27 अप्रैल 2024 को आदरणीय बहिन सुमनलता जी के सुझाव एवं साथिओं के समर्थन पर एक स्पेशल सेगमेंट का शुभारम्भ हुआ था जो अब एक इतिहास बन चुका है। एक सहमति बनी थी कि हम (अरुण त्रिखा) माह के अंतिम शनिवार को एक ओपन लेटर की भांति अपने भाव व्यक्त करें, जिसमें हमारे मन में उठ रही भावनाएं (ठीक/गलत) का प्राकट्य हो। हम तो साथिओं के सम्मान और श्रद्धा से ऋणमुक्त होने की बात सोचते रहते हैं,गलतिओं को कैसे प्रकट करेंगें, लेकिन “जिसके सिर ऊपर तू स्वामी – – – -” का स्मरण होते ही सब उड़नछू हो जाता है। गुरु स्वयं ही सब कुछ लिखवा लेंगें, ऐसा हमारा अटूट विश्वास है क्योंकि आज तक उन्होंने ही किया है, हम तो केवल काठ की एक पुतली ही तो हैं।
आद चंद्रेश जी ने “मन की बात” की प्रतीक्षा करते हुए व्हाट्सप्प मैसेज भेजा, “अपनों से अपनी बात” शीर्षक अखंड ज्योति से चुराया हुआ है, “सुझाव बहिन सुमनलता जी का, प्रयास हमारा” भी एक उत्कृष्ट शीर्षक है, हमारे “अंतर्मन की तरंगें” भी एक और शीर्षक हो सकता है।
शीर्षक जो भी हो, उत्कृष्टता तो तभी प्रमाणित होगी जब हम अपने साथिओं के हृदयों के ज्ञानतंतुओं को झकझोरने में सफल हो पायेंगें।
आदरणीय बहन संध्या जी शिकायत करेंगीं कि आज फिर हमने “अपना समय” साथिओं को समर्पित कर दिया तो इस शिकायत से बच निकलना बहुत ही कठिन प्रतीत हो रहा था। साथिओं की प्रेमभरी हथकड़िओं से छूट पाना असंभव इसलिए हो रहा था कि हमारी सर्वप्रिय बेटी संजना ने अपनी भावनाएं तीन बार हमें लिख कर भेजीं लेकिन शामिल न हो पाईं,आदरणीय प्रेमशीला मिश्रा जी एवं उमा साहू जी के ज्योति कलश क्लिप्स, आदरणीय अरुण वर्मा जी के योगदान इतने अधिक क्लिप्स इक्क्ठे हो चुके थे कि संभाल पाना कठिन हो रहा था।
तो आइए आज पहले अपनी बात कह लेते हैं, बाद में बेटी संजना की बाते कहेंगें I
हर बार की भांति आज भी लिख रहे हैं कि हम कोई लेखक नहीं हैं, जैसे-जैसे गुरुवर लिखवाते जायेंगें, आपके समक्ष प्रस्तुत होते जायेंगें, दिल की परतें खोलते जायेंगें, किसी भी अनुचित बात के लिए पूर्व-क्षमाप्रार्थी हैं।
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गुरुदेव ने अनेकों बार कहा है कि हमारे परिजन धागे में पिरोये हुए मोतियों की तरह हैं। परिवार के एक-एक सदस्य को हमने अपने साथ अटूट प्रेम बन्धन में जकड़ कर बाँध रखा है। सबकी प्रगति/अवनति हमारी अपनी समस्या है। यदि युग-निर्माण परिवार के सदस्य ऐसे ही लोभ-मोह में ग्रस्त,पेट और प्रजनन में व्यस्त,वासना और तृष्णा के ग्रस्त पशु जैसा जीवन जीकर मर जाते हैं तो यह हमारे लिए कलंक की बात तो है ही,हमारे परिवारजनों के लिये भी लज्जा की बात है। “हाथी के बच्चे बकरों जैसे दिखें इसमें उपहास हाथी का तो है ही,बच्चों को भी शर्मसार होना पड़ता है।”
यदि कोई आदर्श परिवार बन जाता है तो शोभा उसी में है कि उसका स्तर भी कुलपति के अनुरूप हो। हर अभिभावक की अपनी सन्तान के प्रति ऐसी ही इच्छा रहती है। गुरुदेव की भी यही इच्छा है।
परम पूज्य गुरुदेव के इन शब्दों से प्रेरित होकर हम सोते-जागते इसी उधेड़-बुन में लगे रहते हैं कि किसी प्रकार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों के लिए कुछ कर पाएं।
अगर हम अपने यूट्यूब चैनल की टैगलाइन में “अंतिम श्वास तक गुरुकार्य का संकल्प” लिए हुए हैं तो यह संकल्प अपने पूरे होशो-हवास में लिया हुआ है, केवल लिखने के लिए ही यह संकल्प नहीं लिया है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की संकल्पित सहकर्मी एवं हमारी जीवनसाथी आदरणीय नीरा इन पंक्तियों की प्रतक्ष्य साक्षी हैं।
हमारे समर्पित साथी हमारे साथ अंतर्मन से जुड़े हुए हैं और वोह भी जानते हैं कि हमारा संकल्प अकेले तो पूरा होने वाला नहीं है, इसीलिए भांति-भांति की याचनाएं करते रहते हैं। हम इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि सभी परिजन हमारी याचनाओं का सम्मान करें, ऐसा संभव नहीं है। लेकिन जितने भी परिजन हमें सुनते हैं, हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग दे रहे हैं,हम उनके समक्ष नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकते।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से संबंधित हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण इशू गुरुदेव के दिव्य ज्ञान को सभी उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए, ठीक से समझना एवं अपनी सीमित समझ का प्रयोग करते हुए OGGP के मंच से सहयोग की आशा के साथ प्रकाशित करना है।
इस मंच पर तरह-तरह के प्रकाशन (ज्ञानप्रसाद लेख, दिव्य संदेश, विडियोज, शॉर्ट विडियोज आदि) के दो मुख्य निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
1. पहला उद्देश्य तो गुरुज्ञान से स्वयं को शिक्षित करना,अपना सुधार करना, आत्मिक-शांति, आत्म-परिष्कार है। यह उद्देश्य धीरे-धीरे जिस प्रकार से पूरा हो रहा है,उसे “कायाकल्प” शब्द से सम्मानित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। ऐसा तो हैं नहीं है कि हम नियमित गुरुज्ञान के अमृतपान से पहले कोई बिगड़े हुए,शराब ,सिगरेट,जुए जैसे व्यसनों से ग्रस्त थे लेकिन जो कुछ मिला है उसे अप्रकाशित ही रखना उचित रहेगा। हां इतना अवश्य कह सकते हैं कि 2017 से पहले, ज्ञान के विषय पर हम एक भटके हुए मानव जैसे थे। हिन्दू, सिख, मुस्लिम,ईसाई आदि अनेकों समारोहों में, आयोजनों में लगातार जाते रहते थे, मन में उठती ज्ञान की तृष्णा ने इतना Confuse किया हुआ था कि संदेह और शंकाओं के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं हो रहा था। विज्ञान की बैकग्राऊंड ने ऐसा दिमाग खराब किया हुआ था कि कभी ऐसा हुआ ही नहीं कि बिना तर्क के,विश्लेषण के,चीड़फाड़ के किसी भी तथ्य को माना हो। ऐसी तार्किक प्रवृति आज ही नहीं बल्कि बाल्यकाल से ही बनी आ रही है। मुश्किल से 5 वर्ष की ही आयु होगी जब गांव के घर के बड़े से आंगन में लगभग 15 चारपाइयों के सामूहिक ओपन बेडरूम में, सारी-सारी रात अमावस की काली रात में चमकते सितारों पर स्वयं से प्रश्न करते रहते थे। औरों के लिए यह रात मात्र अमावस की काली रात थी लेकिन हमारे लिए ईश्वर का हीरे-जवाहरात से जड़ा एक विशालकाय थाल जैसा उपहार था।अनेकों बार स्वयं से ईश्वर के इस विशाल थाल के बारे में प्रश्न कर चुके थे, “सितारे चमकते क्यों हैं।”
शायद गुरुवर ने इसी तार्किक,अनुसन्धान प्रवृति एवं नवीन-नवीन प्रयोग करने की प्रवृति देखकर हमें ऑनलाइन ज्ञानरथ का कार्यभार संभाला होगा। वोह तो वही जाने लेकिन इतनी तम्मना ज़रूर है कि अंतिम श्वास तक निष्ठापूर्वक उनका आशीर्वाद प्राप्त करके मानव जाति के लिए कुछ कर सकें।
2. OGGP के मंच पर प्रकाशन का दूसरा उद्देश्य उसी छिपाव से निकल कर आता है जिसे हम प्रकाशित करने से पीछे हट रहे हैं। हम संपूर्ण विश्वास एवं बल से कह सकते हैं कि यदि गुरुदेव का ज्ञान हमारी सर्जरी करके नवजीवन, एक नवीन काया प्रदान कर सकता है तो हमारे सहयोगियों के लिए क्यों नहीं कर सकता।
यही कारण है कि हमें हर पल हमारे साथियों के Well-Being की चिंता सताए रहती है, हर समय यही कामना करते रहते हैं विश्व में कहीं भी, हमारे परिवार का प्रत्येक सदस्य सुखी एवं प्रसन्न हो। इसीलिए हम हर किसी सदस्य के बारे में अपडेटेड इनफॉर्मेशन रखने को उत्सुक रहते हैं। यही कारण है कि हम अपने साथियों को अति बलशाली कॉमेंट-काउंटर कॉमेंट की प्रक्रिया में सक्रिय होने को कहते रहते हैं। जब भी किसी साथी का किसी दिन कोई कॉमेंट नहीं पोस्ट होता,हमें उसके बारे में पता नहीं चलता तो हमारी क्या दशा होती है, हम ही जानते हैं। लोग तो यह समझते होंगे कि हमें तो केवल कॉमेंट्स और उसके नंबर से ही मतलब है लेकिन ऐसा है नहीं।
हम अनेकों बार निम्लिखित प्रश्न कर चुके हैं :
हमारे साथी कॉमेंट क्यों नहीं करते?
यदि उन्हें गुरुदेव का साहित्य प्रभावित करता है तो उनके अंतःकरण में भावनाओं का सागर ठाठें क्यों नहीं मारता?
क्या हमारे परिवार की सक्रियता केवल कुछ एक समर्पित, नियमित साथियों तक ही सीमित रह चुकी है?
क्या इस परिवार में योगदान देना केवल उंगलियों पर गिने-चुने कुछ एक सहकर्मियों तक ही सीमित है?
क्या बार-बार निवेदन करने से हमारे साथी चिढ़ तो नहीं जाते?
क्या हमारे साथियों को लिखने में किसी समस्या का सामना करना पड़ता है?
क्या सभी साथी ज्ञानप्रसाद पढ़ भी रहे हैं कि नहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि ज्ञानप्रसाद ऐसे लोगों के पास जा रहा है जिन्हें गुरुदेव की शिक्षा से कुछ लेना/देना नहीं है?
ऐसा करके हम गुरुदेव का अनादर तो नहीं करवा रहे है?
क्या कमैंट्स की क्वालिटी पर ध्यान रखा जा रहा है ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि Substandard कमेंट नेगेटिव प्रभाव डाल रहे हैं?
यह सभी प्रश्न एक तरफ और हमारा प्रयास एक तरफ,ऐसा पता होने के बावजूद कि हमारे निवेदन कोई नहीं सुनता,उन्हें बार-बार नकारा जा रहा है तो क्या हम यह प्रयास बंद कर देंगे, कदापि नहीं। यदि हमारे गुरुदेव आज 100 वर्ष के बाद भी अपनी संतान की चिंता कर रहे हैं तो हम कैसे स्वयं को रोक सकते हैं। हमारे साथी और हम, हृदय के सूक्ष्म तंतुओं से बंधे हैं। जीवन की लेबोरेटरी में जिस प्रैक्टिकल का हमें लाभ मिला है,अपने साथियों से शेयर कैसे न करें, हम कोई स्वार्थी तो हैं नहीं।
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संजना बेटी का कमेंट:
दो दिन हुए हम और मम्मी पापा जी अलीगढ़ शक्तिपिठ पर समयदान के लिए परिव्राजक के रूप में आएं हैं जिसके लिए हम गुरुसत्ता और आदरणीय डॉ सर व अपने इस परिवार के आशीर्वाद, सतत् सानिध्य के लिए ह्रदय से कोटि कोटि धन्यवाद देना चाहते हैं जो कि हमारे लिए किसी स्वप्न जैसा ही है।
दैनिक संजीवनी गुरु प्रेम-पत्र के लिए आदरणीय सर हम आपका जितना भी इस जीवन का ऋण,अमृतपान को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद बहुत छोटा शब्द हो जाएगा। कुछ अच्छे कर्म होंगे जो आप सभी संतों का संग मिला जो हर पल दुख हो या सुख की घड़ी में शानदार मार्गदर्शन करता रहा है,सच में यह कोई मामूली बात नहीं है।
क्यों?
जैसे ही हमारे मामा जी ने सुना कि हम अपना घर छोड़कर DSVV आ गयें हैं तो वो बहुत ही आश्चर्य,चिंता में कुछ हँसते हुए कह रहे थे कि “कंठी माला धारण कर ली, घर क्यूँ छोड़ रही आदि सवाल!” हमारे लिए उन्हें समझाना बहुत कठिन हो रहा था क्योंकि हमारी परिस्थितियां कुछ वैसी ही हैं। गुरु जी-माता जी की दूरदर्शीता कि “हमें महान बनना है बड़ा बनने की होड़ में जीवन नहीं गवांना” उन्हें यह बात समझाना बहुत कठिन हो रहा था। फिर भी हमने उन्हें आश्वासन दिया कि आपके सारे सवालों के जवाब दो साल बाद देंगे क्योंकि उन्हें हमारी सफलता केवल नौकरी में ही तो दिखेगी। यह सब तो बस पूजा-पाठ ही लगेगा। इसलिए हमें लगता है “महानता के बीज किसी के अंदर डालने के लिए बहुत पुरुषार्थ करने होंगे ताकि हम सफलता बड़प्पन की भाषा में ही उनको महानता का पाठ जीकर दिखा सकें।
बस गुरुसत्ता और आदरणीय सर एवं हमारे पूरे परिवार से ऐसे ही श्रेष्ठ मार्गदर्शन एवं सतत् सानिध्य वात्सल्य की प्रार्थना🙏🙇❤। किसी त्रुटि के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं 🙏🏻। जय गुरुदेव, जय महाकाल🙏❤🙏❤🙏❤
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समापन,जय गुरुदेव