्टिगोचर होता दिख रहा था।आदरणीय चंद्रेश जी ने न्यूज कटिंग भेजी है जिसमें इस अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ता गोष्ठी का विस्तृत वर्णन है। आने वाले शनिवार को इस विषय पर चर्चा करने की योजना है। चंद्रेश जी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।
आइए अब लेख की ओर आगे बढ़ते हैं।
गुरुदेव, अवतार प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कि जब भी मनुष्य जाति का भावना प्रवाह अवाँछनीयता की ओर बहा है, दृष्टा को कठोर कदम उठाने पड़े हैं। साधारण समय में आसुरी/अनैतिक तत्व छोटे मोटे उद्दण्ड ही अपनाते थे। ऐसे अपराधियों को तो समाज ही दण्ड देकर रास्ते पर ले आता था लेकिन अब तो स्थिति बिल्कुल ही कुएँ में भाँग डालने जैसी है। जिस प्रकार भांग से दूषित पानी पीने वाले सभी लोग उन्मत्त हो उठते हैं, आज भी कुछ ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई है। ओछे और निकृष्ट स्तर के लोग अनाचारपूर्ण व्यवहार बरतें तो बात समझ में आती लेकिन जब सुरक्षादल स्वयं ही निम्न स्तर पर उतर आये तो क्या किया जाए। खेत का बचाव करने वाली मेंड़ ही खेत को खाने लगे तो रखवाली कैसे सम्भव हो।
अक्सर समझा जाता है कि समाज को नीति-नियन्त्रण में रखने के लिए, आदर्श गतिविधियाँ अपनाने की जिम्मेदारी “प्रबुद्ध वर्ग” की है लेकिन जब ग्वाला ही भेड़ें मारने लगे, रक्षक ही भक्षक बन जाय तब समझना चाहिए कि अब खैर नहीं।
हमारा सौभाग्य है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में प्रबुद्ध, शिक्षित साथियों की साझीदार है जो मानवीय मूल्यों का पालन करने में संकल्पित हैं ,नहीं तो कब की “रक्षक ही भक्षक” जैसी स्थिति आ चुकी होती। हम इस अभूतपूर्व सहयोग के लिए नतमस्तक हैं।
आज बारीकी से देखा जाय तो राजतन्त्र, धर्मतन्त्र समाजतन्त्र, अर्थतन्त्र, बुद्धितन्त्र, कलातन्त्र के क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाली प्रतिभाएं बुरी तरह अपने कर्त्तव्य में कोताही बरत रही हैं। गुरुदेव कहते हैं कि फिजूल की बातें करते रहने का कोई मूल्य नहीं, कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । यदि प्रभाव पड़ता है तो केवल आस्थाओं और कृतियों का ही पड़ता है। जितना भी छिपाने का प्रयास करें,संस्कार( अच्छे/बुरे) छिपाये नहीं छिपते। यदि उनका स्तर अवाँछनीय है तो मोटे तौर से कोई जाने या न जाने लेकिन सूक्ष्मजगत में उसका भारी प्रभाव पड़ेगा। समर्थ प्रतिभाएं जहाँ अपने वर्चस्व से लोकमानस को अपने समान उत्कृष्ट बना सकती है वहीं उनकी निकृष्टता व्यापक रूप से अवाँछनीयता का भी विस्तार कर सकती है। जनसाधारण के चरित्र में गिरावट आ जाना उतना चिन्ताजनक नहीं होता जितना प्रतिभाओं की नैतिकता का पतन होता है। वर्तमान विश्वसंकट का प्रधान केन्द्र बिन्दु “नैतिकता का पतन” ही है। यदि यह पतन इसी तरह चलता रहा तो समस्त संसार के लिए कुछ ही दिनों में आत्मघाती संकट प्रस्तुत हो सकता है।
किसी का नाम लेने की जरूरत नहीं है और न किसी पर कीचड़ उछालने की आवश्यकता है। चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर देखें और ढूँढ़ें कि कृषिकार्य से पेट भर कर निस्वार्थ शासन करते राजा जनक, अर्धवस्त्र पहन कर पैदल चलने और कुटिया में रहने वाले चाणक्य जैसे मंत्री, व्यास और बाल्मीकि जैसे साहित्यकार, नारद जैसे गायक, शंकराचार्य जैसे साधु,वशिष्ठ जैसे धर्मनेता, बुद्ध जैसे तपस्वी, भामाशाह जैसे धनी, शुकदेव जैसे ज्ञानी, आज किस क्षेत्र में कितने हैं।
दिमाग खराब होगा तो उसका प्रभाव शरीर की समस्त गतिविधियाँ दिखाएंगी। प्रबुद्ध वर्ग का उत्तरदायित्व है कि “उपलब्ध प्रतिभा एवं सम्पदा” को अधिक साहस के साथ लोकमंगल में लिए नियोजित करे, समाज के लिए आदर्श और अनुकरणीय बने ताकि जनसाधारण को उनके पदचिह्नों पर चलने की प्रेरणा मिले और लोकव्यवस्था सही बनी रहे। गुरुदेव के लिए “आचार्य” उपाधि को आचरण से कनेक्ट करते हुए डॉ शंकर दयाल शर्मा जी के शब्द कुछ दिन पूर्व ही हमने सुने हैं। शिक्षक को अक्सर Role model कह कर सम्मानित किया जाता रहा है।
यदि उच्चवर्ग भ्रष्ट होगा तो जनसाधारण को भी भ्रष्टता ही सरल,स्वाभाविक एवं उचित लगेंगीं। ऐसी स्थिति को “जैसा राजा वैसी प्रजा” न कहा जाए तो और क्या कहें? फलस्वरूप सर्वत्र पतनोन्मुख दुष्प्रवृत्तियाँ भड़केंगी और उसका प्रतिफल अगणित आपत्तियों के रूप में भुगतना पड़ेगा।
आज के लेख का कल तक के लिए यहीं पर मध्यांतर।
जय गुरुदेव
