वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“अपने सहकर्मियों की कलम से” का 5 जुलाई 2025 शनिवार का अंक 

हर बार की भांति आज के विशेषांक का भी इन्हीं शब्दों से शुभारम्भ कर रहे हैं कि “हम कोई लेखक नहीं हैं” जैसे-जैसे, जो-जो विचार मन में उठ रहे हैं, बिना किसी शब्दावली आदि की चिंता किये लिखे ही जा रहे हैं क्योंकि विश्वास  है कि यदि कोई त्रुटि हो भी  गयी तो हमारे परमप्रिय साथी हमें क्षमा कर देंगें। 

आज के सेगमेंट का शुभारम्भ  हमारे ही विचारों से हो रहा है जिसमें हमारी अंतरात्मा कह रही है कि यदि हम गुरुदेव का सबसे प्रबल सूत्र “प्रेम और अपनत्व” का  प्रयोग करें तो ज्ञानरथ परिवार का कायाकल्प होना सुनिश्चित है।    

हमारे साथी जानते हैं कि हम हमेशा प्रयासरत रहते हैं कि अधिक से अधिक साथी ज्ञानप्रसाद लेखों का अमृतपान करें, समझें  एवं औरों को समझाएं, तभी हमारा कायाकल्प हो पाएगा। गुरुदेव का साहित्य ही उनका स्वरूप है,बार-बार गुरुदेव कह चुके हैं कि मुझे पुष्प माला मत पहना, मुझे मिठाई मत खिला,तू केवल वही कर जो मैं कहता हूं। मुझे विश्व के घर-घर में पहुंचा दे। 

गुरुदेव ने तो साहित्य वितरण का मार्ग भी सरल कर दिया है। परिजनों को गायत्री का अर्थ एवं उससे होने वाले लाभ का ज्ञान कराने की  आवश्यकता है। उन्हें समझाने की आवश्यकता है कि मां गायत्री के पांच रूप (अमृत,पारस, कल्पवृक्ष,कामधेनु एवं ब्रह्मास्त्र) कैसे प्रकट होंगे। मात्र ज्ञानरथ परिवार के प्रयासों से ही इन सभी रूपों का प्राकट्य होना सुनिश्चित है। ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने से अनेकों का कायाकल्प हुआ है, अनेकों ने कामधेनु का दुग्धपान किया है, अनेकों के लिए यह साहित्य ब्रह्मास्त्र साबित हुआ है। एक-एक साथी का नाम लिखना तो संभव नहीं है लेकिन हमारी इन पंक्तियों पर विश्वास करना भी कठिन नहीं है।

गुरुदेव ने 1958 के सहस्रकुंडी यज्ञ को ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान  कहा था क्योंकि गायत्री की ब्रह्मास्त्र शक्ति को कोई रोक नहीं सकता, गायत्री के पीछे छिपे ज्ञान को हम सबने लोगों को समझाना है, जब लोगों को इस ज्ञान का पता चल जायेगा, लोग स्वयं ही प्रेमपूर्वक जुड़ते चले जायेंगें। 

यही ज्ञान अमृत है। यही पारस है ,जो इसे छू लेगा सोना बना जायेगा। हम सब गुरुदेव से यही प्रार्थना करें कि गुरुदेव ने हमें तो गायत्री की शक्ति दिखा दी, अब हमें आशीर्वाद दें कि हम अपने को देवदूत माने, आचार्यश्री  का शिष्य माने,युगनिर्माणि माने,वेददूत बनकर विश्व में गुरुवर का  सन्देश फैलाएं।

हम सभी मानते हैं,जानते हैं कि प्रतिभाएं उचित मार्गदर्शन के लिए तड़प रही हैं, उन्हें जहाँ कहीं भी अपनत्व,स्नेह, प्रेम, निष्ठा, समर्पण, सहकारिता आदि मिलेंगी वोह भागे दौड़ें आयेंगें। हमारा प्रेम उन्हें पकड़ कर, बांध कर रखने में बहुत ही शक्तिशाली सूत्र होगा क्योंकि इसी सूत्र का प्रयोग करके गुरुदेव ने 15 करोड़ समर्पित परिजनों का विशाल गायत्री परिवार खड़ा किया, हम जैसे तुच्छ व्यक्ति ने आप सबके सहयोग से,इन्हीं  मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए, 41000 साथियों  का प्रतक्ष्य परिवार बनाया, अप्रतक्ष्य न जाने कितना बड़ा है, इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है। प्रेम,सम्मान,ज्ञान से दिए गए प्रत्येक संदेश का आदर होगा, पहले की तरह आज भी लोग जुड़ते जायेंगें क्योंकि गुरु की शक्ति हम सबके पीछे है, वही सब कुछ कर रहे हैं, हम सब तो केवल काठ की पुतली भर हैं। अप्रतक्ष्य हम इसलिए कह रहे हैं कि यदि ऐसे परिजन न हों तो मात्र 12 घंटे में ही 10000 लोग शार्ट वीडियोस का अमृतपान कैसे कर रहे हैं। कौन हैं यह परिजन? कहाँ से आ रहे हैं यह व्यूज ? गुरुदेव ही जानें। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि शार्ट वीडियोस को अधिक समर्थन मिल रहा है लेकिन क्या बड़ी वीडियोस को अपलोड करना बंद कर दें ? कदापि नहीं, उनका अपना महत्व है। गुरुपूर्णिमा का महान, दिव्य पर्व आ रहा है उसके लिए गुरुदेव के बारे में तो बड़ी वीडियो का ही सहरा लेना उचित रहेगा। वर्षों से गुरुदेव के कुछ दुर्लभ चित्र इक्क्ठे कर रहे थे, अगर गुरुदेव की अनुमति हुई तो उन चित्रों की वीडियो भी उनके चरणों में भेंट कर देंगें। 

गुरुदेव ने समय की नज़ाकत और परिजनों की व्यस्तता को देखते हुए “दीप यज्ञ” एवं “बलिवैश्व यज्ञ का आविष्कार किया था, शायद शार्ट वीडियोस को अधिक समर्थन मिलना भी गुरुदेव का ही कोई आदेश हो। वोह ही हमारे मालिक हैं, उनकी लीला वहीँ जाने। 

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अपनी  बात का समापन करते हुए अगली बात आद अरुण जी के निम्नलिखित कमेंट की करनी है। इस कमेंट को परिवार में शेयर करने का   उद्देश्य यही है कि समय के अभाव में जो परिजन विस्तृत लेख पढ़ने में असमर्थ होते हैं, वोह  कमेंट पढ़कर कर, बड़ी ही आसानी से लेख से सम्बंधित काउंटर कमेंट कर सकते हैं।  अरुण जी की तरह और भी विस्तृत कमेंट सहायक होंगें। हमने इस कमेंट की सराहना में अरुण जी की पीठ भी थपथपाई थी, गुरुवर के समर्पित पुत्र को उनका आशीर्वाद मिलता रहे, ऐसी हम व्यक्तिगत एवं सामूहिक कामना करते हैं। अरुण जी अपने कायाकल्प होने में हमें वैसे ही श्रेय देते रहते हैं, यह सब उस  शक्ति की लीला है जिसे हम “गुरुदेव” के नाम से जानते हैं। 

अरुण जी का कमेंट:        

उपासना की सफलता तभी संभव है जब साधना को सही तरीके से किया जाये। साधना का मतलब है अपने आप को जितना साध सकते हैं यानि परिष्कृत कर सकते हैं, अपने अंदर की  दुर्भावनाओं को साफ कर सकते हैं,तभी उपासना फलित होगी ।

इस लेख में तो बिलकुल साफ-सुथरी भाषा में समझाया गया है कि जब तक कपड़ों की अच्छे  से धुलाई नहीं होगी तब तक रंगाई की  चमक निखरेगी  ही नहीं। धुलाई का मतलब वही है जो हमारे मन मस्तिष्क में कचरा  भरा हुआ है उसे साफ कर बिलकुल स्वच्छ करना। कबीर दास जी का उलटबांसी बहुत ही प्रसिद्ध है,

कबीर दास की उलटबांसी “आंगन सुखा घर में पानी” दादागुरु ने परम पूज्य गुरुदेव को तीन जन्मों का बोध कराया था उसमें पहला जन्म “कबीर दास” के रुप में ही हुआ था।  

पाप कर्मों का फल और पुण्य कर्मों का फल अवश्य मिलता है, इससे कोई  वंचित रह नहीं सकता है। कर्म का फल निष्फल नहीं जा सकता है चाहे बुरा कर्म हो या अच्छा कर्म परिणाम तो मिलेगा ही। इसके लिए चाहे कुछ भी उपाय कर लिया जाये, हां एक उपाय से पाप कर्म कम हो सकता है पर समाप्त नहीं हो सकता है। पाप कर्मों को मिटाने के लिए सत्कर्मों को करने में जुट जायें। इससे प्रारब्ध कम हो सकता है, इसके लिए सबसे अच्छा और सरल तरीका है “गायत्री महामंत्र ” की उपासना और अच्छे विचारों को जन्म देने के लिए परम पूज्य गुरुदेव के अनमोल सुविचारों का स्वध्याय। वो भी लगातार एवं अनवरत, बिना किसी ब्रेक के,  इसका कोई समय-सीमा तय नहीं है,जितने भी पूर्व जन्मों और इस जन्म के  कुसंस्कार भरे पड़े हैं, वह सब जब तक उपासना के माध्यम से धुलेगा नहीं तब तक अच्छे विचारों का आगमन संभव नहीं है।

इस बात को तो गायत्री परिवार वाले समझ जाते हैं लेकिन  बाहरी लोगों को समझाना काफी टफ है। फिर भी कहा गया है कि रसरी आवत जात है सिल पर परत निशान,जिस तरह से रस्सी के चलने से सिल पर निशान पड़ जाता है उसी तरह लगातार प्रयासरत रहने से न समझने वाले भी एक न एक दिन समझने को तैयार हो ही जाते हैं,

सभी जानते हैं कि जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलना निश्चित है फिर भी बुरा कर्म क्यों करते हैं क्योंकि उनके प्रवृत्ति में ही समाया हुआ है उन्हें अच्छा लगता है,अगर ऐसे लोग नहीं रहते तो परम पूज्य गुरुदेव का इस महाअभियान चलाने की  तो जरूरत ही नहीं पड़ती । सभी लोग एक-दूसरे से अच्छे से बातचीत करते एक दूसरे को सहायता करते किसी से द्वेष ईर्ष्या का भाव नहीं रखते,तब तो धरती पर स्वर्ग और मानव में देवत्व की नारा लगाने की  जरूरत ही नहीं पड़ती । रावण न होता तो राम को कौन जानता,आज भ्रष्टाचारी न होता तो गायत्री परिवार को कौन जानता, भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए ही तो परम पूज्य गुरुदेव इस धरती पर अवतरित हुए हैं, और हम सभी हनुमान,नल नील, जामवंत, सुग्रीव और गिलहरी का रोल कैसे निभाते ?  गुरुदेव के किये हुए कार्यों का श्रेय कैसे प्राप्त करते?

आज कलयुग में एक ही शरीर में राम और रावण दोनों हैं,इस कलियुग को समाप्त कर सत्ययुग का आगमन करने का संकल्प हमारे परम पूज्य गुरुदेव ने लिया है जो आज अक्षरशः सत्य साबित हो रहा है। हमें पूज्य गुरुदेव के इस अभियान का हिस्सा बनने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 

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समापन, जय गुरुदेव   


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