वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मैं एकाकी हूँ, शरीर से भिन्न हूँ। आत्मा हूँ। 

आज का ज्ञानप्रसाद लेख ही वह उत्कृष्ट लेख था जिसने मार्च 1972 की अखंड ज्योति की ओर  ऐसा आकर्षित किया कि न जाने हमने कितने  ही लेख पढ़ डाले। जीवन के सत्य को परिभाषित करता लेख “आत्मा और काया” की इतना सटीक विश्लेषण है कि सभी पाठक कहेंगें कि हमें तो यह सब पता ही है, इसमें क्या नया  है ? यदि सब कुछ  पता है तो फिर इतनी भागदौड़ क्यों है? अमीर होने की, ऊँची छलांग लगाने की, ज्ञानार्जन के बजाये धनार्जन की रेस क्यों है ? ज़रा सोचिये; अगर चिंतन नहीं करेंगें तो ज्ञानप्रसाद लेख केवल एक दिनचर्या से बढ़कर कुछ नहीं होगा। अपने व्यक्तिगत विचारों के लिए क्षमाप्रार्थी हैं,इन्हें मानने/नकारने में पूरी  तरह स्वतंत्र हैं।

शब्दसीमा के कारण आज का ज्ञानप्रसाद पीडीऍफ़ फॉर्म में प्रस्तुत किया गया है। हमें यह लेख इतना रोचक लगा कि इंटरनेट आर्काइव पर अपलोड करने से अपनेआप को रोक न पाए। 

कल प्रस्तुत किये गए लेख को 483 कमेंट मिले,11 साथिओं ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है। सभी का धन्यवाद्, बधाई एवं शुभकामना 


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