वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आने वाले लेखों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी 

परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य से अवतरित हुई ज्ञानगंगा में दिव्य स्नान कर रहे सभी साथियों का अभिवादन।

अखंड ज्योति मई 1972  वाले अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था “नवयुग का अवतरण सुनिश्चित है और  सन्निकट”, इस लेख का शीर्षक जितना आकर्षक था उससे कहीं आकर्षक इसमें समाहित ज्ञान था। इस ज्ञान ने जितनी सुनिश्चिता का प्रकाट्य दर्शाया था,जिज्ञासा ने उससे कहीं अधिक शंका को जन्म दे दिया था। विज्ञान के तुच्छ विद्यार्थी होने के कारण,तार्किक प्रवृति के कारण मन मान ही नहीं रहा था कि विश्वभर में चारों तरफ की परिस्थितियां देखते हुए इस लेख के शीर्षक पर कैसे विश्वास किया जा सके। पांच दशक से भी अधिक समय पूर्व गुरुदेव जिस “नवयुग” की बात कर रहे हैं,क्या वोह आ चुका  है ?  धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो चुका है ? 

अज्ञानवश, गुरु की शक्ति पर शंका करना तो कोई समझदारी नहीं है, वोह भी उस गुरु पर जिसने अपनी दिव्य दृष्टि से, अपनी आध्यात्मिक शक्ति से समस्त विश्व में स्वर्ग का  अवतरण देखा है। अवश्य ही हमारा अज्ञान इस विषय को समझने में बाधक बन रहा है। न जाने कितनी ही बार इस लेख को पढ़ा,समझने का प्रयास किया, छोड़ दिया लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इस लेख में समाहित शब्दावली को समझने के लिए विकिपीडिया,आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, Chat.GPT जैसे अनेकों ऑनलाइन सहायकों का सहयोग लिया लेकिन आर्टिफिशियल तो आर्टिफिशियल ही है, इन सभी पर भी कैसे विश्वास किया जाए।

जो भी हो  निष्कर्ष यही निकला कि लेख को भलीभांति समझकर,सरल करके ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर प्रस्तुत किया जाये। इतनी अधिक जानकारी, इतना अधिक ज्ञान इक्क्ठा हो गया कि आज और कल उन बेसिक तथ्यों को समझने की आवश्यकता है। अलग-अलग Sources से ज्ञान प्राप्त होने के कारण रिपीट होना स्वाभाविक है जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं। 

अखंड ज्योति के जिस लेख की बात कर रहे हैं,जितनी बार भी उसको पढ़ना आरम्भ किया एक प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ कि गुरुदेव ने तो 50 वर्ष पूर्व नवयुग का अवतरण सुनिश्चित बता दिया था लेकिन बाल्यकाल से बुज़ुर्गों से सुनते आ रहे थे कि अभी कलयुग का प्रथम चरण चल रहा है। कलयुग का कालखंड लगभग साढ़े चार लाख वर्ष का है तो युगपरिवर्तन देखने के लिए न जाने हम जैसों की कितनी ही पीढ़ियां निकल जाएँ। 

यही था हमारा अज्ञान जिसका कुछ-कुछ निवारण करने का प्रयास किया गया है। 

एक और प्रश्न जो हर बार हमारे ह्रदय में उठा वोह यह था कि  गुरुदेव निकृष्टता को नकार कर उत्कृष्टता की गारंटी की बात कर रहे हैं लेकिन 9 विश्व शक्तियां तो परमाणु हथियार लिए बैठी हैं। केवल रूस के पास ही न केवल 5000 से अधिक परमाणु हथियार हैं बल्कि इन बमों की शक्ति, हिरोशिमा-नागासाकी के परमाणु बम से कई गुना शक्तिशाली है। पलक झपकते ही सारी सृष्टि का विनाश हो सकता है लेकिन इसमें भी हमारा अज्ञान ही था जो  इस लेख को समझने में बाधक बन रहा था। 

गुरुदेव समेत अनेकों तत्वदर्शियों ने तृतीय विश्वयुद्ध का सम्भावना केवल 5% से भी कम बताई है। तो क्या यह 9 देश परमाणु बमों के भंडार अपने ड्राइंग रूम के शो केस में सजाये रखेंगें ? गुरुदेव ने इस प्रश्न  का भी उत्तर दिया है। 

तो साथिओ आपने देख ही लिया है कि ज्ञानरथ परिवार में अवतरित ज्ञानगंगा कितने प्रयास और खुदाई से आप सबके समक्ष लाने का प्रयास किया जाता है। हम सबका सौभाग्य ही है कि गुरुवर के मार्गदर्शन में इस ज्ञानगंगा के निर्मल एवं पावन जल की छीटों से हमारा कायाकल्प हो रहा है। 

आने वाले लेखों में इन सभी प्रश्नों के यथासंभव उत्तर ढूंढने का प्रयास रहेगा।  

आइए शांतिपाठ के साथ आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारंभ करें:ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

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युग का परंपरागत अर्थ एक बड़ा समयचक्र,कालखंड होता है। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग आदि इस कालखंड के उदाहरण हैं। प्रत्येक युग की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ, जीवनशैली, नैतिकता और चेतना अलग होती है।

लेकिन आधुनिक समय में “युग” का अर्थ केवल एक लंबी काल-अवधि (समयखंड) नहीं बल्कि समाज, संस्कृति, चेतना और जीवनशैली में गहरे बदलाव का प्रतीक है। यह एक ऐसा परिवर्तनशील दौर होता है जिसमें चेतना में परिवर्तन होता है, लोगों की सोच,विश्वास,और जीवन के उद्देश्य में बदलाव आता है। उदाहरण के  लिए हम देख रहे हैं कि आज के समय में अधिक से अधिक लोग आध्यात्मिकता और विज्ञान को बैलेंस करके तर्कशील हो रहे हैं। दोनों में संतुलन खोज रहे हैं।Scientific spirituality का विषय दिनोदिन प्रचलित हो रहा है।

आज का युग “डिजिटल युग” है। यह एक ऐसा समय है जहाँ  ज्ञान, सूचना और संचार की तीव्रता असीमित गति से आगे बढ़ते जा रहे हैं। 

हमारे बुज़ुर्गों का समय  “परिवार प्रधान” युग था लेकिन आज का समय “व्यक्ति प्रधान” युग है। मुहल्ले वाले/गाँव वाले भी परिवार के सदस्य ही समझे जाते थे लेकिन आज तो साथ वाले घर में रहने वाले लोगों का भी नहीं पता कि कौन हैं। पुरातन समय में  धर्म और परंपरा का बोलबाला था लेकिन आज  तर्क को ही महत्व दिया जा रहा है।चर्चाओं में अक्सर देखने को आता है कि  जानकारी हो न हो, फिज़ूल का तर्क करके बाल की खाल उधेड़नी ही है।   

गुरुदेव ने जब युगपरिवर्तन की बात की है तो उसके साथ ही “युगसंधि” की बात भी की जाती है। युगसंधि के सम्बन्ध में गुरुदेव के समेत  बहुत से विद्वान मानते हैं कि युगसंधि का अर्थ है एक युग का अंत और दूसरे युग का आरम्भ। महाभारत के युद्ध के बाद कलयुग के  आरम्भ का समय युगसंधि माना जा सकता है। इसी प्रकार  “कलियुग के अंत” और “सत्य के पुनर्जागरण” के संक्रमण काल (युगसंधि) में हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब पुराना ढाँचा टूट रहा होता है और नया बन रहा होता है। परम पूज्य गुरुदेव ने युगसंधि को संक्रमण काल अर्थात Transitional period  भी कह कर समझाया है। संक्रमण को इंग्लिश में Infection भी कहते हैं। अगर ध्यान  से विश्लेषण किया जाये तो Transitional period में भी Antibiotic देकर इन्फेक्शन का उपचार किया जाता है। समाज में पनप रही बीमारी के कीटाणुओं का इलाज साधना/आध्यात्मिकता के एंटीबायोटिक्स से निवारण किया जाता है। 

क्या सच में नया युग आ रहा है, आ चुका है ?

क्या युग परिवर्तन हो रहा है?

यदि हम आज के युग को परिवर्तन, पुनर्जागरण और जागरूकता के दृष्टिकोण से देखें तो हम उसे “नवयुग” कह सकते हैं। “नवयुग” का अर्थ एक ऐसा नया समयकाल होता है जो पुराने ढांचे से भिन्न हो,जिसमें मानव चेतना, समाज, मूल्य, विज्ञान और जीवनशैली में गहराई से परिवर्तन हो रहा हो।

निम्नलिखित पॉइंट्स नवयुग के संकेत हैं:

1.ग्लोबल चेतना का उदय

2.आध्यात्मिक वैज्ञानिकता (Scientific spirituality) का उदय 

3.प्राकृतिक जीवनशैली की  वापसी

4.नारी शक्ति और समानता का उदय

5.सामूहिक कल्याण की सोच, “मैं” से “हम” की ओर कदम।

6. मानवता की ओर वापसी:

धर्म, जाति, राष्ट्र से ऊपर उठकर मानव मात्र की सेवा को प्राथमिकता दी जा रही है।

7.पर्यावरण और प्रकृति के प्रति जागरूकता:

“सस्टेनेबल डेवलपमेंट”, “ग्रीन एनर्जी” जैसे विचार नवयुग की सोच हैं।

परम पूज्य गुरुदेव ने युगनिर्माण की बात 20वीं सदी के मध्य में अर्थात 1950 के करीब की थी। उन्होंने अनेकों बार कहा है कि

“हम एक युग परिवर्तन के मोड़ पर खड़े हैं। नया युग आयेगा, ज्ञान, प्रेम और एकता का युग आएगा।”

यदि युगपरिवर्तन का संदेश दिया जा रहा है तो क्या  कलयुग समाप्त होने को है?

यह प्रश्न बहुत ही जटिल है क्योंकि पौराणिक साहित्य तो कहता है कि कलयुग का अंत अभी नहीं होगा, इसमें अभी बहुत समय बाकी है। बाल्यकाल से स्वर्गीय माताजी से यही सुनते आ रहे थे कि कलयुग की कुल अवधि 432,000 वर्ष है और अभी केवल 5,125 वर्ष ही बीते हैं। इसका मतलब है कि कलयुग के अंत में अभी लगभग 426,875 वर्ष बाकी हैं। 

लेकिन आधुनिक रिसर्च के अनुसार कलयुग की परिभाषा कुछ और ही है ।

आइए पौराणिक और आधुनिक परिभाषा को जानने का प्रयास करें।

 हिंदू धर्म के चार युगों में से एक युग “कलयुग” है। अन्य तीन युग सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग हैं। प्रत्येक युग की एक निश्चित अवधि होती है,कलयुग की अवधि 432,000 वर्ष मानी जाती है। 

कलयुग के अंत के बारे में विभिन्न पुराणों में अलग-अलग भविष्यवाणियां हैं लेकिन यह निश्चित है कि कलयुग अभी अपने शुरुआती चरण में है। 

कलयुग के अंत में, यह माना जाता है कि भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे और कलयुग का अंत करके सत्ययुग की शुरुआत करेंगे। 

आधुनिक परिभाषा के अनुसार “कलियुग” का अर्थ केवल एक पौराणिक युग नहीं बल्कि  एक चेतनात्मक और नैतिक स्थिति का संकेत है जहाँ मनुष्य की सोच, व्यवहार और समाज की दिशा असंतुलन, स्वार्थ और अज्ञान की ओर झुकी हुई दिखती है। कलयुग को “कलपुर्जों का युग” भी कहा गया है। 

निम्नलिखित पॉइंट्स कलयुग की पहचान हैं:

 सत्य, ईमानदारी, करुणा, संयम जैसे गुणों का पतन।झूठ, लालच, हिंसा, भ्रष्टाचार का बोलबाला।

आत्मा और परमात्मा की पहचान खो चुकी है,धार्मिकता तो है लेकिन  आध्यात्मिकता नहीं है।

इंसान मशीन बन गया है, “More gadgets, less peace” जीवन की गहराई खोकर दिखावे का जीवन।

परिवार टूट रहे हैं,स्वार्थ और अकेलापन बढ़ता जा रहा है।

युद्ध, महामारी, पर्यावरण संकट
आदि।विज्ञान की शक्ति तो है लेकिन विवेक नहीं है।

कलयुग की सबसे बड़ी आशा यह बताई गई है कि नाम संकीर्तन, सेवा और सत्संग के द्वारा मुक्ति सरल है और यह भी कि जब अंधकार गहराता है तब प्रकाश की संभावना भी सबसे निकट होती है।

इस चर्चा से निष्कर्ष तो यही निकलता है कि आज के समय में कलियुग का अर्थ एक ऐसा मानसिक और सामाजिक दौर है जहाँ असंतुलन और मूल्यहीनता प्रबल हैं लेकिन साथ ही यह भी एक चेतावनी और अवसर है कि हम अपने भीतर लौटें, जागें और नवयुग की दिशा में कदम बढ़ाएँ।

हाँ, सूक्ष्मदर्शी तत्वज्ञानी (Subtle-seeing philosophers or subtle-level thinkers) और गहरे स्तर पर संसार का विश्लेषण करने वाले चिंतक आज के समय में युग परिवर्तन के संकेत स्पष्ट रूप से देख रहे हैं। ये परिवर्तन केवल बाहरी घटनाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मानव चेतना, सामाजिक संरचना, नैतिक मूल्यों और प्रकृति के व्यवहार में भी परिलक्षित हो रहे हैं।

आगे चलने से पूर्व  स्थूल और सूक्ष्म तत्वदर्शन (फिलॉसॉफी) में अंतर् एवं युग परिवर्तन के प्रतक्ष्य सकेतों को समझना उचित रहेगा। इस जटिल विषय को उचित उदाहरणों के साथ समझना होगा,इसलिए इस चर्चा को कल के लिए स्थगित करना ठीक रहेगा। 

कल के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ यहीं से होगा, तब तक के लिए आज की ज्ञानकक्षा का मध्यांतर होता है। 

धन्यवाद्, जय गुरुदेव 


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