21 मई 2025 का ज्ञानप्रसाद -Various sources
आज नवंबर 1958 के सहस्र कुंडीय यज्ञ पर आधारित लेख श्रृंखला का समापन अंक प्रस्तुत किया गया है। 22 अंक (वर्तमान लेख के समेत) पूरी तरह से महायज्ञ को समर्पित, एक लेख यज्ञ के महत्व को समर्पित एवं एक लेख अश्वमेध यज्ञ को समर्पित करना गुरुवर की ही प्रेरणा थी। गुरुवर के आदेश का पालन करते हुए “24” के दिव्य अंक के साथ इस शृंखला का समापन होना हमें एक अद्भुत प्रसन्नता की अनुभूति प्रदान करा रही है।
आज के लेख में कुछ चुनिंदा स्थानों के नाम एवं गतिविधियां ही शामिल की गयी हैं जिन्होंने सहस्र कुंडीय यज्ञ में अपने-अपने स्थान पर यज्ञ करवाने का संकल्प लिया था। संकल्प तो 108 स्थानों का था लेकिन उससे कहीं अधिक स्थानों पर यज्ञ हुए। सभी के नाम देना अनुचित ही होगा इसलिए कुछ एक के ही दिए गए हैं।
कल गुरुवार है, नई श्रृंखला आरम्भ करना तो उचित नहीं होगा इसलिए बिल्कुल ही Independent लेख प्रस्तुत करने की योजना है जिसका गायत्री परिवार आदि से कोई भी सम्बंध नहीं है। एक ऐसा लेख जिससे हमारा एवं आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बहुत ही प्रभावित होने वाला है। आदरणीय चिन्मय जी ने तो इसे हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराये गए एटम बम से भी खतरनाक बताया है। आधुनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित,एक ही अंक में समाप्त होने वाला यह लेख कल प्रस्तुत किया जायेगा।
तो आइये आज के लेख का शुभारम्भ विश्वशांति की कामना से करें और देखें कि गुरुवर का स्वप्न “भारत भूमि पुनः यज्ञभूमि बनकर रहेगी”, कैसे सार्थक होता दिख रहा है।
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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सहस्र कुंडीय गायत्री महायज्ञ के समय घर-घर में गायत्री यज्ञ करने का संकल्प लिया गया था। इस संकल्प के पीछे यही धारणा थी कि जिस प्रकार तीर्थयात्रा से लौटने पर लोग अपने घरों पर ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, हवन, कथा आदि करते हैं वैसे ही मथुरा महायज्ञ से प्रेरणा लेकर गायत्री उपासकों को अपने-अपने क्षेत्र में छोटे-बड़े यज्ञ करने का उत्साह होना स्वाभाविक ही था। उस उत्साह को सुसंगठित करके तीन माह में 108 स्थानों पर 24 करोड़ जप और 24 लक्ष आहुतियों का आयोजन कराना निश्चय हुआ था। प्रसन्नता की बात है कि गायत्री महायज्ञ के संरक्षक और भागीदार उस संकल्प को पूरा करने के लिए अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बड़े उत्साहपूर्वक जुट गये और वह संकल्प आनंदपूर्वक पूर्ण हो गया।
108 स्थानों में 24 करोड़ जप, 24 लक्ष आहुतियों का संकल्प था लेकिन उससे बहुत अधिक का आयोजन हुआ। यह शृंखला देश भर में बड़े उत्साहपूर्वक चली, अधिकतर में गुरुदेव भी प्रसन्नतापूर्वक पहुंचे । यह सर्वविदित है कि गुरुदेव कहीं जाने में दक्षिणा तो दूर रेलभाड़ा भी बहुत आग्रह पर ही लेते हैं।
पूर्णाहुति से 30 दिन के भीतर ही “झालरापाटन (राजस्थान)” के उत्साही उपासकों ने सवालक्ष आहुतियों का यज्ञ 9 कुण्डों की मनोरम यज्ञशाला बनाकर पूर्ण कर डाला। चन्द्रभागा नदी के पुनीत तट पर एकत्रित हजारों नर-नारियों ने जिस श्रद्धा से यज्ञ- भगवान का भजन किया उसे देखकर सतयुग के ऋषि आश्रमों का स्मरण हो आता था। उसी समय एकत्रित धर्मप्रेमियों में से अनेकों ने अपने-अपने यहाँ 24 हजार आहुतियों के यज्ञों का आयोजन करने की अभिलाषा प्रकट की, जिसमें से “सुकेत, कनवास, जुल्मी, चेचट”, इन चार ग्रामों में यज्ञों की छांट की गयी । गायत्री जयन्ती से एक-दो दिन आगे पीछे इन चारों ही स्थानों पर बड़े उत्साहपूर्वक यज्ञ हुए। यज्ञों का इस प्रकार सार्वजनिक आयोजन जिसमें सभी नर-नारी भाग ले सकें सनातन धर्मावलम्बी जनता के लिए एक नई बात थी। प्रातः काल से ही सहस्रों नर-नारी स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहिन कर यज्ञभूमि में पहुंचकर जप और हवन करते दिखाई पड़ते थे। इन चारों ही यज्ञों में परम पूज्य गुरुदेव स्वयं पहुँचे थे। उनकी उपस्थिति से भावनाओं का बाँध टूटा पड़ता था।
इसके बाद विभिन्न स्थानों पर यज्ञों की श्रृंखला आरम्भ हो गयी और गुरु पूर्णिमा तक सभी की पूर्णाहुति हो गई। “हरनबाड़ा, वैकुँठपुर,मालेगाँव,इन्दौर, भिण्ड वकानी, इकलेरा, झाँसी आदि” में अनेकों यज्ञ आयोजित किये गए। झाँसी में चिम्दे लुटेरे की बगिया के सुन्दर उद्यान में 9 कुण्डों की सुसज्जित यज्ञशाला बनाई गई थी। 24 हजार आहुतियों का संकल्प था लेकिन सम्मिलित होने के इच्छुक श्रद्धालुओं के आशा से अधिक आ जाने के कारण दुगनी से भी अधिक आहुतियाँ दी गईं । घनघोर वर्षा के बीच भीगते हुए उपासकों का यज्ञ तथा प्रवचनों में अविचल भाव से बैठे रहना उनकी निष्ठा को प्रकट करता था। अधिकाँश रेलवे विभाग के कार्यकर्ताओं के उत्साह से यह सब कार्य सम्पन्न हुआ। मथुरा से स्वामी प्रेमानंद, पं॰ गोरखनाथ तथा गुरुदेव भी इस यज्ञ में पधारे थे। उनके प्रवचन सरस्वती इंटर कालेज में भी हुए। लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर तथा उसके संचालक श्री अन्नासाहब की गति विधियों को देखकर गुरुदेव विशेष प्रभावित हुए।
“बिजनौर (यू पी)” का गायत्री यज्ञ 6 दिन तक चला, वेद पाठ, प्रवचन, श्रीमद्भागवत की कथा, कीर्तन का कार्यक्रम बड़ा ही हृदय ग्राही रहा, 620 होताओं द्वारा 24 हजार के स्थान पर 40 हजार आहुतियाँ हुई। माता विद्यावती देवी, मगनीदेवी, सन्नोदेवी ने अथक परिश्रम से इस यज्ञ की सफलता में चार चाँद लगा दिये।
“लश्कर (मध्य प्रदेश)” में सेन्ट्रल जेल के जेलर श्री जनार्दन माधव देशमुख महोदय के स्थान पर यज्ञ सम्पन्न हुआ। जेल कम्पाउण्ड में रहने वाले तथा अन्य धर्म प्रेमियों ने उसमें भाग लिया। ।
“दिगोड़ा (टीकमगढ़)” के यज्ञ में जनता के उत्साह का ठिकाना न था। 24 हजार के स्थान पर 40 हजार आहुतियाँ हुई, 51 कन्याओं का भोजन होना था पर वह संख्या 90 के करीब पहुँची।
“कानपुर” में सर्व श्री गिरजाप्रसाद वाजपेयी, हजारी लाल वर्मा, कौशलकिशोर त्रिपाठी, अयोध्याप्रसाद दीक्षित आदि सज्जनों के प्रयत्न से गोविंद नगर में यज्ञ हुआ। गायत्री परिवार के सभी व्यक्तियों के पास छपवाकर निमंत्रण-पत्र भेजे गये थे। इस सामूहिक आयोजन में बड़ा आनंद रहा, प्रसाद में छोटी गायत्री पुस्तिकाएं बाँटी गई।
“जोधपुर” में गायत्री जयन्ती से लेकर ज्येष्ठ पूर्णिमा तक 7 दिन एक बड़ा यज्ञ श्री उम्मेद हाईस्कूल में हुआ था, जिसमें मथुरा से गुरुदेव भी गये थे। इसमें सभी गायत्री उपासकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और प्रतिदिन महत्वपूर्ण प्रवचन होते रहे। अब वहाँ साप्ताहिक हवन क्रम जारी है। पं॰ श्यामकरण जी की माताजी के मन्दिर में प्रत्येक अष्टमी को हवन चालू कर दिया है। गुरु पूर्णिमा को भी चौबीस सौ आहुतियों का हवन बड़ी सफलतापूर्वक हुआ, जिसमें ऋषीकेश के श्री अखंडानन्दजी का गायत्री पर सारगर्भित प्रवचन हुआ।
“टाटानगर (जमशेदपुर)” में 24 हजार आहुतियों का हवन 9 वेदियों पर हुआ। 24 लक्ष जप यथासमय पूरा हो गया था। केवल 4 मन भोजन बनाया गया था लेकिन आश्चर्य है कि इसमें लगभग 11000 व्यक्तियों ने भोजन किया और प्रसाद भी बँटा। यहाँ के गायत्री उपासकों में कुछ शिथिलता आ गई थी, वह इस यज्ञ से दूर हो गई।
“आगरा” में गायत्री उपासकों ने बड़े ही उत्साहपूर्वक 24 हजार आहुतियों का कार्यक्रम दाऊजी मन्दिर छीपी टोला में पूर्ण किया। नगर के सम्भ्रान्त सज्जन बड़ी संख्या में इस यज्ञ में आग लेने आते रहे और तीनों दिन उच्चकोटि के भाषण होते रहे। साथ ही महिला सम्मेलन भी हुआ। डिवाई (बुलन्दशहर) में श्री बाँकेलाल गुप्त ने यज्ञ की प्रशंसनीय व्यवस्था की।
“आरंग (रायपुर)” की संस्कृत पाठशाला में सामूहिक यज्ञ हुआ। बरसते पानी में भी सभी नर-नारी आनन्दपूर्वक भाग लेते रहे। दर्शकों की संख्या भी काफी थी। यहाँ के लिए सामूहिक यज्ञ एक नई बात थी, फिर भी सब कार्य भली प्रकार हो गया। खरियार (उड़ीसा) में 35 भागीदारों ने जप पूर्ण किया और गुरु पूर्णिमा के दिन सामूहिक हवन दधिवामन मन्दिर में हुआ। अनेक संभ्रान्त व्यक्ति उपस्थित थे। श्रीमान् राजा साहब के हाथों याज्ञिकों को अभिनन्दन-पत्र वितरण कराये गये। सर्वश्री प्रतापचन्द प्रधान, विद्याभूषण महाअती, चन्द्रशेखर विमी अपने परिवार समेत गायत्री तपोभूमि गए थे, इन लोगों ने ही यह उत्साह यहाँ उत्पन्न किया था।
“कल्याण (मुंबई)” में श्री मोरेश्वर वामन ढोसर के प्रयत्न से सामूहिक जप तथा हवन का कार्यक्रम सुव्यवस्थित रीति से हुआ। कई सज्जनों ने 24 लक्ष अनुष्ठान के संकल्प किये।
“हापुड़” के लक्ष्मीनारायण मन्दिर में तीन दिन तक यज्ञ हुआ। 2 मन सामग्री लगी। 30 ब्राह्मणों को भोजन कराया। पं॰ लालमणि शर्मा पं॰ ओउम्प्रकाश शास्त्री, ब्रह्मचारी जगदीश शर्मा ने यज्ञ कार्य विधिपूर्वक कराया। नगर के अनेक सत्पुरुषों ने इसमें प्रेमपूर्वक सहयोग दिया, काली बावड़ी (धार) में गायत्री उपासकों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, मन्त्र लेखन चालू है। गुरु पूर्णिमा को सामूहिक हवन बड़े प्रेमपूर्वक हुआ। पं॰ गंगाराम शर्मा प्रधानाध्यापक द्वारा लोगों को बड़ी प्रेरणा मिल रही है।
“सतना (विन्ध्य प्रदेश)” गैंग क्वाटर्स एरिया में श्री आर॰ आर॰ मिश्रा के प्रयत्न से बड़ा सफल यज्ञ हुआ। नगर के उच्चकोटि के व्यक्ति उसमें श्रद्धापूर्वक सम्मिलित हुए। पिछोर (झाँसी) गायत्री उपासकों ने श्रद्धापूर्वक हवन किया, श्री लक्ष्मण शास्त्री का प्रवचन हुआ। श्री रामचरण जी पटवारी तथा श्री गंगाप्रसादजी चौधरी द्वारा ब्राह्मण भोजनादि की व्यवस्था सम्पादित हुई। टीकर पुरवा (खीरी) में श्री भगवतीप्रसाद वर्मा के प्रयत्न से यज्ञ कार्य निर्विघ्न पूर्ण हुआ।
“रस गाँव (खरगौन)” के पं॰ गणपतिलाल जी एक सुन्दर गायत्री मन्दिर निर्माण कर चुके हैं। उसमें अखंड दीपक तथा अखंड अग्नि स्थापित है। गुरु पूर्णिमा पर सवालक्ष आहुतियों का हवन बड़े ही आनन्दपूर्वक सम्पन्न हुआ। यहाँ आगामी माघ मास में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन हो रहा है। गणपतिलाल जी का परिवार एक प्रकार से गायत्री माता में तन्मय हो रहा है।
“बरेली” में श्री चिम्मनलाल सूरी के प्रयत्न से गायत्री उपासकों की संख्या दिन-दिन बढ़ रही है। साप्ताहिक हवन बड़े उत्साह से होते हैं। गत दो मास में दो लाख से अधिक आहुतियों का हवन हो चुका है। गुरु पूर्णिमा के दिन सवालक्ष आहुतियों का यज्ञ हुआ। 130 व्यक्ति नियमित जप करने वाले भागीदार बन चुके हैं। इसी वर्ष सवालक्ष आहुतियों का एक और बड़ा सामूहिक यज्ञ करने का इन लोगों का विचार है। सूरीजी की धर्मपत्नी श्री॰ सुलोचना कुमारी भी अपने पतिदेव जैसी ही निष्ठावान हैं, इनकी एक मार्मिक पुस्तक ‘गायत्री से समाज-सुधार’ प्रकाशित हुई है।
“गोंडा” में 24 लक्ष का जप और 24 हजार आहुतियों का हवन 5 कुण्डों में बड़े आनन्दपूर्वक हुआ। रेलवे विभाग के अनेक कार्यकर्ता इसे सफल बनाने में बड़े उत्साह से जुटे रहे। बड़ी संख्या में नर-नारी एकत्रित हुए। “नरमेधी” पं॰ भरतलाल जी अवस्थी भी पधारे।
“बाराँ (कोटा)” में गायत्री जयन्ती पर बड़े विशाल रूप में गायत्री महायज्ञ हुआ हजारों व्यक्ति सम्मिलित हुए। 900 लोगों का ब्रह्म-भोज हुआ। लोग दाँतों तले उँगली दबाते हुए कहते थे कि बाराँ में ऐसा यज्ञ आज तक नहीं हुआ। पं॰ श्री कृष्णजी, श्री भँवरलालजी आदि अनेक व्यक्तियों का भारी योगदान इसे सफल बनाने में रहा। गुरु पूर्णिमा को भी यहाँ पर 5 कुण्डों में 50-60 व्यक्तियों द्वारा यज्ञ सम्पन्न हुआ।
ऐतिहासिक स्थान खरगौन में निमाड़ गायत्री परिवार की स्थापना हुई और दर्शनीय सामूहिक यज्ञ हुआ। श्री ओंकारलाल जी की ओर से उपासकों तथा आगन्तुकों को भोजन कराया गया।
“आरा (बिहार)” के गायत्री उपासकों ने मिलकर प्रेमपूर्वक हवन किया। “करंगामाल (उड़ीसा)” में जगन्नाथ जी के मन्दिर पर सामूहिक यज्ञ हुआ, जिसमें 15-20 गाँवों के व्यक्ति कीर्तन मंडलिया बनाकर पूर्णाहुति में आये। 33 भागीदारों ने नियमित अनुष्ठान में भाग लिया।
समापन, जय गुरुदेव
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